297 साल बाद वैशाख पूर्णिमा पर है यह दुर्लभ योग
10 मई को है वैशाख पू्र्णिमा ! 297 साल बाद वैशाख पूर्णिमा पर है यह दुर्लभ योग # पौष का महीना सूर्यदेव का माना जाता है और पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा की तिथि होती है#सूर्य और चंद्रमा का ऐसा अद्भुत संयोग पौष पूर्णिमा को ही मिलता है#इस दिन सूर्य और चंद्र की उपासना से तमाम मनोकामनाएं पूरी # पौष महीने का अंतिम दिन पूर्णिमा का होता है और इस दिन महास्नान # पौष पूर्णिमा पर दुनिया भर में लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं# www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaer)
297 साल बाद बहुत ही शुभ समय #10 मई को वैशाख पूर्णिमा# वैशाख पूर्णिमा का विशेष महत्व# 10 मई को आने वाली पूर्णिमा के साथ बुद्ध आदित्य महासंयोग बन रहा है# इस प्रकार के योग संयोग की गणना ज्योतिष में बहुत ही दुर्लभ होती है# वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन धर्मराज व्रत रखा जाता है# इस दिन दान पुण्य और धर्म कर्म किये जाते है# बहुत पवित्र तिथि #पुराणों में इसका बहुत खास महत्व #इस दिन कुछ जरुरी उपाय करने से शीघ्र ही फल मिलेंगे #
हिंदुओं में हर महीने की पूर्णिमा विष्णु भगवान को समर्पित होती है. इस दिन तीर्थ स्थलों में गंगा स्नान का लाभदायक और पाप नाशक माना जाता है. लेकिन वैशाख पूर्णिमा का अपना-अलग ही महत्व है. इसका कारण यह बताया जाता है कि इस माह होने वाली पूर्णिमा को सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होता है. इतना ही नहीं चांद भी अपनी उच्च राशि तुला में होता है. कहते हैं कि बुद्ध पूर्णिमा के दिन लिया स्नान कई जन्मों के पापों का नाश करता है.
चन्द्रमा की पूजा करें
वसंतबान्धव विभो शितांशो स्वस्ति न: कुरु |
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणिपते |
सूर्य और चंद्रमा दोनों उच्च राशि में
बुद्ध पूर्णिमा के दिन यह अनोखा संयोग ही होता है कि सूर्य अपनी उच्च राषि मेष में जबकि चंद्रमा अपनी उच्च राशि तुला में स्थित होते हैं। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति के पिछले कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व माना जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा पर 297 साल बाद बुधादित्य योग का महासंयोग – यह महासंयोग 10 मई बैसाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) पर पड़ रहा है। इससे पहले 22 अपै्रल 1720 को बुधादित्य योग पड़ा था। वैशाख में बृहस्पति का संबंध, मंगल, शनि व शुक्र के साथ दुर्लभ होता है। सालों बाद ऐसी स्थिति बन रही है। इस बार यह संयोग शनि की गणना तथा बृहस्पति के वक्रत्व काल से बना है। वैशाख मास की पूर्णिमा जो इस साल 10 मई 2017 को है के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी दिन बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध ने गोरखपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित कुशीनगर में महानिर्वाण की ओर प्रस्थान किया था। ऐसा महासंयोग किसी अन्य महापुरुष के साथ हुआ हो, इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता।
हिन्दू धर्मावलम्बियों का मानना है कि महात्मा बुद्ध विष्णु भगवान के नौवे अवतार है | अत: इस दिन को हिन्दुओं में पवित्र दिन माना जाता है और इसलिए इस दिन विष्णु भगवान की पूजा – अर्चना की जाती है | बौद्ध पूर्णिमा का बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन ही उनको निर्वाण की प्राप्ति हुई थी | वैशाख महीने में आने वाली पूर्णिमा को सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होता है और चन्द्रमा भी अपनी उच्च राशि तुला में होता है | अत: ऐसे शुभ मुहूर्त में पवित्र जल से स्नान करने से कई जन्मों के पापों का नाश हो जाता है | बुद्ध पूर्णिमा के दिन पूजा – पाठ करने और दान देने का भी विशेष महत्व है | इस दिन सत्तू, मिष्ठान, जलपात्र, भोजन और वस्त्र दान करने और पितरों का तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है | वैशाख पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के दिन प्रात: पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए | यदि पवित्र नदी में स्नान करना संभव न हो तो शुद्ध जल में गंगाजल मिला कर स्नान करें | प्रात: स्नान के बाद व्रत लें |
पूरे विधि – विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें | प्रसाद के रूप में चूरमें का भोग लगाएं | पूजा सम्पन्न होने के बाद सभी को प्रसाद ग्रहण करने के लिए दें और अपने सामर्थ्य अनुसार गरीबों को दान दें | रात के समय फूल, धूप, गुण, दीप, अन्न आदि से पूरी विधि – विधान से चन्द्रमा की पूजा करें | चन्द्रमा की पूजा करते समय इस विशेष मंत्र का उच्चारण करें :
वसंतबान्धव विभो शितांशो स्वस्ति न: कुरु |
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणिपते |
बुद्ध पूर्णिमा पूजा कैसे करे
पूर्णिमा के दिन सबसे पहले भगवान विष्णु की प्रीतिमा के सामने घी से भरा हुआ पात्र, तिल और शक्कर स्थापित करें |
पूजा वाले दीपक में तिल का तेल डालकर जलाना चाहिए | पूर्णिमा के दिन पूजा के वक्त तिल के तेल का दिया जलाना अत्यन्त शुभ माना जाता है | अपने पितरों की तृप्त के लिए व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पवित्र नदी में स्नान करके हाथ में तिल रखकर तर्पण करें |
इस दिन पंक्षियों को पिजड़े से मुक्त कर आकाश में छोड़ा जाता है |
पूर्णिमा के दिन दान में गरीबों को वस्त्र, भोजन दें | ऐसा करने से गोदान के सामान फल प्राप्त होता है | पूर्णिमा के दिन तिल व शहद को दान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होता है | इस दिन मांस – मदिरा का सेवन करना वर्जित है क्योंकि गौतम बुद्ध पशु बध के सख्त विरोधी थे |
कृष्ण ने सुदामा को सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था. और उनकी गरीबी नष्ट
बुद्ध पूर्णिमा वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. इसे वैशाख पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन को भगवान गौतम बुद्ध की जयंती और उनके निर्वाण दिवस दोनों के ही तौर पर मनाया जाता है. इसी दिन भगवान बुद्ध को बौध यानी ज्ञान प्राप्त हुआ था. यह बुद्ध अनुयायियों का बड़ा त्योहार है. माना जाता है कि वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु का ने अपने नौवें अवतार के रूप में जन्म लिया. यह नौवां अवतार था भगवान बुद्ध का. इसी उनका निर्वाण हुआ.
इसी दिन को सत्य विनायक पूर्णिमा के तौर पर भी मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा गरीबी के दिनों में उनसे मिलने पहुंचे. इसी दौरान जब दोनों दोस्त साथ बैठे थे, तो कृष्ण ने सुदामा को सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था. सुदामा ने इस व्रत को विधिवत किया और उनकी गरीबी नष्ट हो गई. इस दिन धर्मराज की पूजा करने की भी मान्यता है. कहते हैं कि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं. माना जाता है कि धर्मराज मृत्यु के देवता हैं इसलिए उनके प्रसन्नी होने से अकाल मौत का ड़र कम हो जाता है.
बोधगया में बोधिवृक्ष के दर्शन करने हजारों लोग रोज आते हैं. यह वही वृक्ष है जिसके नीचे बैठकर गौतम बुद्ध को बोध यानी ज्ञान प्राप्त हुआ था. बौध धर्म को मानने वालों के लिए यह वृक्ष बहुत महत्व रखता है. बुद्ध पूर्णिमा के दिन तो दूर-दूर से बौध अनुयायी इस वृक्ष की पूजा करने आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र वृक्ष को भी तीन बार नष्ट करने का प्रयास किया गया. लेकिन तीनों बार यह प्रयास विफल हुआ. आज जो पेड़ सारनाथ में मौजूद है वह अपनी पीढ़ी का चौथा पेड़ है.
पहली कोशिश
कहा जाता है कि बोधिवृक्ष को सम्राट अशोक की एक वैश्य रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे कटवा दिया था. यह बोधिवृक्ष को कटवाने का सबसे पहला प्रयास था. रानी ने यह काम उस वक्त किया जब सम्राट अशोक दूसरे प्रदेशों की यात्रा पर गए हुए थे. मान्यताओं के अनुसार रानी का यह प्रयास विफल साबित हुआ और बोधिवृक्ष नष्ट नहीं हुआ. कुछ ही सालों बाद बोधिवृक्ष की जड़ से एक नया वृक्ष उगकर आया. उसे दूसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है, जो तकरीबन 800 सालों तक रहा. गौरतलब है कि सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेन्द्र और बेटी संघमित्रा को सबसे पहले बोधिवृक्ष की टहनियों को देकर श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने भेजा था. महेन्द्र और संघिमित्रा ने जो बोधिवृक्ष श्रीलंका के अनुराधापुरम में लगाया था वह आज भी मौजूद है.
दूसरी कोशिश:
दूसरी बार इस पेड़ को बंगाल के राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को जड़ से ही उखड़ने की ठानी. लेकिन वे इसमें असफल रहे. कहते हैं कि जब इसकी जड़ें नहीं निकली तो राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को कटवा दिया और इसकी जड़ों में आग लगवा दी. लेकिन जड़ें पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाईं. कुछ सालों बाद इसी जड़ से तीसरी पीढ़ी का बोधिवृक्ष निकला, जो तकरीबन 1250 साल तक मौजूद रहा.
तीसरी बार
तीसरी बार बोधिवृक्ष साल 1876 प्राकृतिक आपदा के चलते नष्ट हो गया. उस समय लार्ड कानिंघम ने 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरम से बोधिवृक्ष की शाखा मांगवाकर इसे बोधगया में फिर से स्थापित कराया. यह इस पीढ़ी का चौथा बोधिवृक्ष है, जो आज तक मौजूद है.
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