समाज दान पुण्य से नहीं बदलता. उसे व्यवस्था बदलती है ;
बलराज साहनी के पुत्र परीक्षित साहनी हिमालयायूके न्यूज पोर्टल का लोकार्पण्ाा करते हुए – फाईल फोटो-
बलराज साहनी का कहना था कि ‘संपत्ति का बंटवारा व दान पुण्य करने वालों की हमारे देश में कमी नहीं है. लेकिन क्या वे देश के हालात बदल सकते हैं? समाज दान पुण्य से नहीं बदलता. उसे व्यवस्था बदलती है. मैं उस परिवर्तनकारी व्यवस्था का समर्थन करता हूं जो केवल बलराज साहनी से नहीं बल्कि हम सबसे आम आदमी के हक में संपति त्यागने की मांग कर और जरूरत पड़ने पर इसके लिए हमें मजबूर करे.’
बलराज साहनी इप्टा के संस्थापक सदस्य थे. उन्होंने अपनी भाषा पंजाबी के अलावा हिंदी और अंग्रेजी में भी अनेक कहानियां व लेख लिखे. यह कम ही लोग जानते हैं कि सन 1937 से 1939 तक बलराज साहनी शांति निकेतन में अध्यापक भी थे. सन 1940 से 44 तक उन्होंने बीबीसी में उद्घोषक का भी काम किया. सन 1944 में वह भारत लौटे और कुछ समय तक उन्होंने पृथ्वी थियेटर में भी काम किया था.
बलराज साहनी के पुत्र परीक्षित साहनी ने कहा था कि उन्होंने ‘गरम हवा’ में सबसे अच्छा अभिनय किया था.
फिल्म अभिनेता बलराज साहनी के निधन की खबर सुनकर सत्यजीत रे ने कहा था कि ‘बलराज साहनी एक असाधारण अभिनेता थे. खेद है कि मुझे उनके साथ काम करने का अवसर नहीं मिल सका.’ शांति निकेतन में शिक्षक व बीबीसी के उद्घोषक रहे युधिष्ठिर साहनी उर्फ बलराज साहनी के बारे में तब यह कहा गया कि अभिनेता मोती लाल के बाद उनकी मृत्यु भारतीय फिल्म उद्योग की दूसरी बड़ी क्षति थी.
बलराज साहनी ने अनेक फिल्मों में पहले मुख्य भूमिकाएं निभाई. उसके बाद उन्होंने चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं स्वीकार कीं. उनका आकर्षण अंत तक बरकरार रहा. बलराज साहनी के पुत्र परीक्षित साहनी ने कहा था कि उन्होंने ‘गरम हवा’ में सबसे अच्छा अभिनय किया था.
इस देश के सुशिक्षित फिल्म अभिनेता बलराज साहनी का करीब 60 साल की उम्र में ही निधन हो गया था. यह घटना 13 अप्रैल, 1973 की है. उन्हें उस समय दिल का दौरा पड़ा जब वे शूटिंग पर जाने की तैयारी कर रहे थे. उन्हें मुंबई के नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्हें दोबारा दौरा पड़ा और उनका इंतकाल हो गया.
एक मई, 1913 को रावलपिंडी में जन्मे बलराज साहनी के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था कि उनकी ऐसी असामयिक मौत होगी. अपनी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता से लैस बलराज ने अभिनय के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी. अपनी मृत्यु शैया के पास एकत्र लोगों से उन्होंने कहा था कि ‘मेरे देशवासियों से मेरा स्नेह संदेश कह देना. मैंने एक सुखी जीवन जिया है. मुझे कोई पश्चाताप नहीं है. मेरी मृत्यु के बाद धार्मिक अनुष्ठानों का निर्वाह नहीं किया जाए. अपने पुत्र अजय साहनी से उन्होंने कहा कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी शय्या पर लाल पताका और लेनिन की पुस्तकें रख देना.’ उनकी यह अंतिम इच्छा पूरी की गई. उनका पार्थिव शरीर अस्पताल से जुहू स्थित उनके निवास स्थान पर ले जाया गया. अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए. सबसे पहले आने वालों में ख्वाजा अहमद अब्बास, राज कपूर, नर्गिस, वहीदा रहमान, नंदा और राहुल देव बर्मन प्रमुख थे. दूसरे दिन उनकी शवयात्रा में विभिन्न क्षेत्रों की अनेक बड़ी हस्तियों ने भाग लिया.
फिल्म जगत की कई बड़ी हस्तियों ने भी उनके बारे में इसी तरह के उद्गार व्यक्त किये थे जिस तरह के सत्यजीत रे ने किए थे. बलराज साहनी अभिनेता के साथ-साथ साहित्यकार भी थे. उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. किया था. वे पंजाबी के अच्छे लेखक माने जाते थे. कविता और लघु कथाएं उन्होंने लिखीं. उन्होंने ‘मेरी फिल्मी आत्मकथा’ भी लिखी. प्रसिद्ध साहित्यकार भीष्म साहनी के वह भाई थे. जिया सरहदी की फिल्म ‘हमलोग’ में 1949 में बलराज साहनी ने सबसे पहले काम किया. कहा जाता है कि पर्दे पर बार-बार दिखाई देने वाले चेहरे से बलराज साहनी का चेहरा भिन्न था. इसलिए भी उन्होंने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. वह यथार्थपरक भूमिकाएं निभाते थे. वे संवेदनशील, सुरूचिसंपन्न और गहरे सामाजिक सरोकारों से जुड़े अभिेनेता थे. उनका शरीर छरहरा था. ऊंंचा कद था और शांत और गंभीर मुद्रा थी. उनकी मीठी और भरी हुई आवाज उनके अभिनय में चार चांद लगा देती थी. ‘दो बीघा जमीन’ फिल्म मेंं ही बलराज साहनी के अभिनय कौशल का लोगों ने लोहा मान लिया था.
सत्यजीत रे ने एक बार कहा था कि ‘दो बीघा जमीन’ वह पहली भारतीय फिल्म है, जिसने सही अर्थ में सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित किया था. इस फिल्म में बलराज साहनी ने एक भारतीय किसान और मजदूर (रिक्शा चालक) की भूमिकाएं निभाई थीं. तब बलराज साहनी के अभिनय की विशेषताओं को ध्यान में रखकर कहानियां लिखी जाती थीं. ‘गरम कोट’ और ‘औलाद’ उनकी ऐसी ही फिल्में थीं. उनकी फिल्म काबुलीवाला भी चर्चित रही.
एक खास तरह के अभिनय के लिए उन्हें ‘टाइप्ड’ न कर दिया जाए, इसलिए वे बाद में उच्च वर्ग, उच्च मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग की भी भूमिकाएं निभाने लगे थे. वामपंथी व दिग्गज कांग्रेसी नेता वी.के. कृष्णमेनन के बलराज साहनी दोस्त थे. साहनी मुंबई के राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी उत्साह से हिस्सा लेते थे.
कृष्ण मेनन ने मुम्बई से जब लोकसभा का चुनाव लड़ा तो बलराज साहनी ने उनके पक्ष में प्रचार किया था. मंच से भाषण देते समय कभी-कभी बलराज साहनी को तीखे सवालों का सामना करना पड़ता था. चुनाव भाषण के दौरान एक श्रोता ने बलराज साहनी से सवाल किया, ‘आप समाजवाद की वकालत करते हैं. शोषण खत्म करने की बात करते हैं. लेकिन क्या आपने कम पैसा बटोरा है? सबसे पहले आप अपनी संपत्ति क्यों नहीं बांट देते?’
ज्ञात हो कि हिमालयायूके न्यूज पोर्टल का लोकार्पण्ा फिल्म अभिनेता परीक्षित साहनी तथा तत्कालीन कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत जी द्वारा एक भव्य समारोह में किया गया था-
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