6 OCT. अयोध्याकांड ; पर्वतीय रामलीला धर्मपुर देदून
अयोध्याकांड में श्रीराम वनगमन से लेकर श्रीराम-भरत मिलाप तक के घटनाक्रम आते हैं। नीचे अयोध्याकांड से जुड़े मुख्य घटनाक्रम इस प्रकार है। वही पर्वतीय रामलीला कमेटी धर्मपुर देहरादून द्वारा आयोजित श्रीराम लीला में 6 अक्टूबर को पंचम दिन- गंगा तट, केवट संवाद, सुमन्त विलाप, दशरथ मरण, भरत विलाप आदि की लीला का मंचन किया जायेगा- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल के लिए चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक द्वारा प्रस्तुति www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
वही रामचरित मानस में पूर्ण विवरण के अनुसार अयोध्याकांड में –
• मंगलाचरण
• राम राज्याभिषेक की तैयारी, देवताओं की व्याकुलता तथा सरस्वती से उनकी प्रार्थना
• सरस्वती का मन्थरा की बुद्धि फेरना, कैकेयी-मन्थरा संवाद, प्रजा में खुशी
• कैकेयी का कोपभवन में जाना
• दशरथ-कैकेयी संवाद और दशरथ शोक, सुमन्त्र का महल में जाना और वहाँ से लौटकर श्री रामजी को महल में भेजना
• श्री राम-कैकेयी संवाद
• श्री राम-दशरथ संवाद, अवधवासियों का विषाद, कैकेयी को समझाना
• श्री राम-कौसल्या संवाद
• श्री सीता-राम संवाद
• श्री राम-कौसल्या-सीता संवाद
• श्री राम-लक्ष्मण संवाद
• श्री लक्ष्मण-सुमित्रा संवाद
• श्री रामजी, लक्ष्मणजी, सीताजी का महाराज दशरथ के पास विदा माँगने जाना, दशरथजी का सीताजी को समझाना
• श्री राम-सीता-लक्ष्मण का वन गमन और नगर निवासियों को सोए छोड़कर आगे बढ़ना
• श्री राम का श्रृंगवेरपुर पहुँचना, निषाद के द्वारा सेवा
• लक्ष्मण-निषाद संवाद, श्री राम-सीता से सुमन्त्र का संवाद, सुमंत्र का लौटना
• केवट का प्रेम और गंगा पार जाना
• प्रयाग पहुँचना, भरद्वाज संवाद, यमुनातीर निवासियों का प्रेम
• तापस प्रकरण
• यमुना को प्रणाम, वनवासियों का प्रेम
• श्री राम-वाल्मीकि संवाद
• चित्रकूट में निवास, कोल-भीलों के द्वारा सेवा
• सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना और सर्वत्र शोक देखना
• दशरथ-सुमन्त्र संवाद, दशरथ मरण
• मुनि वशिष्ठ का भरतजी को बुलाने के लिए दूत भेजना
• श्री भरत-शत्रुघ्न का आगमन और शोक
• भरत-कौसल्या संवाद और दशरथजी की अन्त्येष्टि क्रिया
• वशिष्ठ-भरत संवाद, श्री रामजी को लाने के लिए चित्रकूट जाने की तैयारी
• अयोध्यावासियों सहित श्री भरत-शत्रुघ्न आदि का वनगमन
• निषाद की शंका और सावधानी
• भरत-निषाद मिलन और संवाद और भरतजी का तथा नगरवासियों का प्रेम
• भरतजी का प्रयाग जाना और भरत-भरद्वाज संवाद
• भरद्वाज द्वारा भरत का सत्कार
• इंद्र-बृहस्पति संवाद
• भरतजी चित्रकूट के मार्ग में
• श्री सीताजी का स्वप्न, श्री रामजी को कोल-किरातों द्वारा भरतजी के आगमन की सूचना, रामजी का शोक, लक्ष्मणजी का क्रोध
• श्री रामजी का लक्ष्मणजी को समझाना एवं भरतजी की महिमा कहना
• भरतजी का मन्दाकिनी स्नान, चित्रकूट में पहुँचना, भरतादि सबका परस्पर मिलाप, पिता का शोक और श्राद्ध
• वनवासियों द्वारा भरतजी की मंडली का सत्कार, कैकेयी का पश्चाताप
• श्री वशिष्ठजी का भाषण
• श्री राम-भरतादि का संवाद
• जनकजी का पहुँचना, कोल किरातादि की भेंट, सबका परस्पर मिलाप
• कौसल्या सुनयना-संवाद, श्री सीताजी का शील
• जनक-सुनयना संवाद, भरतजी की महिमा
• जनक-वशिष्ठादि संवाद, इंद्र की चिंता, सरस्वती का इंद्र को समझाना
• श्री राम-भरत संवाद
• भरतजी का तीर्थ जल स्थापन तथा चित्रकूट भ्रमण
• श्री राम-भरत-संवाद, पादुका प्रदान, भरतजी की बिदाई
• भरतजी का अयोध्या लौटना, भरतजी द्वारा पादुका की स्थापना, नन्दिग्राम में निवास और श्री भरतजी के चरित्र श्रवण की महिमा
* यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा
शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्री शंकरः पातु माम्॥1॥
भावार्थ:-जिनकी गोद में हिमाचलसुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा, कंठ में हलाहल विष और वक्षःस्थल पर सर्पराज शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, संहारकर्ता (या भक्तों के पापनाशक), सर्वव्यापक, कल्याण रूप, चन्द्रमा के समान शुभ्रवर्ण श्री शंकरजी सदा मेरी रक्षा करें॥1॥
* प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥2॥
भावार्थ:-रघुकुल को आनंद देने वाले श्री रामचन्द्रजी के मुखारविंद की जो शोभा राज्याभिषेक से (राज्याभिषेक की बात सुनकर) न तो प्रसन्नता को प्राप्त हुई और न वनवास के दुःख से मलिन ही हुई, वह (मुखकमल की छबि) मेरे लिए सदा सुंदर मंगलों की देने वाली हो॥2॥
* नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥3॥
भावार्थ:-नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, श्री सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में (क्रमशः) अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्री रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥3॥
दोहा :
* श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
भावार्थ:-श्री गुरुजी के चरण कमलों की रज से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके मैं श्री रघुनाथजी के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फलों को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) देने वाला है।
चौपाई :
* जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी॥1॥
भावार्थ:-जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आए, तब से (अयोध्या में) नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥1॥
* रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥2॥
भावार्थ:-ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी सुहावनी नदियाँ उमड़-उमड़कर अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं। नगर के स्त्री-पुरुष अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं॥2॥
* कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥3॥
भावार्थ:-नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥3॥
* मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥4॥
भावार्थ:-सब माताएँ और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथ रूपी बेल को फली हुई देखकर आनंदित हैं। श्री रामचन्द्रजी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशरथजी बहुत ही आनंदित होते हैं॥4॥