अक्षय तृतीया पर विशेष- माँ श्री लक्ष्मी जी का आवाहन स्तोत्र & क्या बाबा ऐसे कभी अपने धाम में गये हैं?
श्री सूक्तम् देवी लक्ष्मी की आराधना करने हेतु उनको समर्पित मंत्र हैं। इसे ‘लक्ष्मी सूक्तम्’ भी कहते हैं। यह सूक्त ऋग्वेद से लिया गया है। इस सूक्त का पाठ धन-धान्य की अधिष्ठात्री, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है।
को श्री सुक्ता के नाम से भी जाना जाता है ! Sri Suktam पूर्ण रूप से संस्कृत भाषा में लिखा हुआ हैं ! Sri Suktam स्तोत्र का पाठ करने माँ श्री लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता हैं ! और आप सब जानते है की माँ श्री लक्ष्मी जी धन की देवी हैं ! जो भी व्यक्ति नियमित रूप से Sri Suktam स्तोत्र का पाठ करता हैं ! उसके जीवन में धन और समृद्धि के सुखी की कमी नही होती हैं ! और मान श्री लक्ष्मी जी का आशीर्वाद उस पर सदैव बना रहता हैं ! Sri Suktam का पाठ करने से माँ लक्ष्मी जी धन, स्वास्थ्य, भाग्य और शांति प्रदान करती हैं !!
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सोमवार, 27 अप्रैल को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी
लक्ष्मी प्राप्ति के 10 चमत्कारिक मंत्र – निम्न में से किसी भी 1 मंत्र का चयन करके सुबह, दोपहर और रात्रि को सोते समय 5-5 बार नियम से उसका स्तवन करें। मातेश्वरी लक्ष्मीजी आप पर परम कृपालु बनी रहेंगी
मंत्र |
* ॐ धनाय नम: |
* ॐ धनाय नमो नम: |
* ॐ लक्ष्मी नम: |
* ॐ लक्ष्मी नमो नम: |
* ॐ लक्ष्मी नारायण नम: |
* ॐ नारायण नमो नम: |
* ॐ नारायण नम: |
* ॐ प्राप्ताय नम: |
* ॐ प्राप्ताय नमो नम: |
* ॐ लक्ष्मी नारायण नमो नम:। |
श्री लक्ष्मीसूक्तम् पाठ
पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥
हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।
पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे। तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥
– हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें।
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने। धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे॥
– हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें।
पुत्र पौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्। प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे॥
– हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ।
धनमाग्नि धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु। धन मिंद्रो बृहस्पतिर्वरुणां धनमस्तु मे॥
– हे लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ।
वैनतेय सोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा। सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥
– हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः। भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्॥
– इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्॥
– हे त्रिभुवनेश्वरी! हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्। लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम॥
– भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ।
महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥
– हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।
चंद्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमेश्वरीम्। चंद्र सूर्याग्निसंकाशां श्रिय देवीमुपास्महे॥
– जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं।
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाभिधाच्छ्रोभमानं महीयते। धान्य धनं पशु बहु पुत्रलाभम् सत्संवत्सरं दीर्घमायुः॥
– इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।
श्री सूक्त || Sri Suktam || Shree Suktam
हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१॥ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥२॥ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवी जुषताम्॥३॥ कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारां आद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम्॥४॥ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियंलोके देव जुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥५॥ आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्व:।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मी:॥६॥ उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्चमणिना सह।
प्रादुर्भुतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृध्दिं ददातु मे॥७॥ क्षुत्पपासामलां जेष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृध्दिं च सर्वानिर्णुद मे गृहात॥८॥ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरिं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥९॥ मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रेयतां यश:॥१०॥ कर्दमेनप्रजाभूता मयिसंभवकर्दम।
श्रियं वासयमेकुले मातरं पद्ममालिनीम्॥११॥ आप स्रजन्तु सिग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥१२॥ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टि पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥१३॥ आर्द्रां य: करिणीं यष्टीं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आवह॥१४॥ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥१५॥ य: शुचि: प्रयतोभूत्वा जुहुयाादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पञ्चदशर्च च श्रीकाम: सततं जपेत्॥१६॥ पद्मानने पद्मउरू पद्माक्षि पद्मसंभवे।
तन्मे भजसि पद्मक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्॥१७॥ अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे लभतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे॥१८॥ पद्मानने पद्मविपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विष्णुमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधस्त्वं॥१९॥ पुत्रपौत्रं धनंधान्यं हस्ताश्वादिगवेरथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे॥२०॥ धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्योधनं वसु।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरूणं धनमस्तु मे॥२१॥ वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृतहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिन:॥२२॥ न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभामति:।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्॥२३॥ सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांसुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम्॥२४॥ विष्णुपत्नीं क्षमां देवी माधवी माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥२५॥ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्॥२६॥ श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायु:॥२७॥ ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
॥ इति श्रीसूक्तं समाप्तम ॥
श्री सूक्त ( ऋग्वेद) Shri Suktam with Lyrics – (A Vedic Hymn Addressed to Goddess Lakshmi)
सम्पर्क करे- डा0 अनूप गौड महायोगी- ऋषिकेश उत्तराखण्ड मो0 8077900406
सोमवार, 27 अप्रैल को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी
सोमवार, 27 अप्रैल को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी है। इसे विनायकी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन गणेशजी के लिए व्रत किया जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार सोमवार को चतुर्थी होने से इस दिन गणेशजी और शिवजी की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। गणेशजी चतुर्थी तिथि के स्वामी हैं और सोमवार को शिवजी की पूजा करने का विशेष महत्व है। जानिए इस शुभ योग में कैसे करें पूजा-पाठ…
गणेशजी मंत्र का करें जाप
विनायकी चतुर्थी पर गणेश प्रतिमा पर सिंदूर, दूर्वा, फूल, चावल, फल, जनेऊ, नैवेद्य अर्पित करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें। श्री गणेशाय नम:, ऊँ गं गणपतयै नम:, वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, निर्विघ्नं कुरमेदेव सर्वकार्येषु सर्वदा, मंत्र का जाप करें।
जो लोग विनायकी चतुर्थी पर व्रत करते हैं उन्हें निराहार रहना चाहिए या फलाहार कर सकते हैं। दूध और फलों के रस का सेवन किया जा सकता है। पूजा पूरी होने के बाद सभी भक्तों को प्रसाद वितरीत करें। भगवान से पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमा मांगे।
शिवजी की पूजा भी करें
इस दिन गणेशजी के बाद शिवलिंग की पूजा करें। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं। बिल्व पत्र अर्पित करें। चंदन से तिलक लगाएं। भगवान को भोग लगाएं। दीपक जलाकर ऊँ सांब सदाशिवाय नम: मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें। जरूरतमंद लोगों को अनाज और फलों का दान करें।
क्या बाबा ऐसे कभी अपने धाम में गये हैं?
बाबा भोलेनाथ की पंचविग्रह डोली #ऊखीमठ से #केदारनाथ धाम के लिए रवाना। 29 अप्रैल को सुबह 6:10 पर खुलेंगे बाबा केदार के कपाट। बाबा केदारनाथ का अपने धाम को प्रस्थान।क्या बाबा ऐसे कभी अपने धाम में गये हैं? पर समय और देश की परिस्थितियों इस समय ऐसी है जबकि केदारनाथ क्षेत्र कोरोना से सुरक्षित है। जय बाबा केदार की । बाबा की कृपा सदा सब पर बनी रहे।
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