उत्तराखण्ड विधानसभा उपचुनाव ;राजस्थान और मध्य प्रदेश उपचुनाव को दोहरायेगा?
उत्तराखण्ड में भी एक विधानसभा उपचुनाव संभावित , एक भाजपा विधायक के निधन क बाद विधानसभा उपचुनाव होना है, परन्तु उत्तराखण्ड में भी राजस्थान और मध्य प्रदेश क उपचुनाव को दोहराया जा सकता है-
उपचुनावों में सत्ताधारी दलों का पलड़ा ही हावी रहता है। मगर, यह मान्यता राजस्थान और मध्य प्रदेश के हालिया हालिया उपचुनाव के नतीजों ने गलत साबित कर दी है।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए यह चौथा झटका है। साल के आखिर में राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ मध्य प्रदेश में चुनाव है, ऐसे में शिवराज कैंप में बेचैनी
मध्य प्रदेश के कोलारस और मुंगावली सीट उपचुनाव के नतीजे चाहें जो हो लेकिन एक बात तय है कि यह बाजी ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम रही. चुनावी रणनीति को जमीन पर उतारने में कांग्रेस के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को परास्त कर दिया है. बीजेपी की ओर से प्रचार की जिम्मेदारी जहां खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संभाल रखी थी तो कांग्रेस के गढ़ की रखवाली का जिम्मा ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर रही. इस चुनाव का विश्लेषण करें तो एक बात साबित होती है कि बीजेपी ने चाहे-अनचाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के कद का बढ़ा दिया है.
भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने पार्टी शासित 19 राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की, कुछ राज्यो में परिवर्तन तय माना जा रहा है- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री परिषद की बैठक हुई जिसमें असम, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, मणिपुर, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री तथा जम्मू कश्मीर, बिहार, उत्तरप्रदेश एवं गुजरात के उपमुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल हुए। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर अस्वस्थ होने के कारण नहीं आ सके।
मध्य प्रदेश कांग्रेस में लंबे समय से खेमेबाजी से जूझ रही थी. शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी को इसका फायदा भी हो रहा था. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के अलग-अलग खेमे में बंटे हुए थे. कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्य में पार्टी की कमान सौंपकर दोनों वरिष्ठ नेताओं को संदेश देने की कोशिश की थी. हालांकि इसी बीच दिग्विजय सिंह पत्नी अमृता के साथ नर्मदा यात्रा पर निकल गए, ताकि वे राज्य की राजनीति में एक बार फिर से अपनी दावेदारी को पेश कर सकें.
कांग्रेस में इसी खींचतान के बीच कोलारस और मुंगावली सीट पर उपचुनाव की घोषणा हो गई. ये दोनों सीटें कांग्रेस का गढ़ मानी जाती हैं.ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के इस गढ़ को बचाने की जिम्मेदारी संभाली. कांग्रेस की प्रतिष्ठा बचाने के लिए सिंधिया जमीन पर उतर आए, जिसमें वे कामयाब भी हो गए.
इसी बीच विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल मान रही बीजेपी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे के साथ प्रचार में उतर गई. मध्य प्रदेश की राजनीति पर नजदीक से नजर रखने वाले जानकार मानते हैं कि यहीं बीजेपी से गलती हो गई, क्योंकि शिवराज के प्रचार में उतरते ही इन दो सीटों का मुकाबला प्रत्याशियों के बजाय सीएम बनाम ज्योतिरादित्य हो गया. जनता के बीच संदेश गया कि बीजेपी मान चुकी है कि आगामी चुनाव में ज्योतिरादित्य ही कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार होंगे.
कोलारस और मुंगावली सीट पर कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन का सेहरा ज्योतिरादित्य के सिर बंधना तय माना जाने लगा. उपचुनाव में प्रचार के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया हाईप्रोफाइल कैंपेन के बजाय डोर टू डोर कैंपन का सहारा ले रहे थे. सीएम शिवराज ने भी यही तरीका अपनाया और हेलीकॉप्टर से प्रचार स्थल पर पहुंचने के बजाय रोड से गए. इन सब के बावजूद लोगों ने शिवराज के बजाय सिंधिया पर भरोसा जताया. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके मंत्रियों ने अपने विकास कार्यों का गुणगान करने के बजाय ज्योतिरादित्य सिंधिया पर पर्सनल जुबानी हमले किए. ऐसे में स्वभाविक है कि बीजेपी ने चाहे-अनचाहे जनता में संदेश दे दिया कि वह उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का चेहरा मान बैठी है.