लोस चुनाव19; 28 फ़रवरी को कोई नयी ख़बर सामने आ सकती है

महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में गठबंधन के पेच सुलझा चुकी भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में ख़ासी मुश्किल खड़ी हो गयी है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी गठबंधन की अहम सहयोगी केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के अपना दल की नाराज़गी दूर नहीं हो सकी है और उसकी कांग्रेस से पींगे बढ़ने लगी हैं। इधर, अमित शाह से मुलाक़ात के बाद भी बीजेपी गठबंधन के एक अन्य सहयोगी ओमप्रकाश राजभर के तेवर ढीले नहीं पड़े हैं। मिल रही ख़बरों के मुताबिक़ अनुप्रिया पटेल के पति और यूपी में विधान परिषद सदस्य आशीष पटेल से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बात हुई है और जल्द ही यह दोस्ती कुछ नए गुल खिला सकती है। सूत्रों का कहना है कि अनुप्रिया पटेल और प्रियंका की जल्द ही बात हो सकती है। और 28 फ़रवरी को कोई नयी ख़बर सामने आ सकती है।  दूसरी ओर यूपी में बीजेपी गठबंधन के एक अन्य सहयोगी ओमप्रकाश राजभर की अमित शाह से बुधवार को मुलाक़ात के बाद भी लोकसभा सीटों को लेकर पेच नहीं सुलझ पाया है। राजभर, यूपी बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे की सीट चंदौली और घोसी लोकसभा सीट माँग रहे हैं। हालाँकि अमित शाह ने उन्हें आयोगों में कुछ सदस्य पद और बड़ा बंगला देकर नाराज़गी दूर करने की कोशिश की है। वहीं राजभर पर सपा भी डोरे डाल अपने पाले में लाने की भरसक कोशिश कर रही है। सूत्रों का तो यहाँ तक कहना है कि राजभर के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव महागठबंधन में अपने खाते की सीट तक क़ुर्बान करने को तैयार हैं।

वही दूसरी ओर भाजपा  को रजनीकांत के रूख  से झटका लगा है, कुछ मुद्दों पर रजनीकांत के रुख से अनुमान लगाया था कि वह 2019 में भाजपा को समर्थन दे सकते हैं। अभिनेता से नेता बने रजनीकांत ने घोषणा की कि उनकी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगी। एक बयान में उन्होंने मीडिया को किसी भी प्रचार के लिए उनकी तस्वीर या पार्टी के चिन्ह का उपयोग नहीं करने की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, ‘मेरी पार्टी को आगामी संसदीय चुनाव में किसी भी दल का समर्थन नहीं करेगी। इसलिए रजनी मक्कल मंद्रम और रजनी फैन क्लब के नाम पर किसी को भी मेरे फोटो या झंडे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और किसी भी पार्टी का समर्थन या प्रचार नहीं किया जाना चाहिए।’ बयान में लिखा, ‘तमिलनाडु में मुख्य समस्या पानी की है, आगामी चुनाव में जो तमिलनाडु की पानी की समस्या को हल करने के लिए केंद्र में एक स्थिर, मजबूत शासन की स्थापना करे और इसे लागू करे, उस पर लोगों को विश्वास करना चाहिए और वोट देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं आगामी संसदीय चुनाव नहीं लड़ रहा हूं. हमारा लक्ष्य विधानसभा चुनाव है. उन्होंने कहा कि मैं किसी का समर्थन नहीं कर रहा हूं और कोई भी राजनीतिक प्रचार के मकसद से मेरी तस्वीर या संगठन का झंडा इस्तेमाल नहीं करें. अभिनेता ने एक बयान में कहा कि रजीनी मक्कल मंड्रम आगामी संसदीय चुनाव में किसी भी पार्टी का समर्थन नहीं कर रही है.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के एक अहम सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) अलग होने की राह पर है. पार्टी की संरक्षक अनुप्रिया पटेल और अध्यक्ष आशीष पटेल ने गुरुवार को दिल्ली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधीऔर ज्योतिरादित्य सिंधिया से लम्बी मुलाकात. इस मुलाकात में दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा हुई. कहा जा रहा है कि 28 फ़रवरी को एनडीए से अलग होने और कांग्रेस संग गठबंधन का औपचारिक ऐलान हो सकता है. अपना दल संरक्षक अनुप्रिया पटेल ने 28 फ़रवरी को पार्टी की अहम बैठक बुलाई है. इस बैठक में कांग्रेस संग गठबंधन और एनडीए से अलग होने का फैसला लिया जाएगा. हालांकि प्रियंका से मुलाकात को लेकर किसी भी तरह की टिप्पणी से इनकार करने वाले आशीष पटेल ने कहा कि हमारी नहीं सुनी गई, अब हम निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं. उन्होंने कहा कि गठबंधन धर्म इमानदारी से निभाने के बावजूद हमारी नहीं सुनी गई. हमें सम्मान तक के लायक नहीं समझा गया. अब हम निर्णय के लिए स्वतंत्र हैं.  उधर बरेली में अनुप्रिया पटेल ने केंद्र सरकार पर और बीजेपी पर जमकर निशाना साधा. अनुप्रिया पटेल ने कहा कि बीजेपी को सहयोगी दलों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं. अब अपना दल स्वतंत्र है अपना रास्ता चुनने के लिए. पार्टी की बठक में आगे की रणनीति तय होगी. 2014 के लोक सभा चुनाव में अपना दल को बीजेपी ने सात सीटें दी थीं. इनमें से दो सीट पर उसे जीत मिली थी जबकि पांच सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी.

अपना दल की नेता और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी बगावती तेवर दिखाना शुरू कर दिए हैं. दरअसल वाराणसी सीट पर कुर्मी वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं. वाराणसी की गिनती देश की सबसे वीवीआईपी सीटों में होती है. 2019 के आम चुनाव की सुगबुगाहट धीर-धीरे रफ्तार पकड़ रही है. ये चुनाव मोदी के लिए खासा महत्वपूर्ण है, क्योंकि साल 2014 में हुए आम चुनाव के नतीजे कई मायनों में ऐतिहासिक थे. राजनीतिक तौर पर देश के सबसे बड़े राज्य यूपी (उत्तर प्रदेश) में 80 लोकसभा सीटें हैं. पीएम नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी उनमें से एक है. यूपी के जातीय ब्लू प्रिंट पर नजर डालें तो पूर्वांचल और सेंट्रल यूपी के करीब 32 विधानसभा सीटें और आठ लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर कुर्मी, पटेल, वर्मा और कटियार मतदाता चुनाव में निर्णयाक भूमिका निभाते हैं. पूर्वांचल के कम से कम 16 जिलों में कहीं 8 तो कहीं 12 फ़ीसदी तक कुर्मी वोटर राजनीतिक समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं. आंकड़ों पर नजर डाले तो मौजूदा समय में अनुप्रिया पटेल की अपना दल उत्तर प्रदेश में कुर्मी (पटेल) जाति पर खास दबदबा रखती है. राज्य की प्रतापगढ़, फूलपुर, प्रयागराज (इलाहाबाद), गोंडा, बाराबंकी, बरेली, खीरी, धौरहरा, बस्ती, बांदा, मिर्जापुर और वाराणसी लोकसभा सीटों पर कुर्मियों का अच्छा-खासा प्रभाव है. पूर्वी और सेंट्रल यूपी की इन सीटों पर कुर्मी वोटरों की संख्या 8 से 12 प्रतिशत तक है, जो चुनाव नतीजों को मोड़ने के लिए अहम साबित हो सकते हैं. सिर्फ पटेल मतदाताओं की बात करें तो वो प्रयागराज, फूलपुर, प्रतापगढ़, बस्ती, मिर्जापुर और वाराणसी में चुनाव को प्रभावित करने की भूमिका में हैं. वर्तमान समय में अपना दल के पास दो सीटें हैं- मिर्जापुर (अनुप्रिया पटेल) और प्रतापगढ़ (कुमार हरिवंश सिंह),  इनके अलावा 9 विधानसभा सीटों पर भी उसका कब्जा है.

इन सीटों पर है दबदबा
अपना दल का वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही, इलाहाबाद, फूलपुर, चंदौली, प्रतापगढ़ और कौशाम्बी में खासी पकड़ मानी जाती है. अगर अपना दल अलग राह अख्तियार करती है तो बीजेपी के सामने चुनौती और बड़ी होगी. 2014 में अपना दल ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था और दो सीटों- मिर्जापुर और प्रतापगढ़ पर चुनाव लड़ा था. मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल जीती थीं और प्रतापगढ़ से कुंवर हरिवंश सिंह संसद पहुंचे थे. कहा जा रहा है कि इस बार अपना दल ने 10 सीटों की मांग की थी. इसमें फूलपुर, प्रयागराज समेत कई महत्वपूर्ण सीट शामिल है. वाराणसी सीट खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट है. अगर अपना दल ने बीजेपी का साथ नहीं दिया तो विपक्ष यहां पर मोदी को घेरने के लिए सारे दांव लगा देगा. चर्चा यहां तक है कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं. खबरें ये भी हैं कि उन्हें अखिलेश से दोस्ती का फायदा मिल सकता है और समाजवादी पार्टी उनको अपने गठबंधन का उम्मीदवार बना सकती है. आपको बता दें कि मोदी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था और दोनों सीटें जीत ली थीं.

पिछले चुनाव में अकेले उत्तर प्रदेश से 73 लोकसभा सीटें लेकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होने वाली बीजेपी के विजयरथ को दौड़ाने में और फिर प्रदेश की सत्ता प्रचंड बहुमत से पाने में दो पार्टियों का बड़ा हाथ रहा था। ये दोनों पार्टियाँ कुर्मी वोटों पर प्रभाव रखने वाला अपना दल और राजभर मतदाताओं पर असर रखने वाली ओमप्रकाश राजभर की भारतीय समाज पार्टी थी। राजभर से समझौता विधानसभा चुनावों के समय में हुआ था तो अपना दल बीते पाँच साल से बीजेपी के साथ है। दोनों सहयोगी दलों की नाराज़गी योगी सरकार से कुछ दिनों से चल रही है। हाल ही में कुंभ में हुई योगी कैबिनेट की बैठक में भी ये दोनों दल नहीं गए थे। राजभर आए दिन बीजेपी के ख़िलाफ़ बयान देकर अपनी नाराज़गी जताते रहे हैं। वहीं अनुप्रिया पटेल अपनी पार्टी के दूसरे धड़े जिसका नेतृत्व उनकी मां कृष्णा पटेल व बहन पल्लवी पटेल कर रही हैं, के कांग्रेस महासचिव प्रियंका के साथ जाने की ख़बरों से विचलित हैं। कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि प्रियंका के यूपी में सक्रिय होने के बाद उनकी पार्टी शिवपाल यादव की प्रगतिशील लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और अपना दल कृष्णा पटेल ग्रुप के साथ तालमेल कर लोकसभा चुनाव लड़ने का ख़ाका खींच रही है।

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