11 सितंबर- स्वामी विवेकानन्द, आचार्य विनोबा भावे और मोहन भागवत से जुड़ा “आज का दिन”- देहरादून, अल्मोड़ा से गहरा नाता
#HIGH LIGHT# 11 सितंबर #स्वामी विवेकानंद के भाषण की वह तारीख जब पूरब का पश्चिम से मिलन हुआ # स्वामी विवेकानन्द, आचार्य विनोबा भावे और मोहन भागवत से जुड़ा . #राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत शासक वर्ग के अभिभावक # स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ। उनका घर का नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंगरेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे।# “11 सितंबर का स्वामी विवेकानंद के साथ एक विशेष संबंध है। आज ही के दिन 1893 में उन्होंने शिकागो में अपना सबसे उत्कृष्ट भाषण दिया था। उनके संबोधन ने पूरी दुनिया को भारत की संस्कृति एवं मूल्यों की एक झलक दिखाई थी # 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में जन्मे नरेंद्र नाथ आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से मशहूर हुए.# स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda Almora Visit) पहली बार 1890 में कुमाऊं के दौरे पर आए थे. अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान की अनुभूति हुई थी. सांस्कृतिक नगरी से स्वामी विवेकानंद का गहरा नाता रहा है. वह तीन बार अल्मोड़ा आए थे.# स्वामी विवेकानंद दो बार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून आए थे। # स्वामी विवेकानंद का देहरादून, अल्मोड़ा से था गहरा नाता By www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Print Media)
सरसंघ चालक बदलाव के चौथे वाहक — मोहन मधुकर भागवत (जन्म: 11 सितम्बर 1950, चन्द्रपुर महाराष्ट्र) एक पशु चिकित्सक और 2009 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक हैं। उन्हें एक व्यावहारिक नेता के रूप में देखा जाता है। के एस सुदर्शन ने अपनी सेवानिवृत्ति पर उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना था
सरसंघ चालक बदलाव के चौथे वाहक हैं। संघ के चिंतक ने भागवत की तुलना संत विनोबा भावे से की है। कहा कि जिस तरह से विनोबा भावे ने सत्ता के विरुद्ध आंदोलन की धार कुंद करके सत्ता प्रतिष्ठान का साथ दिया, उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए सरसंघ चालक मोहन भागवत ने आरएसएस को सोशियो पॉलिटिक (सामाजिक राजनीतिक ) संगठन का रूप देने की बजाय राजनीतिक सामाजिक संगठन का रूप दे दिया उस समय संघ की पूरी प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। संघ समझकर चल रहा था कि यदि 2019 में भाजपा की केन्द्र सरकार में वापसी नहीं हुई तो उसे बड़ा नुकसान होगा। इसलिए स्थिति यह है कि अभी तक जो नरेन्द्र मोदी संघ परिवार में होते थे, वह संघ अब मोदी परिवार में है। यह सब सरसंघ चालक ने पहली बार संघ की अवधारणा में आमूलचूल परिवर्तन को समझाने, देश के सामने रखने और नई व्याख्या को आगे बढ़ाने की रणनीति थी, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के संघ के बारे में विचार को स्थान दिया गया, आरक्षण पर बोले। गुरु गोलवरकर की किताब से मुसलमान को दुश्मन मानने वाले अंश को हटाने की जानकारी दी। कांग्रेस की स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भूमिका की तारीफ की और सेक्युलर सोच पर आए। सरसंघ चालक बदलाव के चौथे वाहक के रूप में अपनी भूमिका में लगातार बदलाव का संकेत देकर संघ को मजबूत किया।
“मोहन मधुकर भागवत” ये नाम शायद ही किसी को न पता हो। एक ऐसी शख्सियत जिसने हिंदुत्व को आधुनिकता के साथ आगे बढ़ने पर हमेशा जोर दिया है। मोहन भागवत का संघ से रिश्ता 3 पीढ़ियों से है। साल 1925 में संघ की स्थापना के बाद से ही मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत, जोकि सतारा के रहने वाले थे, संघ से सक्रिय रूप से जुड़ गए और काम करने लगे। जहां उन्हें नया नाम “नाना साहेब भागवत” मिला।
मोहनराव मधुकरराव भागवत का जन्म महाराष्ट्र के चन्द्रपुर नामक एक छोटे से नगर में 11 सितम्बर 1950 को हुआ था। वे संघ कार्यकर्ताओं के परिवार से हैं। उनके पिता मधुकरराव भागवत चन्द्रपुर क्षेत्र के प्रमुख थे जिन्होंने गुजरात के प्रान्त प्रचारक के रूप में कार्य किया था। मधुकरराव ने ही लाल कृष्ण आडवाणी का संघ से परिचय कराया था। उनके एक भाई संघ की चन्द्रपुर नगर इकाई के प्रमुख हैं। मोहन भागवत कुल तीन भाई और एक बहन चारो में सबसे बड़े हैं। मोहन भागवत ने चन्द्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा और जनता कॉलेज चन्द्रपुर से बीएससी प्रथम वर्ष की शिक्षा पूर्ण की। उन्होंने पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1975 के अन्त में, जब देश तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गान्धी द्वारा लगाए गए आपातकाल से जूझ रहा था, उसी समय वे पशु चिकित्सा में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम अधूरा छोड़कर संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गये।आपातकाल के दौरान भूमिगत रूप से कार्य करने के बाद 1977 में भागवत महाराष्ट्र में अकोला के प्रचारक बने और संगठन में आगे बढ़ते हुए नागपुर और विदर्भ क्षेत्र के प्रचारक भी रहे
भागवत अकोला से अपनी पढ़ाई पूरी करके लौटे थे तब एक बोरे में इनाम भर कर लाये थे, लेकिन आपातकाल के कुछ पहले ही भागवत की पढ़ाई बीच में ही रुक गयी और आपातकाल के दौरान उनके पिता मधुकर भागवत और मां मालतीबाई को जेल भी जाना पड़ा। वहीं कहा जाता है कि मोहन भागवत पूरे आपातकाल के दौरान अज्ञातवास में रहे और आपातकाल के अज्ञातवास के बाद जब वापस आये तो तेजी से संघ का काम शुरू किया और संघ में खूब तरक्की भी मिली।
भारत माता के अनुपम लाल, भारतीय संस्कृति, संस्कारों एवं मूल्यों को समर्पित, अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत संगम आदरणीय मोहन भागवत जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें। माँ गंगा एवं ईश्वर उन्हें दीर्घायु, दिव्यायु और स्वस्थ रखे ताकि वे भारत माता की सेवा करते हुये भारतीय युवाओं का मार्गदर्शन करते रहें। माननीय मोहन भागवत जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार के सदस्यों ने सेवा, सयंम और समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है। माननीय भागवत जी अपने उद्बोधनों के माध्यम से देश की युवा शक्ति में राष्ट्रभक्ति का जज़्बा, जुनून, और जोश प्रवाहित करते रहते हैं। गोलवलकर गुरु जी का मंत्र इदम राष्ट्राय इदम न मम के अनुरूप संघ परिवार इन्हीं संस्कारों के साथ आगे बढ़ रहा है। वास्तव में किसी भी संस्था का मुखिया समर्पित हो तो हर मेम्बर समर्पित होता है और यही आदर्श माननीय भागवत जी ने स्थापित किया है- CHANDRA SHEKHAR JOSHI Editor; www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Print Media) Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030
आपातकाल के दौरान भूमिगत रूप से कार्य करने के बाद 1977 में भागवत महाराष्ट्र में अकोला के प्रचारक बने और संगठन में आगे बढ़ते हुए नागपुर और विदर्भ क्षेत्र के प्रचारक भी रहे।1991 में वे संघ के स्वयंसेवकों के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख बने और उन्होंने 1999 तक इस दायित्व का निर्वहन किया। उसी वर्ष उन्हें, एक वर्ष के लिये, पूरे देश में पूर्णकालिक रूप से कार्य कर रहे संघ के सभी प्रचारकों का प्रमुख बनाया गया। वर्ष 2000 में, जब राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) और हो०वे० शेषाद्री ने स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से क्रमशः संघ प्रमुख और सरकार्यवाह का दायित्व छोडने का निश्चय किया, तब के एस सुदर्शन को संघ का नया प्रमुख चुना गया और मोहन भागवत तीन वर्षों के लिये संघ के सरकार्यवाह चुने गये। 21 मार्च 2009 को मोहन भागवत संघ के सरसंघचालक मनोनीत हुए। वे अविवाहित हैं तथा उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक भ्रमण किया है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चुने जाने वाले सबसे कम आयु के व्यक्तियों में से एक हैं। उन्हें एक स्पष्टवादी, व्यावहारिक और दलगत राजनीति से संघ को दूर रखने के एक स्पष्ट दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है।
भूदान आंदोलन के प्ररेणा विनोबा भावे की जयंती
11 सितंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूदान आंदोलन के प्ररेणा विनोबा भावे की जयंती पर उन्हें रविवार को श्रद्धांजलि दी। मोदी ने ट्वीट किया कि भावे का जीवन गांधीवादी सिद्धांतों की अभिव्यक्ति है। प्रधानमंत्री ने 1895 में जन्मे भावे को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘‘उनका जीवन गांधीवादी सिद्धांतों की अभिव्यक्ति है। वह सामाजिक सशक्तीकरण को लेकर जुनूनी थे और उन्होंने ‘जय जगत’ का नारा दिया था। हम उनके आदर्शों से प्रेरित हैं और हमारे देश के लिए उनके सपनों को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गाहोदे, गुजरात, भारत में हुआ था। विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। एक कुलीन ब्राह्मण परिवार जन्मे विनोबा ने ‘गांधी आश्रम’ में शामिल होने के लिए 1916 में हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। गाँधी जी के उपदेशों ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन के सुधार के लिए एक तपस्वी के रूप में जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया।
विनायक की बुद्धि अत्यंत प्रखर थी। गणित उसका सबसे प्यारा विषय बन गया। हाई स्कूल परीक्षा में गणित में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए। बड़ौदा में ग्रेजुएशन करने के दौरान ही विनायक का मन वैरागी बनने के लिए अति आतुर हो उठा। 1916 में मात्र 21 वर्ष की आयु में गृहत्याग कर दिया और साधु बनने के लिए काशी नगरी की ओर रूख किया। काशी नगरी में वैदिक पंडितों के सानिध्य में शास्त्रों के अध्ययन में जुट गए। महात्मा गाँधी की चर्चा देश में चारों ओर चल रही थी कि वह दक्षिणी अफ्रीका से भारत आ गए हैं और आज़ादी का बिगुल बजाने में जुट गए हैं। अखंड स्वाध्याय और ज्ञानाभ्यास के दौरान विनोबा का मन गाँधी जी से मिलने के लिए किया तो वह पंहुच गए अहमदाबाद के कोचरब आश्रम में। जब पंहुचे तो गाँधी जी सब्जी काट रहे थे। इतना प्रख्यात नेता सब्जी काटते हुए मिलेगा, ऐसा तो कदाचित विनोबा ने सोचा न था। बिना किसी उपदेश के स्वालंबन और श्रम का पाठ पढ़ लिया। इस मुलाकात के बाद तो जीवन भर के लिए वह बापू के ही हो गए।
महात्मा गांधी के आदरणीय अनुयायी, भारत के एक सर्वाधिक जाने-माने समाज सुधारक एवं ‘भूदान यज्ञ’ नामक आन्दोलन के संस्थापक थे। इनकी समस्त ज़िंदगी साधु संयासियों जैसी रही, इसी कारणवश ये एक संत के तौर पर प्रख्यात हुए। विनोबा भावे अत्यंत विद्वान एवं विचारशील व्यक्तित्व वाले शख्स थे। महात्मा गाँधी के परम शिष्य ‘जंग ए आज़ादी’ के इस योद्धा ने वेद, वेदांत, गीता, रामायण, क़ुरआन, बाइबिल आदि अनेक धार्मिक ग्रंथों का उन्होंने गहन गंभीर अध्ययन मनन किया। अर्थशास्त्र, राजनीति और दर्शन के आधुनिक सिद्धांतों का भी विनोबा भावे ने गहन अवलोकन चिंतन किया गया।
1918 में बापू ने आचार्य विनोबा भावे के बारे में लिखा था- मुझे नहीं पता कि आपकी प्रशंसा किस संदर्भ में की जाए। आपका प्यार और आपका चरित्र मुझे रोमांचित करता है और आपका आत्म मूल्यांकन भी। इसलिए मैं आपके मूल्य को मापने के लिए उपयुक्त नहीं हूं।
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के अपने भाषण में क्या-क्या कहा था? अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.
प्रधानमंत्री ने 11 सितंबर का स्वामी विवेकानंद से ‘‘खास संबंध’’ होने का भी जिक्र करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद ने 1893 में इसी दिन शिकागो में ऐतिहासिक भाषण दिया था। मोदी ने ट्विटर पर वह भाषण साझा करते हुए कहा, ‘‘1893 में आज ही के दिन उन्होंने शिकागो में सबसे उत्कृष्ट भाषणों में से एक भाषण दिया था। उनके भाषण ने दुनिया को भारत की संस्कृति और मूल्यों की झलक दिखायी थी।’’
स्वामी विवेकानंद 11 सितंबर 1893 को शिकागो भाषण
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति-संप्रदाय के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।
अमेरिका के बहनो और भाइयो, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति-संप्रदाय के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।
मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से निकला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सभी को स्वीकारने का पाठ पढ़ाया है।
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के अपने भाषण में क्या-क्या कहा था? अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.
हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके पवित्र धार्मिक स्थल को रोमन हमलावरों ने तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।
मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अब भी उन्हें पाल-पोस रहा है।भाइयो, मैं आपको वैदिक मंत्रों की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से याद किया और दोहराया है और जो करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप अलग-अलग रास्ता चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी रास्ते भगवान तक ही जाते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के अपने भाषण में क्या-क्या कहा था? मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.
वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। सांप्रदायिकता, कट्टरता और हठधर्मिता लंबे समय से इस सुंदर धरती को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने धरती को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के दुखों और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के अपने भाषण में क्या-क्या कहा था? मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है. मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं. ”जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि आज, 11 सितंबर को हम भारत में दो महत्वपूर्ण मील के पत्थर चिह्नित करते हैं। आचार्य विनोबा भावे की जयंती है। और आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में अपना उत्कृष्ट भाषण दिया था। इन महापुरुषों के पास पूरी मानवता को सिखाने के लिए बहुत कुछ है। भावे को भारत में भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन शुरू करने के लिए जाना जाता है। आज उनकी 125 वीं जयंती मनाई जा रही है। वहीं आज ही के दिन 1893 में, विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में भाषण दिया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने वेदांत की अवधारणाओं और आदर्शों को पश्चिमी दुनिया से परिचित कराया था।
स्वामी विवेकानंद का देहरादून, अल्मोड़ा से था गहरा नाता
स्वामी विवेकानंद दो बार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून आए थे। राजपुर के बावड़ी शिव मंदिर में वो कई दिन तक रहे और अपने गुरुभाई स्वामी तुरियानंद के साथ साधना की। दूसरी बार विवेकानन्द साल 1897 में उत्तराखंड आए। स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर स्वामी करूणानंद ने 1916 में यहां आश्रम बनाया। साथ ही रामकृष्ण मिशन धर्मार्थ औषधालय भी शुरू किया गया। 1890 में स्वामी विवेकानंद कलकत्ता से से सीधे उत्तराखंड पहुंचे। नैनीताल से बद्रीकाश्रम की ओर जाते हुए तीसरे दिन कोसी नदी तट पर ध्यानमग्न हो गए। यहां पर उन्हें दिव्य अनुभूतियां हुईं। अल्मोड़ा के कसार देवी स्थित मंदिर में भी स्वामी विवेकानंद ने गहन साधना की थी। 1897 में उन्होंने देवलधार बागेश्वर में भी 47 दिन बिताए थे। चंपावत स्थित मायावती आश्रम की स्थापना स्वामी विवेकानंद के शिष्य ने की थी। ऋषिकेश स्थित चंद्रेश्वर महादेव मंदिर एवं कैलाश आश्रम में भी स्वामी विवेकानंद तपस्यारत रहे। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने जहां-जहां साधना की, वहां आज भी अद्भुत ऊर्जा महसूस की जा सकती है।
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda Almora Visit) पहली बार 1890 में कुमाऊं के दौरे पर आए थे. अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान की अनुभूति हुई थी. सांस्कृतिक नगरी से स्वामी विवेकानंद का गहरा नाता रहा है. वह तीन बार अल्मोड़ा आए थे. स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु भाई शिवानंद महाराज से कहा था. यह स्थान पवित्र और शांत है. स्वामी जी ने गुरुभाई से कहा था कि इस स्थान पर एक आश्रम होना चाहिए, तब जाकर यहां इस कुटीर की स्थापना की गई. देश-विदेश से लोग यहां ध्यान करने के लिए आते हैं.
Execlusive Article by : Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar Mob. 9412932030 Mail; himalayauk@gmail.com