25 नव0 देवउठनी एकादशी- इस मंत्र से जागते हैं श्रीहरि भगवान विष्णु

हे भगवान आप ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य, सोम आदि देवताओं के द्वारा भी वंदनीय हैं। यानि कि ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य और सोम आदि सभी देवता आपकी पूजा करते हैं। हे जगन्निवास, भगवान आप सभी देवताओं के स्वामी हैं। आप इन मंत्रों के प्रभाव से सुखपूर्वक उठ जाइए। यानि कि हे भगवान आप योगनिन्द्रा से जाग जाइए— CHANDRA SHEKHAR JOSHI-

24 NOV. 20; BY Himakayauk Newsportal & Print Media :#”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” हरि जागे,मांगलिक कार्य शुरू :#इस वर्ष देवोत्थान एकादशी व्रत 25 नवंबर, 2020 बुधवार के दिन है. # हिंदू पंचांग के अनुसार 25 नवंबर को एकादशी तिथि दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से लग जाएगी. वहीं, एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर 2020 को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर समाप्त हो जाएगी.

दीपावली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवात्थान एकादशी जिसे हरि प्रबोधनी एकादशी आदि कई नामों से जाना जाता है। वह इस दिन मनाई जाती है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन देव प्रबोधन मंत्रों से दिव्य तत्वों यानि कि देवताओं को जागृत किया जाता है।

बुध्यस्य देवेश जगन्निवास मंत्र प्रभावेण सुखेन देव।

हे भगवान आप ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य, सोम आदि देवताओं के द्वारा भी वंदनीय हैं। यानि कि ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अग्नि, कुबेर, सूर्य और सोम आदि सभी देवता आपकी पूजा करते हैं। हे जगन्निवास, भगवान आप सभी देवताओं के स्वामी हैं। आप इन मंत्रों के प्रभाव से सुखपूर्वक उठ जाइए। यानि कि हे भगवान आप योगनिन्द्रा से जाग जाइए।

देवोत्थान एकादशी के दिन इस मंत्र से करें देवों की स्तुति

उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्‌। उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव॥

ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर भगवान का गुणगान करते हैं। शंख, घड़ियाल आदि बजाकर भगवान को जगाते हैं। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार इस दिन किए गए भगवान के पूजन को बहुत ही अधिक फलदायी माना जाता है।

इस वर्ष देवोत्थान एकादशी का अवसर 25 नवंबर को है. इसको सबसे बड़ी एकादशी भी माना जाता है. इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करना चाहिए’  जब भगवान विष्णु  जागते हैं, तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है. देव जागरण या उत्थान होने के कारण इसे देवोत्थान एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2020) कहते हैं. इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है. इस दिन शंख लाना और इसकी स्थापना करना शुभ होता है. इस दिन मध्य रात्रि में उपासना और प्रार्थना करना विशेष फलदायी होता है. इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करना चाहिए. इस दिन किसी निर्धन को अन्न और वस्त्र का दान अवश्य करना चाहिए.

High Light# 16 दिसंबर से खरमास आरंभ # 2021 में 19 जनवरी से 15 फरवरी तक 27 दिन गुरु अस्त # 17 फरवरी से 17 अप्रैल तक 60 दिन तक शुक्र अस्त # 22 अप्रैल से पुन: विवाह मुहूर्त आरंभ # इस साल 2020 में केवल आठ दिन ही विवाह कार्य के लिए शुभ माने जा सकते हैं,

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देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को है. पंचांग के अनुसार इस दिन एकादशी के तिथि है. ऐसा माना जाता है कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु का शयनकाल समाप्त हो जाता है. शयन काल के दौरान भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम करने चले जाते हैं. जिस दिन से भगवान विष्णु का विश्राम काल आरंभ होता है उस दिन से चातुर्मास आरंभ हो जाते हैं. इसका अर्थ ये होता है कि चार महीने तक मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं. इस बार 1 जुलाई से चातुर्मास आरंभ हुए थे. 25 नवंबर को चातुर्मास समाप्त हो रहे हैं.

देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. इस दिन तुलसी माता की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु का स्वागत किया जाता है. इसके बाद से ही मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं. इस बार शादी विवाह के लिए कई मुहूर्त बन रहे हैं.

पंचांग के अनुसार 26 नवंबर से 11 दिसंबर तक एक नही पूरे 11 शुभ मुहूर्त विवाह के लिए बने हुए हैं. 11 दिसंबर के बाद 16 दिसंबर से खरमास का आरंभ होने जा रहा है. खरमास में विवाह आदि जैसे मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं. इसके बाद शादी विवाह के लिए अगले वर्ष यानि 2021 में अप्रैल माह में विवाह के लिए शुभ मुहूर्त निकल रहे हैं.

पंचांग के अनुसार 26, 29, 30 नवंबर और 1,2,6,7,8,9,10, 11 दिसंबर को विवाह का शुभ मुहूर्त बना हुआ है. इन मुहूर्त में विवाह करना श्रेष्ठ है. पंचांग के अनुसार 16 दिसंबर से खरमास आरंभ हो जाएंगे. खरमास में शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि से धनु राशि में गोचर करेंगे. वर्ष 2021 में 19 जनवरी से 15 फरवरी तक 27 दिन गुरु अस्त हो जाएगा. इसके बाद 17 फरवरी से 17 अप्रैल तक 60 दिन तक शुक्र अस्त रहेगा। इसके बाद 22 अप्रैल से पुन: विवाह मुहूर्त आरंभ हो जाएंगे.

देवोत्थान एकादशी कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं. दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को ही देवोत्थान एकादशी अथवा देवउठान एकादशी या ‘प्रबोधिनी एकादशी’ कहा जाता है. आषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं. इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे. विष्णु जी के शयन काल के चार मासों में विवाहादि मांगलिक कार्यों का आयोजन करना निषेध है. हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं.

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और तुलसी समेत सभी देवी-देवताओं की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दौरान हिन्दू परिवारों में तुलसी जी का विवाह भी भगवान विष्णु के साथ कराया जाता है। और उनकी स्तुति की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान तुलसी जी की आरती और चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य और अनेक प्रकार के लाभ मिलते हैं। तो आइए आप भी देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी चालीसा का पाठ करके मनोवांछित लाभ प्राप्त करें। जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी। नमो नमो हरी प्रेयसी श्री वृंदा गुन खानी।। श्री हरी शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब। जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब।।

यह दिन बहुत विशेष होता है इस दिन किया गया कोई भी उपाय कभी व्यर्थ नहीं जाता है। उसका फल आपको अवश्य मिलता है। इस दिन भक्तों को धन प्राप्ति का उपाय तो जरुर करना चाहिए। क्योंकि धन की आवश्यकता सभी को होती है। क्योंकि जब भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं तो मां लक्ष्मी तो प्रसन्न हो ही जाती हैं। क्योंकि जहां श्रीहरि विष्णु का वास होता है वहां मां लक्ष्मी का भी वास होता है। इसलिए आप देवोत्थान एकादशी के दिन विधिवत भगवान की पूजा करें। और उनके साथ ही आप मां लक्ष्मी की भी पूजा करें। और तुलसी की पूजा भी आप जरुर करें।

कहा जाता है कि चातुर्मास के दिनों में एक ही जगह रुकना ज़रूरी है, जैसा कि साधु संन्यासी इन दिनों किसी एक नगर या बस्ती में ठहरकर धर्म प्रचार का काम करते हैं. देवोत्थान एकादशी को यह चातुर्मास पूरा होता है और पौराणिक आख्यान के अनुसार इस दिन देवता भी जाग उठते हैं. माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते हैं. फिर चार माह बाद देवोत्थान एकादशी को जागते हैं. देवताओं का शयन काल मानकर ही इन चार महीनों में कोई विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य आरंभ नहीं होता. इस प्रतीक को चुनौती देते या उपहास उड़ाते हुए युक्ति और तर्क पर निर्भर रहने वाले लोग कह उठते हैं कि देवता भी कभी सोते हैं क्या श्रद्धालु जनों के मन में भी यह सवाल उठता होगा कि देवता भी क्या सचमुच सोते हैं और उन्हें जगाने के लिए उत्सव आयोजन करने होते हैं पर वे एकादशी के दिन सुबह तड़के ही विष्णु औए उनके सहयोगी देवताओं का पूजन करने के बाद शंख- घंटा घड़ियाल बजाने लगते हैं. पारंपरिक आरती और कीर्तन के साथ वे गाने लगते हैं- उठो देवा, बैठो देवा, अंगुरिया चटकाओं देवा।‘

देवताओं को जगाने, उन्हें अंगुरिया चटखाने और अंगड़ाई ले कर जाग उठने का आह्रान करने के उपचार में भी संदेश छुपा है. स्वामी नित्यानंद सरस्वती के अनुसार चार महीने तक देवताओं के सोने और इनके जागने पर कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उनके जागने का प्रतीकात्मक है. प्रतीक वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव बताने, उस प्रभाव से अपना सामंजस्य बिठाने का संदेश देते हैं. वैदिक वांग्मय के अनुसार सूर्य सबसे बड़े देवता हैं. उन्हें जगत् की आत्मा भी कहा गया है. हरि, विष्णु, इंद्र आदि नाम सूर्य के पर्याय हैं. वर्षा काल में अधिकांश समय सूर्य देवता बादलों में छिपे रहते हैं. इसलिए ऋषि ने गाया है कि वर्षा के चार महीनों में हरि सो जाते हैं. फिर जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो वे जाग उठते हैं या अपने भीतर उन्हें जगाना होता है. बात सिर्फ़ सूर्य या विष्णु के सो जाने और उस अवधि में आहार विहार के मामले में ख़ास सावधानी रखने तक ही सीमित नहीं है. इस अनुशासन का उद्देश्य वर्षा के दिनों में होने वाले प्रकृति परिवर्तनों उनके कारण प्राय: फैलने वाली मौसमी बीमारियों और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ने वाले उसके प्रभाव के कारण अक्सर गड़बड़ाता रहता है. निजी जीवन में स्वास्थ्य संतुलन का ध्यान रखने के साथ ही यह चार माह की अवधि साधु संतों के लिए भी विशेष दायित्वों का तकाजा लेकर आती है. घूम-घूम कर धर्म अध्यात्म की शिक्षा देने लोक कल्याण की गतिविधियों को चलाते रहने वाले साधु संत इन दिनों एक ही जगह पर रुक कर साधना और शिक्षण करते हैं.

जिस जगह वे ठहरते उस जगह माहौल में आध्यात्मिक, प्रेरणाओं की तंरगे व्याप्त रहती थीं. इस दायित्व का स्मरण कराने के लिए चातुर्मास शुरू होते ही कुछ ख़ास संदर्भ भी प्रकट होते लगते हैं. आषाढ़, पूर्णिमा को वेदव्यास की पूजा गुरु के प्रति श्रद्धा समर्पण, श्रावणी नवरात्र जैसे कई उत्सव आयोजनों की शृंखला शुरू हो जाती है जिनका उद्देश्य आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा देना ही होता था. उल्लेखनीय है प्रारंभ चाहे जिस दिन हो समापन कार्तिक पक्ष की एकादशी के दिन ही होता है. वहीं कार्तिक शुकलपक्ष की एकादशी को देवोत्थानी (देवताओं के जागने की) कहा गया है.

देवउठनी एकादशी को क्या न करें?  -एकादशी पर किसी भी पेड़-पौधों की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए.  -एकादशी वाले दिन पर बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए. -एकादशी वाले दिन पर संयम और सरल जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए.  -इस दिन कम से कम बोलने की किसी कोशिश करनी चाहिए और भूल से भी किसी को कड़वी बातें नहीं बोलनी चाहिए. -हिंदू शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. -एकादशी वाले दिन पर किसी अन्य के द्वारा दिया गया भोजन नहीं करना चाहिए. -एकादशी पर मन में किसी के प्रति विकार नहीं उत्पन्न करना चाहिए. -इस तिथि पर गोभी, पालक, शलजम आदि का सेवन न करें. -देवउठनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए.

चातुर्मास में पृथ्वी की बागडोर भगवान शिव के हाथों में होती हैं. ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं.  चातुर्मास में बादल और वर्षा के कारण सूर्य और चन्द्रमा की शक्ति कमजोर पड़ जाती है. 25 नवंबर को एकादशी की तिथि , भगवान विष्णु जागने वाले हैं, पाताल लोक से उठकर संभालेंगे पृथ्वी लोक की बागड़ोर, शुरू होंगे मांगलिक कार्य देवउठनी एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु अपने 4 माह की निद्रा से जागते हैं। जो इस बार 25 नवंबर को दिन बुधवार को पड़ रही है। शास्त्रों में इसे देवोत्थन एकादशी व देवोत्थन प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इस दिन से 4 मास में रुके हुए सभी धार्मिक कार्य दोबारा से आरंभ हो जाते हैं।

दिसंबर माह में घटेगी प्रमुख खगोलीय घटनाएं: दिसंबर 20 का महीना ज्योतिष और ग्रहों की हलचल की दृष्टि से बहुत ही खास रहने वाला है। इस महीने जहां मंगल, शुक्र, बुध और सूर्य अपनी राशि बदलेंगे, वहीं देव गुरु बृहस्पति व शनि मकर राशि में, राहु वृषभ राशि में और केतु वृश्चिक राशि में गोचर करते हुए सभी 12 राशियों को प्रभावित करेगे, दिसम्बर महीने में 4 ग्रहों की हलचल से बड़े दूरगामी असर होंगे और सभी राशियों के साथ-साथ देश और दुनिया पर भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बदलाव होंगे। दिसम्बर महीने में ग्रहों की हलचल की शुरुआत 11 दिसम्बर से होगी और 24 दिसम्बर तक चलेगी। बारी-बारी चार ग्रह अपनी राशियां बदलेंगे और सभी राशियों को प्रभावित करेंगे।

तुलसी चालीसा

धन्य धन्य श्री तलसी माता। महिमा अगम सदा श्रुति गाता।। हरी के प्राणहु से तुम प्यारी। हरीहीं हेतु कीन्हो ताप भारी।। जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो। तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो।। हे भगवंत कंत मम होहू। दीन जानी जनि छाडाहू छोहु।। सुनी लख्मी तुलसी की बानी। दीन्हो श्राप कध पर आनी।। उस अयोग्य वर मांगन हारी। होहू विटप तुम जड़ तनु धारी।। सुनी तुलसी हीं श्रप्यो तेहिं ठामा। करहु वास तुहू नीचन धामा।। दियो वचन हरी तब तत्काला। सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।। समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा। पुजिहौ आस वचन सत मोरा।।

तब गोकुल मह गोप सुदामा। तासु भई तुलसी तू बामा।। कृष्ण रास लीला के माही। राधे शक्यो प्रेम लखी नाही।। दियो श्राप तुलसिह तत्काला। नर लोकही तुम जन्महु बाला।। यो गोप वह दानव राजा। शंख चुड नामक शिर ताजा।। तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी।। अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।। वृंदा नाम भयो तुलसी को। असुर जलंधर नाम पति को।। करि अति द्वन्द अतुल बलधामा। लीन्हा शंकर से संग्राम।। जब निज सैन्य सहित शिव हारे। मरही न तब हर हरिही पुकारे।। पतिव्रता वृंदा थी नारी। कोऊ न सके पतिहि संहारी।। तब जलंधर ही भेष बनाई। वृंदा ढिग हरी पहुच्यो जाई।। शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा।।

भयो जलंधर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा।। तिही क्षण दियो कपट हरी टारी। लखी वृंदा दुःख गिरा उचारी।। जलंधर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता।। अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा। धर्म खंडी मम पतिहि संहारा।। यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा।। सुनी हरी तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे।। लख्यो न निज करतूती पति को। छलन चह्यो जब पारवती को।। जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा। जग मह तुलसी विटप अनूपा।। धग्व रूप हम शालिगरामा। नदी गण्डकी बीच ललामा।। जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै।। बिनु तुलसी हरी जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा।। जो तुलसी दल हरी शिर धारत। सो सहस्त्र घट अमृत डारत।। तुलसी हरी मन रंजनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी।। प्रेम सहित हरी भजन निरंतर। तुलसी राधा में नाही अंतर।। व्यंजन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा।। सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही।। कवि सुन्दर इक हरी गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत।। बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा।। पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी।।

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