व्हाट्सएप संदेशों को टैप ;सरकार के निर्णय पर सख्त हुआ उच्चतम न्यायालय
नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर नज़र रखने की सरकार की कोशिशों पर सुप्रीम कोर्ट ने जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा है, “सोशल मीडिया की सामग्री पर सरकारी निगरानी और नियंत्रण भारत को सर्विलांस स्टेट (आम लोगों पर नज़र रखने वाली व्यवस्था) में बदल देगा.”
फेसबुक, वॉट्सएप को कम्यूनिकेशन की दुनिया की सबसे बड़ी क्रांति के रूप में देखा जाता है. इन माध्यमों ने दुनिया को अपनी बात कहने औऱ उस पर चर्चा करने के लिए एक ऐसा मंच दिया, जहां वो बगैर किसी लाग लपेट के अपनी बात कह सकते थे औऱ उस पर दूसरों की राय जान सकते हैं. लेकिन ये माध्यम एकतरफा संप्रेषण का सबसे बड़ा मंच बन कर उभरे हैं . जहां हर व्यक्ति कह रहा है और सिर्फ कह रहा है. और कहते कहते ये भी कह रहा है कि आप मेरी बात समझे नही क्योंकि आप ठीक से सुन नहीं रहे हैं. सबसे खास बात ये है कि हम उन्हीं लोगों से बातचीत पसंद कर रहे हैं जो समर्थन में है बाकी सब हमें विरोधी लगने लगे हैं. समर्थन से तात्पर्य जी हुजूरी से है. दूसरी तरफ सोशल मीडिया मंच में एक तबका और भी उभरा है जो आलोचना करने के लिए आलोचना कर रहा है. वो इस कदर आलोचक बन कर उभरा है कि उसने चीजों को पसंद करना ही छोड़ दिया है. उसे लगता है कि अगर कहीं गलती से उससे किसी चीज की तारीफ हो गई तो कहीं लोग उस पर सवाल खड़े ना करने लगे. ;; साभार- पकज रामेन्दु
सुप्रीम कोर्ट ने डाटा निगरानी के लिए सोशल मीडिया हब गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली तृणमूल विधायक की याचिका पर शुक्रवार को केंद्र से जवाब मांगा. उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया हब पर केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली तृणमूल विधायक महुआ मोइत्रा की याचिका पर अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी.
उच्चतम न्यायालय ने ऑनलाइन डेटा पर निगरानी करने के लिए सोशल मीडिया हब के गठन के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के निर्णय पर सख्त रूख अपनाते हुए कहा कि यह ‘‘निगरानी राज बनाने जैसा’’ होगा. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर एवं न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने तृणमूल कांग्रेस के विधायक महुआ मोइत्रा की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया साथ ही इस मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सहयोग मांगा. शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार नागरिकों के व्हाट्सएप संदेशों को टैप करना चाहती है और उससे दो सप्ताह में जवाब मांगा है. मोइत्रा ने अदालत में याचिका दायर कर कहा कि केंद्र सरकार का यह कदम निगरानी के नाम पर लोगों की निजता पर प्रहार है. चीफ जस्टिस ने मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. कोर्ट ने केंद्र को 2 सप्ताह में जवाब देने को कहा है. याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा का कहना है कि केन्द्र सरकार सोशल मीडिया की निगरानी के लिए ये कार्यवाही कर रही है, जिसके बाद ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम व ईमेल में मौजूद हर डेटा पर सरकार की पहुंच हो जाएगी, जोकि निजता के अधिकार का यह उल्लंघन होगा, इससे हर व्यक्ति की निजी जानकारी को भी सरकार खंगाल सकेगी. इसमें जिला स्तर तक सरकार डेटा को खंगाल सकेगी.
दरअसल, हाल में केंद्रीय मंत्रालय के तहत काम करने वाले पीएसयू ब्रॉडकास्ट कंसल्टेंट इंडिया लि. (बीईसीआइएल) ने एक टेंडर जारी किया है, जोकि 20 अगस्त को खुलना है. टेंडर में एक सॉफ्टवेयर की आपूर्ति के लिए निविदाएं मांगी गई हैं. सरकार इसके तहत सोशल मीडिया के माध्यम से सूचनाओं को एकत्र करेगी. अनुबंध आधार पर जिला स्तर पर काम करने वाले मीडियाकर्मियों के जरिए सरकार सोशल मीडिया की सूचनाओं को एकत्र करके देखेगी कि सरकारी योजनाओं पर लोगों का क्या रुख है.
सरकार का मानना है कि समाचारों का रुझान किस तरफ है, लोग सरकार के फैसलों से कितना प्रभावित हो रहे हैं, इससे सरकार को सही फीडबैक मिलेगा और फिर वह योजनाओं में तब्दीली करके उन्हें और ज्यादा जन उपयोगी बना सकेगी.
तृणमूल कांग्रेस की विधायक महुआ मोइत्रा ने इस बारे याचिका दाखिल की है. उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि सरकार ज़िला स्तर पर सोशल मीडिया निगरानी कमिटी बनाने जा रही है. केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय इस दिशा में काम कर रहा है. सिंघवी ने दलील दी कि लोगों के व्हाट्सएप और दूसरे मैसेज पर सरकार का नज़र रखना निजता के अधिकार का हनन है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने उनकी दलीलों से शुरुआती सहमति जताते हुए सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. कोर्ट ने एटॉर्नी जनरल से भी इस मसले पर सहायता करने के लिए कहा है.
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