शराब के ठेके बचाने पर उत्तराखण्ड सरकार से बढी नाराजगी
#हाईवे में सुप्रीम कोर्ट तो गलियों तथा आबादी क्षेत्र में महिलाओ तथा कांग्रेस द्वारा श्ाराब की दुुुुकानों का विरोध # कांग्रेस जायेगी सर्वोच्च न्यायालय # उत्तराखण्ड सरकार को राजस्व घाटे की चिंता सता रही है जो अनुमानतः 1200 करोड़ रूपए # राज्य में 64 हैं स्टेट हाइवे #त्रिवेंद्र रावत सरकार ने उत्तराखंड के स्टेट हाईवे को जिला मार्ग में तब्दील कर दिया #राजमार्गो के डिनोटिफिकेशन से इनके निर्माण और रखरखाव में धन की कमी आयेगी वही दूसरी ओर जनता का आक्रोश सामने आया Execlusive: www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper) CS JOSHI= EDITOR
सुप्रीम कोर्ट द्वारा शराब की बिक्री राजमार्गों से 500 मीटर दूर करने के आदेश को धता बताने के लिए राज्य सरकार द्वारा राज्य के राजमार्गों को जिला मार्ग घोषित करने के निर्णय से उत्तराखण्ड में त्रिवेन्द्र रावत सरकार बचाव की मुद्रा में आ गयी है, यह निर्णय भाजपा सरकार पर भारी पड रहा है,
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि शराब की दुकानों को खोलने के लिए राज्य राजमार्गों को डी-नोटिफाई करने के मामले में पार्टी विधिक राय ले रही है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि शराब सिंडिकेट का कर्ज (चुनावी सहयोग) उतारने के लिए भाजपा प्रदेश को शराब में डुबोने जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय और राज्य मार्ग से शराब की दुकानों को हटाने का ऐतिहासिक निर्णय दिया था। भाजपा सरकार ने उसका तोड़ निकाल कर राज्य राजमार्गों को जिला मार्ग घोषित कर दिया। शराब और खनन पर सरकार की नीतियों पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सवाल उठाया है। रावत ने कहा कि राजमार्गों को डिनोटिफाइ करना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। सरकार को चाहिए कि सभी लोगों से बात कर ठोस रास्ता निकाले। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि शराब और खनन पर भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए जो गडढे खोदे थे, आज वही भाजपा पर भारी पड़ रहे हैँ। राजमार्गो के डिनोटिफिकेशन से इनके निर्माण और रखरखाव में धन की कमी भी आ सकती है। रावत ने अपनी पूर्ववर्ती सरकार के फैसले पर सवाल उठाए जाने को भी गलत बताया।
त्रिवेंद्र रावत सरकार ने उत्तराखंड के निकायों से गुजारने वाले स्टेट हाईवे को जिला मार्ग में तब्दील कर दिया। इससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शराब की दुकानें खोलने में आ रही अड़चनें दूर हो गई हैं। उधर, किसानों को पांच लाख कृषि ऋण पर स्टांप ड्यूटी में शत-प्रतिशत छूट दे दी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट में यह फैसला लिया गया। मुख्य सचिव एस रामास्वामी ने बताया कि राज्य के 92 नगर निगम, नगर पालिकाएं और नगर पंचायतें जिनके दायरे में स्टेट हाईवे है। अब यह जिला मार्ग के नाम पर जाना जाएगा। उन्होंने कहा कि चूंकि निकायों के परिधि के अंदर आबादी बढ़ चुकी है और अब इन क्षेत्रों में सड़कों का विस्तार करना ना मुमकिन है लिहाजा, सरकार ने इन्हें जिला मार्ग घोषित करने का निर्णय लिया है।
राज्य में 64 हैं स्टेट हाइवे
उत्तराखंड में 64 स्टेट हाईवे हैं। इनमें से 63 हाईवे नगर निकायों से होकर गुजरते हैं। नगर निगम, पालिका और नगर पंचायतों के क्षेत्रों में जो स्टेट हाईवे अभी तक था, उसे खत्म कर दिया है।
उत्तराखंड की नवनिर्वाचित भाजपा सरकार के लिए राष्ट्रीय एवं राज्यों के हाईवे पर 500 मीटर के दायरे में शराब बिक्री पर रोक संबंधी सुप्रीम कोर्ट का आदेश जी का जंजाल बना हुआ है. शराब की दुकानें आबादी क्षेत्र में शिफ्ट करने के सरकार के आदेश के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए. खास तौर पर महिलाएं. सरकार को इससे होने वाले राजस्व घाटे की चिंता सता रही है जो अनुमानतः 1200 करोड़ रूपए हैं. प्रदेश के वित्त एवं आबकारी मंत्री प्रकाश पंत ने बताया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद करीब 80 फीसदी शराब के ठेके और बार बंद हो गए हैं. परिणाम स्वरूप आबकारी विभाग का अनुमान है कि उसे चालू वित्त वर्ष में 40 प्रतिशत से अधिक घाटा हुआ है. इन शराब की दुकानों से राज्य के आबकारी विभाग को 80 प्रतिशत राजस्व प्राप्त हो रहा था. देसी-विदेशी शराब के 532 में से 402 ठेके राष्ट्रीय और राज्य के राजमार्गों पर हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बहुत से ठेकों ने अपने लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं करवाया. 532 में से केवल 202 ठेकों के ही लाइसेंस नवीनीकृत हुए हैं. सरकार ने फिलहाल एक माह के लिए पिछली सरकार की आबकारी नीति ही अपनाने का फैसला किया है. एक माह बाद नई आबकारी नीति लाए जाने की संभावना है. इन सभी ठेकों के लाइसेंस 31 मार्च को अवधिपार हो चुके. इन दुकानदारों से कहा गया है कि नई नीति लागू होने तक वे अपने लाइसेंस एक माह के लिए नवीनीकृत करवा सकते हैं. हालांकि शराब ठेकेदारों की ठंडी प्रतिक्रिया देखते हुए सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से किसी तरह किनारा करने की कोशिश में है. राजस्व घाटे से बचने के लिए राज्य सरकार कैबिनेट में एक प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है, जिसके अनुसार, राज्य के राजमार्गों को जिले की सड़कें घोषित किया जा सकता है. उत्तराखंड सरकार ने उत्तर प्रदेश के मॉडल से प्रेरित होकर यह प्रस्ताव लाने की बात कही है. इसके तहत उत्तर प्रदेश में शहर से गुजर रहे राजमार्गों को जिले की सड़कें और और शहर से गुजर रहे बाईपास को हाई वे क़रार दे दिया गया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारी राजस्व घाटे की परेशानी से जूझ रहे कई अन्य राज्य भी सुप्रीम कोर्ट से बचने के लिए ‘पतली गली’ के तौर पर यही नीति अपनाने की तैयारियों में हैं. हालांकि उत्तराखंड में राष्ट्रीय राजमार्गों के बजाय राज्य के राजमार्गों की संख्या बहुत अधिक है. अब देखना यह है कि सरकार इस तरकीब से कितने शराब ठेके बचा पाएगी. और तो और, राज्य सरकार राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित फाइव स्टार होटलों और बार के मामले पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचने की तैयारी में है. ज्यादातर फाइव स्टार होटल और बार राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही स्थित है. शराब के ठेकों को हाईवे से हटाकर आबादी क्षेत्र में शिफ्ट करने के अपने फैसले पर सरकार को काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. खास तौर पर महिलाएं आबादी क्षेत्र में शराब की दुकानों का विरोध कर रही हैं. ग्रामीण इलाकों में महिलाओं ने आबकारी विभाग के कार्यालयों में तोड़-फोड़ की और थड़ी नुमा शराब की दुकानों में भी तोड़-फोड़ की. इससे हताश कई दुकानदारों ने अपने लाइसेंस री न्यू करवाना जरूरी नहीं समझा.
हरिद्वार, अगस्तमुनि, पुरी, देहरादून, ऊखीमठ, गोपेश्वर, रूड़की जैसे इलाकों में महिलाओं का विरोध प्रदर्शन हिंसक भी हो चला है. इसके चलते बहुत से शराब दुकानदार अपनी दुकानें शिफ्ट करने में नाकाम रहे. देहरादून में 28 तथा हरिद्वार में 69 दुकानों में से 36 नहीं खोली जा सकी. उत्तराखंड महिला मंच की संस्थापकों में से एक कमला पंत ने मीडिया को बताया कि शराब की दुकानों को दूसरी जगह शिफ्ट करने के फैसले के खिलाफ हजारों महिलाओं विरोध में है. उन्होंने कहा, ‘‘शराब की दुकानें शहर और कस्बों से दूर होनी चाहिए. अगर हाईवे की दुकानों को आबादी क्षेत्रों में लाया जाएगा तो सर्वाधिक तकलीफ महिलाओं को ही होगी, क्योंकि शराब के आदी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं. अगर अपराध की दर बढ़ती है तो इससे महिलाएं ही सीधे प्रभावित होती हैं. इसीलिए हम ये दुकानें बंद करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि कोई और उपाय है ही नहीं.’’ ‘‘उनकी संस्था सालों से राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग कर रही है. शराब पर प्रतिबंध से राज्य को होने वाले राजस्व घाटे के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘उत्तराखंड के पास राजस्व आय बढ़ाने के लिए और भी बहुत से संसाधन हैं. हमने सरकार से कह दिया है कि हमें विकास की दरकार नहीं है. इस पैसे को वह हमारा कोष भरने में काम में ले सकते हैं. उत्तराखंड की महिलाएं वैसे ही शराब के सेवन या खपत को देखते हुए काफी दुखी हैं. नए मुख्यमंत्री ने भी दरअसल कुछ ऐसी ही भावना व्यक्त की थी. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दावा किया था कि उनकी सरकार राजस्व के लिए शराब पर निर्भरता खत्म करना चाहती है. रावत ने हालांकि दावा किया कि उनकी सरकार शराब पर पूर्ण पाबंदी तो नहीं लगाएगी क्योंकि शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाले दूसरे राज्यों में यह प्रयोग सफल नहीं रहा.
इन्द्रेश मैखुरी राज्य कमेटी सदस्य भाकपा(माले) नेे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को प्रभावहीन करने के लिये किए गए उपाय ने सिद्ध कर दिया कि उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार शराब माफिया के हितों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है.एक ओर जहां राज्य भर मे महिलाएं शराब के खिलाफ़ सड़कों पर उतरी हुई हैं और दूसरे तरफ सरकार शराब माफिया का हित साधने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है.यह शर्मनाक और निंदनीय कृत्य है. उत्तराखंड मे पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के शराब प्रेम से आजिज़ आ कर ही जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया. जनता की अपेक्षा थी कि नयी सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,कृषि की बेहतरी के लिए काम करे.लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की सरकार के राजमार्गों को जिला मार्ग बनाने संबंधी निर्णय से स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस की तरह ही उनकी सरकार का दिल भी शराब माफिया के पक्ष मे ही धड़कता है.शराब माफिया का हित साधने के लिए राज्य के राजमार्गों को जिला मार्ग घोषित करने के निर्णय ने एक बार पुनः साफ कर दिया है कि नीतियों के मामले मे कांग्रेस-भाजपा मे कोई अंतर नहीं है॰ पंजाब की कांग्रेस सरकार,उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकार,तीनों ने ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश की काट के तौर पर अपने-अपने राज्यों मे राज्य राजमार्गों को जिला मार्ग घोषित कर दिया है.
शराब ने उत्तराखंड मे जिस तरह से पूरी पीढ़ी को तबाह कर दिया है,उसको देखते तो हुए जरूरत तो यह थी कि शराब की बिक्री बंद की जाती.परंतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए शराब की बिक्री जारी रखने के सरकार के निर्णय ने सिद्ध कर दिया कि उसे युवाओं के स्वास्थ्य से ज्यादा शराब माफिया के मुनाफे की चिंता है.हम तत्काल इस निर्णय को वापस लेने की मांग करते हैं.
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