बीजेपी का केंद्रीय संगठन ;बड़ा फेरबदल करने की दिशा में
मध्य प्रदेश ; निकायों के चुनाव खतरे का संकेत; #बीजेपी का केंद्रीय संगठन का एक बड़ा फेरबदल करने की दिशा में #मध्य प्रदेश में 20 नगरीय निकायों के चुनाव नतीजे भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे का संकेत देने वाले हैं. नगरीय निकायों के 20 अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही 9-9 सीटों पर जीत मिली है. एक सीट पर बीजेपी की बागी उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहीं हैं. जबकि एक स्थान सेमरिया के वोटों की गिनती कोर्ट द्वारा लगाई रोक के कारण नहीं हुई है. Top Breaking www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला बराबरी पर रहा. #बीजेपी के लिए ये नतीजें काफी चौंकाने वाले#मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक विधानसभा के चुनाव #दलित-आदिवासी बीजेपी से नाराज
बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 2018 के आखिर में होने वाले मध्य प्रदेश के चुनाव में किसी तरह का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती है. इसीलिए पार्टी ने राज्य में कैलाश विजयवर्गीय जैसे तेजतर्रार नेता को पार्टी को पार्टी की कमान सौंप सकती है.मध्य प्रदेश की सियासत में बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय की घर वापसी हो सकती है. नंद कुमार चौहान, मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. बीजेपी का केंद्रीय संगठन का एक बड़ा फेरबदल करने की दिशा में है. ऐसे में पार्टी केंद्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश में बीजेपी की कमान कैलाश विजयवर्गीय के हाथों में सौंप सकती है. मौजूदा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी के मध्य प्रदेश इकाई का नेतृत्व करने के लिए कहा गया है. मौजूदा समय में विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल में पार्टी का काम देख रहे हैं. वो मध्य प्रदेश के इंदौर से हैं और शिवराज के मंत्रिमंडल में काफी अहम मंत्री रहे हैं. लेकिन शिवराज और विजयवर्गीय के बीच छत्तीस का आकड़ा रहा है और दोनों के रिश्ते जगजाहिर हैं.
अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक कैलाश विजयवर्गीय को मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. इस संबंध में विजयवर्गीय कहते हैं कि मुझें इसकी जानकारी नहीं है, ये हवा में सिर्फ अटकलें हैं. जबकि कहा जा रहा है कि विजयवर्गीय के संभावित घर वापसी पर शुक्रवार को उज्जैन में बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बैठक में चर्चा हुई थी, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत शामिल थे.
मध्य प्रदेश बीजेपी के एक वर्ग का मानना है कि विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री के रूप में चौहान को बदलने की महत्वाकांक्षा को जन्म दिया. विधानसभा चुनाव नवंबर में होने हैं. चौहान के करीबी सूत्र भी स्वीकार करते हैं कि यदि विजयवर्गीय मध्य प्रदेश की राजनीति में लौटे तो मुख्यमंत्री के नेतृत्व को चुनौती खड़ी होगी.
मध्य प्रदेश में 19 नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्ष पद पर हुए चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला बराबरी पर रहा. 9 सीटों पर बीजेपी और 9 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई है. वहीं एक पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है. अध्यक्ष पद पर वोट फीसदी के लिहाज से दोनों पार्टियों को 43%-43% वोट मिले हैं.
बीजेपी के लिए ये नतीजें काफी चौंकाने वाले है. शिवराज सरकार के कार्यकाल में अमूमन चुनावों में शानदार जीत दर्ज करने वाली बीजेपी को इस बार कांग्रेस ने न केवल कड़ी चुनौती दी, बल्कि कुछ जगहों पर उसके अभेद किले को ढहा भी दिया
बीजेपी के कब्जे वाली धार, मनावर, सरदारपुर, धरमपुरी, खेतिया, अंजड़ निकाय को कांग्रेस ने छीन ली. वहीं, कांग्रेस के कब्जे वाली कुक्षी, डही, पीथमपुर, राजपुर और ओंकारेश्वर सीट बीजेपी ने छीनी और जीत हासिल की.
इस नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव और उपचुनाव में भाजपा पुराने चुनावों जैसी सफलता दोहराने में नाकाम रही है. कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह के गृह क्षेत्र राघौगढ़ के अलावा धार और बड़वानी में भी कांग्रेस को खासी सफलता मिली है.
पार्षद पदों के लिए 356 में से 352 पदों के परिणामों की घोषणा हो गई है. बीजेपी को 194 सीटें और कांग्रेस को 145 सीटें मिली हैं. पार्षद पद के लिए हुए चुनाव में वोट फीसदी के लिहाज से बीजेपी को 46 फीसदी और कांग्रेस को 43 फीसदी वोट मिले हैं.
बीजेपी के एक उम्मीदवार र्निविरोध निर्वाचित होने में सफल रहे थे. जिन नगरीय निकायों में चुनाव हुए हैं, उनमें ज्यादतर आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं. दिलचस्प यह है कि इन चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जमकर प्रचार किया था लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कोई दिलचस्पी किसी स्तर पर नहीं दिखाई थी.
दिग्विजय सिंह के गृह नगर राघोगढ़ में सेंध लगाने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कोशिश भी सफल नहीं हो पाई. दिग्विजय सिंह इन दिनों नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं. इस कारण बीजेपी को उम्मीद थी कि वह राघोगढ़ के किले को भेदने में कामयाब रहेगी. चुनाव प्रचार के दौरान यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सभा के बाद कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकर्त्ताओं के बीच विवाद हुआ. प्रशासन को धारा 144 लगाना पड़ी थी. इन चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही अध्यक्ष के पद के लिए 43-43 फीसदी वोट मिले हैं.
बीजेपी के चुनाव जीतने वाले पार्षदों की संख्या भी ज्यादा है. इस कारण बीजेपी 46 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही है. जबकि कांग्रेस के पार्षद उम्मीदवारों को कुल 42 फीसदी वोट मिले हैं. इन 20 स्थानों पर पार्षदों के कुल 356 पदों का चुनाव हुआ. बीजेपी के 194 और कांग्रेस के 145 पार्षद उम्मीदवारों चुनाव जीते हैं. 13 निर्दलीय पार्षद चुने गए हैं.
क्या दलित-आदिवासी कांग्रेस में लौट रहे हैं
मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक विधानसभा के चुनाव होने हैं. राज्य की कुल 230 सीटों में 47 सीटें आदिवासी और 35 सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित हैं. वर्ष 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी द्वारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के कारण कांग्रेस को अपनी परंपरागत सीटों से हाथ धोना पड़ा था. पहली बार बीजेपी को निमाड़-मालवा और महाकौशल के आदिवासी क्षेत्रों में एतिहासिक सफलता हासिल हुई थी.
पिछले कुछ समय से दलित-आदिवासी बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. इसकी वजह पार्टी की आरक्षण को लेकर नीति मानी जा रही है. राज्य में दलित और आदिवासी वोटों को साधने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कई नई योजनाएं भी लागू की हैं. राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) संघ भी दलित और आदिवासी वोटों को साधने के लिए एक श्मशान, एक जलाशय और एक देवालय योजना पर तेजी से काम कर रहा है.
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