डॉ अनामिका चौधरी(आयुर्वेदा एम. डी.) का आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए सराहनीय प्रयास
HIGH LIGHT# Himalayauk Bureau Report# आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए सहारनपुर रोड स्थित क्लीनक पर निःशुल्क स्वस्थ्य शिविर का आयोजन # डॉ अनामिका चौधरी(आयुर्वेदा एम. डी.) का आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए सराहनीय प्रयास # 45 रोगियों ने स्वस्थ्य सेवाओं का लाभ उठाया # जोड़ों के दर्द, स्त्री रोग और पाचन संबंधी रोगियों की संख्या # को पूर्णतः आयुर्वेदिक् पद्धत्ति द्वारा चिकित्सा ; डॉ अनामिका चौधरी # ऋतु अनुसार खान-पान के परहेज # डॉ अनामिका चौधरी(आयुर्वेदा एम. डी.) सहारनपुर रोड देहरादून निकट ओल्ड एसबीआई बिल्डिंग के पास प्रैक्टिस रत है, मो08171117711
देहरादून, हीलिंग ट्री ट्रस्ट और वैदिक हिमालया आयुर्वेदिक की डॉ अनामिका चौधरी(आयुर्वेदा एम. डी.) ने आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए सहारनपुर रोड स्थित क्लीनक पर निःशुल्क स्वस्थ्य शिविर का आयोजन किया।
इस शिविर की जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए संस्थाओं ने खूब प्रचार भी किये ।
इस शिविर में लगभग 45 रोगियों ने स्वस्थ्य सेवाओं का लाभ उठाया। इस शिविर में मुख्यतः जोड़ों के दर्द, स्त्री रोग और पाचन संबंधी रोगियों की संख्या अधिक रही।
शिविर में रोगियों को पूर्णतः आयुर्वेदिक् पद्धत्ति द्वारा चिकित्सा दी गई तथा साथ ही साथ ऋतु अनुसार खान-पान के परहेज के बारे में भी बताया गया ।
डॉ अनामिका चौधरी(आयुर्वेदा एम. डी.) का कहना है किआयुर्वेद विश्व में विद्यमान वह साहित्य है, जिसके अध्ययन पश्चात हम अपने ही जीवन शैली का विश्लेषण कर सकते है। आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेदः। अर्थात जो शास्त्र (विज्ञान) आयु (जीवन) का ज्ञान कराता है उसे आयुर्वेद कहते हैं। स्वस्थ व्यक्ति एवं आतुर (रोगी) के लिए उत्तम मार्ग बताने वाला विज्ञान को आयुर्वेद कहते हैं। अर्थात जिस शास्त्र में आयु शाखा (उम्र का विभाजन), आयु विद्या, आयुसूत्र, आयु ज्ञान, आयु लक्षण (प्राण होने के चिन्ह), आयु तंत्र (शारीरिक रचना शारीरिक क्रियाएं) – इन सम्पूर्ण विषयों की जानकारी मिलती है वह आयुर्वेद है।
डॉ अनामिका चौधरी(आयुर्वेदा एम. डी.) ने हिमालयायूके न्यूजपोर्टल को बताया कि
लगभग 5000 वर्ष पहले भारत
की पवित्र भूमि में शुरु हुई आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति लंबे जीवन का विज्ञान है और
दुनिया में स्वास्थ्य के देखभाल की सबसे पुरानी प्रणाली है जिसमें औषधि और दर्शन
शास्त्र दोनों के गंभीर विचारों शामिल हैं। प्राचीन काल से ही आयुर्वेद ने दुनिया
भर की मानव जाति के संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और
आध्यात्मिक विकास किया है । आज यह चिकित्सा की अनुपम और अभिन्न शाखा है, एक संपूर्ण प्राकृतिक प्रणाली है जो आपके शरीर का सही संतुलन
प्राप्त के लिए वात, पित्त और कफ सा नियंत्रित करने पर निर्भर
करती है।
केरल, आयुर्वेद की भूमि
केरल जिसने विदेशी और देशी दोनों प्रकार के अनेक आक्रमणों और
घुसपैठ का सामना किया है, का आयुर्वेद के साथ अटूट संबंध रहा है।
सैकड़ों वर्षों से केरल में हर तरह की बीमारी का इलाज करने के लिए लोग आयुर्वेद वैद्य
(आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में पारंपरिक अभ्यास करने वाले) ही निर्भर रहा करते थे।
वैद्यों के विख्यात आठ परिवार (अष्ट वैद्य) और उनके उत्तराधिकारियों ने सदियों से
इस राज्य में उपचार सेवा प्रदान की है। अन्य भारतीय राज्यों की तरह केरल में
आयुर्वेद ने केवल वैकल्पिक चिकित्सा नहीं बल्कि मुख्य चिकित्सा है। वास्तव में, आज केरल भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ आयुर्वेद चिकित्सा
प्रणाली को पूरे समर्पण के साथ अपनाया जाता है।
लोगों के इलाज के एकमात्र साधन के रूप में, केरल के वैद्यों को आयुर्वेद के सिद्धांतों का अर्थ निर्वचन
करना पड़ता था और रोज़मर्रा के जीवन में प्रभावी इलाज करने के लिए उन्हें सक्रिय
रूप से अपनाना पड़ता था। इस तरह, आयुर्वेद के लगभग सभी समकालीन प्रक्रियाएँ
और नियम केरल के इर्द-गिर्द घूमते हैं।
प्रकृति का वरदान
केरल की संतुलित जलवायु, वनों की स्वाभाविक
प्रचुरता और मानसून का ठंडा मौसम आयुर्वेद के उपचार करने वाले और कष्ट निवारण के
लिए बहुत उपयुक्त हैं। केरल शायद इस पृथ्वी के ऐसे कुछेक जगहों में एक है जहाँ
लगातार बारिश में भी तापमान 24 से 28 डिग्री तक बना
रहता है। हवा में और त्वचा में इतनी आर्द्रता के कारण प्राकृतिक दवाइयाँ अपनी पूरी
क्षमता के साथ काम करती हैं। इस राज्य में अनेक जड़ी बूटियाँ पाई जाती हैं और
कारगर इलाज की प्रकिया के लिए आवश्यक आयुर्वेदिक दवाइयाँ लगातार उपलब्ध रहती हैं।
हर मौसम में समान क्षमता की समान जड़ी-बूटियाँ हर वर्ष उपलब्ध रहती हैं। विभिन्न
जगहों की अलग अलग मिटिटी की तुलना में मिट्टी की अल्कालाएट मात्रा अनेक आयुर्वेदिक
दवाइयों के गुणधर्म और क्षमता को बढ़ती है।
केरल के आयुर्वेदिक इलाज के फायदे
अष्टांगह्रदयम जो आयुर्वेद का व्यावहारिक और आसान अर्थ निर्वचन
है जिसे महान संत वाग्बटा द्वारा समेकित किया गया है, का दुनिया में कहीं भी इतना इस्तेमाल नहीं किया जाता है जितना
केरल में किया जाता है। केरल के वैद्य आयुर्वेद के इस सर्वाधिक समकालीन इलाज में
दक्ष होते हैं और अनेक विद्वान मानते हैं कि इन वैद्यों ने आयुर्वेद के अग्रणी
विशेषज्ञ चरक और सुश्रुत द्वारा किए गए कार्य को आगे बढ़ाया है। केरल में ही कषाय
चिकित्सा (काढ़े द्वारा उपचार) का मानकीकरण किया गया जिसमें हज़ारों कषायम को
वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किया जाता है और इलाज की ज़रूरतों के अनुसार तैयार किया
जाता है। केरल के वैद्यों ने ही पहली बार अभयंगम के एन्टी ऑक्सीडेंट गुणधर्मों पर
ध्यान दिया जिसके कारण किझी अधिक होता है। दुनिया की किसी भी जगह की तुलना में
केरल के आयुर्वेद कॉलेजों की संख्या और इस पद्धति की प्रैक्टिस करने वाले लोग यहाँ
सबसे अधिक हैं जिसके कारण यहाँ वैज्ञानिक विधि से आयुर्वेदिक अनुसंधान करने की
परंपरा बनी।
जीवन शैली के रूप में आयुर्वेद
केरल में आयुर्वेद न केवल स्वास्थ्य की देखभाल करने की प्रणाली
है बल्कि आयुर्वेद यहाँ के लोगों के जीवन के हर पहलू में है। लकवाग्रस्त लोगों का
ठीक होकर चलना, लाइलाज बीमारियों का इलाज जैसे चमत्कार यहाँ आए दिन होते
रहते हैं जिसके कारण यहाँ के वैद्यों को लोग सम्मान से देखते हैं और आश्चर्य भी
करते हैं।
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