एडवोकेट्स (प्रोटेक्शन) बिल ; बिल को पेश करने की आवश्यकता क्यों है UMESH JOSHI ADVOCATE

वकील इस देश में न्याय की खोज में एक सर्वोत्कृष्ट (क्विंटेसेंशियल) भूमिका निभाते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें अपने प्रयासों में बहुत सारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके लिए, 2 जुलाई 2021 को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एडवोकेट्स (प्रोटेक्शन) बिल, 2021 (इसके बाद “बिल” के रूप में संदर्भित (रेफर) है) का मसौदा (ड्राफ्ट) जारी किया, जो कानूनी फ्रेटरनिटी के लिए बहुत जरूरी सुरक्षा हो सकती है। बिल का उद्देश्य वकीलों को न केवल शारीरिक सुरक्षा के मामले में सुरक्षा प्रदान करना है बल्कि वित्तीय (फाइनेंसियल) सुरक्षा भी प्रदान करना है। By Umesh Joshi Advocate (Ex President Kashipur Bar Association Kashipur) Mob 971983300

एडवोकेट्स (प्रोटेक्शन) बिल, 2021 के तहत आवश्यक प्रावधान

बिल का मुख्य उद्देश्य वकीलों और उनके कर्तव्यों का पालन करते हुए उनके कार्यों की सुरक्षा करना है। पूरे बिल में 16 धाराएं हैं। बिल में निम्नलिखित आवश्यक प्रावधान प्रदान किए गए हैं:

घोषणापत्र में यह भी प्रावधान है कि सरकार को वकीलों की सुरक्षा को गैरकानूनी तरीके से धमकी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

बिल की धारा 2 एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 2(1)(a) में उल्लिखित “वकील” की परिभाषा के बारे में बात करती है, जिसका अर्थ है कि उक्त एक्ट के प्रावधानों के अनुसार एक वकील ने किसी भी रोल में प्रवेश किया है।

बिल की धारा 3 “अपराधों के लिए सजा” के बारे में बात करती है जो 6 महीने से 5 साल तक है और बाद के अपराध के लिए 10 साल तक हो सकती है।

बिल की धारा 4 “मुआवजे (कंपनसेशन)” के बारे में बात करती है जो 50,000 रुपये से शुरू होता है और 1,00,000 रुपये तक बढ़ाया जाता है और बाद के अपराध के लिए 10,00,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।
बिल किसी भी दंडनीय अपराध के लिए त्वरित उपाय प्रदान करता है, धारा 3 के तहत किसी भी मामले की जांच, एफआईआर के पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) की तारीख से 30 दिनों के भीतर पूरी की जाएगी।
यदि वकील को पेशेवर सेवाएं प्रदान करते समय हिंसा के किसी भी कार्य का शिकार होने का खतरा है, तो बिल की धारा 7 के तहत ऐसे वकील को कोर्ट की घोषणा के अनुसार एक अवधि के लिए पुलिस सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
वकील को कोर्ट के समक्ष प्लीड करते समय संस्था (इंस्टीट्यूशन) के अन्य अधिकारियों के समान व्यवहार करना चाहिए।
बिल न्यायपालिका के हर स्तर पर वकीलों और बार एसोसिएशंस की शिकायतों के निवारण के लिए थ्री-मेम्बर कमिटी का प्रावधान करता है। बिल कमिटी को वकील या बार एसोसिएशन द्वारा शिकायत के निवारण के लिए संबंधित पुलिस अधिकारियों या उपयुक्त (एप्रोप्रिएट) सरकारी अधिकारी को उचित निर्देश, सुझाव जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
सरकार को यह सुनिश्चित करना और पहचानना है कि पेशेवर उपकरण प्रदान करते समय वकीलों और क्लाइंट के बीच सभी संचार और परामर्श सुरक्षित हैं और यह भी कि वकील किसी भी एसोसिएशन में शामिल होने और अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके अलावा, वकील बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपनी शिक्षा, प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) को बढ़ावा देने और अपने अधिकारों, कर्तव्यों और विशेषाधिकारों का विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं। हालांकि, ऐसे अधिकारों का प्रयोग उनके कानूनी पेशेवरों के आचरण के भीतर किया जाना चाहिए।
बिल की धारा 11 पूरे बिल में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि यह “वकीलों की अवैध गिरफ्तारी और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन से सुरक्षा” प्रदान करती है, जिसमें कहा गया है कि चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना कोई भी पुलिस अधिकारी किसी वकील को गिरफ्तार नहीं कर सकता है या किसी वकील के खिलाफ मामले की जांच नहीं कर सकता है।
बिल देश के सभी जरूरतमंद वकीलों को किसी भी अप्रत्याशित (अनफोर्सिन) स्थिति के समय में वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है, उदाहरण के लिए महामारी या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा (कैलेमिटीज) के मामले है। केंद्र या राज्य सरकार विशेष परिस्थिति के अंत तक जरूरतमंद वकीलों को कम से कम 15 हजार की राशि प्रदान करेगी। बिल में वकीलों के लिए बीमा, चिकित्सा दावा और ऋण सुविधा का भी प्रावधान है।

By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030

संवैधानिक प्रावधान (कांस्टीट्यूशनल प्रोविजंस)
भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को समाज में उनकी भूमिका की परवाह किए बिना भारत के संविधान के आर्टिकल 19 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। संविधान निर्माताओं (फ्रेमर्स) ने आर्टिकल 19 को देश के लोगों के लिए महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक माना है। किसी भी अन्य नागरिक की तरह वकीलों को भी अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन), भाषण, विश्वास, संघ (एसोसिएशन) और सभा (असेंबली) की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। इसका अर्थ है कि उन्हें जनता की राय और कानून, न्याय प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन), मानवाधिकारों (ह्यूमन राइट्स) की सुरक्षा, किसी भी प्रकार के स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (ऑर्गेनाइजेशन) में बिना किसी पेशेवर प्रतिबंध (प्रोफेशनल रिस्ट्रिक्शन) के बैठकों या संघों में शामिल होने का अधिकार है। इन अधिकारों का प्रयोग करते समय, वकीलों को कानून के अनुसार आचरण (कंडक्ट) करना होता है और कानूनी पेशे के मान्यता प्राप्त मानकों (स्टैंडर्ड) और नैतिकता (एथिक्स) को बनाए रखना होता है।

इसके अलावा, भारतीय संसद ने एडवोकेट एक्ट, 1961 (इसके बाद एक्ट के रूप में संदर्भित है) को कानूनी व्यवसायी के लिए कानूनी ढांचा (फ्रेमवर्क) प्रदान करने और बार काउंसिल और ऑल इंडिया बार एसोसिएशन की स्थापना (एस्टेब्लिशमेंट) के लिए दिशानिर्देश भी पास किए है। यह एक्ट सभी कानूनी प्रणाली (सिस्टम) कानूनों के संयोजन (कॉम्बिनेशन) को एक दस्तावेज़ में प्रदान करता है। ओ.एन. मोहिंद्रू बनाम दिल्ली बार काउंसिल और अन्य (1968) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट एक्ट सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, या कोई अन्य कोर्ट्स में अभ्यास करने के हकदार व्यक्तियों से निपटने वाले कानून का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसलिए, यह एक्ट यह सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय एक्ट प्रदान करता है कि वकील न्याय प्रशासन और कानून के शासन के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बिना किसी धमकी, उत्पीड़न (हैरेसमेंट) या बाहरी प्रभाव के अपनी पेशेवर सेवाएं प्रदान करें।

हरि शंकर रस्तोगी बनाम गिरिधर शर्मा, (1978) के मामले में कोर्ट ने कहा कि बार, न्याय प्रणाली का विस्तार (एक्सटेंशन) है और एक वकील को कोर्ट का अधिकारी माना जाता है। वकील को एक विशेषज्ञ माना जाता है और वह कोर्ट के प्रति भी जवाबदेह होता है और हाइयर कोर्ट्स द्वारा शासित होता है, जबकि नैतिकता और मानकों के साथ अपनी पेशेवर सेवा करता है। न्याय का सफल निर्वहन (डिस्चार्ज) अक्सर कानूनी पेशे के उपकरणों (डिवाइसेज) पर निर्भर करता है। इसलिए वकीलों ने कानूनी व्यवस्था में एक आवश्यक भूमिका निभाई है।

इसी तरह के एक मामले रेमन सर्विसेज प्राईवेट लिमिटेड बनाम सुभाष कपूर (2001), में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानूनी पेशे को एक सामाजिक अभिजात (एलाइट) वर्ग के रूप में माना जाता है। उनके पास न केवल कानून के क्षेत्र में बल्कि पूरे राज्य में प्रगति और विकास के स्तंभ (पिलर) हैं। समाज उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखता है क्योंकि वकीलों ने मानव जाति के सबसे बड़े हित में अपने कर्तव्यों और दायित्वों (ऑब्लिगेशन) को निभाने में कभी संकोच नहीं किया है।

ओ.पी. शर्मा बनाम पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (2011) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि वकील कोर्ट के अधिकारी हैं और इसलिए न्याय प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा हैं और उनकी सहायता से न्याय और नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए न्याय प्रणाली काम करती है। हालांकि, हाल ही में सेक्रेटरी बनाम ईश्वर शांडिल्य और अन्य (2020) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वकीलों द्वारा कोर्ट से बहिष्कार (बॉयकॉट) या हड़ताल अवैध थी और आर्टिकल 19(1)(a) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में नहीं आती है। बेंच ने यह भी कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 14 और आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के रूप में मान्यता प्राप्त त्वरित (स्पीडी) न्याय के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वकीलों को व्यापक हित (लार्जर इंटरेस्ट) में काम करना होगा। हड़ताल पर जाने के दौरान वकील आपराधिक मुकदमों के निपटारे में कोर्ट की मदद कर सकते है।

आर्टिकल 39A के तहत भारत का संविधान यह प्रदान करता है कि प्रत्येक राज्य को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करके समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देकर कानूनी प्रणाली के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सुरक्षित होना चाहिए। यह देखा गया है कि वकीलों ने भी ऐसे मामलों को उठाकर समाज के हर क्षेत्र में सामाजिक न्याय तक पहुँचने में योगदान दिया है। मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करते समय वैधानिक प्रक्रिया न्यायिक निवारण (रिड्रेसल) के लिए आपराधिक मामलों की रक्षा के लिए वकील नियुक्त करती है। लीगल सर्विस अथॉरिटीज एक्ट, 1987 को भारत की संसद द्वारा एक्ट के प्रावधानों में प्रदान की गई श्रेणियों (कैटेगरी) के तहत वंचित लोगों के बीच कानूनी सहायता तक मुफ्त पहुंच को बढ़ावा देने के लिए पास किया गया था।

इसके अलावा, यूनाइटेड नेशन ह्यूमन राइट्स काउंसिल, रेजोल्यूशन ऑन द इंडिपेंडेंस ऑफ जजेस एंड लॉयर्स क्लाइंटों के साथ वकीलों के संचार (कम्यूनिकेशन) में गोपनीयता (कॉन्फिडेंशियलिटी) का सिद्धांत प्रदान करता है। घोषणा में कहा गया है कि राज्यों को मानवाधिकारों के न्याय को बढ़ावा देने और सुनिश्चित करने के लिए वकीलों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी होगी। इसके अलावा, इसे किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप, धमकी, और उत्पीड़न से मुक्त अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन करते हुए सक्रिय (एक्टिव) रूप से भाग लेकर और उचित उपाय का प्रयोग करके मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों की मदद करनी चाहिए।

बिल को पेश करने की आवश्यकता क्यों है
अपने पेशेवर कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करते हुए वकीलों पर हमले, हत्या, धमकी और भय के हाल ही के मामले एक खतरनाक स्थिति है और अपने क्लाइंटों को पेशेवर सेवाएं प्रदान करने में विसंगतियां (डिस्क्रेपेंसीज) पैदा कर रहा है।

निम्नलिखित हाल की घटनाओं में मारपीट, आपराधिक बल, वकीलों को दी गई धमकी ने वकीलों के मन में आशंका पैदा कर दी है जिसके संबंध में अन्याय में देरी होती है। इसलिए, कानून को इस पर गौर करना चाहिए और एक प्रभावी समाधान प्रदान करना चाहिए।
सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वकीलों की आवश्यकताएं पेशेवर सेवाएं भी प्रदान कर रही हैं।

हाल ही का बिल, यूनाइटेड नेशन कांग्रेस ऑन द प्रिवेंशन ऑफ क्राइम एंड द ट्रीटमेंट ऑफ ऑफेंडर्स, 1990 के प्रस्ताव के अनुरूप है, जो वकीलों की भूमिका पर बुनियादी सिद्धांत प्रदान करता है। घोषणापत्र में कहा गया है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वकील बिना किसी बाधा या धमकी के अपनी पेशेवर सेवाएं दे सकें। देश या विदेश में यात्रा करते समय वकीलों को अपने पेशेवर कर्तव्यों और मानकों का पालन करते हुए अभियोजन या किसी अन्य प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) कार्रवाई के किसी भी खतरे का सामना नहीं करना पड़ता है। घोषणापत्र में यह भी प्रावधान है कि सरकार को वकीलों की सुरक्षा को गैरकानूनी तरीके से धमकी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

यह देखा गया है कि न्याय प्रशासन प्रदान करते समय वकीलों को अक्सर प्रतिद्वंद्वी दलों (राइवल पार्टीज) से धमकियों का सामना करना पड़ता है।

वकील और क्लाइंटों के बीच विशेषाधिकार (प्रिविलेज्ड) संचार की सुरक्षा कानूनी पेशे के आवश्यक सिद्धांतों में से एक है। उन मामलो में जहां वकील बंदियों या गिरफ्तार व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंट) करते है, वकीलों से अक्सर अपराध का पता लगाने के लिए उनके संचार के विशेषाधिकार के बारे में सवाल किया जाता है, हालांकि, यह कानूनी पेशे के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। इसलिए, इस पर विधायिका (लेजिस्लेचर) द्वारा तत्काल ध्यान देने और वकीलों के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है।
बिल वकीलों की निम्नलिखित चिंताओं और मुद्दों को संबोधित (एड्रेस) करने और ऊपर दिए हुए उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी उपाय प्रदान करने का प्रावधान करता है।

वकील इस देश में न्याय की खोज में एक सर्वोत्कृष्ट (क्विंटेसेंशियल) भूमिका निभाते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें अपने प्रयासों में बहुत सारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसके लिए, 2 जुलाई 2021 को, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एडवोकेट्स (प्रोटेक्शन) बिल, 2021 (इसके बाद “बिल” के रूप में संदर्भित (रेफर) है) का मसौदा (ड्राफ्ट) जारी किया, जो कानूनी फ्रेटरनिटी के लिए बहुत जरूरी सुरक्षा हो सकती है। बिल का उद्देश्य वकीलों को न केवल शारीरिक सुरक्षा के मामले में सुरक्षा प्रदान करना है बल्कि वित्तीय (फाइनेंसियल) सुरक्षा भी प्रदान करना है।

संवैधानिक प्रावधान (कांस्टीट्यूशनल प्रोविजंस)
भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को समाज में उनकी भूमिका की परवाह किए बिना भारत के संविधान के आर्टिकल 19 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। संविधान निर्माताओं (फ्रेमर्स) ने आर्टिकल 19 को देश के लोगों के लिए महत्वपूर्ण अधिकारों में से एक माना है। किसी भी अन्य नागरिक की तरह वकीलों को भी अभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन), भाषण, विश्वास, संघ (एसोसिएशन) और सभा (असेंबली) की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। इसका अर्थ है कि उन्हें जनता की राय और कानून, न्याय प्रशासन (एडमिनिस्ट्रेशन), मानवाधिकारों (ह्यूमन राइट्स) की सुरक्षा, किसी भी प्रकार के स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (ऑर्गेनाइजेशन) में बिना किसी पेशेवर प्रतिबंध (प्रोफेशनल रिस्ट्रिक्शन) के बैठकों या संघों में शामिल होने का अधिकार है। इन अधिकारों का प्रयोग करते समय, वकीलों को कानून के अनुसार आचरण (कंडक्ट) करना होता है और कानूनी पेशे के मान्यता प्राप्त मानकों (स्टैंडर्ड) और नैतिकता (एथिक्स) को बनाए रखना होता है।

इसके अलावा, भारतीय संसद ने एडवोकेट एक्ट, 1961 (इसके बाद एक्ट के रूप में संदर्भित है) को कानूनी व्यवसायी के लिए कानूनी ढांचा (फ्रेमवर्क) प्रदान करने और बार काउंसिल और ऑल इंडिया बार एसोसिएशन की स्थापना (एस्टेब्लिशमेंट) के लिए दिशानिर्देश भी पास किए है। यह एक्ट सभी कानूनी प्रणाली (सिस्टम) कानूनों के संयोजन (कॉम्बिनेशन) को एक दस्तावेज़ में प्रदान करता है। ओ.एन. मोहिंद्रू बनाम दिल्ली बार काउंसिल और अन्य (1968) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट एक्ट सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, या कोई अन्य कोर्ट्स में अभ्यास करने के हकदार व्यक्तियों से निपटने वाले कानून का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसलिए, यह एक्ट यह सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय एक्ट प्रदान करता है कि वकील न्याय प्रशासन और कानून के शासन के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बिना किसी धमकी, उत्पीड़न (हैरेसमेंट) या बाहरी प्रभाव के अपनी पेशेवर सेवाएं प्रदान करें।

हरि शंकर रस्तोगी बनाम गिरिधर शर्मा, (1978) के मामले में कोर्ट ने कहा कि बार, न्याय प्रणाली का विस्तार (एक्सटेंशन) है और एक वकील को कोर्ट का अधिकारी माना जाता है। वकील को एक विशेषज्ञ माना जाता है और वह कोर्ट के प्रति भी जवाबदेह होता है और हाइयर कोर्ट्स द्वारा शासित होता है, जबकि नैतिकता और मानकों के साथ अपनी पेशेवर सेवा करता है। न्याय का सफल निर्वहन (डिस्चार्ज) अक्सर कानूनी पेशे के उपकरणों (डिवाइसेज) पर निर्भर करता है। इसलिए वकीलों ने कानूनी व्यवस्था में एक आवश्यक भूमिका निभाई है।

इसी तरह के एक मामले रेमन सर्विसेज प्राईवेट लिमिटेड बनाम सुभाष कपूर (2001), में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानूनी पेशे को एक सामाजिक अभिजात (एलाइट) वर्ग के रूप में माना जाता है। उनके पास न केवल कानून के क्षेत्र में बल्कि पूरे राज्य में प्रगति और विकास के स्तंभ (पिलर) हैं। समाज उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखता है क्योंकि वकीलों ने मानव जाति के सबसे बड़े हित में अपने कर्तव्यों और दायित्वों (ऑब्लिगेशन) को निभाने में कभी संकोच नहीं किया है।

ओ.पी. शर्मा बनाम पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (2011) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि वकील कोर्ट के अधिकारी हैं और इसलिए न्याय प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा हैं और उनकी सहायता से न्याय और नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए न्याय प्रणाली काम करती है। हालांकि, हाल ही में सेक्रेटरी बनाम ईश्वर शांडिल्य और अन्य (2020) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वकीलों द्वारा कोर्ट से बहिष्कार (बॉयकॉट) या हड़ताल अवैध थी और आर्टिकल 19(1)(a) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में नहीं आती है। बेंच ने यह भी कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 14 और आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के रूप में मान्यता प्राप्त त्वरित (स्पीडी) न्याय के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वकीलों को व्यापक हित (लार्जर इंटरेस्ट) में काम करना होगा। हड़ताल पर जाने के दौरान वकील आपराधिक मुकदमों के निपटारे में कोर्ट की मदद कर सकते है।

अन्य प्रावधान और कानून
आर्टिकल 39A के तहत भारत का संविधान यह प्रदान करता है कि प्रत्येक राज्य को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करके समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देकर कानूनी प्रणाली के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सुरक्षित होना चाहिए। यह देखा गया है कि वकीलों ने भी ऐसे मामलों को उठाकर समाज के हर क्षेत्र में सामाजिक न्याय तक पहुँचने में योगदान दिया है। मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करते समय वैधानिक प्रक्रिया न्यायिक निवारण (रिड्रेसल) के लिए आपराधिक मामलों की रक्षा के लिए वकील नियुक्त करती है। लीगल सर्विस अथॉरिटीज एक्ट, 1987 को भारत की संसद द्वारा एक्ट के प्रावधानों में प्रदान की गई श्रेणियों (कैटेगरी) के तहत वंचित लोगों के बीच कानूनी सहायता तक मुफ्त पहुंच को बढ़ावा देने के लिए पास किया गया था।

इसके अलावा, यूनाइटेड नेशन ह्यूमन राइट्स काउंसिल, रेजोल्यूशन ऑन द इंडिपेंडेंस ऑफ जजेस एंड लॉयर्स क्लाइंटों के साथ वकीलों के संचार (कम्यूनिकेशन) में गोपनीयता (कॉन्फिडेंशियलिटी) का सिद्धांत प्रदान करता है। घोषणा में कहा गया है कि राज्यों को मानवाधिकारों के न्याय को बढ़ावा देने और सुनिश्चित करने के लिए वकीलों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी होगी। इसके अलावा, इसे किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप, धमकी, और उत्पीड़न से मुक्त अपने पेशेवर कर्तव्यों का पालन करते हुए सक्रिय (एक्टिव) रूप से भाग लेकर और उचित उपाय का प्रयोग करके मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों की मदद करनी चाहिए।

बिल को पेश करने की आवश्यकता क्यों है
अपने पेशेवर कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करते हुए वकीलों पर हमले, हत्या, धमकी और भय के हाल ही के मामले एक खतरनाक स्थिति है और अपने क्लाइंटों को पेशेवर सेवाएं प्रदान करने में विसंगतियां (डिस्क्रेपेंसीज) पैदा कर रहा है।
निम्नलिखित हाल की घटनाओं में मारपीट, आपराधिक बल, वकीलों को दी गई धमकी ने वकीलों के मन में आशंका पैदा कर दी है जिसके संबंध में अन्याय में देरी होती है। इसलिए, कानून को इस पर गौर करना चाहिए और एक प्रभावी समाधान प्रदान करना चाहिए।
सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वकीलों की आवश्यकताएं पेशेवर सेवाएं भी प्रदान कर रही हैं।
हाल ही का बिल, यूनाइटेड नेशन कांग्रेस ऑन द प्रिवेंशन ऑफ क्राइम एंड द ट्रीटमेंट ऑफ ऑफेंडर्स, 1990 के प्रस्ताव के अनुरूप है, जो वकीलों की भूमिका पर बुनियादी सिद्धांत प्रदान करता है। घोषणापत्र में कहा गया है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वकील बिना किसी बाधा या धमकी के अपनी पेशेवर सेवाएं दे सकें। देश या विदेश में यात्रा करते समय वकीलों को अपने पेशेवर कर्तव्यों और मानकों का पालन करते हुए अभियोजन या किसी अन्य प्रशासनिक (एडमिनिस्ट्रेटिव) कार्रवाई के किसी भी खतरे का सामना नहीं करना पड़ता है। घोषणापत्र में यह भी प्रावधान है कि सरकार को वकीलों की सुरक्षा को गैरकानूनी तरीके से धमकी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।
यह देखा गया है कि न्याय प्रशासन प्रदान करते समय वकीलों को अक्सर प्रतिद्वंद्वी दलों (राइवल पार्टीज) से धमकियों का सामना करना पड़ता है।
वकील और क्लाइंटों के बीच विशेषाधिकार (प्रिविलेज्ड) संचार की सुरक्षा कानूनी पेशे के आवश्यक सिद्धांतों में से एक है। उन मामलो में जहां वकील बंदियों या गिरफ्तार व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंट) करते है, वकीलों से अक्सर अपराध का पता लगाने के लिए उनके संचार के विशेषाधिकार के बारे में सवाल किया जाता है, हालांकि, यह कानूनी पेशे के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। इसलिए, इस पर विधायिका (लेजिस्लेचर) द्वारा तत्काल ध्यान देने और वकीलों के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता है।
बिल वकीलों की निम्नलिखित चिंताओं और मुद्दों को संबोधित (एड्रेस) करने और ऊपर दिए हुए उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी उपाय प्रदान करने का प्रावधान करता है।
एडवोकेट्स (प्रोटेक्शन) बिल, 2021 के तहत आवश्यक प्रावधान
बिल का मुख्य उद्देश्य वकीलों और उनके कर्तव्यों का पालन करते हुए उनके कार्यों की सुरक्षा करना है। पूरे बिल में 16 धाराएं हैं। बिल में निम्नलिखित आवश्यक प्रावधान प्रदान किए गए हैं:

बिल की धारा 2 एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 2(1)(a) में उल्लिखित “वकील” की परिभाषा के बारे में बात करती है, जिसका अर्थ है कि उक्त एक्ट के प्रावधानों के अनुसार एक वकील ने किसी भी रोल में प्रवेश किया है।
बिल की धारा 3 “अपराधों के लिए सजा” के बारे में बात करती है जो 6 महीने से 5 साल तक है और बाद के अपराध के लिए 10 साल तक हो सकती है।
बिल की धारा 4 “मुआवजे (कंपनसेशन)” के बारे में बात करती है जो 50,000 रुपये से शुरू होता है और 1,00,000 रुपये तक बढ़ाया जाता है और बाद के अपराध के लिए 10,00,000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।
बिल किसी भी दंडनीय अपराध के लिए त्वरित उपाय प्रदान करता है, धारा 3 के तहत किसी भी मामले की जांच, एफआईआर के पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) की तारीख से 30 दिनों के भीतर पूरी की जाएगी।
यदि वकील को पेशेवर सेवाएं प्रदान करते समय हिंसा के किसी भी कार्य का शिकार होने का खतरा है, तो बिल की धारा 7 के तहत ऐसे वकील को कोर्ट की घोषणा के अनुसार एक अवधि के लिए पुलिस सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
वकील को कोर्ट के समक्ष प्लीड करते समय संस्था (इंस्टीट्यूशन) के अन्य अधिकारियों के समान व्यवहार करना चाहिए।
बिल न्यायपालिका के हर स्तर पर वकीलों और बार एसोसिएशंस की शिकायतों के निवारण के लिए थ्री-मेम्बर कमिटी का प्रावधान करता है। बिल कमिटी को वकील या बार एसोसिएशन द्वारा शिकायत के निवारण के लिए संबंधित पुलिस अधिकारियों या उपयुक्त (एप्रोप्रिएट) सरकारी अधिकारी को उचित निर्देश, सुझाव जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
सरकार को यह सुनिश्चित करना और पहचानना है कि पेशेवर उपकरण प्रदान करते समय वकीलों और क्लाइंट के बीच सभी संचार और परामर्श सुरक्षित हैं और यह भी कि वकील किसी भी एसोसिएशन में शामिल होने और अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके अलावा, वकील बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपनी शिक्षा, प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) को बढ़ावा देने और अपने अधिकारों, कर्तव्यों और विशेषाधिकारों का विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं। हालांकि, ऐसे अधिकारों का प्रयोग उनके कानूनी पेशेवरों के आचरण के भीतर किया जाना चाहिए।
बिल की धारा 11 पूरे बिल में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि यह “वकीलों की अवैध गिरफ्तारी और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन से सुरक्षा” प्रदान करती है, जिसमें कहा गया है कि चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना कोई भी पुलिस अधिकारी किसी वकील को गिरफ्तार नहीं कर सकता है या किसी वकील के खिलाफ मामले की जांच नहीं कर सकता है।
बिल देश के सभी जरूरतमंद वकीलों को किसी भी अप्रत्याशित (अनफोर्सिन) स्थिति के समय में वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है, उदाहरण के लिए महामारी या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा (कैलेमिटीज) के मामले है। केंद्र या राज्य सरकार विशेष परिस्थिति के अंत तक जरूरतमंद वकीलों को कम से कम 15 हजार की राशि प्रदान करेगी। बिल में वकीलों के लिए बीमा, चिकित्सा दावा और ऋण सुविधा का भी प्रावधान है।

Logon www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Print Media) by Chandra Shekhar Joshi 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *