यूपी के सीएम की पहली पसंद कौन? -अखिलेश सबसे आगे
हिमालयायूके की खबर सटीक-यूपी में अखिलेश यादव की आंधी की संभावना ; सर्वे में अखिलेश यादव पसंदीदा नेता बनकर उभरे; कुछ दिन पूर्व ही यह खबर प्रकाशित की थी– आज विभिन्न सर्वे रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है- वही यूपी में आम जन के दिमाग में यह बात घर कर गयी है कि – अखिलेश यादव को हराने के लिए देश के प्रधानमंत्री का सहारा ले रही है भाजपा। यूपी में भाजपा 3 नम्बर पर – यूपी के 28% लोगों का कहना है कि वे अगले सीएम के रूप में अखिलेश यादव को ही देखना चाहते हैं। यूपी का सबसे लोकप्रिय नेता कौन है? – अखिलेश- 83%,
वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हार स्वीकार चुके हैं और इसीलिए वह कह रहे हैं कि अगले विधानसभा चुनाव पार्टी की जीत या हार का मुद्दा नहीं है- पार्टी सुप्रीमो मायावती का बयान आया है
एबीपी न्यूज-लोकमत-सीएसडीएस के सर्वे में सामने आया है कि यूपी का 75 फीसदी यादव वोटर सपा के साथ है। जबकि बीएसपी के साथ 4, भाजपा के साथ 14 और कांग्रेस के साथ 5 फीसदी यादव वोटर हैं। 54 फीसदी मुस्लिम सपा के साथ हैं, जबकि बसपा के साथ 14 प्रतिशत वोटर हैं। 9 फीसदी ने भाजपा को वोट देने की बात कही और 7 ने कांग्रेस का साथ देने को कहा। 12 फीसदी सवर्ण वोटर सपा, 8 फीसदी बसपा, 55 फीसदी भाजपा , 10 प्रतिशत कांग्रेस के साथ हैं। 56 फीसदी अन्य दलित बीएसपी, 16 फीसदी सपा, 13 फीसदी भाजपा तथा 11 प्रतिशत कांग्रेस के साथ हैं। जाटव में 7 फीसदी, बीएसपी 74 फीसदी, भाजपा 8 फीसदी और कांग्रेस को 4 फीसदी ने वोट देने की बात कही। इस सर्वे में अखिलेश यादव पसंदीदा नेता बनकर उभरे हैं। सीएम के तौर पर मायावती यूपी के लोगों की दूसरी पसंद बताई जा रही हैं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए ओपिनियन पोल्स और सर्वे का दौर शुरू हो गया है। एबीपी न्यूज के सर्वे में अखिलेश यादव पसंदीदा नेता बनकर उभरे हैं। सीएम के तौर पर मायावती यूपी के लोगों की दूसरी पसंद बताई जा रही हैं। सर्वे में अखिलेश को 28, मायावती को 21, योगी आदित्यनाथ को 4 फीसदी और मुलायम को 3 प्रतिशत लोगों ने अपनी पसंद बताया है। सर्वे में हिस्सा लेने वाले 34 फीसदी लोग सीएम अखिलेश से संतुष्ट हैं, वहीं 32 फीसदी ने पीएम मोदी के काम पर संतुष्टि जताई है।
75 फीसदी यादव वोटर सपा के साथ है। जबकि बीएसपी के साथ 4, भाजपा के साथ 14 और कांग्रेस के साथ 5 फीसदी यादव वोटर हैं। 54 फीसदी मुस्लिम सपा के साथ हैं, जबकि बसपा के साथ 14 प्रतिशत वोटर हैं। 9 फीसदी ने भाजपा को वोट देने की बात कही और 7 ने कांग्रेस का साथ देने को कहा। 12 फीसदी सवर्ण वोटर सपा, 8 फीसदी बसपा, 55 फीसदी भाजपा , 10 प्रतिशत कांग्रेस के साथ हैं। 56 फीसदी अन्य दलित बीएसपी, 16 फीसदी सपा, 13 फीसदी भाजपा तथा 11 प्रतिशत कांग्रेस के साथ हैं। जाटव में 7 फीसदी, बीएसपी 74 फीसदी, भाजपा 8 फीसदी और कांग्रेस को 4 फीसदी ने वोट देने की बात कही।
समाजवादी पार्टी के झगड़े के लिए 25 फीसदी लोग शिवपाल सिंह यादव को जिम्मेदार मानते हैं। जबकि सिर्फ 6 फीसदी लोग अखिलेश को जिम्मेदार मानते हैं। हालांकि यह सर्वे सपा के वर्तमान झगड़े से पहले कराया गया था। यूपी के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला सत्ताधारी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच होना है। राज्य के चुनावी इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो कांग्रेस और भाजपा लंबे समय से सत्ता से दूर रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था, जिसे पार्टी इस चुनाव में भी बरकरार रखना चाहेगी।
समाजवादी पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही है। मुलायम और अखिलेश के बीच सत्ता संघर्ष की वजह से अभी तक साफ नहीं है कि चुनाव में पार्टी अपने पूरे दमखम से उतर भी सकेगी या नहीं। मायावती लगातार रैलियां कर केंद्र और राज्य सरकार पर प्रहार कर रही हैं। मंगलवार को ही उन्होंने मुसलमानों और अगड़ी जातियों से विरोधियों के जाल में न फंसने की अपील की है। बीजेपी की तरफ से पीएम नरेंद्र मोदी ने कई ‘परिवर्तन रैलियां’ की हैं और उन्हें आगे भी कई क्षेत्रों में जाना है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरे यूपी में ‘किसान यात्रा’ निकाल चुके हैं और चुनाव प्रचार के लिए जल्द फिर से प्रदेश के दौरे पर जाएंगे।
समाजवादी पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही है। मुलायम और अखिलेश के बीच सत्ता संघर्ष की वजह से अभी तक साफ नहीं है कि चुनाव में पार्टी अपने पूरे दमखम से उतर भी सकेगी या नहीं। मायावती लगातार रैलियां कर केंद्र और राज्य सरकार पर प्रहार कर रही हैं। मंगलवार को ही उन्होंने मुसलमानों और अगड़ी जातियों से विरोधियों के जाल में न फंसने की अपील की है। बीजेपी की तरफ से पीएम नरेंद्र मोदी ने कई ‘परिवर्तन रैलियां’ की हैं और उन्हें आगे भी कई क्षेत्रों में जाना है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरे यूपी में ‘किसान यात्रा’ निकाल चुके हैं और चुनाव प्रचार के लिए जल्द फिर से प्रदेश के दौरे पर जाएंगे।
समाजवादी पार्टी ने इस मर्तबा 97 मुसलमानों को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। इस बात का इस्तकबाल खुद बसपा सुप्रीमों मायावती ने किया। वर्ष 2007 से बहनजी सपा के पारम्परिक वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत में हैं। उत्तर प्रदेश की 403 विधान सभा सीटों में से 147 ऐसी हैं जहां मुसलमान मतदाता हार जीत का फैसला करने की सियासी कुव्वत रखता है। यह सीटें दरअसल हैं कहां? इस बात का इल्म भी जरूरी है। इनमें रामपुर सर्वप्रथम हैं जहां मुसलमान मतदाताओं का प्रतिशत 42 है। मुरादाबाद में 40, बिजनौर में 38, अमरोहा में 37, सहारनपुर में 38, मेरठ में 30, कैराना में 29, बलरामपुर और बरेली में 28, संभल, पडरौना और मुजफ्फरनगर में 27, डुमरियागंज में 26 और लखनऊ, बहराइच व कैराना में मुसलमान मतदाता 23 प्रतिशत हैं। इनके अलावा शाहजहांपुर, खुर्जा, बुलन्दशहर, खलीलाबाद, सीतापुर, अलीगढ़, आंवला, आगरा, गोंडा, अकबरपुर, बागपत और लखीमपुर में मुस्लिम मतदाता कम से कम 17 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश की सियासत में इतनी निर्णायक भूमिका में होने के बावजूद वर्ष 2014 में हुए सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में एक भी मुसलमान सांसद यहां से जीत दर्ज कर पाने में कामयाब नहीं हो सका। इस बात का गहरा मलाल मतदाताओं की इस बिरादरी को है। इस बाबत वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजेन्द्र कुमार कहते हैं, उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए मुसलमान लामबन्द हो रहा था। लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 में से 73 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत से केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद वह उत्तर प्रदेश में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होने देना चाहता था। लेकिन समाजवादी पार्टी में मचे आपसी घमासान ने उसके सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। अब वह यह तय नहीं कर पा रहा है कि ऐन चुनाव के समय वह अपना नया सियासी मसीहा कहां से खोज के लाय?
—हिमालयायूके में कुछ दिन पूर्व प्रकाशित खबर का लिंक