अब चुनाव से लगभग 20 महीने पहले भाजपा सरकार के वायदे
दो मोर्चे एेसे है, जहां जहां मोदी का रिकॉर्ड आकर्षक नहीं है- अगर इन दो बिन्दुओं पर ध्यान न दिया गया तो 20़19 का चुनाव आश्चर्यजनक हो सकता है- बेरोजगारी तथा नेताओं की हर साल बढती सम्पत्ति को लेकर सुर्खियां है- अब चुनाव से लगभग 20 महीने पहले पीएम मोदी के वायदे पर जनता कितना भरोसा करती है- यह देखनी वाली बात होगी- केन्द्र के अलावा राज्यों में भी डबल इंजन को लेकर मजाक बन रही है
PHOTO CAPTION; The Prime Minister, Shri Narendra Modi paying floral tributes to Swami Vivekananda on celebrations of 125th anniversary of Swami Vivekananda Chicago address, in New Delhi on September 11, 2017.
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-
ब्लूमबर्ग। करियों के लगातार घटते मौके 2019 के आम चुनाव में पीएम मोदी के लिए सबसे बड़ा चुनावी जोखिम साबित हो सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले अब ये चर्चाएं आम हो रही हैं कि क्या पीएम मोदी पिछले चुनाव में हर साल एक करोड़ नौकरियों के अपने वादे को पूरा कर पाएंगे। ये एक ऐसा मोर्चा है जहां मोदी का रिकॉर्ड आकर्षक नहीं है। अब चुनाव से लगभग 20 महीने पहले पीएम मोदी अपने इस टारगेट को पूरा करने के लिए लगातार प्रयत्नशील हैं। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2027 तक भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ी श्रम शक्ति होगी, और श्रम की ये ताकत देश की इकोनॉमी को रफ्तार देते रहने के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन देश की अर्थव्यवस्था में इस वर्क फोर्स को जगह देने की यानी की नौकरियां देने की क्षमता पैदा नहीं हो रही है। पीएम मोदी ने रोजगार सृजन से जुड़े दोनों मंत्रालयों के मंत्रियों को बदल लिया है। हाल के मंत्रिमंडल फेरबदल में पीएम मोदी ने युवाओं को तकनीक से लैस करने से जुड़े विभाग, कौशल विकास मंत्रालय का जिम्मा राजीव प्रताप रुडी से लेकर धर्मेन्द्र प्रधान को दे दिया है। धर्मेन्द्र प्रधान पीएम मोदी की महात्वाकांक्षी योजना उज्ज्वला स्कीम को सफलता पूर्वक लागू कर चुके हैं। इसलिए पीएम को उनसे उम्मीदें भी हैं। इसी तरह पीएम मोदी ने श्रम मंत्रालय का जिम्मा बंडारू दत्तात्रेय से लेकर संतोष कुमार गैंगवार को दे दिया है। गैंगवार पहले वित्त राज्य मंत्री थे।
राजनीतिक विश्लेषक निलंजन मुखोपाध्याय कहते हैं कि, ‘जब बात रोजगार के मौके की आती है तो सरकार पूरी तरह से फेल साबित हुई है।’ निलंजन मुखोपाध्याय बताते हैं कि कैबिनेट में बदलाव इस बात का सूचक है कि पीएम मोदी रोजगार को लेकर 2019 के चुनाव में पैदा होने वाले सियासी जोखिम से आगाह हैं। भारत में स्किल्ड लेबर की जरूरत तो है, लेकिन इस लेबर फोर्स की सप्लाई बड़ा मुद्दा है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 2022 तक अर्थव्यवस्था के 24 सेक्टरों में 110 मिलियन यानी कि 11 करोड़ कामगारों की जरूरत होगी। जबकि इस वक्त तक देश में 10.5 करोड़ वर्कर ही इन सेक्टरों में आ पाएंगे।
वही दूसरी ओर
सुप्रीम कोर्ट के दबाव में सरकार ने उन सांसदों, विधायकों की संपत्ति जांच कराने का फैसला किया है जो चुनाव जीतते ही धन कुबेर बन गए। इलाहाबाद के एनजीओ लोक प्रहरी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (सीबीडीटी) ने सोमवार (11 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सात लोकसभा सांसद और 98 विधायकों की संपत्ति की जांच की जा रही है। सीबीटीडी ने यह भी कहा कि इन सभी सांसदों और विधायकों के नाम की सूची मंगलवार (12 सितंबर) को सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपेगा।
सीबीडीटी ने कोर्ट को बताया कि आयकर विभाग ने इन नेताओं की संपत्तियों की शुरुआती जांच की है जिसमें पता चला है कि चुनाव जीतने के बाद इन सांसदों-विधायकों की चल-अचल संपत्ति में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। ये शुरुआती जांच लोक प्रहरी द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद हुई है। लोक प्रहरी ने आरोप लगाया था कि लोकसभा के 26 सांसद, राज्यसभा के 11 सांसद और 257 विधायकों की संपत्ति उनके निर्वाचित होते ही तुरंत बढ़ गई। एनजीओ ने ये आरोप उन नेताओं के चुनावी हलफनामे के आधार पर लगाया था। सीबीडीटी ने शीर्ष अदालत को यह भी बताया कि अन्य नौ लोकसभा सांसद, 11 राज्यसभा सांसद और 42 विधायकों की संपत्तियों का आंकलन किया जा रहा है। इससे पहले जस्टिस जे चेलमेश्वर की पीठ ने सरकार से पूछा था कि क्या सरकारी विभागों ने नेताओं द्वारा सौंपे गए चुनावी हलफनामे और आयकर रिटर्न्स के दस्तावेज के मुताबिक उनकी संपत्तियों की कोई जांच कराई है? केंद्र सरकार को लताड़ लगाते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि सरकार एक तरफ चुनाव सुधार की बात करती है मगर दूसरी तरफ कोई भी काम समय पर पूरा नहीं करती है। पीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता पी एस नरसिम्हा से कहा, क्या भारत सरकार का यही रवैया है? आजतक आपने इस मामले में क्या किया है? याचिका में एनजीओ ने ना केवल सांसद-विधायकों की संपत्ति और उनकी आय के स्रोत को सार्वजनिक किया जाय बल्कि उनकी पत्नी और बच्चों की संपत्ति और आय के स्रोतों को भी जगजाहिर किया जाय।