इन्होने की थी अटल जी के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी
16 August 2018 वाजपेयी वेंटिलेटर पर हैं और ताजा मिली जानकारी के अनुसार उनकी तबीयत बिगड़ती ही जा रही है. 93 वर्षीय वाजपेयी शुगर से पीड़ित हैं और उनकी एक ही किडनी काम करती है.
Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तबीयत पिछले 36 घंटों से नाजुक बनी हुई है. उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया है. उनका एम्स में डॉ. रणदीप गुलेरिया की निगरानी में इलाज हो रहा है, जो एम्स के निदेशक भी हैं। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने एक बयान जारी कर यह जानकारी दी. एम्स की ओर से गुरुवार को भी मेडिकल बुलेटिन जारी किया गया. एम्स के मुताबिक उनकी हालत अभी भी नाजुक बन गई है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हालत गुरुवार को भी नाजुक बनी हुई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जल्द ही उनके स्वास्थ्य को लेकर बुलेटिन जारी कर सकता है। वह पिछले नौ सप्ताह से एम्स में भर्ती हैं। गुरुवार को उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू भी वाजपेयी (93) का हालचाल जानने के लिए एम्स पहुंचे। नायडू सुबह 6.30 बजे एम्स पहुंचे जबकि अमित शाह सुबह 8.30 बजे एम्स पहुंचे। इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी.नड्डा एम्स पहुंचे।
वाजपेयी को गुर्दा (किडनी) नली में संक्रमण, छाती में जकड़न, मूत्रनली में संक्रमण आदि के बाद 11 जून को एम्स में भर्ती कराया गया था.एम्स ने एक बयान में कहा, ‘‘दुर्भाग्यवश, पिछले 24 घंटों में उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गई है. उनकी हालत नाजुक है और वह जीवन रक्षक प्रणाली पर हैं.’’
भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती है. उनकी हालत नाजुक बताई जा रही है. 93 साल के वाजपेयी लंबे वक्त से बीमार हैं और 2009 से व्हीलचेयर पर हैं.
वाजपेयी एम्स के कार्डियो थोरेसिक सेंटर के गहन चिकित्सा कक्ष में हैं. किडनी में संक्रमण, छाती में संकुलन और पेशाब कम होने के चलते 93 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता वाजपेयी को बीते 11 जून को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी डिमेंशिया नाम की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और 2009 से ही व्हीलचेयर पर हैं. कुछ समय पहले भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. अटल बिहारी वायपेयी 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लखनऊ से लोकसभा सदस्य चुने गए थे. वो बतौर प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूर्ण करने वाले पहले और अभी तक एकमात्र गैर-कांग्रेसी नेता हैं. 25 दिसंबर, 1924 में जन्मे वाजपेयी ने भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए 1942 में भारतीय राजनीति में कदम रखा था.
इन्होने की थी अटल जी के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के एक ऐसे शख्श हैं जिनको विपक्ष भी अपना आदर्श मानता है। अटल बिहारी उन नेताओं में शामिल हैं जिनको विपक्ष भी बेहद प्यार करता है। कांग्रेस के साथ अटल की सरकार के संबंध बेहतर रहे हैं। और ये आज से नहीं बल्कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और देश की पहली महिला पीएम इंदिरा गांधी के समय से रहा। भारतीय जनता पार्टी के सबसे लोकप्रिय और दिग्गज नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी की जगह कोई नहीं ले सकता है। इनके भाषण का अंदाज, बात करने का तेंवर और मधुर भाषा हर कोई को इनकी ओर खींच लेता। यही अंदाज रहा कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू संसद में वाजपेयी का भाषण का सुनकर इतने प्रभावित हुए कि उनके प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी कर दी। और ये बात सच साबित हुई।
अटल बिहारी विपक्ष के कामों की तारीफ करने से भी पीछे नहीं हटते थे। 1971 के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजयश्री के साथ बांग्लादेश को आजाद करा कर पाक के 93 हजार सैनिकों को घुटना टेंकने को विवश किया। इस विजय के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी को अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में दुर्गा की उपमा से सम्मानित किया था। तो संसद तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी अटल बिहारी के कार्यकाल की कायल रही हैं। वे हमेशा अटल सरकार की सराहना करती हैं। हाल ही में उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान संसद ने ज्यादा सकारात्मक तरीक से काम किया था।
वायपेयी को हेमा मालिनी की फिल्म सीता और गीता काफी पसंदराजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले अटल बिहारी वायपेयी फिल्हाल दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती हैं। लेकिन उन्होंने न सिर्फ राजनिति में अपने को साबित किया बल्कि साहित, कविताओं के सागर में भी गोते लगाए हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फिल्म देखने का भी शौक था। अटल बिहारी वाजपेयी को अभिनेत्री हेमा मालिनी की एक फिल्म इतनी भा गई कि उन्होंने हेमा मालिनी की फिल्म को 25 बार देखा। अटल बिहारी वायपेयी को हेमा मालिनी की फिल्म सीता और गीता काफी पसंद आई। इस फिल्म में हेमा मालिनी ने सीता और गीता दोनों का किरदार प्ले किया था। इसी कारण उन्हें यह फिल्म पसंद आई। हेमा मालिनी अभी यूपी के मथुरा से भाजपा सांसद हैं।
वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने इंटरव्यू के दौरान अटल बिहारी से कन्युनिस्ट वाली बात को लेकर सवाल किया था तो उन्होंने साफ तौर पर कहा था किएक बालक के नाते मैं आर्यकुमार सभा का सदस्य बना। इसके कुछ समय बाद मैं आरएसएस के संपर्क में आया था। आगे वे कहते हैं कि कम्युनिज्म को मैंने एक विचारधारा के रूप में पढ़ा और इससे सीखा है। मैं अधिकारिक रूप से कभी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं रहा लेकिन छात्र आंदोलन में मेरी हमेशा रुचि थी क्योंकि कम्युनिस्ट एक ऐसी पार्टी थी जो छात्रों को संगठित करके आगे बढ़ती थी। इसलिए छात्र जीवन में उनके के संपर्क में आया और कॉलेज की छात्र राजनीति में भाग लिया। जत शर्मा ने सवाल पूछा था कि अटल जी, आपके नाम में विरोधांतर है। जो अटल है वह बिहारी कैसे हो सकता है? इसके जवाब में अटल बिहारी वाजपेयी मुस्कुराते हुए कहा था कि मैं अटल भी हूं और बिहारी भी हूं। जहां अटल होने की आवश्यकता है वहां अटल हूं और जहां बिहारी होने की जरुरत है वहां बिहारी भी हूं। मुझे दोनों में कोई अंतर्विरोध दिखाई नहीं देता।
वाजपेयी और राजकुमारी कौल के बीच संबंधों को लेकर राजनीतिक में खूब चर्चा रही
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी कौल के बीच संबंधों को लेकर राजनीतिक में खूब चर्चा रही। दक्षिण भारत के पत्रकार गिरीश निकम ने एक इंटरव्यू में अटल और श्रीमती कौल को लेकर कुछ बातें बताई। उनका कहना था कि वह जब भी अटलजी के निवास पर फोन करते तो मिसेज कौल फोन उठाया करती थीं। एक बार कौल ने कहा, “मैं मिसेज कौल, राजकुमारी कौल हूं। वाजपेयी जी और मैं लंबे समय से दोस्त रहे हैं। 40 से अधिक सालों से।” मीडिया रिपोर्ट की मानें तो पता चलता है कि अटल बिहारी वाजपेयी का प्रेम संबंध नहीं बल्कि दोस्ती का रिश्ता रहा
इस मौके पर पेश हैं, उनकी चुनिंदा कविताएं.
मौत से ठन गई ; ठन गई मौत से ठन गई.
जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है
पार पाने का क़ायम मगर हौसला, देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई
मौत से ठन गई ; ठन गई मौत से ठन गई.
25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ. अटल के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी हैं. अटल बिहारी वाजपेयी ने 90 के दशक में बीजेपी को स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाई. यह वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही कमाल था कि बीजेपी के साथ उस समय नए सहयोगी दल जुड़ते गए, वो भी तब जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणपंथी झुकाव के कारण उस जमाने में बीजेपी को राजनीतिक रूप से अछूत माना जाता था. वह पहली बार 1957 में संसद सदस्य चुने गए थे. साल 1950 के दशक की शुरुआत में आरएसएस की पत्रिका को चलाने के लिए वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई बीच में छोड़ दी. बाद में उन्होंने आरएसएस में अपनी राजनीतिक जड़ें जमाईं और बीजेपी की उदारवादी आवाज बनकर उभरे.
राजनीति में वाजपेयी की शुरुआत 1942-45 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई थी. उन्होंने कम्युनिस्ट के रूप में शुरुआत की, लेकिन हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता के लिए साम्यवाद को छोड़ दिया. ब्रिटिश औपनिवेशक शासन का विरोध करने के लिए किशोरावस्था में वाजपेयी कुछ समय के लिए जेल गए लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कोई मुख्य भूमिका अदा नहीं की. अटल बिहारी वाजपेयी 1951 से भारतीय राजनीति का हिस्सा बने. उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे. इसके बाद 1957 में वह सांसद बनें. अटल बिहारी वाजपेयी कुल 10 बार लोकसभा के सांसद रहे. वहीं वह दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहें. इस दौरान अटल ने उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली और मध्य प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते. वहीं वह गुजरात से राज्यसभा पहुंचे थे.
अपनी भाषणकला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत व पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है. इन्हीं कदमों के कारण ही वह बीजेपी के राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं. बीजेपी के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन संख्याबल नहीं होने से उनकी सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई. आंकड़ों ने एक बार फिर वाजपेयी के साथ लुका-छिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरुआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई.
अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की बीजेपी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने की पृष्ठभूमि में वाजपेयी सरकार धराशायी हो गई. लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. गठबंधन राजनीति की मजबूरी के कारण बीजेपी को अपने मूल मुद्दों को पीछे रखना पड़ा. इन्हीं मजबूरियों के चलते जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे उसके चिरप्रतीक्षित मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए.
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर जवाहरलाल नेहरू की शैली और स्तर के नेता के रूप में सम्मान पाने वाले वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में 1998-99 का कार्यकाल साहसिक और दृढ़निश्चयी फैसलों के साल के रूप में जाना जाता है.
11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर अटल बिहारी वाजपेयी ने सभी को चौंका दिया. यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था. इससे पहले 1974 में पोखरण 1 का परीक्षण किया गया था. दुनिया के कई संपन्न देशों के विरोध के बावजूद अटल सरकार ने इस परीक्षण को अंजाम दिया, जिसके बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह की रोक भी लगा दी थी जिसके बावजूद अटल सरकार ने देश की जीडीपी में बढ़ोतरी की. पोखरण का परीक्षण अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे बड़े फैसलों में से एक है.
1977 में मोरार जी देसाई की सरकार में अटल विदेश मंत्री थे, वह तब पहले गैर कांग्रेसी विदेश मंत्री बनें थे. इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया था और दुनियाभर में हिंदी भाषा को पहचान दिलाई, हिंदी में भाषण देने वाले अटल भारत के पहले विदेश मंत्री थे.
वाजपेयी के करीबी लोगों का कहना है कि उनका मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था और इसके बीज उन्होंने 70 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही बोए थे. लाहौर शांति प्रयासों के विफल रहने के बाद वर्ष 2001 में वाजपेयी ने जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर वार्ता की एक और पहल की, लेकिन वह भी मकसद हासिल करने में सफल नहीं रही.
छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की घटना वाजपेयी के लिए इस बात की अग्निपरीक्षा थी कि धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर वह कहां खड़े हैं. उस समय वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे. वाजपेयी ने अनेक बीजेपी नेताओं के रुख के विपरीत स्पष्ट शब्दों में इसकी निंदा की थी. उनकी निजी निष्ठा पर कभी गंभीर सवाल नहीं उठाये गए. वाजपेयी एक जाने माने कवि भी हैं और उनके पार्टी सहयोगी अक्सर उनकी रचनाओं को उद्धृत करते हैं.
अटल जी नए एक बार संसद में कहा था ‘हमने तपस्या की है, हम लोगों के बीच गए हैं। ये आकस्मिक नहीं हुआ, हमारी पार्टी कुकुरमुत्ते की उगने वाली पार्टी नहीं है। आप हम पर हंस रहे हैं, एक दिन पूरी दुनिया आप पर हंसेगी।’ ये वचन उनके बिल्कुल सच निकले।
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