30 मई पत्रकारिता दिवस – चुनौतियों के साथ ही उपेक्षा की शिकार लघु एवं मध्यम समाचार पत्र की पत्रकारिता & यह पीएम लघु एवं मध्यम समाचार पत्र महासंघ को आमंत्रित करते थे
हिंदी पत्रकारिता दिवस हर साल 30 मई को मनाया जाता है। दरअसल इसे मनाने की वजह यह है कि इसी दिन साल 1826 में हिंदी भाषा का पहला अखबार ‘उदन्त मार्तण्ड’ प्रकाशित होना शुरू हुआ था। इसका प्रकाशन तत्कालीन कलकत्ता शहर से किया जाता था और पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे शुरू किया था। शुक्ल स्वयं ही इसके प्रकाशक और संपादक थे। Execlusive Report by Chandra Shekhar Joshi President Uttrakhand IFSMN (National Federation)
कंपनी सरकार के समय जो चुनौतियां एवं उपेक्षा बरती जाती थी, आज दशको बाद भी वही व्यवहार लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो के साथ किया जाता रहा है । पुस्तक के छपने के बाद एक प्रति निःशुल्क स्थानीय सरकार को देनी होती थी। जो आज तक चली आ रही है।
स्वतंत्रता काल में इलाहाबाद से निकलने वाले समाचार पत्र में संपादकीय लिखने वाले संपादक को १० वर्ष की काला पानी की सजा होती थी। आठ संपादक हुए जिनकों कुल मिलाकर १२५ साल की काला पानी सजा हुई। इसमें देहरादून के नन्दगोपाल चोपडा का नाम भी शामिल है जिनकों अपनी पत्रकारीय कार्य के लिए ३० वर्ष की काला पानी की सजा हुई थी। आजादी के उस पवित्र यज्ञ में देहरादून की आहुति भी शामिल है जो पूरे उत्तराखंड के गर्व का विषय है।
जुगल किशोर ने सरकार से बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई कंपनी सरकार ने मिशनरियों के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दी थी, लेकिन “उदंत मार्तंड” को यह सुविधा नहीं मिली. इसकी वजह इस अखबार का बेबाक बर्ताव था.
195 साल पहले भारत में पहला हिंदी भाषा का समाचार पत्र 30 मई को ही प्रकाशित हुआ था. इसके पहले प्रकाशक और संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता के जगत में विशेष स्थान है.
पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से 30 मई, 1826 को “उदन्त मार्तण्ड नाम का एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था. शुरु से ही हिंदी पत्रकारिता को बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा. समय के साथ इनका केवल स्वरूप बदला. लेकिन तमाम चुनौतियों के साथ ही हिंदी पत्रकारिता आज ने वैश्विक स्तर पर अपने उपस्थिति दर्ज कराई है.
३० मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर आयोजित गोष्ठी का विषयः ”वर्तमान हालत में लघु और मध्यम समाचार पत्रों का अस्तित्व कैसे सुरक्षित हो“ विषय पर उस पर विस्तार से प्रकाश डालूंगाः
३० मई हिन्दी पत्रकारिता दिवसः से पूर्व मैं पत्रकारिता पर कहना चाहूंगा कि गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- कीरति भनति भूलि भलि सोई, सुरसरि सम सबकर हित होई। उपरोक्त कथन पत्रकारिता की मूल भावना को स्पष्ट करता है । विद्वानों ने पत्रकारिता को शीघ्रता में लिखा गया इतिहास भी कहा है। इन्द्र विद्या वचस्पति ने पत्रकारिता को ‘पांचवां वेद“ माना। उन्होंने कहा है कि पत्रकारिता पांचवां वेद है, जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना बंद मस्तिष्क खोलते हैं। पत्रकारिता जन भावना की अभिव्यक्ति, सद्वावों की अनुभूति और नैतिकता की पीठिका है । यह हमारे आदर्श वाक्य है। पत्रकारिता जनता और सरकार के बीच, समस्या और समाधान के बीच, व्यक्ति और समाज के बीच, गांव और शहर की बीच, देश और दुनिया के बीच, उपभोक्ता और बाजार के बीच सेतु का काम करती है। यदि यह अपनी भूमिका सही मायने में निभाए तो हमारे देश की तस्वीर वास्तव में बदल सकती है- CHANDRA SHEKHAR JOSHI EDITOR MOB.9412932030
हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत बंगाल से हुई थी, जिसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है. पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता के कोलू टोला मोहल्ले की 27 नंबर आमड़तल्ला गली से उदंत मार्तंड के प्रकाशन की शुरुआत की थी. उस समय अंग्रेजी फारसी और बांग्ला में पहले से ही काफी समाचार पत्र निकल रहे थे, लेकिन हिंदी में एक भी समाचार पत्र नहीं निकल रहा था.
वैसे तो उदंत मार्तंड से पहले 1780 में एक अंग्रेजी अखबार की शुरुआत हुई थी. फिर भी हिंदी को अपने पहले समाचार-पत्र के लिए 1826 तक प्रतीक्षा करनी पड़ी. 29 जनवरी 1780 में आयरिश नागरिक जेम्स आगस्टस हिकी अंग्रेजी में ‘कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर’ नाम का एक समाचार पत्र शुरू किया था, जो भारतीय एशियाई उपमहाद्वीप का किसी भी भाषा का पहला अखबार था. 17 मई, 1788 को कानपुर में जन्मे युगल किशोर शुक्ल, ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी के सिलसिले में कोलकाता गए.
उत्तराखण्ड में पत्रकारिता की जडें आजादी के आंदोलन के समय ही जम चुकी थीं। स्वाधीनता आंदोलन में यहां के पत्रकारों और समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही। देश की आजादी के बाद भी यहां से निकलने वाले तमाम साप्ताहिक एवं पाक्षिक अखबारों का जनजागरूकता में अहम योगदान रहा। ये साप्ताहिक व पाक्षिक अखबार गांव-गांव की समस्याओं को प्रमुखता से उठाते थे और सरकार की योजनाओं के बारे में जनता को अवगत कराते थे। ८० के दशक में दैनिक समाचार पत्रों ने भी देहरादून से क्षेत्रीय संस्करण निकालने की शुरुआत की। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में लघु व मध्यम समाचार पत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
कानपुर में जन्मे शुक्ल संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला के जानकार थे और ‘बहुभाषज्ञ’की छवि से मंडित वे कानपुर की सदर दीवानी अदालत में प्रोसीडिंग रीडरी यानी पेशकारी करते हुए अपनी वकील बन गए. इसके बाद उन्होंने ‘एक साप्ताहिक हिंदी अखबार ‘उदंत मार्तंड’निकालने क प्रयास शुरू किए. तमाम प्रयासों के बाद उन्हें गवर्नर जनरल की ओर से उन्हें 19 फरवरी, 1826 को इसकी अनुमति मिली.
हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता की जगत में विशेष सम्मान है। जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे। लेकिन उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। परतंत्र भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। इसी के लिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था। परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे। हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। हां, यह जरूर है कि 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।
हिंदी अखबार उदन्त मार्तण्ड के प्रकाशित होने से 46 साल पहले सन 1780 में एक अंग्रेजी अखबार छपना शुरू हुआ था। 29 जनवरी 1780 में एक आयरिश नागरिक जेम्स आगस्टस हिकी कलकत्ता शहर से ही ‘कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर’ नाम से एक अंग्रेजी अखबार का प्रकाशन शुरू किया था।
यह भारतीय उपमहाद्वीप का पहला अखबार था। इसके प्रकाशन के साढ़े चार दशक बाद उदन्त मार्तण्ड नाम से पहला हिंदी अखबार प्रकाशित हुआ था। इन बीच अन्य भारतीय भाषाओं के अखबारों का प्रकाशन शुरू हो चुका था।
भले ही उदंत उस समय बंद हो गया मगर उसके माध्यम से युगल जी ने पत्रकारिता के प्रति समर्पण, संकल्प और निष्ठा की एक ऐसी इबारत लिखी जो पत्रकारिता के लिए मिसाल बनकर सामने आती है। १८३० में राममोहन राय ने बडा हिंदी साप्ताहिक ”बंगदूत” का प्रकाशन शुरू किया। वैसे यह बहुभाषीय पत्र था, जो अंग्रेजी, बंगला, हिंदी और फारसी में निकलता था। यह कोलकाता से निकलता था जो अहिंदी क्षेत्र था। इस से पता चलता है कि राममोहन राय हिंदी को कितना महत्व देते थे CHANDRA SHEKHAR JOSHI EDITOR MOB.9412932030
हिंदी पत्रकार राष्ट्रीय आंदोलनों की अग्र पंक्ति में थे और उन्होंने विदेशी सत्ता से डटकर मोर्चा लिया। विदेशी सरकार ने अनेक बार नए-नए कानून बनाकर समाचारपत्रों की स्वतंत्रता पर कुठाराघात किया परंतु जेल, जुर्माना और अनेकानेक मानसिक और आर्थिक कठिनाइयाँ झेलते हुए भी हमारे पत्रकारों ने स्वतंत्र विचार की दीपशिखा जलाए रखी।
स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधाये उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था। १८६७ ई. के पंजीकरण अधिनियम का उद्देश्य था, छापाखानों को नियमित करना। अब हर मुद्रित पुस्तक एवं समाचार पत्र के लिए यह आवश्यक कर दिया कि वे उस पर मुद्रक, प्रकाशक एवं मुद्रण स्थान का नाम लिखें। पुस्तक के छपने के बाद एक प्रति निःशुल्क स्थानीय सरकार को देनी होती थी। जो आज तक चली आ रही है।
चन्द्रशेखर जोशीः सम्पादक प्रदेश अध्यक्ष उत्तराखण्ड आई०एफ०एस०एम०एन० भारत के लघु व मध्यम समाचार पत्रों का महासंघ ने बताया कि
भारतीय लघु और मध्यम समाचार पत्रों का महासंघ- इंडियन फेडरेशन ऑफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स, नई दिल्ली राष्ट्रीय स्तर पर गठित है जो १९८५ से अस्तित्व में हैं जिसके कार्यक्रमों में समय-समय पर तत्कालीन प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, पी०सी०आई० चैयरमैनों, लोकसभा अध्यक्षों ने हिस्सा लिया है। फैडरेशन का राष्ट्रीय स्तर पर शानदार इतिहास रहा है। उत्तराखण्ड में फैडरेशन नीतिगत पत्रकारिता के प्रति कटिबद्व होकर सूबे में लघु व मध्यम समाचार पत्रों के संगठन के रूप में कार्यरत है तथा लघु व मध्यम समाचार पत्रों के हितों के लिए कार्यरत सक्रिय संगठन है, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व; राजीव गॉधी जी आई एफएसएमएन संगठन को मुलाकात हेतु अपने निवास पर आमंत्रित करते थे, और लघु एवं मध्यम समाचार पत्र को राज्यआश्रय देते थे, उसी तरह उत्तराखण्ड में तत्कालीन पं0; नारायण दत्त तिवारी श्री लघु एवं मध्यम समाचार पत्रो को आश्रय देते थे,
पत्रकारिता की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, तभी वे लिखते हैंः
खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो
जय हिन्द जय उत्तराखण्ड BY CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR & PRESIDENT UTTRAKHAND; IFSMN (Indian Federation of Small & Medium Newspaper) Mob 9412932030