30 नवंबर ;अदभूत संयोग; देव दीपावली,त्रिपुरारी पूर्णिमा, ग्रहण नानक जयंती, मत्स्य अवतार
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं, वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।। चन्द्रशेखर जोशी की रिपोर्ट ——
भगवान विष्णु जो जगत के पालनहार है, जो सृस्टि की रचना, पालन और संहार करते है। उनकी ये कथाऐ हमे ये विश्वास दिलाती हे की जब भी हम संकट मे होते हे ओर जब हम उन्हे दिल से पुकारते हे वो किसी ना किसी रूप मे प्रगट होकर हमारी सहायता करते है। 30नवम्बर के विशेष दिन पर मैं आपको भगवान के सबसे पहले अवतार की कथा बता रहा हु, कि भगवान ने सबसे पहले मत्स्य के रूप मे अवतार लेकर पृथ्वी पर जीवन की रक्षा की थी।
High Light# कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर को सोमवार – कार्तिक पूर्णिमा की संध्या पर भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था. कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान करना दस यज्ञों के समान पुण्यकारी माना जाता है. शास्त्रों में इसे महापुनीत पर्व कहा गया है. कृतिका नक्षत्र पड़ जाने पर इसे महाकार्तिकी (Mahakartiki)कहते हैं. कार्तिक पूर्णिमा अगर भरणी और रोहिणी नक्षत्र में होने से इसका महत्व और बढ़ जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली (Dev Deepawali) भी मनाई जाती है. : इसी तिथि पर भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था।
चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2020) 30 नवंबर को है. ##30 नवंबर को ही गुरुनानक जयंती, इस तिथि पर करें जरूरतमंद लोगों को दान
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कार्तिक पूर्णिमा की तिथि- 30 नवंबर पूर्णिमा तिथि आरंभ- 29 नवंबर को रात 12 बजकर 49 मिनट से आरंभ पूर्णिमा तिथि समाप्त- 30 नवंबर को दोपहर 3 बजे तक
इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली भी कहा जाता है। पुराने समय में इस तिथि पर शिवजी ने त्रिपुरासुर नाम के दैत्य का वध किया था, इस कारण इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं। एक अन्य मान्यता है कि इस दिन देवताओं की दीपावली होती है। इसीलिए इसे देव दीपावली कहते हैं। इस दिन से कार्तिक मास के स्नान समाप्त हो जाएंगे। कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान, दीपदान, पूजा, आरती, हवन और दान का बहुत महत्व है।
25 नवंबर, कार्तिक शुक्ल एकादशी से भीष्म पंचक व्रत का आरंभ। ये व्रत 5 दिन तक चलेगा। 30 नवंबर कार्तिक पूर्णिमा के दिन इसका विश्राम होगा। 5 दिनों के इस व्रत को विष्णु पंचक व्रत भी कहते हैं। कार्तिक माह के ये अंतिम पांच दिन होते हैं, जब श्री हरि की विशेष पूजा करने का विधान है।
रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्। मुक्तेर्निदांन नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।।-(स्कंदपुराण. वै. का. मा. 5/34)…
अर्थात- कार्तिक मास आरोग्य प्रदान करने वाला, रोगविनाशक, सद्बुद्धि प्रदान करने वाला तथा मां लक्ष्मी की साधना के लिए सर्वोत्तम है।
भगवान विष्णु के लिए सत्यनारायण भगवान की कथा करनी चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा पर सुबह जल्दी उठना चाहिए। पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान करते समय सभी तीर्थों का ध्यान करना चाहिए। स्नान करने के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। शिवलिंग पर जल चढ़ाकर ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। अभिषेक करें। कर्पूर जलाकर आरती करें। शिवजी के साथ ही गणेशजी, माता पार्वती, कार्तिकेय स्वामी और नंदी की भी विशेष पूजा करें। पूर्णिमा पर हनुमान के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।
चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2020) 30 नवंबर को है. ये चंद्र ग्रहण इस बार कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2020) के दिन पड़ रहा है. ये चंद्र ग्रहण पूर्णिमा तिथि को रोहिणी नक्षत्र और वृषभ राशि में होगा. ये चंद्र ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा. यहां इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा. पर नक्षत्र और राशि में लगने का असर जरूर पड़ेगा. वृषभ राशि को कुछ परेशानियों से गुजरना पड़ सकता है. Himalayauk Newsportal
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भगवान विष्णु का प्रथम अवतार — मत्स्य या मछली का अवतार
सतयुग के प्रारंभ में भगवान
विष्णु का प्रथम अवतार हुआ था जिसे मत्स्य या मछली का अवतार माना जाता है। इस काल
में द्रविड़ देश में सत्यव्रत नाम के महान राजा राज करते थे। एक बार नदी में स्नान
करते हुए उन्हें एक मछली मिली। जिसे वे अपने महल ले आए। वह मछली और कोई नहीं बल्कि
भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार थी। मछली ने राजा सत्यव्रत से कहा कि हे
राजन हिग्रीव नामक एक राक्षस ने वेदों को चुरा लिया है। उस राक्षस का वध करने के
लिए मैंने यह अवतार लिया है। आज से सातवें दिन पृथ्वी जल प्रलय से डूब जाएगी। तब
तक तुम एक बड़ी सी नाव का इंतजाम कर लो और प्रलय के दिन सप्त ऋषियो के साथ सभी तरह
के प्राणियों तथा औषधि बीजो को लेकर नाव पर चढ़ जाना। मैं प्रलय के दिन तुम्हें
रास्ता दिखाऊंगा।
इसके बाद सत्यव्रत ने भगवान द्वारा बताई गई सभी तैयारियां कर ली
और वे प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे। सातवें दिन पहले का दृश्य उमड़ पड़ा समुद्र
अपनी सीमा से बाहर बहने लगा। सत्यव्रत सप्तर्षियों के साथ नाव पर चढ़ गए।
नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। प्रलय के उस सागर में उस नाव के अतिरिक्त कहीं भी कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था. तभी वहां पर मत्स्य रूपी भगवान विष्णु प्रगट हुए। अपने वचन के अनुसार उन्होंने वासुकि नाग का रस्सी की तरह उपयोग कर नौका को प्रलय से बाहर निकालने का रास्ता दिखाया। साथ ही सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया। बताया- “सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हूँ। न कोई ऊँच है, न नीच। सभी प्राणी एक समान हैं। जगत् नश्वर है। नश्वर जगत् में मेरे अतिरिक्त कहीं कुछ भी नहीं है। जो प्राणी मुझे सबमें देखता हुआ जीवन व्यतीत करता है, वह अंत में मुझमें ही मिल जाता है।”
मत्स्य रूपी भगवान से आत्मज्ञान पाकर सत्यव्रत का जीवन धन्य हो उठा। वे जीते जी ही जीवन मुक्त हो गए। प्रलय का प्रकोप शांत होने पर मत्स्य रूपी भगवान ने हयग्रीव को मारकर उससे वेद छीन लिए। भगवान ने ब्रह्माजी को पुनः वेद दे दिए। इस प्रकार भगवान ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही, साथ ही संसार के प्राणियों का भी अमित कल्याण किया। भगवान इसी प्रकार समय-समय पर अवतरित होते हैं और सज्जनों तथा साधुओं का कल्याण करते हैं।
भगवान विष्णु को सभी देवताओ मे सबसे अधिक पूज्य माना जाता है। जो सबसे अधिक दयालु और तुरंत कृपा करने वाले होते है, उनका यही सरल स्वभाव ही है, जो वो इसी प्रकार समय-समय पर अवतरित होकर दुष्टो का विनाश, धार्मिक मनुष्यो की रक्षा और धर्म की स्थापना करते है।