अमित शाह को वो दिल्ली से गांधीनगर भेज नहीं सकते
अमित शाह को वो दिल्ली से गांधीनगर भेज नहीं सकते, अन्यथा शाह 2017 चुनावों के लिए सबसे मुफीद साबित हो सकते थे. शाह भी सत्तारुढ़ दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर फिलहाल गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के इच्छुक कम ही हैं. मई 2014 में बात दूसरी थी, जब मोदी ने शाह की जगह आनंदीबेन को गुजरात की कुर्सी सौंपी थी. उस वक्त अमित शाह मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के इच्छुक थे, लेकिन मोदी के संकेत को देखते हुए अपनी भावनाओं को काबू में रखा. जो विकल्प मोदी के सामने मौजूद हैं, उसमें गुजरात की मौजूदा सरकार में मंत्री नीतिन पटेल और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विजय रुपाणी प्रमुख हैं. यूं तो नाम गुजरात इकाई के संगठन महामंत्री भीखुभाई दलसाणिया. आदिवासी समाज से आने वाले गणपत वसावा, केंद्र में कृषि राज्य मंत्री पुरशोत्तम रुपाला और गुजरात के वित्त मंत्री सौरभ पटेल का भी उछल रहा है, लेकिन प्रमुख नाम नीतिन पटेल और विजय रुपाणी ही हैं. www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
सूत्र बताते हैं कि आनंदीबेन पटेल राज्य के प्रशासन में अमित शाह के कथित हस्तक्षेप से परेशान थीं. बताया जाता है कि शाह के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं है. इन सूत्रों ने यह आरोप तक लगाया कि राज्य के अधिकारी मुख्यमंत्री की अनदेखी करते हुए सीधे शाह के पास ‘अप्रोच’ करते थे. उन्होंने कहा कि दबाव नहीं होता तो वे नवंबर में अपने 75वें बर्थडे के पहले पद नहीं छोड़तीं. गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे के बाद बीजेपी नए मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान अगले दो-तीन दिन में कर सकती है. गुजरात में दरकते जनाधार को संभालने के लिए बीजेपी अमित शाह को भी अगला सीएम बना सकती है. ऑनलाइन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गुजरात के अगले सीएम के तौर पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के नाम पर भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है. ओम माथुर ने पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को रिपोर्ट के आधार पर साफ बता दिया था कि अगर आनंदीबेन पटेल को समय रहते नहीं हटाया गया तो नवंबर 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है. बस उसके बाद से ही पीएम मोदी ने आनंदीबेन की विदाई के लिए उपयुक्त समय की तलाश शुरू कर दी थी. 15 अगस्त के बाद सरकार को 3 राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति करनी है. नए राज्यपालों के लिए 2 नामों को पक्का माना जा रहा है वो हैं आनंदीबेन पटेल और नजमा हेपतुल्ला. 3 नाम को लेकर पार्टी और संघ में चर्चा चल रही है. जल्दी ही उस पर भी फैसला ले लिया जाएगा. स्थानीय बीजेपी नेताओं की शिकायत है कि पार्टी ने लगभग 25 वर्ष के शासनकाल में जो लोकप्रियता हासिल की थी उसे आनंदीबेन ने नुकसान पहुंचाया है, लेकिन ‘सीएम’ के नजदीकी सूत्रों के अनुसार, आनंदीबेन का मानना है कि आंदोलनों को पार्टी में मौजूद उनके विरोधियों ने ही हवा दी.
सूत्रों की मानें तो पीएम मोदी आनंदीबेन पटेल को अभी किस राज्य में राज्यपाल बनाकर भेज दें लेकिन उसके साथ-साथ उनका प्लान ये भी है कि गुजरात चुनाव से ठीक पहले अगस्त 2017 में आनंदीबेन पटेल को उपराष्ट्रपति बनाने से पार्टी को विधानसभा में फायदा मिलेगा.
अगर पीएम मोदी ने अभी आनंदीबेन पेटल पर फैसला नहीं लिया होता तो इसका हर्जाना पार्टी को गुजरात चुनाव में भुगतना पड़ता और उनकी लीडरशिप पर सवाल खड़े होते. जो पीएम मोदी की छवि के लिए अच्छा नहीं होता. इसलिए पीएम मोदी को जानने वाले कहते हैं कि मोदी अपनी छवि को लेकर बहुत संवेदनशील रहते हैं.
सियासी गलियारे में इस पद के दावेदार के लिए कुछ और नामों पर चर्चा चल रही है. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री बनने की रेस में सबसे ऊपर गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष विजय रुपानी का नाम लिया जा रहा है. दरअसल, विजय रुपानी के लिए कहा जाता है कि संगठन में उनकी अच्छी पकड़ है.
अनुभव के साथ ही विश्वसनीय चेहरा हैं रुपानी
आनंदीबेन के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में पार्टी का संगठन कमजोर हो रहा था. बीजेपी की अंदरूनी उठापठक हाईकमान के पास जा रही थी. यही वजह थी कि संगठन को मजबूत बनाने के लिये विजय रुपानी को अध्यक्ष बनाया गया. हालांकि विजय रुपानी खुद सरकार में भी परिवहन मंत्री की भूमिका में हैं. ऐसे में सरकार चलाने का अनुभव भी उनके पास करीब एक साल का है.
विजय रुपानी का नाम इसलिए भी सब से ऊपर लिया जा रहा है कि वो अमित शाह के करीबियों में से एक हैं. साथ ही सरकार और संगठन का समन्वय वो बखूबी कर रहे हैं. यहां तक कि पिछले दिनों सरकार की जितनी भी महत्वपूर्ण योजनाएं घोषित की गईं, वो सभी आनंदीबेन पटेल की जगह विजय रुपानी ने ही की. हालांकि जानकार ये भी मान रहे हैं कि गैर-पाटीदार समुदाय से मुख्यमंत्री बनाए जाने पर बीजेपी को गुजरात में पाटीदार वोटों का नुकसान भी झेलना पड़ सकता है. आनंदीबेन के उत्तराधिकारी के तौर पर दूसरा नाम नितिन पटेल का आ रहा है. नितिन पटेल एक तो पाटीदार समुदाय से आते हैं, साथ ही वो लंबे वक्त से सरकार में मंत्री बने हुए हैं. नरेन्द्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे, उस वक्त नितिन पटेल मोदी के करीबी नेताओ में से एक थे. हालांकि पाटीदार आंदोलन के वक्त पर नितिन पटेल को अपने ही पाटीदार समाज के गुस्से का शिकार होना पड़ा था. यहां तक कि पाटीदारों ने नितिन पटेल को समुदाय में हासिये पर लाकर खड़ा कर दिया था. ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या नितिन पटेल बीजेपी की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे.
संगठन पर पकड़ भीखू को दिला सकती है कुर्सी
तीसरा नाम भीखू दलसानिया का भी है. भीखू दलसानिया पिछले लंबे वक्त से बीजेपी के संगठन में काम कर रहे हैं. नरेन्द्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे तब भीखू की संगठन में काफी अच्छी पकड़ थी. वो आरएसएस के भी काफी करीबी रहे है. साफ-सुथरी छवि और जातिवादी समीकरण भी भीखू के पक्ष में जाते दिख रहे हैं.
पुरुषोत्तम रुपाला और सौरभ पटेल के नाम पर फुल स्टॉप!
पुरुषोत्तम रुपाला और सौरभ पटेल के नाम पर पूर्णविराम लगता दिख रहा है. रुपाला को हाल ही में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया है और उन्हें केन्द्र में मंत्री पद भी दिया गया है. वैसे में वो इस्तीफा दें और गुजरात के मुख्यमंत्री बनें, यह बात हर किसी के गले नहीं उतर रही है.
दूसरी ओर, अंबानी परिवार के दामाद होने की वजह से सौरभ पटेल के भी मुख्यमंत्री बनने की कोई उम्मीद नहीं दिखती. अगर सौरभ पटेल को सीएम बनाया जाता है तो 2017 में पहली बार गुजरात में विधानसभा चुनाव लड़ने का प्लान बना रही आम आदमी पार्टी को बैठे बिठाए एक मुद्दा मिल जाएगा. जो विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए घाटे का सौदा भी बन सकता है.
आनंदीबेन पटेल ने लिखा कि उन्होंने 2 महीने पहले नेतृत्व कोमुख्यमंत्री के पद से हटने के लिए कहा था. क्योंकि आनंदीबेन पटेल इस साल नवंबर में 75 साल की होने वाली हैं. आनंदीबेन पटेल ने जिस तरह से मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया है वो प्रिस्क्रिप्टेड है. क्योंकि 25 अगस्त 2015 को पाटीदारों के आंदोलन के बाद से ही ये कयास लगाए जा रहें थे आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री के पद से हटाया जा सकता है. लेकिन पीएम मोदी ने आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने पर उस वक्त रोक लगा दी थी. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और आनंदीबेन पटेल के रिश्तों में कितनी कड़वाहट है ये बात किसी से छिपी नहीं है.
BJP ने राजनीतिक परिस्थितियों पर मांगी रिपोर्ट
गुजरात निकाय चुनाव में बीजेपी को शहरी क्षेत्रों में थोड़ी बढ़त जरूर मिली लेकिन पिछली बार की तुलना में मार्जिन कम हो गया था. दूसरी तरफ कांग्रेस ने अच्छी खासी बढ़त के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जीत दर्ज की तो पीएम मोदी और अमित शाह की चिंता बढ़ी. पीएम मोदी ने अपने विश्वासपात्र और गुजरात के पूर्व प्रभारी ओम प्रकाश माथुर से गुजरात की राजनीतिक परिस्थितियों पर रिपोर्ट तैयार कराई. ओम माथुर ने अपनी रिपोर्ट 25 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सौंपी थी. ओम माथुर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था…
1: पाटीदारों के आंदोलन को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए.
2: राज्य सरकार और पार्टी में गुटबाजी को खत्म करना चाहिए.
3: सरकार और पार्टी के बीच में समन्वय की कमी को जल्दी से जल्दी दूर करना.
5: सरकार के फैसलों में पार्टी की भागीदारी को बढ़ाना.
6: केंद्रीय नेतृत्व को समय-समय पर पार्टी और सरकार के कामकाज की समीक्षा करनी होगी.