ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो; हजारों लोगों को गंभीर बिमारियों से निजात दिलाकर मौत के मुंह से बाहर निकाल चुके उत्तराखण्ड की एक विलक्षण प्रतिभा – प्रदीप भंडारी

 दवायें शरीर के नाश का कारण #जिस तरह से नई नई बिमारियां पनप रही हैं उसे देखते हुए आने वाले समय में सबको गऊ मूत्र की तरफ लौटना होगा औ इसे अपनाना ही होगा। #संतों की सानिध्य में जुटाये गये ज्ञान की बदौलत आज प्रदीप भंडारी गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए मसीहा # प्रदीप भंडारी के उपचार की तकनीक को लेकर बड़े बड़े अस्पतालों चिकित्सक हैरान # र आज आम तौर पर ज्यादातर लोगों का लीवर ठीक नहीं है। जब लीवर किडनी, हार्ट, सभी सही ढंग से काम कर रहे हों तो दूध दही और इससे जुड़े सभी उत्पाद अमृत का काम करते हैं। जब ये तीनों ठीक से काम नहीं कर रहें हो तो दूध और उससे जुड़े उत्पाद शरीर में विष का काम करते हैं। इसीलिए उपचार के दौरान इनका परहेच कराया जाता है और जब शरीर में सब कुछ सामान्य हो जाता है तो इन्हें खाने की इजाजत दे दी जाती है। #हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष प्राप्ति का क्या मार्ग होगा? पार्वतीजी ने महादेव शिव से प्रश्न किया # मनुष्य का एक मास, पितरों का एक दिन रात। मनुष्य का एक वर्ष देवता का एक दिन रात। मनुष्य के 30 वर्ष देवता का एक मास। मनुष्य के 360 वर्ष देवता का एक वर्ष (दिव्य वर्ष)। मनुष्य के 432000 वर्ष। देवताओं के 1200 दिव्य वर्ष अर्थात एक कलियुग। # श्रीमद्भागवत के द्वादश स्कंध मेंकलयुग के धर्म के अंतर्गत श्रीशुकदेवजी परीक्षितजी से कहते हैं, ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा, त्यों-त्यों उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जाएगा।…अर्थात लोगों की आयु भी कम होती जाएगी जब कलिकाल बढ़ता चला जाएगा। आखिरी युग कलयुग (Kali Yuga) की शुरुआत हुुई, जो वर्तमान में चल रहा है। इस समय का तीर्थ गंगा है। माना जाता है कि इस काल में पाप का भाग 15 जबकि पुण्य का भाग 05 होगा/है। इस समय के चारों वर्ण अपने कर्म से रहित होंगे। # By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 — कलयुग तारक मन्त्र- राधे राधे

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार चार युग होते हैं- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। वर्तमान की बात करें, तो अभी कलियुग चल रहा है। माना जाता है कि इस युग में धर्म की हानि होती है और असुरी शक्तियों का बोलबाला रहता है। सिद्ध पुरुषों ने कलयुग के प्रकोप को कम करने के लिए भैरव भगवान की साधना को बेहद ज़रूरी माना है।

ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो;

श्री प्रदीप भण्डारी जी यशस्वी वैदय जी गौ मूत्र क्रांति आश्रम स्थान पावलगढ बैल पडाव निकट रामनगर जनपद नैनीताल में दुर्लभ और असाध्य बीमारियो का सफलतापूर्वक निदान कर मानव कल्याण के लिए रात दिन समर्पित है, उनका कहना है कि ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं। इस समाहार से बनने वाली उस औषधि या वस्तु से प्राणियों का कल्याण होता है। तंत्र तन तथा त्र शब्दों से मिल कर बना है। जो वस्तु इस तन की रक्षा करे उसे ही तंत्र कहते हैं।

परम आदरणीय प्रदीप भण्डारी यशस्वी वैद्य शिरोमणी
गौ मूत्र क्रान्ति आश्रम पता: निकट प्राथमिक विद्यालय, ग्राम पावल गढ़, बैलपड़ाव, राम नगर, जनपद नैनीताल, उत्तराखंड Mob 9410479832

डाॅक्टरों को भगवान का दूसरा रूप भी कहा गया है। जिंदगी बचाने वाले चिकित्सक कई बार कुछ ऐसा कर जाते हैं जो समाज में एक मिसाल बन जाती है। ऐसे ही एक धरती के भगवान वैद्य प्रदीप भंडारी लाईलाज बिमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए मसीहा बनकर सामने आये हैं। कैंसर जैसे गंभीर रोगियों को प्रदीप भंडारी गऊ मूत्र और जड़ी बूटियों के मिश्रण से बनने वाली ‘चमत्कारी दवा’ से नया जीवन दे चुके है। कई मरीजों को प्रदीप भंडारी ने मौत के मुंह से न सिर्फ बचाया बल्कि उन्हें सामान्य जीवन जीने लायक बनाकर उम्मीद की नई किरण जगाई हैं। एम्स और कई नामी गिरामी अस्पतालों से भी निराश होकर लौटे कई रोगी प्रदीप भंडारी की चैखट पर आकर ठीक हो चुके हैं। रामनगर निवासी प्रदीप भंडारी कोटाबाग ब्लाक के अंतर्गत पवलगढ़ गांव में पिछले नौ वर्ष से गऊ मूत्र क्रांति नाम से संस्थान चला रहे हैं। वैसे तो उनके इस संस्थान में हर मर्ज का ईलाज है लेकिन उनके पास ज्यादातर गंभीर रोगों से ग्रसित मरीज ही आते हैं। उन्होंने पिछले नौ वर्षों से गऊ मूत्र क्रांति नाम से अभियान छेड़ा है। इस अभियान के जरिये वैद्य प्रदीप भंडारी ने प्राचीन चिकित्सा पद्यति को पुनर्जीवित करने के साथ ही आयुर्वेद को एक नया आयाम दिया है। प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के गहन अध्ययन के बाद प्रदीप भंडारी गऊ मूत्र और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से बनाई जाने वाली दवाओं के माध्यम से कैंसर जैसे गंभीर रोगियों को भी ठीक कर देते हैं। एम्स और दिल्ली के बड़े बड़े अस्पतालों से निराश हो चुके कई मरीजों को भी वैद्य प्रदीप भंडारी अपनी चमत्कारी दवा से ठीक कर चुके हैं। उन्होंने पिछले नौ वर्षों में अनगिनत कैंसर रोगियों को नया जीवन दिया है। कैंसर के अलावा गठिया, शुगर, मिर्गी, थाईराईड, मोटापा, मस्तिष्क रोग, हैपेटाईटिस बी और सी सहित तमाम ऐसे असाध्य रोगों को वैद्य प्रदीप भंडारी ने जड़ से खत्म करके हजारों लोगों के जीवन में उम्मीद की नई किरण जगाई है। वैद्य प्रदीप भंडारी की चमत्कारी दवा कलयुग में संजीवनी बूटी से कम नहीं। उनके पास कई ऐसे मरीज आये जिन्हें बड़े बड़े हास्पिटलों के चिकित्सकों ने जवाब दे दिया था। ऐसे मरीजों को भी प्रदीप भंडारी ने कुछ ही दिनों के उपचार से ठीक कर दिया। दोनों किडनियां फेल होने के बाद, हफ्ते में तीन चार डायलिसिसि का सामना कर रहे कई मरीजों को सामान्य जीवन जीने लायक बनाकर प्रदीप भंडारी ने गऊ मूत्र क्रांति अभियान को उंचाईयों तक ले जाने का काम किया है। यही कारण है कि उनके संस्थान में रोजाना उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से भी बड़ी संख्या में मरीजों का तांता लगा रहता है। उनके पास आने वाले अधिकांश मरीज या तो गंभीर रोग से पीड़ित होते हैं या फिर वह अन्य दूसरे अस्पतालों से निराश हो जाते हैं।

योगिनी तंत्र मे वर्णन है कलयुग मे वैदिक मंत्र विष हीन सर्प के सामान हो जाएगा। ऐसा कलयुग में शुद्ध और अशुद्ध के बीच में कोई भेद भावः न रह जाने की वजह से होगा। कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के सामान होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा। महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा। तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा?

 प्रदीप भंडारी के कठिन परिश्रम और शोध के बाद उन्होंने ईलाज का जो नया तरीका ईजाद किया उसकी बदौलत आज हजारों लोगों को नया जीवन मिल चुका है। प्रदीप भंडारी की प्रारम्भिक शिक्षा रामनगर में ही हुई। रामनगर डिग्री कालेज से उन्होंने राजनीति शास्त्र से एमए किया। छात्र राजनीति के साथ साथ वह राज्य आंदोलनकारी भी रहे। इसके बाद कुछ समय उन्होंने दिल्ली में भी अध्ययन किया। बाद में वह कानून की पढ़ाई करने बनारस चले गये। लेकिन पिता का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण उन्हें कानून की पढ़ाई बीच में छोड़़नी पड़ी। बचपन से ही उनकी रूचि अध्यात्म, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद की तरफ थी। पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई बार अपने आस पास ऐसे लोगों को देखा जिनके परिवार में गंभीर रोगों के कारण घर तक बिक गये लेकिन इसके बावजूद मरीज की जान नहीं बच पाई। ऐसी घटनाओं ने प्रदीप भंडारी को प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के लिए प्रेरित किया और धीरे धीरे उनकी जिज्ञासा प्राकृतिक चिकित्सा की ओर बढ़ती चली गयी। छात्र राजनीति और राज्य आंदोलनकारी के रूप में सक्रिय भागीदारी के बावजूद उन्होंने राजनीति में जाने के बजाय चिकित्सा क्षेत्र में जाने का मन बनाया और घर छोड़कर शोध के लिए निकल पड़े। इसी बीच वह कुछ साधु संतों के संपर्क में आये और उत्तराखण्ड के कई तीर्थ स्थलों का भ्रमण किया। इन्हीं दिनों वे उत्तरकाशी में नेपाल के एक तपस्वी संत के संपर्क में आये। तपस्वी संत के संपर्क में आने के बाद ही प्रदीप भंडारी का जीवन पूरी तरह बदल गया। नेपाल के तपस्वी संत ने उन्हें प्राकृतिक चिकित्सा और अयुर्वेद के गूढ़ रहस्य बताये। प्रदीप भंडारी ने बताया कि उन्हें अचानक मिले ये संत बाल योगी थे। इनके साथ उन्होंने काफी समय बिताया। उन्होंने जो ज्ञान दिया वह आज लोगों का जीवन बचाने में काम आ रहा है। प्रदीप भंडारी ने बताया कि उन्हांने 17 वर्षाें तक पहाड़ों, हिमालयी क्षेत्रों की यात्रायें की और प्रकृति के रहस्यों को जाना। इसके साथ ही गऊ मूत्र के रहस्यों के बारे में भी बारीकी से जानकारी हासिल की। प्रदीप भंडारी कहते हैं कि आज वह जो कुछ भी हैं वह सब महान संतों के मार्गदर्शन और उनके आशीर्वाद से ही संभव हुआ है।
संतों की सानिध्य में जुटाये गये ज्ञान की बदौलत आज प्रदीप भंडारी गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए मसीहा बने हुए हैं। उन्हें लोग ईश्वर का रूप मानते हैं। लोग कहते हैं कि उनके पास ईलाज के लिए जो भी आता है और पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ उनकी दवा का सेवन परहेच के साथ करता है तो ऐसा रोगी मौत को भी मात दे देता है। लेकिन दवा के साथ परहेच की हिदायत पहले दी जाती है। वरना दवा सौ फीसदी काम नहीं करती। गऊ मूत्र और जड़ी बूटियों से बनी दवा के सेवन के दौरान दूध और उससे बने सभी उत्पादों के अलावा मांस, मदिरा, बादी भोजन, नीबू, आलू, चावल का भी परहेच करना होता है। मरीज को दवा लेने तक सुपाच्य भोजन ही करने की सलाह दी जाती है। इससे मरीज का रोग ठीक होने में जल्दी सार्थक परिणाम सामने आते हैं। वैद्य भंडारी के मुताबिक उपचार के दौरान सामान्य तौर पर 40 से 90 दिनों तक परहेच करना होता है। उसके बाद 95 प्रतिशत लोगों को परहेच बंद कर दिया जाता है। 

पार्वतीजी ने महादेव शिव से प्रश्न किया की हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष प्राप्ति का क्या मार्ग होगा?

उनके इस प्रश्न के उत्तर मे महादेव शिव ने उन्हे समझते हुए जो भी व्यक्त किया तंत्र उसी को कहते हैं। योगिनी तंत्र मे वर्णन है की कलयुग मे वैदिक मंत्र विष हीन सर्प के सामान हो जाएगा। ऐसा कलयुग में शुद्ध और अशुद्ध के बीच में कोई भेद भावः न रह जाने की वजह से होगा। कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के सामान होगी जो गंगा नदी के समीप
प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा। महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेतायुग में ही मिलेगा.
तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा?
इस पर शिव जी ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में.साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा।
परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्छा होनी चाहिए। तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है।
मंत्र: मंत्र एक सिद्धांत को कहते हैं। किसी भी आविष्कार को सफल बनाने के लिए एक सही मार्ग और सही नियमों की आवश्यकता होती है। मंत्र वही सिद्धांत है जो एक प्रयोग को सफल बनाने में तांत्रिक को मदद करता है। मंत्र द्वारा ही यह पता
चलता है की कौन से तंत्र को किस यन्त्र में समिलित कर के लक्ष्य तक पंहुचा जा सकता है। मंत्र के सिद्ध होने पर ही पूरा प्रयोग सफल होता है। जैसे क”ह्रीं क्रीं मे स्वाहा” एक सिद्ध मंत्र है। मंत्र मन तथा त्र शब्दों से मिल कर बना है। मंत्र में मन
का अर्थ है मनन करना अथवा ध्यानस्त होना तथा त्र का अर्थ है रक्षा। इस प्रकार मंत्र का अर्थ है ऐसा मनन करना जो मनन करने वाले की रक्षा कर सके। अर्थात मन्त्र के उच्चारण या मनन से मनुष्य की रक्षा होती है। तंत्र: श्रृष्टि में इश्वर ने हरेक समस्या का समाधान स्वयम दिया हुआ है। ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं। इस समाहार से बनने वाली उस औषधि या वस्तु से प्राणियों का कल्याण होता है। तंत्र तन तथा त्र शब्दों से मिल कर बना है। जो वस्तु इस तन की रक्षा करे उसे ही तंत्र कहते हैं। यन्त्र: मंत्र और तंत्र को यदि सही से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है। पर तंत्र के रसायनों को एक उचित पात्र को आवश्यकता होती है। ताकि साधारण मनुष्य उस पात्र को आसानी से अपने पास रख सके या उसका प्रयोग कर सके। इस पात्र या साधन को ही यन्त्र कहते हैं। एक ऐसा पात्र जो तंत्र और मन्त्र को अपने
में समिलित कर के आसानी से प्राणियों के कष्ट दूर करे वही यन्त्र है। हवन कुंड को सबसे श्रेष्ठ यन्त्र मन गया है। आसन, तलिस्मान, ताबीज इत्यादि भी यंत्र माने जाते है। कई प्रकार को आकृति को भी यन्त्र मन गया है। जैसे श्री यन्त्र, काली यन्त्र, महामृतुन्जय यन्त्र इत्यादि। यन्त्र शब्द यं तथा त्र के मिलाप से बना है। यं को पुर्व में यम यानी काल कहा जाता था। इसलिए जो यम से हमारी रक्षा करे उसे ही यन्त्र कहा जाता है। इसलिए एक सफल तांत्रिक साधक को मंत्र, तंत्र और यन्त्र का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। विज्ञानं के प्रयोगों जैसे ही यदि तीनो में से किसी की भी मात्रा या प्रकार ग़लत हुई तो सफलता नही मिलेगी।

इस पर शिव जी ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा। परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्षा होनी चाहिए। तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है

कलयुग (Kali Yuga) के दोष और बचाव…
लोभइ ओढ़न लोभइ डासन। सिस्नोदर पर जमपुर त्रास न॥
काहू की जौं सुनहिं बड़ाई। स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई॥1॥
भावार्थ
लोभ ही उनका ओढ़ना और लोभ ही बिछौना होता है (अर्थात्‌ लोभ ही से वे सदा घिरे हुए रहते हैं)। वे पशुओं के समान आहार और मैथुन के ही परायण होते हैं, उन्हें यमपुर का भय नहीं लगता। यदि किसी की बड़ाई सुन पाते हैं, तो वे ऐसी (दुःखभरी) सांस लेते हैं मानों उन्हें जूड़ी आ गई हो॥1॥

जब काहू कै देखहिं बिपती। सुखी भए मानहुँ जग नृपती॥
स्वारथ रत परिवार बिरोधी। लंपट काम लोभ अति क्रोधी॥2॥
भावार्थ
और जब किसी की विपत्ति देखते हैं, तब ऐसे सुखी होते हैं मानो जगत् भर के राजा हो गए हों। वे स्वार्थपरायण, परिवार वालों के विरोधी, काम और लोभ के कारण लंपट और अत्यंत

मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं। आपु गए अरु घालहिं आनहिं॥
करहिं मोह बस द्रोह परावा। संत संग हरि कथा न भावा॥3॥
भावार्थ
वे माता, पिता, गुरु और ब्राह्मण किसी को नहीं मानते। आप तो नष्ट हुए ही रहते हैं, (साथ ही अपने संग से) दूसरों को भी नष्ट करते हैं। मोहवश दूसरों से द्रोह करते हैं। उन्हें न संतों का संग अच्छा लगता है, न भगवान की कथा ही सुहाती है॥3

यह दवा असाध्य रोगों के लिए संजीवनी का काम करती है

वैद्य प्रदीप भंडारी ने गऊ मूत्र क्रांति के गूढ़ रहस्यों का पता लगाकर असंख्य लोगों को इसके दम पर लाईलाज रोगों से निजात दिलाई है। गऊ मूत्र के गुणों के बारे में वैद्य भंडारी ने बताया कि उनकी दवाओं का बेस गऊ मूत्र ही है। क्यों कि अकेले किसी भी वनस्पति में इतनी ताकत नहीं जितनी अकेले गऊ मूत्र में हैं। बगैर गऊ मूत्र को बेस बनाये कोई भी वनस्पति अपना बेहतर फल नहीं दे पाती। गऊ मूत्र में कुछ ऐसी चीजें मिलाई जाती हैं जिससे वात कफ और पित्त का बैलेंस बना रहे। वैद्य भंडारी ने कहा कि गऊ मूत्र में अमोनिया होता है। उसमें से अमोनिया को हटाकर अर्क तैयार किया जाता है। उसके बाद उसमें ऐसी जड़ी बूटियां मिलाई जाती हैं जिससे उसके फल में कई गुना वृद्धा हो जाती है और यह दवा असाध्य रोगों के लिए संजीवनी का काम करती है। किडनी कैंसर, मोटापा, शुगर, बीपी, लीवर के गंभीर रोग, अनिद्रा, मस्तिष्क, हार्ट डिजिज में गऊ मूत्र से तैयार औषधि राम बाण का काम करती है। वैद्य प्रदीप भडारी ने बताया कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं। गऊ मूत्र से निर्मित दवा से जो चमत्कारिक परिणाम आये हैं वह सबके सामने हैं। उन्होंने गऊ मूत्र से ही कई ऐसे मरीजों को स्वस्थ करके दिखाया है जिन्हें अस्पतालों ने कह दिया था कि इनका समय पूरा हो चुका है। आज ऐसे लोग जीवित हैं और सामान्य जीवन जी रहे हैं। गऊ मूत्र में भी पहाड़ी गाय के गौ मूत्र को वैद्य भंडारी सबसे विशिष्ट बताते हैं। उनका कहना है कि पहाड़ों की गाय की नस्ल छोटी होती है वह कम खाती है और जंगल में खुद चरती है, बहता हुआ पानी पीती है। ऐसी गाय के गौ मूत्र के परिणाम असाधारण होते हैं। उन्होंने बताया कि बाजारों में प्लास्टिक की बोतलों में मिलने वाला गौ मूत्र रोगों के उपचार की दृष्टि से गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।

प्रदीप भंडारी के उपचार की तकनीक को लेकर बड़े बड़े अस्पतालों चिकित्सक हैरान

प्रदीप भंडारी के उपचार की तकनीक को लेकर बड़े बड़े अस्पतालों चिकित्सक हैरान हैं। जिन मरीजों को तत्काल आप्रेशन की सलाह दी गयी थी ऐसे मरीजों ने जब प्रदीप भंडारी की चमत्कारी दवा की खुराक कुछ ही दिन ली तो न सिर्फ उनका आप्रेशन टल गया बल्कि रोग भी जड़ से समाप्त हो गया। ऐसे मरीज जब दुबारा रिपोर्ट लेकर हास्पिटलों में पहुंचे तो चिकित्सक रिपोर्ट देखकर हैरान हो गये। प्रदीप भंडारी के उपचार की तकनीक से प्रभावित होकर दिल्ली के कई बड़े अस्पतालों के बड़े बड़े चिकित्सक उनसे उपचार की तकनीक जानने पवलगढ़ में उनके गऊ मूत्र क्रांति संस्थान आ चुके हैं। हैरान चिकित्सक जानना चाहते हैं कि आखिर क्या तकनीक है जो असाध्य रोग भी कुछ दिनों या महीनों में जड़ से ठीक हो जाते हैं। इस बारे में वैद्य भंडारी ने कहा कि यह सब मेडिकल साइंस पढ़ने वालों की सोच से परे हैं, इसे समझने के लिए अहंकार की भावना को पूरी तरह खत्म करना होगा। इसको समझने के लिए भारतीय आध्यात्म को समझना पड़ेगा, भारतीय दर्शन और ऋषि मुनियों को समझना पड़ेगा। तब इसका परिणाम सार्थक होगा। वैद्य भंडारी ने कहा कि आयुर्वेद को समझने के लिए पहले अध्यात्म को समझना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि ईश्वर के प्रति अटूट आस्था के बिना यह सब संभव नहीं।

दीप भंडारी का कहना है कि वह नोटों से तिजोरी नहीं भरना चाहते बल्कि इस बात पर विश्वास करते हैं कि जो देने लायक है उससे ईलाज का जायज पैसा लें और जो नहीं देने लायक है उसका निःशुल्क उपचार करें। पिछले नौ वर्षों से वह गरीब जरूरतमंदों का ईलाज मुफ्त करते आ रहे हैं। आगे भी उनका यह प्रयास जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि भविष्य मे आर्थिक स्थिति ठीक रही तो अनाथ, विकलांग, विधवाएं या धन के अभाव में ईलाज नहीं करा पाने वाले लोगों के लिए खुले दिल से काम करेंगे। जहां तक भी उनकी पहुंच होगी। वहां पर जो भी जरूरतमंद लोग होंगे उनकी मदद का प्रयास किया जायेगा। उनका प्रयास है कि भविष्य में एक ऐसा आश्रम स्थापित करें जिसमें रोगियों को आवास की सुविधा भी मिले उन्हें प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग के माध्यम से जल्द से जल्द ठीक किया जाये।

वैद्य भंडारी ने कहा कि रोग छोटा हो या बड़ा उनकी दवा भी पचास प्रतिशत ही असर करती हैं। पचास प्रतिशत काम अपने शरीर पर खुद ही करना होता है यानि खान पान में बदलाव और दिन चर्या में बदलाव करके। शरीर को इतना क्रियाशील बनायें कि भूख अपने आप लगे। सेहत के लिए शाकाहार सबसे बेहतर है। मांसाहारी प्रवृत्ति शरीर के लिए आगे चलकर खतरनाक साबित होती है। कोरोना फैलने की वजह भी मांसाहार ही है। कई विशेषज्ञ भी इस बात का दावा कर चुके हैं कि मांसाहार लेने वाले लोगों में कोरोना का खतरा अधिक है। सुपाच्य भोजन शरीर को उर्जा देने का काम करता हैं क्यों कि सुपाच्य भोजन को पचाने में शरीर की उर्जा अधिक खर्च नहीं होती और यह बची हुई उर्जा शरीर को स्वस्थ करने में काम आती है। सुपाच्य भोजन नहीं करने पर शरीर की अधिक से अधिक उर्जा भोजन को पचाने में ही लग जाती है। जिसके चलते शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले वायरस शरीर से बाहर नहीं निकल पाते। वैद्य भंडारी ने कहा कि स्वस्थ जीवन जीना है तो लोगों को शाकाहार और योग की तरफ लौटना ही पड़ेगा। क्यों कि शरीर जितना प्रकृति से जुड़ा रहेगा उतना ही दीर्घायु जीवन होगा। कोरोना से बचाव के लिए इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए वैद्य भंडारी ने टिप्स देते हुए कहा कि सौंठ, हल्दी, शहद और गऊ मूत्र का सही मात्रा में उपयोग करके इम्यूनिटी को बहुत बेहतर बनाया जा सकता है। बशर्ते गऊ मूत्र सही हो। बाजार में प्लास्टिक की बोतल में मिलने वाला गऊ मूत्र उपयोग के लायक नहीं होता। इसके शरीर पर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसके अलावा गऊ मूत्र का पूरा लाभ लेने के लिए इसमें से अमोनिया को बाहर करना भी जरूरी है तभी यह शरीर को पूरा लाभ देता है। गऊ मूत्र को कांच, चीनी मिट्टी या मिट्टी के बर्तन में ही रखा जाना चाहिए।

गौमूत्र की मदद से असाध्य रोगों का ईलाज कर रहे प्रदीप भंडारी का चमत्कारी नुस्खा असाध्य रोगों से पीड़ित लोगों को नई उमंग दे रहा है। उनके द्वारा पिछले कुछ समय में अनगिनत ऐसे लोगों बिमारी से छुटकारा दिलाया गया जो जिंदगी की उम्मीद छोड़ चुके थे। उमरी कला निवासी अब्दुल हसन के मुताबिक गंभीर रोग के कारण उनके गले की आवाज पूरी तरह बंद हो चुकी थी। उन्होंने कई चिकित्सकों से उपचार कराया लेकिन लाभ नहीं हुआ। वैद्य प्रदीप भंडारी की दवा से एक माह के भीतर ही उनकी आवाज खुल गयी और वह सामान्य जीवन व्यतीत करने लगे।
इसी तरह सरिता नाम की एक महिला 19 वर्ष से लीवर की समस्या से परेशान थी। दिल्ली के कई अस्पालों में उपचार कराया। लेकिन समस्या बढ़ती गयी। डाक्टर बताते थे कि लीवर में सूजन है सब कुछ किया लेकिन दर्द नहीं जाता था। एक साल से वह बिल्कुल बैड पर थी और खाने के नाम पर उन्हें सिर्फ लिक्विड दिया जाता था। वैद्य प्रदीप भंडारी की दवा से वह कुछ दिनों में ही ठीक होने लगी और अब पूरी तरह स्वस्थ हैं।

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