योग के अभ्यास से कुण्डलिनी शक्ति जागृत
छठी इंद्रिय आपको भविष्य की किसी घटना का आभास कराती है, यह हर इंसान में होती है, पर जाग्रत बहुत कम, फिर भी यह इंसान को संकेत देती है, वही छठी इंद्रिय के पूर्ण सक्रिय होते ही भविष्य देखने की क्षमता प्राप्त हो जाती है ; हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-
चमत्कारी शक्तियों का स्वामी व्यक्ति किसी भी भविष्यगामी घटना को पहले से भांप लेने में सक्षम होता है तथा समय से पहले ही उससे बचने के तरीके भी जानता है। निश्चित रूप से यदि किसी इंसान के पास ऐसी ताकत हो तो उसके दुरुपयोग की भी संभावना बढ़ जाती है। यानि कहीं न कहीं इस तरह की करिश्माई ताकतें इंसान की बुद्धि को भी भ्रष्ट कर डालती है और वह इसका उपयोग अपने लाभ के लिए करने लगता है तथा समाज के लिए हानिकारक बन जाता है।
योग के अभ्यास से कुण्डलिनी शक्ति को जागृत
योग करने वाले यह मानते हैं कि योग के अभ्यास से अपने भीतर कुण्डलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। इस शक्ति को सांप का प्रतीक दिया गया है। आदि योगी शिव के सिर पर भी सांप प्रतीक के रूप में दिखाया जाता है…किस ओर इशारा करते हैं ये प्रतीक? कुंडलिनी की प्रकृति कुछ ऐसी है कि जब यह शांत होती है तो आपको इसके होने का पता भी नहीं होता। जब यह गतिशील होती है तब अपको पता चलता है कि आपके भीतर इतनी ऊर्जा भी है। इसी वजह से कुंडलिनी को सर्प के रूप में चित्रित किया जाता है। कुंडली मारकर बैठा हुआ सांप अगर हिले-डुले नहीं, तो उसे देखना बहुत मुश्किल होता है। अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत है, तो आपके साथ ऐसी चमत्कारिक चीजें घटित होने लगेंगी जिनकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। कुंडलिनी जाग्रत होने से ऊर्जा का एक पूरी तरह से नया स्तर जीवंत होने लगता है, और आपका शरीर और बाकी सब कुछ भी बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।
ऊर्जा की उच्च अवस्था में समझ और बोध की अवस्था भी उच्च होती है। पूरे के पूरे योगिक सिस्टम का मकसद आपकी समझ और बोध को बेहतर बनाना है। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब आपकी ग्रहणशीलता को, आपकी अनुभव क्षमता को बेहतर बनाना है, क्योंकि आप उसे ही जान सकते हैं, जिसे आप ग्रहण और अनुभव करते हैं। शिव और सर्प के प्रतीकों के पीछे यही वजह है। इससे जाहिर होता है कि उनकी ऊर्जा उच्चतम अवस्था तक पहुंच गई है। उनकी ऊर्जा उनके सिर की चोटी तक पहुंच गई है और इसीलिए उनकी तीसरी आंख खुल गई है। तीसरी आंख का अर्थ यह नहीं है कि किसी के माथे में कोई आंख निकल आई है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि आपकी समझ का एक और पहलू खुल गया है। दो आंखों से सिर्फ वही चीजें देखी जा सकती हैं जो स्थूल हैं। अगर मैं आँखों को अपने हाथों से ढक लूं, तो ये आंखें उसे नहीं देख सकतीं। ये इन दो आंखों की सीमा है। अगर तीसरी आंख खुल चुकी है, तो इसका मतलब है कि समझ का एक और पहलू खुल चुका है। यह तीसरी आंख भीतर की ओर देखती है, जिससे जीवन बिल्कुल अलग तरह से दिखता है। इसके खुलने का मतलब है कि हर वो चीज जिसका अनुभव किया जा सकता है, उसका अनुभव किया जा चुका है। कुंडलिनी पावर सॉकेट की तरह ही है। फर्क इतना है कि यह तीन पिन वाला प्लग पॉइंट नहीं है, यह पांच पिन वाला प्लग पॉइंट है। आपने सात चक्रों के बारे में सुना होगा। मूलाधार चक्र प्लग पॉइंट की तरह है, इसीलिए इसे मूलाधार कहा जाता है। मूलाधार का अर्थ है मूल-आधार। बाकी बचे छह चक्रों में से पांच प्लग की तरह हैं, जिन्हें मूलाधार से जुडऩे पर बिजली यानी ऊर्जा मिलती है। सातवां चक्र क्या है? यह बिजली के बल्ब के समान है। जैसे ही आप इसका प्लग लगाते हैं, आपकी हर चीज दमकने लगती है। अगर आपने प्लग ठीक से लगा दिया तो पूरे दिन ऊर्जा का मिलना कोई मुश्किल काम नहीं है। इस डर से कि कहीं बैटरी खत्म न हो जाए, आपको पावर बंद करने की जरूरत भी नहीं होगी। आप चाहें तो इसे बिना सोचे-समझे, लापरवाही से, लगातार इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि आप ऊर्जा के मूल स्रोत से जुड़ चुके हैं।
यदि किसी भी सामान्य व्यक्ति को अतिंद्रिय शक्ति प्राप्त करनी है तो सर्वप्रथम उसे चक्रिय जागरण की अवस्था से गुजरते हुए कुण्डलिनी को जाग्रत करना होताा है । कुण्डलिनी रीढ़ की हड्डी के सबसे अधिक निचले हिस्से में सर्पीले व वलयाकार आकृति में मौज़ूद होती है। ये एक वर्तुल की स्थिति में उसी स्थान पर घूमती रहती है तथा समस्त ब्रह्माण्ड की ऊर्जा को अपने भीतर समाहित करने की क्षमता रखती है। यही कारण है कि साधना की उच्चतम अवस्था हासिल करने के लिए चक्रिय जागरण के पश्चात कुण्डलिनी को जाग्रत करने का प्रयत्न करना होता है। एक बार कुण्डलिनी जाग्रत हो जाने के बाद पंचेंद्रियों से वाह्य छठी इंद्रिय सक्रिय हो जाती है तथा मनुष्य को भविष्य देखने की क्षमता प्राप्त हो जाती है। किंतु ये शक्ति अल्पावधि के लिए ही हासिल होती है। इस शक्ति को स्थायी बनाने के लिए समस्त नाड़ियों को सक्रिय रखते हुए कड़ी नैतिक आचार संहिता का पालन करना होता है अन्यथा कुण्डलिनी जागरण के बावज़ूद कुछ ही समय में भविष्य दर्पण की ये अद्भुत शक्ति निष्क्रिय हो जाती है। ध्यान रहे कि ऐसी किसी भी शक्ति का उपयोग केवल परहित व समाज हित के लिए किया जाना चाहिए अन्यथा इसके दुरुपयोग से आत्महानि के साथ-साथ समस्त मानवता का भी भारी नुकसान है।
हम सभी के भीतर ऊर्जा मौजूद होती है, लेकिन सब लोग इसे व्यक्तिगत शक्ति में नहीं बदल पाते। कहाँ खर्च हो जाती है ये ऊर्जा? और क्या उपाय है इसे शक्ति में बदलने का?
कोई भी इंसान भौतिक, आध्यात्मिक या किसी भी स्तर पर कितना आगे जा सकता है, यह बुनियादी तौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि अपने भीतर मौजूद ऊर्जा की कितनी मात्रा वह इस्तेमाल कर सकता है। यहां बहुत सारे ऐसे लोग हैं जिनके पास काफी ऊर्जा है, लेकिन उनके भीतर इतना विवेक या फिर कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जो इस ऊर्जा को एक तरह की निजी शक्ति में बदल दे। शक्ति के बारे में लोगों का यह सोचना उनकी सबसे बड़ी भूल है कि यह दूसरों पर इस्तेमाल करने के लिए है। शक्ति का आशय खुद आपसे है, शक्ति आपके अपने बारे में है। आप के अंदर शक्ति कितनी सक्रिय है, इससे न सिर्फ आपके जीवन की तीव्रता व गहराई तय होती है, बल्कि आप जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कितने प्रभावशाली होंगे, यह भी तय होता है।
यह बड़ी ही अजीब बात है कि आज हमें ये लगता है कि हमारे जीवन की क्वालिटी बैंकों में जमा पैसों से, हमारी गाड़ी व घर के साइज से तय होती है। समानता का मतलब यह नहीं है कि हर किसी को बराबर करने के लिए छांटकर बराबर कर दिया जाए। समानता का मतलब है कि हरेक के पास विकास के समान अवसर हों। अगर आप अपनी सोच में भी हर चीज को एक जैसी बनाने की कोशिश करेंगे तो आप जीवन के हर रूप के अनोखेपन और संभावना को नष्ट कर देंगे। यह बड़ी ही अजीब बात है कि आज हमें ये लगता है कि हमारे जीवन की क्वालिटी बैंकों में जमा पैसों से, हमारी गाड़ी व घर के साइज से तय होती है। आज से हजार साल पहले जब न तो डॉलर थे और न ही गाड़ियां और न ही वैसे घर, जिनमें हम आज रहते हैं तो क्या तब लोग अच्छा जीवन नहीं जीते थे?
जीवन में जहां भौतिक रूप से सफल होना, पेशेवर तौर पर सफल होना भी जरुरी है, वहीं मेरी चिंता है कि आप आध्यात्मिक रूप से सफल हों। मगर इसके लिए भी आपको कुछ खास तरह की निजी शक्ति चाहिए। अगर वो शक्ति पानी है तो आपको अपनी ऊर्जाओं का समझदारी से इस्तेमाल करना होगा। आवश्यक समझदारी, बुद्धिमानी व जरूरी साधनों की मदद से ऊर्जा को शक्ति में बदला जा सकता है। वर्ना आपकी ऊर्जा अनंत सोच-विचारों व असंख्य प्रतिक्रियाओं और चिंताओं में बर्बाद हो सकती है। आपने गौर किया होगा कि जब आप किसी दिन ज्यादा चिंतित या परेशान होते हैं, उस दिन आपको ज्यादा थकावट होती है। मैं चाहता हूं कि आप अपनी रोजमर्रा के जीवन पर गौर करें।
अगर आपके भीतर अपनी कोई निजी शक्ति ही नहीं होगी, तो आप दूसरों की राय के मुताबिक ही जिएंगे। तब दूसरों की राय या बात आपको या तो तोड़ देगी या आपको बना देगी। अगले दिन उन्हीं बातों को कहें, लेकिन पिछले दिन की अपेक्षा लगभग आधे शब्दों का इस्तेमाल करके इसे कहने की कोशिश कीजिए। ऐसा करके आप लोगों से संवाद कम नहीं कर रहे, आप अभी भी उनसे संवाद कर रहे हैं, बस आपने शब्दों का इस्तेमाल घटा कर आधा कर दिया है। निश्चित तौर पर इससे भाषा में आपकी कुशलता भी बढ़ेगी। और तब आप देखेंगे कि आपने अपने भीतर निजी शक्ति विकसित कर ली है। अगर आपके भीतर अपनी कोई निजी शक्ति ही नहीं होगी, तो आप दूसरों की राय के मुताबिक ही जिएंगे। तब दूसरों की राय या बात आपको या तो तोड़ देगी या आपको बना देगी। अगर आपमें किसी भी चीज या व्यक्ति को लेकर कोई राय ही नहीं होगी, तो फिर आपको दूसरों की राय की भी कोई परवाह नहीं होगी, क्योंकि उस स्थिति में वह चीज या व्यक्ति आपके दिलो-दिमाग पर हावी नहीं होगा।
अगर कोई व्यक्ति आपसे कमतर है और यह जानकर आप बेहतर महसूस करते हैं तो इसका मतलब है कि आप ताकतवर नहीं, बल्कि बीमार हैं। दूसरों के पास जो नहीं है, उसका आनंद लेना अपने आप में एक तरह की बीमारी है। दरअसल, अगर आप सिर्फ तुलना और राय के भरोसे रहेंगे और आपको लगता है कि जीवन जीने का सिर्फ यही एक तरीका है, तो आप हमेशा उस चीज में आनंद लेंगे, जो दूसरों के पास नहीं है। तब आप उसका आनंद नहीं ले पाएंगे, जो आपके पास है।
खुद को मजबूत बनाएं, सहारे की तलाश छोड़ दें
मान लीजिए कि आपको यहां रहने के लिए किसी व्यक्ति या चीज की जरूरत नहीं है, तो जीवन जीने का यह सर्वश्रेष्ठ तरीका है। चूंकि यह संभव नहीं है, इसलिए आप उन चीजों का इस्तेमाल करते हैं। कोई बात नहीं। अगर आप खुद चलने में सक्षम नहीं हैं तो आप छड़ी का सहारा लेते हैं, इसमें कोई हर्ज नहीं। लेकिन यह मत सोचिए कि छड़ी ही आपकी ताकत है। यह ताकत नहीं है। आप जो हैं, वही आपकी असली ताकत है। इस शक्ति को बढ़ाने के बजाय हम सहारों को बढ़ाने में लगे हैं। हम अपने लिए बैसाखियों को जुटाने में लगे हैं। आप कब मजबूत कहलाएंगे – जब आप कम से कम मदद के बिना खड़े हो सकें तब, या जब आपको खड़ा होने के लिए हजार पैर वाली मेज की जरूरत हो? अगर आप कम से कम मदद के बिना खड़े हो सकें तो इसका मतलब होगा कि आप मजबूत हैं। इसका मतलब हुआ कि आप कहीं भी जा सकते हैं।
आपके माता-पिता या फिर कम से कम आपके दादा-दादी ने आपको सिखाया होगा कि अपने कपड़े और बिस्तर को ठीक से रखना चाहिए। भारत में खासतौर पर कहा जाता है कि अगर आप अपने बिस्तर की चादर को तुड़ी-मुड़ी और सिलवटों से भरी छोड़ देंगे, तो उसमें भूत आ कर बस जाएँगे। जब आप सोएँगे तो वे आपके साथ सोएंगे और आपको परेशान करेंगे। इसी बात को अंग्रेजी में भी कहा जाता है कि आप जैसा बिस्तर बनाएंगे, वैसी ही आपकी नींद होगी। आज वैज्ञानिकों ने हमें बताया है कि सारा अस्तित्व एक ऊर्जा है जो लाखों रूपों में खुद को प्रकट कर रहा है। जैसे ऊर्जा रूपों को रचती है, रूप भी ऊर्जा को पैदा कर सकते हैं। आपके आसपास हर रूप, एक तरह की ऊर्जा पैदा कर रहा है।
हम जिस तरह के आकार बनाते हैं, हमारे आसपास जिस तरह के आकार हैं, या हम जिस तरह के ढांचों में रहते हैं, उनका हमारी हर चीज पर गहरा असर होता है। अगर हम अपने बैठने, खुद को व्यवस्थित रखने और आसपास की चीजों को जमाने के बारे में थोड़ी सजगता रखें, तो हम अपनी जगह को अपने भीतरी तरक्की के लायक बना सकेंगे जो हमारी आध्यात्मिक प्रगति को कहीं आसान बना देगी। अगर आपको एक जगह से दूसरी जगह जाना हो, तो आप कैसे भी जा सकते हैं, लेकिन अगर रास्ता अच्छी तरह से बना हो तो आप वहां आसानी से पहुंच सकेंगे। इसी तरह अगर हमारे आसपास की जगह व्यवस्थित हो तो भीतर की ओर उतरने में आसानी होगी।
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