‘जादुई’ एड्स इलाज की उम्मीद
वास्तविकता में एचआईवी को मात्र एक स्थाई-प्रबंधनीय रोग बनायें
शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) www.himalayauk.org (Newsportal
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया और 9वें एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अधिवेशन (ASICON 2016) ने भारत सरकार द्वारा एचआईवी/एड्स बिल को संस्तुति देने की सराहना की क्योंकि इस अधिनियम के बनने से एचआईवी के साथ जीवित लोगों के साथ भेदभाव और उनके शोषण पर अंकुश लगेगा. ASICON 2016 मुंबई में 7-9 अक्टूबर २०१६ के दौरान आयोजित हो रही है.
एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और ASICON 2016 के प्रमुख डॉ इश्वर गिलाडा ने कहा कि एचआईवी संक्रमण से बचाव, जांच और उपचार-देखभाल के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित प्रभावकारी कार्यक्रमों को हम पूरी कुशलता के साथ नहीं चला पा रहे हैं. यह वैज्ञानिक सत्य है कि एचआईवी मात्र स्थाई-प्रबंधनीय रोग हो सकता है पर वास्तविकता के धरातल पर भारत को अभी बहुत कार्य करना है कि यह अनुमानित 21 लाख एचआईवी के साथ जीवित लोगों के जीवन में भी सत्य हो सके.
भारत में जो अनुमानित 21 लाख लोग एचआईवी के साथ जीवित हैं उनमें से 6.५४% १५ वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं और ४०.५% महिलाएं हैं. वैज्ञानिक प्रमाण यह है कि एचआईवी की पोसिटिव जाँच होते ही एंटी-रेट्रो-वायरल (एआरटी) दवा व्यक्ति को मिलनी चाहिए – तभी वो सामान्य जीवन जी सकता है और उससे किसी को संक्रमण फैलने की सम्भावना भी नगण्य हो सकती है. पर हकीकत यह है कि 21 लाख में से मात्र 43% (919141) एचआईवी के साथ जीवित लोगों को एआरटी दवा मिल रही है. यदि हम सबको एआरटी दवा नहीं देंगे तो नए एचआईवी संक्रमण में गिरावट कैसे आएगी और लोग कैसे सामान्य जीवन व्यतीत करेंगे? बड़ी संख्या में एचआईवी के साथ जीवित लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि वे एचआईवी पोसिटिव हैं. 21 लाख एचआईवी पोसिटिव लोगों में से 1495400 को ही एचआईवी संक्रमण होने की जानकारी है. जिन समुदाय में एचआईवी होने का खतरा अनेक गुना अधिक होता है, जैसे कि, यौन-कर्मी, हिजरा, आदि, उनमें भी एचआईवी जांच 100% नहीं है: 72% यौन कर्मी, 70% समलैंगिक, 71% नशा करने वाले लोगों को ही एचआईवी जांच मिल पा रही है. एचआईवी नियंत्रण के लिए ये अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सभी लोगों को विशेषकर कि जिन्हें संक्रमित होने का खतरा अत्यधिक है, उन्हें जांच मिले, और पोसित्व होने पर एआरटी दवा मिले और अन्य जरुरी सेवा भी प्राप्त हो. सबको एआरटी दवा मिलने पर अवसरवादी संक्रमण जैसे कि टीबी आदि में भी कमी आएगी.
भारत में २०१५ में 86000 नए एचआईवी संक्रमण हुए जिनमें से 12% बच्चे हैं. माँ-बाप से बच्चों में एचआईवी संक्रमण फैलने से बचाव के वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित कार्यक्रम भारत में सक्रिय हैं – ये जन-स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है कि बच्चों में एचआईवी संक्रमण पर पूर्णरूप से अंकुश लगे. भारत में २०१५ में 67600 लोग एड्स सम्बंधित कारणों से मृत हुए – इन असमय मृत्यु से बचाव मुमकिन है यदि सभी को एआरटी दवा मिल रही होती. जब तक सभी एचआईवी के साथ जीवित लोगों को एआरटी दवा नहीं मिलेगी तब तक कैसे एचआईवी संक्रमण होना मात्र एक स्थायी-प्रबंधनीय रोग हो सकेगा और लोग सामान्य जीवन व्यतीत कर सकेंगे?
भविष्य में किसी ‘जादुई’ एड्स इलाज की उम्मीद में हम आज वर्त्तमान को धूमिल नहीं कर सकते क्योंकि प्रभावकारी कार्यक्रमों की जानकारी हमें उपलब्ध है और हर एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति की जिंदगी में इस संक्रमण को स्थायी-प्रबंधनीय रोग बनाना जन-स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय दोनों के लिए अनिवार्य है.
शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)