वित्त मंत्री के व्यवहार में आया बदलाव
#अनहोनी की आशंका #एक फरवरी को बजट #जेटली को पिछले एक महीने में एक भी बार मुस्कुराते हुए नहीं देखा # चीनी पर सब्सिडी वापस ले सकती है#चीनी बेचने की पूरी लागत राज्यों को स्वयं उठानी पड सकती है #
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खाद्य मंत्रालय ने पहले ही राज्यों को इस बारे में संकेत दे दिये हैं कि केन्द्र सरकार अगले वित्त वर्ष से चीनी पर सब्सिडी वापस ले सकती है। राशन दुकानों के जरिये चीनी बेचने की पूरी लागत राज्यों को स्वयं उठानी पड सकती है। वही कयास लगाये गये हैं कि वित्त मंत्री अरुण जेटली को पिछले एक महीने में एक भी बार मुस्कुराते हुए नहीं देखा गया है। पहले वो अक्सर अपने मोबाइल में व्हॉट्सएप मैसेज पढ-पढके मुस्कुराते रहते थे, लेकिन अब तो वो मोबाइल को जेब से भी नहीं निकालते। वही विगत एक महीने से गंभीर मुंह बना रक्खा है जेटली जी ने। न ही वो हलवा पार्टी के दिन मुस्कुरा रहे थे और ना ही २६ जनवरी को परेड के दौरान। अधिकांश बार उन्हें मुंह पिचकाकर चुपचाप बैठे हुए देखा गया है। वित्त मंत्री के व्यवहार में आए इस बदलाव से लोगों में किसी अनहोनी की आशंका बढ गई है। एक फरवरी को बजट आने वाला है और माना जा रहा है कि वो इस बजट में फिर से दो-चार सेस लगाने की तैयारी कर रहे हैं।
वित्त मंत्री अरुण जेटली आगामी बजट में राशन की दुकानों से सस्ती चीनी बेचने के लिये राज्यों को दी जाने वाली १८.५० रुपए प्रतिकिलो की सब्सिडी समाप्त कर सकते हैं। इससे करीब ४,५०० करोड रुपए की सब्सिडी बचेगी आशंका थी कि राज्य सरकारें सस्ती चीनी का अन्यत्र भी उपयोग कर सकतीं हैं। राज्य सरकारें राशन की दुकानों से चीनी की सरकार नियंत्रित मूल्य पर आपूर्ति करने के लिये खुले बाजार से थोक भाव पर चीनी खरीदतीं हैं और फिर इसे १३.५० रुपए किलो के सस्ते भाव पर बेचतीं हैं। दूसरी तरफ राज्यों को इसके लिये केन्द्र सरकार से १८.५० रुपए पति किलो के भाव पर सब्सिडी दी जाती है।
नोटबंदी से मांग में कमी से जूझ रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली अगले सप्ताह पेश किये जाने वाले बजट में कर की दरें कम करके खपत को गति देने पर विचार कर सकते हैं। लेकिन उनके समक्ष २०१७-१८ में अप्रत्यक्ष कर संग्रह के अनुमान को लेकर एक अजीब समस्या है। जीएसटी के कारण इसका अनुमान लगाना मुश्किल होगा। सामान्य तौर पर वित्त मंत्री वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर संग्रह के अनुमान के आधार पर कल्याणकारी खर्च का ताना-बाना बुनते हैं। कर विशेषज्ञों के अनुसार प्रत्यक्ष कर (व्यक्तिगत और कंपनी कर) संग्रह का अनुमान उपलब्ध होगा लेकिन वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने की समयसीमा एक जुलाई तक टाले जाने से २०१७-१८ के लिये अप्रत्यक्ष कर संग्रह के बारे में कोई भरोसेमंद अनुमान उपलब्ध नहीं होगा। अप्रत्यक्ष कर में सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद कर और सेवा कर शामिल हैं। सीमा शुल्क राजस्व के बारे में अनुमान उपलब्ध होगा लेकिन उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर के मामले में यह मुश्किल है क्योंकि ये दोनों कर जीएसटी में समाहित होंगे। जीएसटी राज्य वैट को भी स्वयं में समाहित करेगा। मोटे तौर पर उत्पाद शुल्क, सेवा कर तथा वैट के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) शामिल होने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जीएसटी राजस्व में केंद्र की हिस्सेदारी आधी होगी और वित्त मंत्री अपना बजट उस आधार पर तैयार कर सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार लेकिन इस साल कुछ अलग है। जीएसटी परिषद को अभी यह निर्णय करना है कि कौन से उत्पाद या सेवा पर किस दर से कर लगेगा, ऐसे में जीएसटी राजस्व का सटीक अनुमान उपलब्ध नहीं होगा।
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