ऐसे पहले कवि जिन्होंने जेल की दीवारों पर कील और कोयले से लिखीं कविताएं
ऐसे पहले कवि जिन्होंने जेल की दीवारों पर कील और कोयले से लिखीं कविताएं
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 (Maharashtra Assembly Elections 2019) के लिए मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपना घोषणापत्र (Manifesto) जारी कर दिया है। भाजपा के द्वारा इस घोषणापत्र को ‘संकल्प पत्र’ का नाम दिया गया है। भाजपा ने ‘संकल्प पत्र’ में स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर (Veer Savarkar) को भारत रत्न (Bharat Ratna) दिलाने का वादा किया है। सावरकर को तकनीकी आधार पर अदालत ने दोषी क़रार नहीं दिया था। सावरकर के बारे में यह सच है कि वह एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। एक समय में उन्होंने हिंदू-मुसलिम एकता की बात भी की थी। 1857 के विद्रोह पर लिखी उनकी किताब इस बात की गवाही देती है। लेकिन 1910 में गिरफ़्तार होने के बाद जब उन्हें अंडमान निकोबार काला पानी के लिए भेजा । इसके बाद सावरकर को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी शिवसेना काफी लंबे समय से स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने की वकालत कर रही थी। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं वीर सावरकर ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं थी।
वीर सावरेकर की भूूूूूूमिका को जीवंत कर दिया बीटेक की छात्रा राघवी जोशी ने
पॉपा, पापा, आज मै यूनिवर्सिटी में स्पीच में फर्स्ट आई हु,
फोन पर जब मैंने राघवी की ख़ुशी से भरी आवाज सुनी तो, बड़ी ही खुशी हुई,और आज 15 अक्टूबर को जयपुर में राघवी ने स्पीच प्रतियोगिता में फिर से झंडे गाड़े, टॉपिक भी बड़ा अटपटा सा था,
“स्वयं को दशकों पहले या बाद यानी भूत या भबिष्य में अपने को फील करना था”
राघवी ने स्वयं को वीर सावरकर फील किया, उनकी गहन स्टडी की, और खचॉखच भरे ऑडिटोरियम में जजों से प्रथम पुरस्कार लेने में सफल रही, और गूँजती तालिया उसका उत्साह बढ़ाती रही राघवी चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक की सुपुत्री है
वीर सावरेकर को जेल में दी गई यातनाएं महाराष्ट्र (तब बम्बई) प्रांत में नासिक के निकट भागुर गांव में जन्मे विनायक सावरकर एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने स्वाधीनता-संग्राम को एक नई दिशा दी थी। वीर सावरकर ही ऐसे पहले नेता थे जिन्होंने पूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता को भारत का लक्ष्य बताया था और आजादी के लिए आंदोलन छेड़ा था। जब विनायक सावरकर स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े तो अंग्रेजों के द्वारा ‘दोहरे आजीवन कारावास’ की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान-निकोबार की जेल में रखा गया। जेल में विनायक सावरकर को बहुत यातनाएं दी गई थी। लेकिन वीर सावरकर, अंग्रेजों के आगे झुके नहीं थे। अंग्रेजों के द्वारा अंडमान-निकोबार की जेल में विनायक सावरकर को आंदोलनों को समाप्त करने के लिए यातनाएं दी जाती थी। लेकिन सावरकर पर अंग्रेजों के द्वारा दी जानें वाली यातनाओं को कोई असर नहीं हुए। उन्होंने जेल में भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन जारी रखा। जेल में कागज़ और कलम नहीं होने की वजह से उन्होंने जेल की दीवारों पर कील, पत्थर के टुकड़ों और कोयले से कविताएं लिखी थी और उन्हें याद भी किया था। बताया जाता है कि जब वह जेल से बाहर आ गए थे तो उन्होंने याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को पुन: लिखा था।
क्रांतिकारी वीर सावरकर बचपन से ही हिन्दूवादी रहे थे। वीर सावरकर ने जीवन भर हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए ही कार्य किया। उन्हें छह बार अखिल भारत हिंदू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। वर्ष 1937 में वीर सावरेकर को हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना गया था। वहीं वर्ष 1938 में हिंदू महासभा को राजनीतिक पार्टी घोषित किया गया था। वीर सावरेकर को हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय जाता है। क्रांतिकारी वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र (तब बम्बई) प्रांत में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। वीर सावरकर के पिता दामोदर सावरकर और माता माता राधाबाई धार्मिक विचारधारा के थे। जब वीर सावरकर नौ वर्ष के थे उस समय हैजा की वजह से पिता की मृत्यु हो गई थी। जिस वजह से उनका शुरुआती जीवन कठिनाई में बीता था। नासिक के शिवाजी स्कूल से विनायक ने वर्ष 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। विनायक ने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बीए किया था।
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