श्रम कल्याण की 7 अरब की धनराशि खर्च ही नही कर पाये श्रम मंत्री
आंखे खोलने वाली रिपोर्ट, 7 अरब रूपये की धनराशि श्रमिकों के कल्याण के लिए बोर्ड के पास है, परन्तु श्रमिकों के लिये कोई ठोस योजना बनाने मे कामयाब नही हो पाये श्रममंत्री, जबकि अकूल धनराशि बैंकों में भरी पडी हैं, विशाल 7 अरब रूपये की धनराशि – उत्तराखण्ड के इस बोर्ड के पास व्यय करने के लिए बैंकों में रखी है, शर्त यह है कि यह सिर्फ जनकल्याण में ही खर्च हो सकती है, इस धनराशि की मानीटरिंग सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जाती है, परन्तु उत्तराखण्ड के श्रम मंत्री जनकल्याण की बडी योजनायें ही बना नही पाये, और धनराशि का उपयोग कर नही पाये, 10 करोड रूपये की धनराशि कैम्पों में टूल किट बांट कर अपव्यय कर जनकल्याण दर्शाया गया परन्तु उसका कोई लाभ नही हो पाया, जनकल्याण की योजनायें कैसे बना सकते थे, जबकि उनका तो शोषण करने की परम्परा है, चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट-
इस आलेख की उपरोक्त लाइनों पढकर आप भी उलझ गये होगे कि 7 अरब रूपया किसका है, क्यों नही खर्च हुआ, अब हम आपको विस्तारर से बताते हैं कि उत्तराखण्ड् भवन एवं अन्यन सन्निर्माण कर्मकार कल्याैण बोर्ड के पास 7 अरब से ज्यादा की धनराशि करीबन 10 बैंकों में जमा हैं, यह राज्य सरकार का पैसा कतई नही है, यह श्रम कार्य करने वालों का पैसा है, और सिर्फ उनके लिए ही व्यय होना है, यह विशाल धनराशि राज्य सरकार अन्य मद में खर्च न कर दें, इसके लिए स्वयं सुप्रीम कोर्ट इसकी मानीटरिंग करता है, हां, श्रमिकों के जनकल्याण में धनरााशि व्यय करने की पूरी छूट है, श्रमिकों के बच्चों के लिए स्कूल, हास्टल, अस्पताल, सैकडों सुविधायें उपलब्ध कराने में यह धनराशि खर्च की जा सकती है परन्तु श्रम कल्याण की योजनायें ही नही बना पाये श्रम मंत्री- सबूत इस विशाल धनराशि का खर्च न होना है-‘
चुनावी लाभ लेने के लिए विधायकों, मुख्यमंत्री, मंत्रियों ने श्रमकारों को टूल किट बांटने का कैम्प लगाकर वाह वाही बटोरने की कोशिश कई बार की , राजपुर विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा कैम्प लगाकर श्रमिकों को टूल किट बांटेे गये, जबकि अपात्रों को भी इसमें शामिल किया जाता रहा, श्रमिकों केे लिए कोई ठोस योजना नही बना पाये, वही इस विशाल धनराशि पर सत्ता पक्ष का कोई अधिकार नही है, 7 हजार मजदूरों को देदून में रजिस्टार्ड कर भवन निर्माण कर्मकार बोर्ड के टूल किट बांटे गये जिसमें प्लकम्बधर, कारपेन्टहर, मजदूर, बेल्डकर, मिस्त्री , साइकिल, सिलाई मशीन आदि के टूल किट बांट कर करीबन 10 करोड रूपये खर्च कर दिये गये परन्तु् उत्तराखण्ड के श्रमिकों के लिये कोई ठोस योजना बनाने मे कामयाब नही हो पाये श्रममंत्री, जबकि अकूल धनराशि बैंकों में भरी पडी हैं,
इतनी विशाल धनराशि वाले उत्तराखण्ड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याोण बोर्ड के पास अपना कोई कर्मचारी नही है, श्रम विभाग के कर्मचारी ही कल्याण बोर्ड का भी काम करते हैं, संबंधित मंत्री जी इस विशाल धनराशि वाले बोर्ड का ढांचा ही नही खडा कर पाये, इस बोर्ड की बिल्डिं ग तक नही खडी कर पाये,
इस कल्याण बोर्ड में मुख्यत धनराशि कहां सेे आती है, 10 लाख रू0 से अधिक की लागत वाली निर्माणाधीन बिल्डिंग से लिये जाने वाले उपकर से आता है, 10 लाख से ज्यादा लागत वाली बिल्डिग से 1 प्रतिशत उपकर के हिसाब से आता है, 10 लाख से ज्यादा लागत वाली बिल्डिंगों को 1 प्रतिशत के उपकर के हिसाब से उत्तराखण्ड भवन एवं अन्यम सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में जमा करना होता है, इस तरह विशाल धनरशि बढती जा रही है,
इसमें भी राज्य सरकार की ढिलाई से ढंग से वसूली नही की जाती, अगर इसमें सख्ताई से वसूली की जाये तो यह धनराशि 14 अरब रूपये से ज्यादा होती, क्या यही है जनकल्याण के लिए संघर्ष करने की शक्ति – यदि यह उत्तसराखण्ड के सत्ता में विराजमान शासकों में है, यदि इसका राजनैतिक जवाब हां है तो आप हैरान व आश्चसर्यचकित हो गये होगें
उत्तराखण्ड के एक कर्मकार कल्याण बोर्ड में जनकल्याण के लिए 7 अरब रूपये से ज्यादा की नकद धनराशि बैंकों में भरी है, परन्तु वह सिर्फ जनकल्याण में खर्च करने की शर्त राज्य सरकार को दी गयी है, और दूसरे कार्यो में नही, और जनकल्याण करने के लिए न तो मंत्री और न सूबे के मुखिया के पास समय है, ऐसे में मुखिया की तरफ से यह प्रयास जरूर किये गये कि इस विशाल धनराशि को दूसरे मद में खर्च कर दिया जाये, परन्तु् इस धन की निगरानी सुप्रीम कोर्ट करता है, अधिकारी भी अन्य मद में खर्च करने में डरते हैं, सूबेे मुखिया को अधिकारियेां ने साफ मना कर दिया गया कि यह धनराशि हम दूसरे मद में आपको दे ही नही सकते, अधिकारी बदला गया परन्तु सुप्रीम कोर्ट की निगरानी से किसी भी सचिवालय में बैठे आला अधिकारी की भी हिम्मसत नही हो सकी कि इस विशाल धनराशि को अन्यत्र खर्च कर दें, जबकि उत्तराखण्ड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकारो के जनकल्याण के लिए उनके पास योजनायें ही नही हैं,
बिना यत्न प्रयत्न के श्रमिकों के कल्याेण के लिए आ रही विशाल धनराशि वाले उत्तराखण्ड् भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्यााण बोर्ड में 76 स्टाफ का ढांचा प्रस्तावित है, जो श्रम मंत्री जी अभी तक स्वी्क़त नही करा पाये हैं, बोर्ड का स्टााफ न होने से इसमें श्रम विभाग का स्टाफ कार्य करता है, जिससे उन पर दोहरी मार पडती है, श्रम विभाग का कार्य बाधित होता है, श्रम विभाग का स्टाफ कल्याण बोर्ड के कार्य में व्यस्त रहता है जिससे श्रमिकों के औद्वोगिक समन व अन्या वादों की सुनवाई में व्यववधान आतेे है,
वही देहरादून में बोर्ड का कार्यालय श्रम विभाग की छोटी सी आवासीय बिल्डिंवग में चल रहा है, जो रिहायश इलाके में हैं, जहां स्थान की कमी है, पार्किग आदि नही है, श्रमिकों को टूल किट वितरण होने पर आवासीय मौहल्ले में भारी व्यवधान उत्पन्न हो जाता है,
उत्तराखण्ड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्या ण बोर्ड की अपनी कोई बिल्डिंमग नही, अपना कोई भी स्टाफ नही है, बोर्ड का सारा कार्य उपश्रमायुक्त कार्यालय गढवाल द्वारा सम्पादित किया जा रहा है, जिस कारण औदयोगिक प्रतिष्ठानों के कई महत्वपूर्ण कार्य जैसे वादों की सुनवाई, स्थायी आदेश संबधी, पर्वतन संबंधी, दुकान व वाणिज्यअ संबंधी, साथ ही अन्य कार्यो सहित सहायक कारखाना निदेशक का भी आफिस इसी बिल्डिंयग में है, के कार्य में भारी वयवधान आता है,
हालांकि हाल में उपश्रमायुक्त कार्यालय गढवाल क्षेत्र देहरादून को टांसपोर्ट नगर, देहरादून में भूमि आवटित तो हुई है लेकिन बजट न होने के कारण भवन संबंधी कार्य प्रगति पर नही आ पाया,
वही सूबे के पूर्व काबिना मंत्री इंटक के प्रदेश अध्यलक्ष तथा विधायक हीरा सिंह बिष्ट का बयान बडा ही महत्वत रखता है, उन्होंने कहा है कि प्रदेश के अधिकारी निरकुंश हो कर भ्रष्टाचार कर रहे हैं सिडकुल के कर्मचारियों का लगातार शोषण हो रहा है, उन्होने कहा कि मुख्यमंत्री के सामने रखूगा हालात, सुनवाई और कार्रवाई न होने पर इंटक उग्र आंदोलन करेगी
परन्तु वह भूल जाते हैं कि श्रम कानूनों में मनमाफिक संशोधन उत्तराखण्ड की कांग्रेस सरकार ने गैरसैण विधानसभा अधिवेशन में किया, लेबर निरीक्षक को उदयोगों में छापा मारने से रोकने का आदेश भी राज्य सरकार ने दिया, फैक्टी मालिकों को निरकुंश बनाने का अधिकार भी कांग्रेस सरकार ने दिया-
ऐसे में जनकल्यााण की योजनायें कैसे बना सकते थे, जबकि उनका तो शोषण करने की परम्परा है,
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