28 अप्रैल- देवी पीतांबरा-बगुलामुखी का अवतरण दिवस – भटवावडी, विसावदर, जूनागढ़, गुजरात में भटट ब्राहमणो के यहां हो गया? & चन्द्रशेखर जोशी को गुजरात से आया बुलावा & माॅ पीताम्बरा श्री बगुलामुखी प्राण प्रतिष्ठा समारोह देहरादून में दिनांक 4, 5, 6 अप्रैल 2023

14 MARCH 2023# HIGH LIGHT # वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है 2023 में यह जयन्ती 28 अप्रैल, को मनाई जाएगी. #शत्रुओं के हर वार की काट# सम्पूर्ण सृष्टि में तरंग इन्हीं की वजह से है #देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस वैशाख शुक्ल अष्टमी को कहा जाता है जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है. बगलामुखी जयंती, बगलामुखी माता के अवतार दिवस वर्ष 2023 में यह जयन्ती 28 अप्रैल, को मनाई जाएगी #बगलामुखी जयंती, बगलामुखी माता के अवतार दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। जिन्हें माता पीताम्बरा या ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहा जाता है। उसके पास पीले रंग के कपड़े के साथ माथे पर सुनहरे रंग का चंद्रमा है। माँ की पूजा दुश्मन को हराने, प्रतियोगिताओं और अदालत के मामलों को जीतने के लिए जानी जाती हैं # सारे ब्रह्मांड की शक्तियां मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकतीं # ऋषियों की मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति आदि के रहस्य का पूर्ण ज्ञान आगम विद्या के माध्यम से ही संभव है। सम्पूर्ण ‘विश्व-विद्या’ होने के कारण इसे ‘महाविद्या’ की संज्ञा प्राप्त है #बगलामुखी को अग्नि पुराण में सिद्ध विद्या कह कर संबोधित किया गया है # देवी का साधक भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त कर लेते हैं #

 28 अप्रैल- देवी पीतांबरा-बगलामुखी का अवतरण दिवस – कडाया बीओ डाकघर, भट वावडी, विसावदर, जूनागढ़, गुजरात में भटट ब्राहमणो के यहां हो गया? चन्द्रशेखर जोशी को गुजरात से आया बुलावा#

माॅ पीताम्बरा श्री बगुलामुखी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह दिनांक 4, 5, 6 अप्रैल 2023 को स्थान राणा कालोनी, कुंज विहार, नन्दा देवी एनक्लेव, बंजारावाला देहरादून में होना तय हुआ है, जिसमें सभी भक्त जनो को आमंत्रित किया गया है।

#सनातन परंपरा के अनुसार वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि पर देवी बगलामुखी (Maa Baglamukhi) का प्राकट्य हुआ था. मां बगलामुखी की साधना जीवन से जुड़े सभी संकटों और कष्टों को दूर ने वाली है. शक्ति के इस पावन स्वरूप की साधना करने पर साधक के सभी कष्ट पलक झपकते ही दूर होते हैं. जिस देवी की पूजा करने पर व्यक्ति को सुख, संपत्ति, यश, विद्या, कीर्ति, ऐश्वर्य, संतान सुख आदि की प्राप्ति होती है, देवी व्यक्ति को उसकी भावनाओं और व्यवहार पर नियंत्रण की भावना भी प्रदान करती है अर्थात् क्रोध, मन के आवेग, जीभ और खाने की आदतों पर। आत्म-साक्षात्कार और योग की प्रक्रिया में, इस तरह के नियंत्रण की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यह भी माना जाता है कि देवी की पूजा करने से, भक्त खुद को काले जादू और अन्य गैर-घटनाओं से बचा सकते हैं। व्यक्ति दूसरों को सम्मोहित करने के लिए शक्तियों को प्राप्त करने के लिए भी देवता की पूजा करते हैं। किसी कानूनी समस्या से मुक्त होने के लिए भी देवता की पूजा की जाती है। जो भक्तिपूर्वक देवी की आराधना करता है, वह प्रभुत्व, वर्चस्व और शक्ति से परिपूर्ण हो जाता है। छोटी लड़कियों की भी पूजा की जाती है और पवित्र भोजन उन्हें चढ़ाया जाता है क्योंकि उन्हें देवी का अवतार माना जाता है।

By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030

आपको निमंत्रण है: सर्व कष्ट बाधा निवारण के लिए माँ बगलामुखी की साधना से अधिक उपयुक्त कोई साधना नहीं है।
सहयोग करने हेतु बैंक डिटेल्स
Bank A/c No: Ma Peetambara Shri Bagula mukhi Shakti Peeth Mandir
Bank: Bank of Maharashtra A/c No; 60435139894, Ifsc code: MAHB0001015
Mob 9412932030

देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.

बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है

मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में देवी शक्ति का देवी बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ था। त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका। देवी बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं। इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।

28 अप्रैल- देवी पीतांबरा-बगलामुखी का अवतरण दिवस – कडाया बीओ डाकघर, भट वावडी, विसावदर, जूनागढ़, गुजरात में भटट ब्राहमणो के यहां हो गया? & चन्द्रशेखर जोशी को गुजरात से आया बुलावा

दसमहाविधाओ मे से आठवी महाविधा है देवी बगलामुखी। इनकी उपासना इनके भक्त शत्रु नाश, वाकसिद्ध और वाद विवाद मे विजय के लिए करते है। इनमे सारे ब्राह्मण की शक्ति का समावेश है, इनकी उपासना से भक्त के जीवन की हर बाधा दूर होती है और शत्रुओ का नाश के साथ साथ बुरी शक्तियों का भी नाश करती है। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है।

देवी बगलामुखी का स्‍वरूप पीला होने के कारण इन्‍हें पीतांबरा देवी के नाम से भी जाना जाता है। यूं तो संपूर्ण भारत में मां के कई मंदिर हैं लेकिन मध्‍य प्रदेश के दतिया मंद‍िर का रहस्‍य समझ पाना विद्वानों की भी समझ से परे है। यह ऐसा सिद्धपीठ है, जहां मां की अनोखी कृपा न सिर्फ भक्‍तों पर बरसती है बल्कि भक्‍त यहां खुद भी तीन प्रहर में मां के अलग-अलग स्‍वरूपों के दर्शन करते हैं। मां पीतांबरा देवी तीन प्रहर में अलग-अलग स्‍वरूप धारण करती हैं। यदि किसी भक्‍त ने सुबह मां के किसी स्‍वरूप के दर्शन किए हैं तो दूसरे प्रहर में उसे दूसरे रूप के दर्शन का सौभाग्‍य मिलता है। मां के बदलते स्‍वरूप का राज आज तक किसी को नहीं पता चल सका। इसे केवल रहस्‍य ही माना जाता है।

मां बगलामुखी साधना के लाभ-

मां बगलामुखी माता की विधि-विधान से पूजा करने पर साधक की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी होती है. पीले वस्‍त्र धारण करके, मां को पीले वस्‍त्र और पीला भोग अर्पण करने से भक्‍त की हर मुराद पूरी करती है। मां बगलामुखी की की कृपा से साधक को जीवन में यश, कीर्ति, विद्या, सुख, संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. देवी के इस पावन स्वरूप की साधना करने पर साधक को कोर्ट-कचहरी के मामलों से लेकर राजनीति के मैदान तक में विजय प्राप्त होती है.

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 9 मई, सोमवार को मां बगलामुखी की जयंती है। बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महावविद्या हैं। उन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये स्तम्भन की देवी है। सम्पूर्ण सृष्टि में तरंग इन्हीं की वजह से है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन तथा जातक का जीवन निष्कंटक होता है। सारे ब्रह्मांड की शक्तियां मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकतीं। मां बगलामुखी की साधना प्राय: शत्रु भय से मुक्ति और वाक सिद्धि के लिए की जाती है। आदिकाल से ही देवगण, जीव इत्यादि जब-जब भी असुरी शक्तियों द्वारा आक्रांत और आतंकित किए गए अपने दुख निवारण के लिए उन्हें शिव और शक्ति का आश्रय लेना ही पड़ा।

दश महाविद्याओं की शृंखला में 10 देवियां मुख्य मानी जाती हैं- काली, तारा, महाविद्या, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। वर्तमान युग महत्वाकांक्षाओं एवं संघर्ष का युग है और न चाहते हुए भी हमारे जीवन में अनेक शत्रु, बाधाएं और समस्याएं हैं। ऐसे विकट काल में मां बगलामुखी की साधना परम उपयोगी एवं सहायक है।

देवी के इस स्‍वरूप की उपासना करने से गंभीर से गंभीर बीमारी और शत्रुओं का नाश होता है। बात चाहे भारत-पाकिस्‍तान के युद्ध की रही हो या फिर राजसत्‍ता की लालसा की। देवी बगलामुखी के चरणों में द‍िग्‍गज नेताओं ने स‍िर झुकाया और मन मांगी मुरादें पाई हैं। जप के लिए हल्‍दी की माला ले लें। उसी से 11, 21, 51 या 101 बार श्रद्धानुसार जप करें। साथ ही माता से अपने मनोरथों को पूरा करने की प्रार्थना करें।

इनका चिन्तन-मनन करने से मनुष्य को कोई भय नहीं रहता। अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है। बगलामुखी को अग्नि पुराण में सिद्ध विद्या कह कर संबोधित किया गया है।

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी। भैरवी सिद्ध विद्याच मातंगी कमल डडत्मिका॥

एतादश महाविद्या: सिद्ध विद्या: प्रर्कीतता:।

बगला एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ दुल्हन है, अर्थात दुल्हन की तरह आलौकिक सौन्दर्य और अपार शक्ति की स्वामिनी होने के कारण देवी का नाम बगलामुखी पड़ा। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। माँ बागलमुखी मंत्र कुंडलिनी के स्वाधिष्ठान चक्र को जागृति में सहयता करतीं हैं।

श्रीव‍िष्‍णु की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर देवी बगलामुखी ने कहा क‍ि वह कोई भी वर मांग सकते हैं। कथा के अनुसार तब श्रीहर‍ि ने देवी बगलामुखी से कहा कि सृष्टि का व‍िनाश होने से रुक जाए। मां ने प्रसन्‍न होकर तथास्‍तु कहा और अंर्तध्‍यान हो गईं। कहा जाता है कि तब से ही देवी बगलामुखी की प्राकट्य तिथ‍ि वैशाख शुक्‍ल की अष्‍टमी को माता की व‍िशेष पूजा-अर्चना का व‍िधान है। कहा जाता है क‍ि जो भी साधक इस दिन व‍िध‍ि-व‍िधान से मां की पूजा-अर्चना करता है। उसके संपूर्ण मनोरथों की प्राप्ति होती है।

देवी बगलामुखी का सिंहासन रत्नो से जड़ा हुआ है और उसी पर सवार होकर देवी शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। कहा जाता है कि देवी के सच्चे भक्त को तीनों लोक मे अजेय है, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है।

पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती हैं।

बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोउल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है.

माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.

साल 1962 में जब भारत और चीन का युद्ध शुरू हुआ था तो मां पीतांबरा सिद्धपीठ में बाबा ने फौजी अधिकारियों और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध करने पर देश की रक्षा के लिए मां बगलामुखी की प्रेरणा से 51 कुंडीय महायज्ञ कराया था। इसका परिणाम यह रहा कि युद्ध के 11वें ही दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं।

भारत-चीन युद्ध के दौरान पूजा के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी परिसर में स्‍थापित है। पंडित परिसर की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार जब देश पर किसी तरह की परेशानी आती है तो मंदिर में गोपनीय रूप से मां बगलामुखी जो कि मां पीतांबरा का ही स्‍वरूप हैं। उनकी पूजा की जाती है। बताया गया कि चीन के अलावा 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में और 2000 में कारगिल में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान भी मां बगलामुखी की गुप्‍त साधना की गई थी। इसका परिणाम रहा कि दुश्‍मनों की हार हुई।

देवी के इस जिव्हा पकड़ने का तात्पर्य यह है कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए पूजी जाती हैं। वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकाल कर सही करती हैं।

माता के उन पावन तीर्थ स्थानों के बारे में जानते हैं.

मां पीतांबरा – महाभारतकालीन मां बगलामुखी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया में स्थित है. मां बगलामुखी को यहां पर देवी को पीतांबरा माता के नाम से पूजा जाता है. शत्रुओं पर विजय और चुनाव में जीत आदि की कामना लिए लोग यहां पर बड़ी संख्या में माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

खरगोन – मध्य प्रदेश के खरगोन में कुंदा नदी के किनारे स्थित नवग्रह मंदिर में भी मां बगलामुखी की सिद्ध प्रतिमा स्थापित है. मान्यता है कि माता बगलामुखी की पूजा से साधक के नवग्रहों से जुड़े सभी दोष दूर हो जाते हैं.

त्रिशक्ति माता – मां बगलामुखी का यह पावन धाम मध्य प्रदेश के नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है.मान्यता है कि युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर महाभारत युद्ध में विजय पाने के लिए मां बगलामुखी के इस मंदिर की स्थापना की थी.

मां बमलेश्वरी – मां बगलामुखी का यह मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले में सुदूर पहाड़ी पर स्थित है. माता के के भक्त मां बगलामुखी के इस पावन स्वरूप को मां बम्लेश्वरी कहकर बुलाते हैं.

वनखंडी – मां बगलामुखी का यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के वनखंडी नामक स्थान पर स्थित है. यह मंदिर भी महाभारतकाल का माना जाता है.

कोटला – हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में भी मां बगलामुखी का मंदिर है. मान्यता है कि इस मंदिर की भी स्थापना पांडवों ने अज्ञातवास के समय की थी.

बगलामुखी कथा

देवी बगलामुखी जी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ.

उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका. देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वम ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.

मंत्र

ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।

दोहा ॥

सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज ॥

बगलामुखी चालीसा

दोहा ॥

सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज ॥

कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय श्री बगला माता । आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥

बगला सम तब आनन माता । एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥

शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । असतुति करहिं देव नर-नारी ॥

पीतवसन तन पर तव राजै । हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥ 4 ॥

तीन नयन गल चम्पक माला । अमित तेज प्रकटत है भाला ॥

रत्न-जटित सिंहासन सोहै । शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥

आसन पीतवर्ण महारानी । भक्तन की तुम हो वरदानी ॥

पीताभूषण पीतहिं चन्दन । सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥ 8 ॥

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै । वेद पुराण संत अस भाखै ॥

अब पूजा विधि करौं प्रकाशा । जाके किये होत दुख-नाशा ॥

प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै । पीतवसन देवी पहिरावै ॥

कुंकुम अक्षत मोदक बेसन । अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥ 12 ॥

माल्य हरिद्रा अरु फल पाना । सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥

धूप दीप कर्पूर की बाती । प्रेम-सहित तब करै आरती ॥

अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे । पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥

मातु भगति तब सब सुख खानी । करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ 16 ॥

त्रिविध ताप सब दुख नशावहु । तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥

बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं । अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥

पूजनांत में हवन करावै । सा नर मनवांछित फल पावै ॥

सर्षप होम करै जो कोई । ताके वश सचराचर होई ॥ 20 ॥

तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै । भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥

दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई । निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥

फूल अशोक हवन जो करई । ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥

फल सेमर का होम करीजै । निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥ 24 ॥

गुग्गुल घृत होमै जो कोई । तेहि के वश में राजा होई ॥

गुग्गुल तिल संग होम करावै । ताको सकल बंध कट जावै ॥

बीलाक्षर का पाठ जो करहीं । बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥

एक मास निशि जो कर जापा । तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥ 28 ॥

घर की शुद्ध भूमि जहं होई । साध्का जाप करै तहं सोई ॥

सेइ इच्छित फल निश्चय पावै । यामै नहिं कदु संशय लावै ॥

अथवा तीर नदी के जाई । साधक जाप करै मन लाई ॥

दस सहस्र जप करै जो कोई । सक काज तेहि कर सिधि होई ॥ 32 ॥

जाप करै जो लक्षहिं बारा । ताकर होय सुयशविस्तारा ॥

जो तव नाम जपै मन लाई । अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥

सप्तरात्रि जो पापहिं नामा । वाको पूरन हो सब कामा ॥

नव दिन जाप करे जो कोई । व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ 36 ॥

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी । पावै पुत्रादिक फल चारी ॥

प्रातः सायं अरु मध्याना । धरे ध्यान होवैकल्याना ॥

कहं लगि महिमा कहौं तिहारी । नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥

पाठ करै जो नित्या चालीसा । तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ 40 ॥

॥ दोहा ॥

सन्तशरण को तनय हूं, कुलपति मिश्र सुनाम ।

हरिद्वार मण्डल बसूं , धाम हरिपुर ग्राम ॥

उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास ।

चालीसा रचना कियौ, तव चरणन को दास ॥

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