6 से 10 मई तक का पंचांग- महत्वपूर्ण तीज-त्योहार; ज्योतिषीय नजरिये से महत्वपूर्ण घटना घटित होगी
हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस सप्ताह की शुरुआत वैशाख माह के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि से हो रही है। इसके बाद ये कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि पर ये सप्ताह पूरा हो जाएगा। इन 7 दिनों में प्रदोष व्रत, नरसिंह चतुर्दशी, वैशाख पूर्णिमा और संकष्टी चतुर्थी जैसे महत्वपूर्ण तीज-त्योहार रहेंगे। इनके अलावा 4 प्रमुख जयंती दिवस के साथ मदर्स डे भी रहेगा। वहीं इस सप्ताह मंगल और बुध का राशि परिवर्तन होगा। ज्योतिषीय नजरिये से ये महत्वपूर्ण घटना रहेगी।
फाइल फोटो- नृसिंह जयंती 6 मई को, वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। नृसिंह सिद्वपीठ जोगथ, उत्तरकाशी में मुम्बई तथा गुजरात के प्रवासी जगुडी पंडितो के साथ चन्द्रशेखर जोशी
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नृसिंह जयंती 6 मई को # हिन्दी पंचांग के अनुसार गुरुवार, 7 मई को वैशाख मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इसके बाद 8 मई से ज्येष्ठ मास शुरू हो जाएगा।
4 से 10 मई तक का पंचांग
4 मई, सोमवार – वैशाख शुक्ल द्वादशी, पंचांग भेद, मोहिनी एकादशी
5 मई, मंगलवार – वैशाख शुक्ल त्रयोदशी, प्रदोष व्रत
6 मई, बुधवार – वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी, देवी छिन्नमस्ता पूजा
7 मई, गुरुवार – वैशाख पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा
8 मई, शुक्रवार – ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा,
9 मई, शनिवार – ज्येष्ठ कृष्ण द्वितिया
10 मई, रविवार – ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया और चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी
अन्य महत्वपूर्ण दिन औरजयंती
6 मई, बुधवार – अमरदास जयंती 7 मई, गुरुवार – रविंद्रनाथ टैगोर जयंती 8 मई, शुक्रवार – विश्व रेडक्रॉस दिवस 9 मई, शनिवार – नारद जयंती 10 मई, रविवार – मदर्स डे
ज्योतिषिय नजरिये से ये सप्ताह
4 मई, सोमवार – मंगल का कुंभ राशि में प्रवेश 5 मई, मंगलवार – रवियोग 6 मई, बुधवार – रवियोग 8 मई, शुक्रवार – सर्वार्थसिद्धि योग, 9 मई, शनिवार – बुध का वृष राशि में प्रवेश 10 मई, रविवार – सर्वार्थसिद्धि योग
नृसिंह जयंती 6 मई को
वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु को मारा था। ये भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में चौथा है। इस बार यह पर्व 6 मई, बुधवार को है। इस दिन भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखा जाता है और पूजा भी की जाती है।
भगवान नृसिंह की पूजा में चंदन का उपयोग खासतौर से किया जाता है। ये भगवान विष्णु का रोद्र रूप का अवतार है। इसलिए इन्हें गुस्से को कम करने के लिए चंदन का लेप लगाया जाता है। चंदन ठंडक पहुंचाता है। इसलिए इसका उपयोग पूजा में विशेष तौर से किया जाता है।
दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज्य में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था, उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था।
प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु को पता चली तो पहले उसने प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया। लेकिन हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई।
तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था, तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। बुधवार, 6 मई को भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। पद्म पुराण के अनुसार प्राचीन समय में वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे। कथा के अनुसार राक्षस हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। इसीलिए हिरण्यकशिपु प्रहलाद पर अत्यचार करता था और कई बार उसे मारने की कोशिश भी की। भगवान विष्णु ने अपने भक्त को बचाने के लिए एक खंबे से नरसिंह रूप में अवतार लिया। इनका आधा शरीर सिंह का और आधा इंसान का था। इसके बाद भगवान नरसिंह ने हिरण्यकशिपु को मार दिया।
क्यों लिया ऐसा अवतार: आधा शरीर इंसान और आधा शेर
नरसिंह रूप भगवान विष्णु का रौद्र अवतार है। ये दस अवतारों में चौथा है। नरसिंह नाम के ही अनुसार इस अवतार में भगवान का रूप आधा नर यानी मनुष्य का है और आधा शरीर सिंह यानी शेर का है। राक्षस हिरण्यकश्यप ने भगवान की तपस्या कर के चतुराई से वरदान मांगा था। जिसके अनुसार उसे कोई दिन में या रात में, मनुष्य, पशु, पक्षी कोई भी न मार सके। पानी, हवा या धरती पर, किसी भी शस्त्र से उसकी मृत्यु न हो सके। इन सब बातों को ध्यान में रख भगवान ने आधे नर और आधे मनुष्य का रूप लिया। दिन और रात के बीच यानी संध्या के समय, हवा और धरती के बीच यानी अपनी गोद में लेटाकर बिना शस्त्र के उपयोग से यानी अपने ही नाखूनों से हिरण्यकश्यप को मारा।
भगवान विष्णु का ये अवतार बताता है कि जब पाप बढ़ जाता है तो उसको खत्म करने के लिए शक्ति के साथ ज्ञान का उपयोग भी जरूर हो जाता है। इसलिए ज्ञान और शक्ति पाने के लिए भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इस बात का ध्यान रखते हुए ही उन्हें ठंडक और पवित्रता के लिए चंदन चढ़ाया जाता है।
भगवान नरसिंह की विशेष पूजा संध्या के समय की जानी चाहिए। यानी दिन खत्म होने और रात शुरू होने से पहले जो समय होता है उसे संध्याकाल कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इसी काल में भगवान नरसिंह प्रकट हुए थे। भगवान नरसिंह की पूजा में खासतौर से चंदन चढ़ाया जाता है और अभिषेक किया जाता है। ये भगवान विष्णु के रौद्र रूप का अवतार है। इसलिए इनका गुस्सा शांत करने के लिए चंदन चढ़ाया जाता है। जो कि शीतलता देता है। दूध, पंचामृत और पानी से किया गया अभिषेक भी इस रौद्र रूप को शांत करने के लिए किया जाता है। पूजा के बाद भगवान नरसिंह को ठंडी चीजों का नैवेद्य लगाया जाता है। इनके भोग में ऐसी चीजें ज्यादा होती हैं जो शरीर को ठंडक पहुंचाती हैं। जैसे दही, मक्खन, तरबूज, सत्तू और ग्रीष्म ऋतुफल चढ़ाने से इनको ठंडक मिलती है और इनका गुस्सा शांत रहता है। वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान नरसिंह के प्रकट होने से इस दिन जल और अन्न का दान दिया जाता है। जो भी दान दिया जाता है वो, चांदी या मिट्टी के बर्तन में रखकर ही दिया जाता है। क्योंकि मिट्टी में शीतलता का गुण रहता है।
हिन्दी पंचांग के अनुसार गुरुवार, 7 मई को वैशाख मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इसके बाद 8 मई से ज्येष्ठ मास शुरू हो जाएगा। गुरुवार और पूर्णिमा के योग में भगवान सत्यनारायण की कथा और पूजा करें।
हिन्दी पंचांग के अनुसार गुरुवार, 7 मई को वैशाख मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। इसके बाद 8 मई से ज्येष्ठ मास शुरू हो जाएगा। इस तिथि पर भगवान बुद्ध की जयंती भी मनाई जाती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार पूर्णिमा तिथि पर विशेष पूजा-पाठ अन्य धार्मिक कर्म करने की परंपरा है। यहां जानिए वैशाख पूर्णिमा पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…
गुरुवार और पूर्णिमा के योग में भगवान सत्यनारायण की कथा और पूजा करें। पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की कथा करने का विधान है। गुरुवार और पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा, व्रत-उपवास किया जाता है।
पूर्णिमा तिथि पर हनुमानजी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। ऊँ रामदूताय नम: मंत्र का जाप 108 बार करें। अगर संभव हो तो इस दिन सुंदरकांड का पाठ भी कर सकते हैं। हनुमान को सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। किसी मंदिर में चोला चढ़ाने के लिए धन का दान भी कर सकते हैं।
पूर्णिमा तिथि पर किसी पवित्र नदी में स्नान करें और स्नान के बाद गरीबों को धन का दान करना चाहिए। अभी लॉकडाउन की वजह से नदी में स्नान करने से बचें। घर पर ही नदियों के नामों का जाप करें और स्नान करे। स्नान के बाद जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें। अभी गर्मी का समय चल रहा है, इन दिनों में छाते का दान या पानी का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। किसी गरीब को चप्पल या जूते का दान भी कर सकते हैं।
पूर्णिमा पर घर में क्लेश न करें। जिन घरों में पति-पत्नी के बीच वाद-विवाद होता है, वहां नकारात्मकता का वास होता है। पूर्णिमा पर माता-पिता या किसी अन्य वृद्ध का अपमान करें। घर में साफ-सफाई रखें, गंदगी न होने दें।
गुरुवार, 7 मई को भगवान बुद्ध की जयंती है। इस अवसर पर जानिए बुद्ध से जुड़ा एक ऐसा प्रसंग, जिसका संदेश यह है कि हमें स्वयं को दूसरों से कम नहीं समझना चाहिए, हर व्यक्ति अमूल्य है। सभी की योग्यताएं अलग-अलग हैं। प्रसंग के अनुसार महात्मा बुद्ध अलग-अलग गांवों में भ्रमण करते थे। इसी दौरान वे एक गांव में ठहरे हुए थे।
गांव के साथ ही आसपास के क्षेत्रों से भी लोग उनके दर्शन करने और प्रवचन सुनने पहुंच रहे थे। एक दिन उनसे मिलने एक व्यक्ति आया और बोला कि तथागत मैं जानना चाहता हूं कि इस जीवन का मूल्य क्या है?
बुद्ध ने उस आदमी को एक पत्थर दिया और कहा कि पहले इस पत्थर का मूल्य मालूम करके आओ, फिर मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देता हूं। ध्यान रहे इस पत्थर को बेचना नहीं है।
वह व्यक्ति पत्थर लेकर बाजार में गया। वहां एक संतरे वाले के पास गया और बोला कि इस पत्थर को देखो और बताओ इसकी कीमत क्या है? संतरे वाले ने उस पत्थर को देखा, वह चमक रहा था। उसने कहा कि ये पत्थर मेरे काम का नहीं है। फिर भी मैं इसके बदले तुम्हें 12 संतरे दे सकता हूं। इसके बाद वह व्यक्ति एक सब्जी वाले के पास गया। पत्थर देखकर सब्जी वाले कहा कि एक बोरी आलू ले लो और ये पत्थर मुझे दे दो।
इसके बाद वह व्यक्ति पत्थर लेकर एक सुनार के पास गया और उसे पत्थर दिखाया। सुनार ने पत्थर देखा और कहा कि इस पत्थर के बदले मैं तुम्हें एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दे सकता हूं। उस व्यक्ति ने पत्थर बेचने से मना कर दिया तो सुनार बोला कि मैं तुम्हें हजार स्वर्ण मुद्राएं देता हूं, ये मुझे दे दो। इसके बाद भी व्यक्ति पत्थर बेचने के लिए तैयार नहीं हुआ तो सुनार ने कहा कि तुम इसकी जो कीमत मांगोगे, मैं दे सकता हूं। उस व्यक्ति ने कहा कि इस पत्थर को मैं बेच नहीं सकता। मुझे सिर्फ इसकी कीमत मालूम करनी है।
सुनार के बाद वह व्यक्ति एक जौहरी के पास गया और पत्थर दिखाया। जौहरी ने जब उस पत्थर को देखा तो वह बोला कि ये तो अनमोल रत्न है। वह व्यक्ति हैरान हो गया। इसके बाद वह बुद्ध के पास लौट आया। उन्हें सारी बात बता दी और पूछा कि अब बताएं जीवन का मूल्य क्या है?
बुद्ध ने कहा कि संतरे वाले ने इस पत्थर की कीमत 12 संतरे लगाई। सब्जी वाले ने 1 बोरी आलू, सुनार ने 4 हजार स्वर्ण मुद्राएं और जौहरी ने इसे अनमोल बताया। यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है। हर व्यक्ति एक हीरा है, लेकिन दूसरे लोग हमारी कीमत उनके सामर्थ्य और उनकी जानकारी के अनुसार लगाते हैं। हमें हमारी योग्यता की तुलना किसी से नहीं करनी चाहिए। योग्यता की कीमत हमें स्वयं लगानी चाहिए, क्योंकि कोई दूसरा व्यक्ति उसकी सही कीमत नहीं लगा पाएगा। अगर कोई हमारी योग्यता की कीमत लगाएगा तो उसके सामर्थ्य के अनुसार लगाएगा। इसलिए कभी भी खुद को दूसरों से कम नहीं समझना चाहिए।
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