सांसदों से वेतन छोड़ने की मांग; राजनीति में नई मिसाल किसके द्वारा

राजनीति में नई मिसाल कायम की है वरुण गांधी 

नई दिल्ली : भारतीय राजनीति में ऐसी मिसाल कम ही देखने को मिलती हैं, जिनमें नेता जो कहें, उन पर खुद भी अमल करें. लेकिन एक नेता ने अपने कहे पर अमल करके राजनीति में नई मिसाल कायम की है. बीजेपी सांसद वरुण गांधी अमीर सांसदों द्वारा अपना वेतन छोड़ने की मांग करते रहे हैं. ऐसा नहीं है कि वे केवल दूसरे सांसदों को वेतन नहीं लेने की सलाह देते हैं बल्कि वे खुद भी वेतन नहीं ले रहे हैं. वरुण गांधी ने पिछले 9 साल से सांसद के रूप में मिलने वाले वेतन को गरीब और जरूरतमंदों में बांट रहे हैं. वेतन का एक पैसा भी वह अपने लिए इस्तेमाल नहीं करते हैं.
वरुण गांधी सुल्तानपुर से सांसद हैं. वे अक्सर संसद सत्रों में जनहित के मुद्दों पर बहस नहीं होने और सांसदों के वेतन व भत्ते में होने वाले इजाफे पर चिंता जाहिर करते रहते हैं. उन्होंने इस साल के शुरू में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से अपील की थी कि आर्थिक रूप से सम्पन्न सांसदों द्वारा 16वीं लोकसभा के बचे कार्यकाल में अपना वेतन छोड़ने के लिए आंदोलन शुरू करें. लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में वरुण गांधी ने कहा था कि भारत में असमानता प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. भारत में एक प्रतिशत अमीर लोग देश की कुल संपदा के 60 प्रतिशत के मालिक हैं. भारत में 84 अरबपतियों के पास देश की 70 प्रतिशत संपदा है. यह खाई हमारे लोकतंत्र के लिए हानिकारक है.

 
भारतीय जनता पार्टी( भाजपा) के सांसद वरुण गांधी ने सांसदों का वेतन और भत्ते तय करने के लिए एक बाहरी संस्था का सुझाव दिया. उन्होंने दावा किया कि पिछले छह वर्षों में इसे चार बार बढ़ाया गया और सवाल किया कि क्या हमने वास्तव में इस भारी वेतन बढोत्तरी को हासिल किया है. वरुण ने यहां नवरचना विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ एक संवाद कार्यक्रम आइडियाज फॉर ए न्यू इंडिया में कहा कि व्यवधानों के कारण संसद चलने के दिनों की संख्या कम होने के बावजूद सांसदों के भत्तों में बढोत्तरी हो रही है.
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद ने कहा कि सांसदों का वेतन पिछले छह वर्षों में चार बार बढ़ाया गया लेकिन संसद एक वर्ष में केवल 50 दिन ही चली जबकि 1952-72 के दौरान संसद 130 दिन चलती थीं. हमने वास्तव में इस भारी बढोत्तरी से क्या हासिल किया है. उन्होंने कहा कि उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को एक पत्र लिखा था और उनसे एक‘‘ अभियान’’ शुरू करने और‘‘ अमीर सांसदों’’ को अपने शेष कार्यकाल के लिए अपना वेतन छोड़ने के लिए कहने का सुझाव दिया था. वरुण ने कहा,‘‘ लोकसभा में 180 सांसद और राज्यसभा में 75 सासंदों ने अपनी आय 25 करोड़ और इससे अधिक दिखाई है. यदि वे अपना वेतन छोड़ दें तो सैकड़ों करोड़ रुपये की बचतहोगी और सरकारी खजाने को मदद मिलेगी. ’’ भाजपा सांसद ने कहा कि संसद में महिलाओं के लिए आरक्षणकी व्यवस्था की जानी चाहिए और इन सीटों पर शिक्षिकाओं, वकीलों और चिकित्सकों जैसी आम महिलाओं केचुने जाने को बढावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

उन्होंने पत्र में लिखा था, ‘स्पीकर महोदया से मेरा निवेदन है कि आर्थिक रूप से सम्पन्न सांसदों द्वारा 16वीं लोकसभा के बचे कार्यकाल में अपना वेतन छोड़ने के लिए आंदोलन शुरू करें. ऐसी स्वैच्छिक पहल से हम निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संवेदनशीलता को लेकर देशभर में एक सकारात्मक संदेश जाएगा.’
वरुण गांधी ने इस बात पर खुद ही शुरू से अमल कर रहे हैं. वह पिछले 9 वर्षों से सांसद के तौर पर वेतन के रूप में मिलने वाले पैसे का अपने ऊपर इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि वेतन की पूरी रकम को गरीबों पर खर्च कर देते हैं. अभी हाल ही में उन्होंने एक ऐसे ही जरूरतमंद रामजी गुप्ता को ढाई लाख रुपये की आर्थिक मदद की थी. रामजी गुप्ता को कैंसर से जूझ रहे अपने पिता के इलाज के लिए पैसे की जरूरत थी और उन्होंने इसके लिए वरुण गांधी से आर्थिक मदद की अपील की. वरुण गांधी ने रामजी गुप्ता की जरूरत को देखते हुए उन्होंने तत्काल ढाई लाख रुपये की मदद महैया कराई. इससे पहले वरुण गांधी ने सुल्तापुर के एक किसान को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता मुहैया कराई थी. जानकारी के मुताबिक, बीजेपी सांसद 13 जिलों के जरूरतमंद किसानों को मदद पहुंचा चुके हैं. सुल्तानपुर में वह दो दर्जन गरीब लोगों का घर भी अपने पैसों से बनवा चुके हैं. इस मदद के पीछे वरुण गांधी तर्क देते हैं कि वह राजनीति में पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि जनता की सेवा के लिए आए हैं. उन्होंने कहा कि राजनीति के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद की जा सकती है.

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