बगुलामुखी के प्राकट्य स्थल ;गुरु गोरखनाथ के भक्त रघुनाथ येमूल जो वर्षो से गिरनार पर्वत (गुजरात)पर साधनारत, १५ मई २०२४ बगलामुखी के प्राकट्य दिवस पर देहरादून में विशेष कार्यक्रम

Bagulamukhi Jayanti on 15 May 2024 : “ओम ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ओम नमः”: भगवान विष्णु को मां बगलामुखी का प्रथम उपासक माना जाता है # यह सरोवर नहीं, मां बगलामुखी का प्राकट्य स्थल का प्रतीक हरिद्रा सरोवर है : गुजरात के जुनागढ़ में ऐसी जगह है जहां देवी बगलामुखी प्रकट हुई थीं : संकट मुक्ति के लिए देवी बगलामुखी की पूजा की जाने लगी : सौराष्ट्र में भट्ट बावड़ी नाम के गांव में इस मंदिर में लोग सालों से देवी बगलामुखी की पूजा कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि ये देवी का प्राकट्य स्थान है। ये कहना है गुरु गोरखनाथ के भक्त रघुनाथ येमूल का। जो कई सालों से गिरनार पर्वत पर साधना कर रहे हैं : देवी बगलामुखी का जन्म इस दिन अपने अनुयायियों और भक्तों की रक्षा और सुरक्षा के साथ-साथ उनके दुश्मनों को नष्ट करने के लिए हुआ था। : हिमाचल के कांगड़ा में श्रीराम ने देवी बगलामुखी की पूजा कर मूर्ति स्थापना की थी।

देवी बगलामुखी माता, जिन्हें मां पीतांबरा या ब्रह्मास्त्र विद्या के नाम से भी जाना जाता है, बगलामुखी अष्टमी की अवतरण दिवस हैं। उसके सिर पर चंद्रमा, सुनहरी त्वचा और पीले वस्त्र हैं। हिंदू धर्म में दस महाविद्याओं में से देवी बगलामुखी और बांग्ला महत्वपूर्ण देवी हैं जिनकी बड़ी श्रद्धा से पूजा की जाती है। बगलामुखी की पूजा करने से भक्तों की बाधाओं और भ्रमों को दूर करने और जीवन में समृद्धि का स्पष्ट मार्ग बनाने का प्रबल गुण है। देवी बगलामुखी अपने भक्तों के कष्टों का नाश करने के लिए अपने हाथों में छड़ी धारण करती हैं।  बगलामुखी जयंती को देवी बंगलामुख के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है और उन्हें माँ पीताम्बरा या ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहा जाता है।

अवांछित वाणी दुष्ट व्यक्तियों के लिए एक बड़ा ख़तरा

पौराणिक कथा के अनुसार, देवी बगलामुखी मदन नाम के एक असुर द्वारा प्रताड़ित किए जाने के बाद धर्म (नैतिकता और शिक्षाओं) की रक्षा के लिए पृथ्वी पर आईं। उन्होंने असुर को हराया और अनुयायियों को अनैतिक और पापी प्रथाओं से बचाने के लिए उसकी जीभ काट दी। असुर ने देवी से क्षमा मांगी। इससे पता चलता है कि अवांछित वाणी दुष्ट व्यक्तियों के लिए एक बड़ा ख़तरा है। इस दिन वे दुष्टों की वाणी और पैरों के पक्षाघात के लिए प्रार्थना करते हैं।

मॉ पीताम्बरा श्री बगुलामुखी शक्तिपीठ मंदिर स्थान नंदा देवी एनक्लेव, राणा कालोनी, निकट कारगी चौक बंजारावाला देहरादून उत्तराखण्ड में मां बगलामुखी के प्राकट्य दिवस १५ मई २०२४ पर विशेष पूजन, हवन भंडारा आदि के अलावा शेष शैयया पर विराजमान श्री लक्ष्मी नारायण जी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम दिनांक 13 मई से 15 मई २०२४ तक होगा जिसे श्री दया नंद जगुड़ी: मलाड मुंबई के प्रसिद्ध ज्योतिष विद & संस्थापक अध्यक्ष; श्री नृसिंह ब्राह्म नाथ जी शक्ति पीठ जोगथ उत्तरकाशी & प्रबंधक ; प्राचीन संस्कृत विद्यालय जोगथ उत्तरकाशी द्वारा मुख्य रूप से कराया जायेगा, इस पवित्र और पुण्य कार्य में आपका सहयोग अपेक्षित है- और आपको अग्रिम निमंत्रण है- इस पुण्य कार्य में संदेश को ही निमंंत्रण समझने का कष्ट करेगे- चन्द्रशेखर जोशी

मॉ पीताम्बरा श्री बगुलामुखी शक्तिपीठ मंदिर पंजी0 की प्राण प्रतिष्ठा उपरांत स्थापना दिनांक 4, 5, 6 अप्रैल २०२३ को चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक हिमालयायूके न्यूूज द्वारा स्थान बंजारावाला देहरादून उत्तराखण्ड में की गई, अल्प समय में ही मॉ पीताम्बरा श्री बगुलामुखी ने चमत्कार दिखाया, लाभान्वित हुए भक्तो ने स्वयं महामाई के पीठ में आकर चन्द्रशेखर जोशी को बताया, किसी को लम्बे समय उपरांत विवाह का योग मिला, तो किसी को पुत्र रत्न मिला, किसी को बीमारी से निजात मिली, तो किसी को मानसिक तनाव से मुक्ति मिली, और क्षेत्र आध्यात्मिक रूप से जाग्रत हो गया, यह माता की क़पा ही थी कि दूर दराज से साधु संतो महात्माओ, साधको, आचार्यो विद्वान पुजारियो, ज्योतिषविदो , कथाकारो व्यास जी आदि श्रेष्ठ जनो ने माता के दरबार में आकर अलौकिक महत्व को स्वीकार किया- माता का दरबार इनता भव्य है कि भक्त मानो सम्मोहित हो जाता है, – मॉ पीताम्बरा श्री बगुलामुखी शक्तिपीठ मंदिर के संस्थापक अध्यक्ष चन्द्रशेखर जोशी तन मन धन से सेवा भाव में जुटे हैं,

Himalaya UK News # Leading Newsportal # youtube Channel # Daily Newspaper # Available All social Media Platefourn; FB, Instragram $ National whatsup Groups; By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor Yr. Contribution: Ac Name: Himalaya Gaurav Uttrakhand Bank : State Bank of India, CA;
30023706551  ifs code; SBIN0003137
Mob. 9412932030

गुजरात के जूनागढ़ में ऐसी जगह है जहां देवी बगलामुखी प्रकट हुई थीं। जो कि दस महाविद्याओं में आठवीं शक्ति मानी जाती हैं। सौराष्ट्र में भट्ट बावड़ी नाम के गांव में इस मंदिर में लोग सालों से देवी बगलामुखी की पूजा कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि ये देवी का प्राकट्य स्थान है। ये कहना है गुरु गोरखनाथ के भक्त रघुनाथ येमूल का। जो कई सालों से गिरनार पर्वत पर साधना कर रहे हैं।

ग्रंथों में ये बताया गया है कि देवी बगलामुखी यानी मां पितांबरा हरिद्रा नदी के किनारे प्रकट हुई थीं। जिस जगह पर मंदिर खोजा गया उससे कुछ दूरी पर ही सोनार नदी है। जो हरिद्रा का ही अपभ्रंश है। यहां देवी बगलामुखी की मूर्ति स्थापित हुई है। दतिया पीतांबरा पीठ के साधक भी इस जगह को देवी का प्राकट्य स्थान मानते हैं।

इस जगह देवी कन्या रूप में विराजमान है। अब तक इस मंदिर में भट्ट परिवार की गायत्री देवी लंबे समय से पूजा अर्चना कर रही हैं। बगलामुखी साधक गुरु रघुनाथ येमूल और महेंद्र भाई रावल का मानना है कि यहां देवी के दर्शन और पूजा करने से सुख,शांति और समृद्धि मिलती है। परेशानियां भी दूर होती हैं।

सतयुग में दुनिया को खत्म कर देने वाला भयंकर तूफान आया। जिससे इंसानों पर संकट आ गया। तो भगवान विष्णु की चिंता बढ़ गई। तब भगवान ने सौराष्ट्र में हरिद्रा नदी के किनारे जाकर देवी का ध्यान किया।

मंगलवार और चतुर्दशी तिथि के संयोग में भगवान विष्णु के तेज से उस नदी में से देवी ने बगलामुखी प्रकट हुईं। भगवान विष्णु का रंग पीला है, इसलिए देवी बगलामुखी का भी ये ही रंग था। ये ही वजह है कि उन्हें पीतांबरा कहा जाता है। देवी ने प्रकट होकर उस तूफान को रोक दिया। तभी से संकट मुक्ति के लिए देवी बगलामुखी की पूजा की जाने लगी।.

 बगलामुखी जयंती पूजा किसी के जीवन से बुरी आत्माओं को दूर करने में मदद करती है। भक्तों का जीवन विघ्न-बाधाओं से मुक्त होता है। सफलता की राह आसान हो जाती है. माता बगलामुखी दस महाविद्याओं में 8वीं हैं। खासतौर से इनकी आराधना दुश्मनों पर जीत पाने के लिए की जाती है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक माता बगलामुखी की आराधना सबसे पहले ब्रह्माजी और भगवान विष्णु ने की थी। इसके बाद भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने देवी बगलामुखी की पूजा करके कई लड़ाईयां जीती थी।

यह पूजा तलाक, संपत्ति विवाद, धन विवाद आदि से जुड़ी मौजूदा कानूनी स्थितियों का समाधान करती है। किसी पर झूठा आरोप लगाने पर अच्छा काम होता है। यह पूजा एक अनुकूल समाधान सुनिश्चित करती है, भले ही कानूनी स्थिति कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हो।

बगलामुखी जयंती पूजा गायत्री मंत्र: ओम बगलामुखी ऐ च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो बांग्ला प्रचोदयात्” देवी शत्रुओं को भावनाहीन कर देती है, मैं उनकी पूजा करता हूं। देवी मुझे अपनी स्पष्ट दृष्टि से आशीर्वाद दें। 

देश में बगलामुखी देवी के चार खास मंदिर है। जो कि गुजरात, हिमाचल और मध्य प्रदेश में हैं।  देवी बगलामुखी मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है। इससे मुसीबतों से छुटकारा पाने के साथ ही बीमारियां दूर होती है और दुश्मनों पर जीत मिलती है। युद्ध, राजनीति से जुड़े मामले या फिर कोर्ट-कचहरी के विवादों में जीत पाने के लिए इस मंदिर में देवी की विशेष पूजा करवाई जाती है।

सौराष्ट्र के जूनागढ़ के भट्ट बावड़ी गांव में देवी का प्राकट्य स्थान माना जाता है। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्ध लड़े गए। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। इसके बाद अर्जुन और भीम ने शक्ति पाने के लिए यहां पूजा की थी।

2. हिमाचल के कांगड़ा में श्रीराम ने देवी बगलामुखी की पूजा कर मूर्ति स्थापना की थी।

3. महाभारत काल के दौरान श्रीकृष्ण ने मध्य प्रदेश के नलखेड़ा में देवी बगलामुखी की पूजा की थी।

4. मध्य प्रदेश के ही दतिया में स्वामी महाराज ने 1935 में बगलामुखी मंदिर की स्थापना की। 1962 में पीएम नेहरू ने यहां पूजा करवाई जिससे भारत-चीन युद्ध रूक गया था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *