योग का इतिहास दफन हो गया हिमालय की गुफाओं में
योग तत्वत: बहुत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मि विषय है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर ध्यान देता है। यह स्वस्थ जीवन – यापन की कला एवं विज्ञान है। पूरी दुनिया में योग साधना से लाखों व्यक्तियों को लाभ हो रहा है, जिसे प्राचीन काल से लेकर आजतक योग के महान आचार्यों द्वारा परिरक्षित किया गया है। योग साधना का हर दिन विकास हो रहा है तथा यह अधिक जीवंत होती जा रही है। ‘हठयोग प्रदीपिका’,’शिव सहिंता’ और ‘घेरंड सहिंता’ हठ योग पर प्रामाणिक शास्त्रीय किताबें हैं।
योग के करने की क्रियाओं व आसनो को योगासन कहते है। संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है। योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है। हालाँकि इसका इतिहास दफन हो गया है अफगानिस्तान और हिमालय की गुफाओं में और तमिलनाडु तथा असम सहित बर्मा के जंगलों की कंदराओं में।
जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े है उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते है। बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को खोज निकालने की जिस पर हमें गर्व है। योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है। अब तक हमने यम, नियम तथा योगासन के विषय में चर्चा की है, जो हमारे शरीर को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक है।
यद्यपि योग की उत्पत्ति हमारे देश में हुई है, किंतु आधुनिक समय में इसका प्रचार-प्रसार विदेशियों ने किया है, इसलिए पाश्चात्य सभ्यता की नकल करने वाले ‘योग’ शब्द को ‘योगा’ बोलने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। प्राचीन समय में इस विद्या के प्रति भारतीयों ने सौतेला व्यवहार किया है। योगियों का महत्व कम नहीं हो जाए। अत: यह विद्या हर किसी को दी जाना वर्जित थी। योग ऐसी विद्या है जिसे रोगी-निरोगी, बच्चे-बूढ़े सभी कर सकते हैं। महिलाओं के लिए योग बहुत ही लाभप्रद है। चेहरे पर लावण्य बनाए रखने के लिए बहुत से आसन और कर्म हैं। कुंजल, सूत्रनेति, जलनेति, दुग्धनेति, वस्त्र धौति कर्म बहुत लाभप्रद हैं। कपोल शक्ति विकासक, सर्वांग पुष्टि, सर्वांग आसन, शीर्षासन आदि चेहरे पर चमक और कांति प्रदान करते हैं। इसी तरह से नेत्रों को सुंदर और स्वस्थ रखने, लंबाई बढ़ाने, बाल घने करने, पेट कम करने, हाथ-पैर सुंदर-सुडौल बनाने, बुद्धि तीव्र करने, कमर और जंघाएँ सुंदर बनाने, गुस्सा कम करने, कपोलों को खूबसूरत बनाने, आत्मबल बढ़ाने, गुप्त बीमारियाँ दूर करने, गर्दन लंबी और सुराहीदार बनाने, हाथ-पैरों की थकान दूर करने, पाचन शक्ति सुधारने, अच्छी नींद, त्वचा संबंधी रोगों को दूर करने व अन्य कई प्रकार के कष्टों का निवारण करने के लिए योग में व्यायाम, आसन और कर्म शामिल हैं। प्राचीन समय में इस विद्या के प्रति भारतीयों ने सौतेला व्यवहार किया है। योगियों का महत्व कम नहीं हो जाए। अत: यह विद्या हर किसी को दी जाना वर्जित थी। योग ऐसी विद्या है जिसे रोगी-निरोगी, बच्चे-बूढ़े सभी कर सकते हैं। किंतु योगाभ्यास करने से पूर्व कुशल योग निर्देशक से अवश्य सलाह लेना चाहिए। निम्नांकित आसन क्रियाएँ प्रस्तुत की जा रही हैं जिन्हें आप सहजता से कर सारे दिन की स्फूर्ति अर्जित कर सकती हैं।
प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि मानसिक साधन हैं। प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है, अर्थात् यह शारीरिक भी है और मानसिक भी। प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह होता है।
योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है। योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं। आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है। योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है। योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं। योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं। योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है। योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं। योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं। योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है। योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं। योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं। योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।
उन लोगों के लिए जो कंप्यूटर पर लगातार आठ से दस घंटे काम करके कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं या फिर तनाव व थकान से ग्रस्त रहते हैं। निश्चित ही कंप्यूटर पर लगातार आँखे गड़ाए रखने के अपने नुकसान तो हैं ही इसके अलावा भी ऐसी कई छोटी-छोटी समस्याएँ भी पैदा होती है, जिससे हम जाने-अनजाने लड़ते रहते है। तो आओं जाने की इन सबसे कैसे निजात पाएँ। स्मृति दोष, दूर दृष्टि कमजोर पड़ना, चिड़चिड़ापन, पीठ दर्द, अनावश्यक थकान आदि। कंप्यूटर पर लगातार काम करते रहने से हमारा मस्तिष्क और हमारी आँखें इस कदर थक जाती है कि केवल निद्रा से उसे राहत नहीं मिल सकती। देखने में आया है कि कंप्यूटर पर रोज आठ से दस घंटे काम करने वाले अधिकतर लोगों को दृष्टि दोष हो चला है। वे किसी न किसी नंबर का चश्मा पहने लगे हैं। इसके अलावा उनमें स्मृति दोष भी पाया गया। काम के बोझ और दबाव की वजह से उनमें चिड़चिड़ापन भी आम बात हो चली है। यह बात अलग है कि वह ऑफिस का गुस्सा घर पर निकाले। कंप्यूटर की वजह से जो भारी शारीरिक और मानसिक हानि पहुँचती है, उसकी चर्चा विशेषज्ञ अकसर करते रहे हैं। पहली बात कि आपका कंप्यूटर आपकी आँखों के ठीक सामने रखा हो। ऐसा न हो की आपको अपनी आँखों की पुतलियों को ऊपर उठाये रखना पड़े, तो जरा सिस्टम जमा लें जो आँखों से कम से कम तीन फिट दूर हो। दूसरी बात कंप्यूटर पर काम करते वक्त अपनी सुविधानुसार हर 5 से 10 मिनट बाद 20 फुट दूर देखें। इससे दूर दृष्टि बनी रहेगी। स्मृति दोष से बचने के लिए अपने दिनभर के काम को रात में उल्टेक्रम में याद करें। जो भी खान-पान है उस पर पुन: विचार करें। थकान मिटाने के लिए ध्यान और योग निद्रा का लाभ लें। इसे अंग संचालन भी कहते हैं। प्रत्येक अंग संचालन के अलग-अलग नाम हैं, लेकिन हम विस्तार में न जाते हुए बताते हैं कि आँखों की पुतलियों को दाएँ-बाएँ और ऊपर-नीचे नीचे घुमाते हुए फिर गोल-गोल घुमाएँ। इससे आँखों की माँसपेशियाँ मजबूत होंगी। पीठ दर्द से निजात के लिए दाएँ-बाएँ बाजू को कोहनी से मोड़िए और दोनों हाथों की अँगुलियों को कंधे पर रखें। फिर दोनों हाथों की कोहनियों को मिलाते हुए और साँस भरते हुए कोहनियों को सामने से ऊपर की ओर ले जाते हुए घुमाते हुए नीचे की ओर साँस छोड़ते हुए ले जाएँ। ऐसा 5 से 6 बार करें फिर कोहनियों को विपरीत दिशा में घुमाइए। गर्दन को दाएँ-बाएँ, फिर ऊपर-नीचे नीचे करने के बाद गोल-गोल पहले दाएँ से बाएँ फिर बाएँ से दाएँ घुमाएँ। बस इतना ही। इसमें साँस को लेने और छोड़ने का ध्यान जरूर रखें।
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