बगलामुखी की साधना ;दूर स्थान पर मौजूद व्यक्ति भी सम्मोहित, बगुलामुखी स्वयं रोजाना मत्स्येंद्रनाथ के सामने प्रकट होती थी, शासक का निष्कल राज्य उनकी जीत और सफलता का कारण मां बगलामुखी की आराधना ; देदून में प्रथम बार विराजी बगुलामुखी- बगलामुखी जयंती 15 मई 2024 & जल्द 12 घण्टे का अखण्ड महायज्ञ- एक बार फिर
माता बगलामुखी, माता बगलामुखी में 16 शक्तियां विराजमान है. मंगल, स्तम्भिनी, जृम्भिणि, मोहिनी, वश्या, बलाय, अचलाय, मंडरा, कल्पमासा, धात्री, कलना, कालकर्षिणि, भ्रामिका, मन्दगमना, भोगस्थ, भाविका जिस तरह घोड़े के मुंह पर लगाम लगाकर उसे नियंत्रण में रखा जाता है. उसी तरह बगलामुखी की सफल साधना के लिए साधक दुश्मनों को अपने वश में रख सकता है ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानांवाचं मुखं पदं स्तंभाय जिह्वां कीलयबुद्धि विनाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा। चन्द्रशेखर जोशी संस्थापक अध्यक्ष – मा पीताम्बरा श्री बगुलामुखी- स्थान बंजारावाला देहरादून मोबा0 9412932030
बगलामुखी जयंती वह दिन माना जाता है जब देवी बगलामुखी पृथ्वी पर प्रकट हुईं। यह वैशाख महीने में चंद्रमा के बढ़ते चरण के दौरान शुक्ल अष्टमी या आठवें दिन मनाया जाता है। बगलामुखी जयंती 2024 की तारीख 15 मई है। देवी माँ शक्ति का अवतार हैं और दस महाविद्याओं में से एक भी हैं।
बगलामुखी जयंती, बगलामुखी माता के अवतार दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। जिन्हें माता पीताम्बरा या ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहा जाता है। उसके पास पीले रंग के कपड़े के साथ माथे पर सुनहरे रंग का चंद्रमा है। माँ की पूजा दुश्मन को हराने, प्रतियोगिताओं और अदालत के मामलों को जीतने के लिए जानी जाती हैं। माँ बगलामुखी मंत्र स्वाधिष्ठान चक्र की कुंडलिनी जागृति के लिए उपयोग करते हैं। भक्त इस दिन अन्न का दान करते हैं, तथा माँ मंगलग्रह से संबंधित समस्याओं की समाधान देवी हैं। बगला एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ दुल्हन है, अर्थात दुल्हन की तरह आलौकिक सौन्दर्य और अपार शक्ति की स्वामिनी होने के कारण देवी का नाम बगलामुखी पड़ा। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। माँ बागलमुखी मंत्र कुंडलिनी के स्वाधिष्ठान चक्र को जागृति में सहयता करतीं हैं। देवी बगलामुखी का सिंहासन रत्नो से जड़ा हुआ है और उसी पर सवार होकर देवी शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। कहा जाता है कि देवी के सच्चे भक्त को तीनों लोक मे अजेय है, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती हैं।
Logon www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper & youtube Channel) चन्द्रशेखर जोशी की विशेष रिपोर्ट मो0 9412932030
बगलामुखी जयंती वह दिन माना जाता है जब देवी बगलामुखी पृथ्वी पर प्रकट हुईं। यह वैशाख महीने में चंद्रमा के बढ़ते चरण के दौरान शुक्ल अष्टमी या आठवें दिन मनाया जाता है। बगलामुखी जयंती 2024 की तारीख 15 मई है। देवी माँ शक्ति का अवतार हैं और दस महाविद्याओं में से एक भी हैं। किंवदंती है कि देवी धर्म की रक्षा के लिए प्रकट हुई थीं जिसे मदन नामक असुर ने चुनौती दी थी। देवी ने उसे हरा दिया और उसकी जीभ खींच ली। तब राक्षस ने क्षमा की प्रार्थना की।
देवी बगलामुखी की लोकप्रिय छवि में वह राक्षस की जीभ खींच रही हैं। प्रतीकात्मक रूप से, इससे पता चलता है कि धर्म को सबसे बड़ा खतरा अवांछित भाषण से है। देवी बगलामुखी से जुड़ी कई किंवदंतियाँ हैं और उनमें से अधिकांश पश्चिमी भागों में लोकप्रिय हैं भारत. एक लोकप्रिय किंवदंती कहती है कि देवी शक्ति ने ब्रह्मांड को एक विशाल तूफान से बचाने के लिए बगलामुखी का रूप धारण किया था, जो ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखता था। बगलामुखी (पीतांबरा पीठ) को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक मध्य प्रदेश के दतिया में स्थित है।
मां बगलामुखी बहुत शीघ्र फल प्रदान करती हैं. कलयुग में बगलामुखी मां की पूजा आराधना और साधना अलग-अलग रूपों में की जा रही है. छत्तीसगढ़ में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर मां बमलेश्वरी के नाम से इनकी पूजा की जाती है. इनकी स्तंभन शक्ति का ही प्रभाव है कि छत्तीसगढ़ में आज तक कभी भी कोई बड़ा भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदा नहीं आई. बगुलामुखी महाशक्ति अद्भुत गुण तत्व अपने अंदर लिए हुए हैं. जिसमें मनुष्य जीवन की पूर्णता और प्रकृति के रहस्य छिपे हुए हैं. बगलामुखी महाविद्या संसार की सबसे श्रेष्ठ महाविद्या मानी जाती है. पुराने समय से ही जो भी महान पुरुष पैदा हुए हैं या जिन राजा महाराजाओं ने निष्कल तक राज्य किया है उनकी जीत और सफलता का कारण मां बगलामुखी की आराधना रही है.
बगुला शक्ति का मूल सूत्र है “अथर्व प्राण सूत्र” यह प्राण सूत्र हर प्राणी में सोई अवस्था में विराजमान रहता है. जिसे बगलामुखी की साधना करने से जगाया जा सकता है. जब यह प्राण सूत्र जागता है तो साधक स्तंभन वशीकरण और कीलन की शक्ति प्राप्त होती है और वह अपने सामने के व्यक्ति को ही नहीं बल्कि दूर स्थान पर मौजूद व्यक्ति को भी आसानी से सम्मोहित कर सकता है.
महा योगी मच्छिंद्रनाथ ने योग विद्या द्वारा खुद भगवती बगलामुखी की सिद्धि kगोपनीय विधि और रहस्य को पाया था. बगुलामुखी स्वयं रोजाना मत्स्येंद्रनाथ के सामने प्रकट होती थी और योगीराज उन्हें स्वयं अपने हाथों से नैवेद्य अर्पण करते थे. योगीनाथ मछिंद्रनाथ ने ताड़ के पत्तों पर बरगा को सिद्ध करके एक अद्वितीय ग्रंथ की रचना की थी. जो इस महाविद्या की सिद्धि के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह ग्रंथ काफी दिनों तक गुप्त रहा, पर कुछ समय पहले तिब्बत के किसी मठ में इसकी एक प्रति प्राप्त हुई है. तिब्बत के बहुत सारे लामा इस पद्धति से बगुलामुखी को सिद्ध करके अद्वितीय आचार्य और योगी बने हैं. दुर्लभ ग्रंथ मंत्र में लिखा गया है कि “ब्रह्मास्त्रम च प्रवक्ष्यामि सदस्य प्रत्यय करनाम यस्य समृन मात्रेण पवनोपि स्थिरायते ” बगलामुखी मंत्रों को सिद्ध करने के बाद सिर्फ स्मरण करने से तेज हवा रुक जाती है. बगलामुखी महाविद्या पीतांबरी पटधारी है. इसलिए इसे पीतांबरा भी कहते हैं. यह ब्रह्मास्त्र की अचूक क्षमता का बल और शत्रुओं को सहज स्तंभित करने वाली शक्ति लेकर पैदा होती है. स्वर्ण आसन पर स्वर्णिम आभा के साथ आसीन पीत वस्त्र और मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाली त्रिनेत्री बगलामुखी माता का संपूर्ण स्वरूप मात्र में है.
योगी आदित्यनाथ यूपी का राजकाज संभालने से पहले ही नाथ सम्प्रदाय की उस गद्दी को भी संभाले हुए हैं, जिस पर कभी गुरु गोरखनाथ बैठा करते थे. शायद कम लोग ही जानते होंगे कि गोरखनाथ के गुरु थे- मत्स्येंद्रनाथ. जिन्हें मच्छिंद्रनाथ के नाम से भी जाना जाता है और इतिहास के मुताबिक उनका अवतरण 10वीं शताब्दी में हुआ था. तब ये कहावत भी प्रचलित हुआ करती थी, “भाग गोरख,मछेन्दर आया.” बताते हैं कि तब गोरखनाथ अपने गुरु को देखकर छिपने का ठिकाना तलाश करते थे, क्योंकि ‘हठ विद्या’ पाने की बेहद कठिन तपस्या कोई बच्चों का खेल नहीं हुआ करती थी. उन्हीं मच्छिंद्रनाथ की समाधि मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में गढ़ कालिका देवी मंदिर के निकट बनी हुई है, जहां नाथ सम्प्रदाय की परंपरा को जिंदा रखने वाले शिष्य हर साल उनकी जयंती को बड़ी भव्यता से मनाते हैं.
नामुमकिन कार्य को भी मुमकिन किया जा सकता है. बगलामुखी महाविद्या के तीन प्रमुख उपासक थे. सबसे पहले सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, दूसरे जगत के पालन करता भगवान विष्णु और तीसरे भगवान परशुराम. इनके अलावा सनक, नंदन, सनातन, सनत कुमार, देवर्षि नारद, सांख्यायन, परमहंस द्रोणाचार्य, युधिष्ठिर, राजा नल, लंकापति रावण, विश्वामित्र आदि भी मां बगलामुखी के विशेष उपासक थे. कालांतर में स्वामी शिव हरि बाबा स्वामी, विशुद्धानंद, दतिया के श्री स्वामी जी महाराज आदि ने बगुलामुखी और धूमावती तंत्र को सिद्ध करके लोगों का कल्याण करने के लिए बहुत सारे कार्य किए. शास्त्रों में बताया गया है की बगलामुखी तंत्र की शक्ति के द्वारा विधाता द्वारा निर्मित कार्य को भी बदला जा सकता है. तंत्र प्रकृति और ब्रह्मांड से तादात्म्य स्थापित करने का एक बहुत उत्तम तरीका है.
,योगी आदित्यनाथ पिछले पांच साल से राजपाट चलाते हुए अपने जिस गूढ़ रहस्य को प्रकट नहीं होने देना चाहते थे,चुनाव से पहले उस ‘हठ योग’ का पहला चरण अपने आप ही उजागर होने लगा है.ऐसे में,बड़ा सवाल ये है कि उनके विरोधी इसका तोड़ निकालने के लिए हिमालय की किस गुफा में जाकर किस महंत अवैद्यनाथ या गुरु गोरखनाथ को तलाशेंगे?
ये अलग बात है कि राजपाट संभालने वाले योगी आदित्यनाथ को इन पांच सालों में कभी फुरसत नहीं मिली कि वे अपने गुरुओं के भी गुरु की समाधि पर कभी शीश नवाने जा पाते. लेकिन नाथ परंपरा सनातनी सिद्धांतों से थोड़ा अलग हटकर है, इसलिये वे योगी के वहां न पहुंचने पर भी नाराज़ नहीं होते, बल्कि प्रसन्न होते हैं. शायद इसलिये कि एक तरफ राजा भर्तहरि था,जिसने अपना सारा राजपाट छोड़कर गुर गोरखनाथ के चरणों में आकर वैराग्य का रास्ता अपनाया तो दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ जैसा शिष्य भी है, जिसे संन्यासी होने के बावजूद यूपी की जनता ने सारा राजपाट उनके हवाले कर दिया. पांच साल पहले एक संन्यासी पर लोगों के इतने बड़े भरोसे की लोकतंत्र के इतिहास में ये पहली व अनूठी मिसाल थी.