हरियाणा,छत्तीसगढ़, राजस्थान में भी लाभ का पद मामला

बीजेपी शासित राजस्थान में फिलहाल 10 संसदीय सचिव #2015 में छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति  #एक संविधान और दो विधान नहीं हो सकते #ममता सरकार ने बंगाल में 24 संसदीय सचिव चुने. #  ‘आप’ पार्टी के लिए चुनाव आयोग के निर्देश कुछ और राज्य के बीजेपी विधायकों के लिए और कुछ

दिल्ली ही अकेला प्रदेश है जहां लाभ का पद मामला इतना तूल पकड़ता दिख रहा है? हरियाणा के चार बीजेपी विधायकों पर भी सदस्यता रद्द होने का ख़तरा मंडराने लगा है। छत्तीसगढ़ के 11 संसदीय सचिवों पर भी विधायकी खोने का ख़तरा मंडराने लगा है. ऐसा हुआ तो राज्य की बीजेपी सरकार के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी. राज्य की कुल 90 सीटों में बीजेपी के पास 49 विधायक हैं. जबकि बहुमत के लिए उनके पास 46 विधायक होने चाहिए
हरियाणा में मुख्य संसदीय सचिव के पद से चार बीजेपी विधायकों को हटाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले एडवोकेट ने ये इनकी सदस्यता भी रद्द करने की मांग की है। 
हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गोवा ऐसे राज्य हैं जहां संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती दी गई. इन राज्यों का मामला हाईकोर्ट पहुंचा जहां इन नियुक्तियों को सिरे से खारिज कर दिया गया. आयोग छत्तीसगढ़ में बीजेपी के विधायकों पर भी अपना फैसला सुनाएगा. मई 2015 में छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें सभी 13 मंत्रियों के साथ अटैच किया था. बिलासपुर हाई कोर्ट ने अगस्त 2017 में अपनी शुरुआती सुनवाई में सभी 11 संसदीय सचिवों को प्रदत्त अधिकारों पर रोक लगा दी थी. यही नहीं, उनके वेतन और भत्तों पर भी पाबन्दी लगाई गई. लेकिन कानूनी दावपेच का इस्तेमाल करते हुए राज्य की बीजेपी सरकार ने हाई कोर्ट के निर्देशों को हवा में उड़ा दिया.
उन्हें पहले की तरह सुख सुविधाएं जारी रहीं. अब जबकि दिल्ली में संसदीय सचिवों पर गाज गिरी है, उसे चुनाव आयोग की तहरीर मानते हुए कांग्रेस समेत सभी विरोधी दल एकजुट होकर राज्य के संसदीय सचिवों के खिलाफ ठीक वैसी ही कार्रवाई जल्द किए जाने की मांग कर रहे हैं.
उनके मुताबिक एक संविधान और दो विधान नहीं हो सकते, मसलन ‘आप’ पार्टी के लिए चुनाव आयोग के निर्देश कुछ और राज्य के बीजेपी विधायकों के लिए और कुछ. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह इन दिनों ऑस्ट्रेलिया प्रवास पर हैं, लिहाजा तमाम संसदीय सचिव चुनाव आयोग के रुख के बाद अपने इलाकों से नदारद हो गए हैं.
इस फेहरिस्त में पंजाब और हरियाणा का भी नाम आता है जहां संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती दी गई है. मामला फिलहाल कोर्ट में है. कई और भी राज्य हैं जहां संसदीय सचिवों को लेकर संवैधानिक संकट की स्थिति खड़ी हुई.  
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि बीजेपी आम आदमी पार्टी को लगातार परेशान कर रही है. उससे दिल्ली का विकास देखा नहीं जा रहा है. यही वजह है कि वह हर तरीके से परेशान कर रही है. सिसोदिया ने पत्रकारों से कहा कि बीजेपी आम आदमी पार्टी के विधायकों को तोड़ने की कोशिश करती है. यह पहली बार नहीं है कि बीजेपी आम आदमी पार्टी को परेशान कर रही है. राष्‍ट्रपति से अनुरोध है कि वे विधायकों का भी पक्ष सुनें. इन विधायकों ने एक पैसे का भी लाभ नहीं कमाया है. आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद पर होने के कारण अयोग्‍य घोषित किए जाने के मसले पर पहली बार मनीष सिसोदिया अपना पक्ष रख रहे थे.

 
एडवोकेट जगमोहन सिंह भट्टी ने   से कहा, ‘दिल्ली के AAP विधायकों की तरह बीजेपी के इन विधायकों ने भी लाभ का पद हासिल किया और इनकी सदस्यता भी रद्द होनी चाहिए।’   पिछले साल खट्टर सरकार ने चार बीजेपी विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था, जिसे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अमान्य घोषित कर दिया था। साल 2016 में संसदीय सचिव के तौर पर पंजाब के 18 विधायकों की नियुक्ति को भी हाईकोर्ट ने एडवोकेट भट्टी की याचिका पर अमान्य घोषित किया था। एडवोकेट भट्टी ने कहा, ‘मैं चुनाव आयोग और राज्यपाल को खत लिखने जा रहा हूं कि इन विधायकों की सदस्यता रद्द की जाए क्योंकि इन्हें एक मंत्री की सुविधाएं मिलीं। श्याम सिंह राणा, कमल गुप्ता, बख्शीश सिंह विर्क और सीमा त्रिखा को खट्टर सरकार ने मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था।’ एडवोकेट भट्टी के अनुसार हरियाणा सरकार द्वारा फाइल किए गए हलफनामे के मुताबिक संसदीय सचिवों को एक विधायक की तुलना में ज्यादा वेतन और भत्ते दिए गए। इन्हें राज्य की ओर से कार, स्टाफ और आवास भी उपलब्ध कराए गए। भट्टी ने निवेदन किया है कि संसदीय सचिव के तौर पर चारों विधायकों को जो सुविधाएं दी गईं, उसकी भरपाई हो, जिसे राज्य के खजाने में जमा कराया जाए। इसके अलावा पंजाब के उन 18 विधायकों को भी सजा दी जाए, जिन्हें हाई कोर्ट ने 2016 में संसदीय सचिव के पद से हटाया था।

 
कोर्ट में न्याय नहीं मिला तो जाएंगे जनता की अदालत
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने जो फैसला लिया है, वह असंवैधानिक है. इस संबंध में आयोग ने बिना विधायकों से बात किए कैसे फैसला ले लिया?
सिसोदिया ने कहा कि इन विधायकों को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला. वे राष्ट्रपति से मिलने जाएंगे. सभी 20 विधायक मिलने जाएंगे. अगर जरूरत पड़ी तो कोर्ट भी जाएंगे. वहां भी न्‍याय नहीं मिला तो जनता की अदालत में जाएंगे. सिसोदिया ने कहा कि दिल्‍ली सरकार विकास कर रही है तो यह किसी से देखा नहीं जा रहा.
बीजेपी शासित राजस्थान में फिलहाल 10 संसदीय सचिव हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अगुआई में चल रही यहां की सरकार ने संसदीय सचिवों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया. इतना ही नहीं, साल 2017 में राजस्थान असेंबली में बिल पास कर संसदीय सचिवों को संवैधानिक वैधता दी गई. बाद में मामले को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां केस अभी पेंडिंग है.
ओडिशा का मामला कुछ और
ओडिशा का मामला संसदीय सचिवों जैसा तो नहीं है लेकिन लाभ के पद जैसा जरूर है. साल 2016 में ओडिशा सरकार ने 20 विधायकों को जिला योजना कमेटी (डीपीसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया. कानून में सुधार कर सरकार ने इन अध्यक्षों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया. डीपीसी अध्यक्षों को सुविधा के नाम पर गाड़ी और सचिवालय स्टाफ मिलते हैं, लेकिन इन्हें सैलरी नहीं मिलती.
बंगाल में बेकार पड़े संसदीय सचिव पद
शुक्रवार को जैसे ही आम आदमी पार्टी का फैसला आया, सबसे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केजरीवाल सरकार का पक्ष लेते हुए चुनाव आयोग के कदम को अनुचित बताया. ममता बनर्जी ने यहां तक कह डाला कि किसी संवैधानिक संस्था को बदले की भावना से काम नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा, चुनाव आयोग ने आप के 20 विधायकों की बात नहीं सुनी, यह काफी दुर्भाग्य की बात है. यह न्यायिक कायदे-कानूनों के खिलाफ है.
बंगाल में भी संसदीय सचिवों का मामला कुछ-कुछ दिल्ली की तरह है. दिल्ली सरकार से एक कदम आगे बढ़ते हुए ममता सरकार ने बंगाल में 24 संसदीय सचिव चुने. सचिवों के जिम्मे काम यह रहा कि वो ‘सरकारी विभागों के बीच तालमेल’ कायम करेंगे. हालांकि कोलकाता हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना. मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है और संसदीय सचिवों के पद बेकार पड़े हैं.
कर्नाटक का अलग ही तर्क
कर्नाटक सरकार ने भी संसदीय सचिव नियुक्त किए हैं, लेकिन एक चौंकाऊ दलील के साथ. यहां 11 एमएलए और एमएलसी को संसदीय सचिव बनाया गया, यह कहते हुए कि संसदीय सचिव राज्य मंत्री का दर्जा तो नहीं लेंगे लेकिन मंत्रियों के सहयोगी जरूर होंगे. यह मामला भी फिलहाल हाईकोर्ट में पेंडिंग है.
तेलंगाना ने दिया कैबिनेट स्टेटस
तेलंगाना में टीआरएस की सरकार है जहां के. चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री हैं. मामला 2014 का है जब यहां की सरकार ने अपने 6 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया और एक कानून पारित कर इन्हें कैबिनेट का दर्जा दिया. हालांकि 2016 में हैदराबाद हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को पलट दिया.
नॉर्थ-ईस्ट में मची रही उथल-पुथल
संसदीय सचिव के मामले में नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश का नाम कुछ खास है. आबादी के लिहाज से काफी छोटे इन राज्यों ने भी बढ़चढ़ कर सचिव बनाए. इन दोनों राज्यों ने 26-26 संसदीय सचिव नियुक्त किए. लेकिन असम के एक मामले से सचिवों की नियुक्ति पर पानी फिर गया. साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने असम में नियुक्त संसदीय सचिवों को असंवैधानिक माना जिसके बाद अन्य नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों को अपने सचिव पद हटाने पड़े.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मणिपुर में 11 और मिजोरम में 7 संसदीय सचिवों ने इस्तीफा दिया. मेघालय हाईकोर्ट ने भी वहां के संसदीय सचिव कानून को अवैध माना, जिसके बाद 17 सचिवों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
पंजाब और हरियाणा भी भुगत चुके हैं खामियाजा
जुलाई 2017 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने चार संसदीय सचिवों की नियुक्ति को खारिज कर दिया. इसी आधार पर एसएडी-बीजेपी सरकार की ओर से चुने गए 18 संसदीय सचिवों की नियुक्ति भी हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही माना.

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