वह डमी मुख्य मंत्री नही है; अमित शाह को पहली बार चुनाैती

मोदी-अमित शाह राज्‍यबर्द्वन राठौर   को मुख्योमंत्री बनाना चाहते थे-

राजस्थान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए पार्टी के भीतर पहला वाटरलू साबित हो रहा है। यद्यपि शाह 2019 के चुनावों की लड़ाई के लिए पार्टी को मजबूत बनाने के मकसद से मित्रों और दुश्मनों को लुभा रहे हैं मगर उनको राजस्थान में काफी असामान्य चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के फैसले को वीटो कर वसुंधरा राजे सिंधिया ने दिखा दिया कि वह डमी मुख्य मंत्री नही है, जैसे अन्य0 राज्योt में हैं, अमित शाह राजस्थाुन के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति अपने मनमर्जी से नही कर सके हैं, जिन नामो पर अमित शाह विचार कर रहे हैं, उनको भाजपा प्रदेश अध्यनक्ष बनाने को वसुंधरा राजे तैयार नही होती है, ऐसी ताकत दिखाने वाली वसुंधरा राजे सिंधिया एकमात्र नेता है, राजस्था न में इसी साल के अंत तक चुनाव होने है और अमित शाह प्रदेश अध्यनक्ष नियुक्त नही कर सके हैं, भाजपा नेतृत्व ने एक बार वसुंधरा राजे को पद से हटाने और नया मुख्यमंत्री नियुक्त करने के मुद्दे पर विचार किया था मगर इस सशक्त मजबूत महिला ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि उनको हल्का नहीं समझना चाहिए और वह आनंदीबेन पटेल नहीं जो आत्मसमर्पण कर देंगी, राजस्थापन से पूरी भाजपा को साफ कर देगी, इस पर अमित शाह और मोदी जी को यह विचार छोडना पडा था।

सूत्रों का कहना है कि उस समय मोदी-अमित शाह राज्यबर्द्वन राठौर को मुख्योमंत्री बनाना चाहते थे- हमारे प्रबल सूत्रो का कहना है कि राजस्थावन में भाजपा वापस लौटी तो वसुंधरा राजे सिंधिया को भाजपा नेतृत्व मुख्यामंत्री बनाने को तैयार नही होगा और तब केन्द्रीलय सूचना प्रसारण राज्यामंत्री स्वनतंत्र प्रभार श्रीराज्य्वर्बन राठौर को मुख्यामंत्री की गददी सौंपने की रणनीति अमल में लाई जायेगी, शायद यही कारण है कि केन्द्री य सूचना प्रसारण राज्यरमंत्री स्वीतंत्र प्रभार के रूप में भी वह खुल कर कार्य नही कर रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि वह सिर्फ कुर्सी पर बैठाये गये हैं कार्य करने के लिए नही-

अमित शाह को 14 भाजपा शासित राज्यों में से किसी एक में भी ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली, जहां मुख्यमंत्री उनके पीछे दौड़ते नजर आते हों लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया ने इस संबंध में झुकने से इंकार कर दिया। उन्हें पिछले सप्ताह दिल्ली में पार्टी के नए प्रधान का चयन करने के लिए बुलाया गया था।अजमेर और अलवर उपचुनाव हारने के बाद अशोक परनामी ने इस्तीफा दे दिया था। यह दूसरी बैठक थी क्योंकि वसुंधरा राजे ने शाह द्वारा सुझाए गए केन्द्रीय मंत्री राजिंद्र सिंह शेखावत के नाम पर वीटो कर दिया था।

 राजस्थान में इसी साल नवंबर-दिसंबर में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं और पिछले 16 अप्रैल से राजस्थान बीजेपी में पार्टी का कमान संभालने वाला कोई नहीं है. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व नाम की घोषणा नहीं कर पा रहा है, उसे देखकर लगता है कि वसुंधरा राजे इस बार बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व पर भारी पड़ गई हैं. बीजेपी आलाकमान खुद के फैसले को लागू कराने में नाकाम रहा है.  वसुंधरा राजे ने इस तरह से चुनौती दी है कि इसे लागू किया गया तो राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लुटिया डूब सकती है.

मुख्यमंत्री जाति मुक्त नेता प्रधान पद के लिए चाहती हैं। इसके विकल्प में उन्होंने एक सिंधी पंजाबी नेता श्रीचंद कृपलानी के नाम का प्रस्ताव रखा जिसे शाह ने नामंजूर कर दिया। अब ऐसी चर्चा है कि एक अन्य दलित केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल का नाम लिया जा रहा है लेकिन कुछ कारणों से मुख्यमंत्री ने इस नाम को भी नामंजूर कर दिया। समझौते के तहत पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र यादव के नाम पर चर्चा हो रही है। राजे इस नाम को स्वीकार करने की इच्छुक हैं मगर शाह का कहना है कि उनको दिल्ली में लोकसभा चुनावों के लिए उनकी सेवाओं की जरूरत है।
वास्तव में भाजपा नेतृत्व ने एक बार वसुंधरा राजे को पद से हटाने और नया मुख्यमंत्री नियुक्त करने के मुद्दे पर विचार किया था मगर इस सशक्त मजबूत महिला ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि उनको हल्का नहीं समझना चाहिए और वह आनंदीबेन पटेल नहीं जो आत्मसमर्पण कर देंगी। इस विचार को ठप्प कर दिया गया। अब चर्चा यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शीघ्र ही शाह और वसुंधरा राजे के बीच मतभेदों को सुलझाने के लिए आगे आएंगे। अमित शाह ने फैसला किया है कि वह इस बात को यकीनी बनाने के लिए अपनी राजनीति के तहत जयपुर में डेरा जमाएंगे ताकि भाजपा राजस्थान विधानसभा के चुनाव जीत सके। वह यहां कोई परिसर किराए पर नहीं लेंगे और जयपुर में रहकर खुद चुनावों की निगरानी करेंगे।

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