राज्य में ब्राह्मणों की स्थिति ठीक नहीं

अब CM शिवराज से नाराज हुए ब्राह्मण

एमपी में अब सीएम शिवराज के लिए जातिगत समीकरणों को साधना काफी मुश्किल साबित हो रहा है. पहले दलित सड़कों पर उतरे, जब उन्हें मनाने गए तो ब्राह्मण सड़क पर उतर गए. बीजेपी के कई नेता यह कह रहे हैं कि राज्य में ब्राह्मणों की स्थिति ठीक नहीं है.
यशवंत सिंह, छोटे लाल, अशोक दोहरे और साबित्री बाई फूले और उदित राज. बीजेपी के ये पांच दलित सांसद इस चुनावी साल में नाराज़ क्यों हैं. तीन तीन सांसदों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. सांसद दोहरे ने लिखा है कि 2 अप्रैल के भारत बंद के बाद दलितों को चुन चुन कर फंसाया जा रहा है. पुलिस घरों से निकालकर जातिसूचक शब्दों का इस्तमाल कर रही है और मारपीट कर रही है. एससी/एसटी एक्ट में ढ़िलाई के बाद चले हंगामे के बीच सरकार खुद मानती है कि दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं. बीजेपी के दलित सांसद खुलकर अब असंतोष भी जता रहे हैं.

वहीं कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के के मिश्रा ने कहा, ‘ये सरकार ब्राह्मणविरोधी है, नरोत्तम मिश्र सबसे आधार वाले नेता थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया क्योंकि वो ब्राह्मण हैं. उस दिन ब्राह्मणों का अपमान हुआ जिस दिन भगवान परशुराम का जन्मदिन था, ऐसे में ब्राह्मण फरसा उठाएगा ही.’ मध्यप्रदेश में तकरीबन 10 फीसद ब्राह्मण वोटर हैं, जो 230 विधानसभा सीटों में विंध्य, महाकौशल और चंबल की 65 सीटों में उम्मीदवारों की किस्मत तय करने की ताकत रखते हैं.

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिये राज्य में जातिगत समीकरणों को साधना मुश्किल होता जा रहा है. पहले दलित सड़कों पर उतरे, जब उन्हें मनाने गये तो सवर्ण खासकर ब्राह्मण सड़क पर आ गये. चुनावों से पहले खुद बीजेपी के कई ब्राह्मण नेता-मंत्री ये कह रहे हैं कि राज्य में उनकी स्थिति ठीक नहीं है. सूत्र कह रहे हैं नाराजगी दूर करने सरकार चुनावी साल में ब्राह्मण कल्याण आयोग बना सकती है. परशुराम जयंती के दिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ब्राह्मणों ने सड़क पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया. कुछ दिनों पहले विप्र सम्मेलन में बगैर आरक्षण का नाम लिये, शिवराज के वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी गोपाल भार्गव आरक्षण पर हमलावर रहे, बाद में सफाई दी. उन्होंने कहा था यदि योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य लोगों का चयन किया जाएगा, यदि 90 फीसदी वाले को बैठा दिया जाएगा और 40 फीसदी वाले की नियुक्ति की जाएगी तो यह देश के लिए घातक है.’ हर दल ब्राह्मणों का समर्थन तो चाहता है पर उसे देना कुछ नहीं चाहता. डॉ. हितेष बाजपेई जैसे मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर ब्राह्मण वर्सेस ऑल जैसे लेख लिखे.

17 अप्रैल को ब्राह्मणों की सभा में पहुंचे मुख्यमंत्री को राजधानी भोपाल में ही नारेबाजी के बाद, मंच छोड़कर जाना पड़ा था. उम्मीद थी कि नरोत्तम मिश्रा या राजेन्द्र शुक्ल जैसे ब्राह्मण नेताओं को मध्यप्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी देकर उन्हें साधने की कोशिश होगी, लेकिन राकेश सिंह को बीजेपी अध्यक्ष बनाने से भी ब्राह्मण बिफरे हैं. बीजेपी इसे विपक्ष की फूट डालो शासन करो नीति बता रही है, वहीं कांग्रेस उस शख्स को लेकर बीजेपी को घेर रही है, जिसकी विधायकी चुनाव आयोग रद्द कर चुका है, जिसको लेकर कांग्रेस खासा हमलावर थी.

बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा, ‘वो ऐतिहासिक धरती है, जहां एक जिले में बाबासाहेब और भगवान परशुराम का जन्म हुआ, मुझे लगता है ऐसे वैमन्स्य फैलाकर कांग्रेस सत्ता हासिल करना चाहती है, ये पूरी तरह से विपक्ष फूट डालने का काम करके सत्ता में आना चाहता है जनता आने वाले वक्त में माकूल जवाब देगी.’

वही दूसरी ओर 

राजस्थान में ब्राह्मण नेता उतरे विरोध में :

राजस्थान में चार साल से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति तीखे और बागी तेवर अपनाने वाले खांटी संघी विधायक ब्राह्मण नेता घनश्याम तिवाड़ी को लेकर भाजपा अजीब उलझन में फंसी है। तिवाड़ी को अनुशासनहीनता का नोटिस केंद्रीय नेतृत्व से दिलाने के बाद भी प्रदेश नेतृत्व के मंसूबे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। तिवाड़ी हर मौके पर वसुंधरा राजे पर तीखा हमला बोलते रहे। इस पर प्रदेश नेतृत्व हमेशा ही उनको पार्टी से निकालने की धमकी देता रहा। यह बात अलग है कि हकीकत में कुछ कर नहीं पाया। प्रदेश में अब जब विधानसभा चुनाव में सिर्फ छह महीने का समय ही बचा है तो ऐसे में कार्रवाई करने से भाजपा बचना चाहती है। पार्टी तो यही चाहती है कि तिवाड़ी खुद ही छोड़ जाएं। जबकि बुजुर्ग नेता की मंशा है कि पार्टी उन्हें निकाल दे। तिवाड़ी सियासी चालों के धुरंधर खिलाड़ी ठहरे।

पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायक तो हैं ही, साथ ही ब्राह्मण समाज पर भी पकड़ मजबूत है। सूबे का पार्टी नेतृत्व तो राष्ट्रीय नेतृत्व से ही तिवाड़ी को निकलवाने की तिकड़म करता रहा है। पूर्व की भाजपा सरकारों में मंत्री रहे तिवाड़ी का अपना कद इतना बड़ा है कि संघी खेमे के कई केंद्रीय नेता चाहते हैं कि उन्हें पार्टी की मुख्यधारा में फिर से शामिल किया जाए। चुनाव में भी इससे फायदा पहुंचेगा। केंद्रीय नेतृत्व को ऐसे कई नेताओं ने तर्क भी दिया कि जब राजे अपने कट्टर विरोधियों मसलन विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल और वरिष्ठ विधायक प्रहलाद गुंजल को अपना सकती हैं और हाल में तो उन्होंने धुर विरोधी रहे किरोड़ी लाल मीणा को भी न केवल पार्टी में शामिल कराया बल्कि लगे हाथ राज्यसभा में भी पहुंचा दिया। तो फिर तिवाड़ी से ही परेशानी क्यों है।

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