नेता अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट न मांगें- नरेंद्र मोदी
हिदायत -अमित शाह ने पार्टी नेताओं से गोवा और पंजाब में सरकार की वापसी के साथ यूपी, उत्तराखंड और मणिपुर में कमल खिलाने का दावा किया। हिमालयायूके न्यूज पोर्टल प्रस्तुति
बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बारे में कहा कि बीजेपी इन राज्यों में जीत हासिल करेगी, लेकिन इसके लिए बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को फोकस करना होगा. साथ ही उन्होंने ये हिदायत भी दी कि नेता अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट न मांगें. उन्होंने ये भी कहा कि बीजेपी चुनावी चंदे में पारदर्शिता के समर्थन में है.
हालांकि पीएम मोदी के भाषण में ज्यादा जोर गरीब कल्याण के मुद्दे पर रहा. प्रधानमंत्री ने कहा कि एनडीए की सरकार बनते ही उन्होंने कहा था कि यह सरकार गरीबों की भलाई के लिए आई है. पीएम ने कहा कि विपक्ष ने सिर्फ सिर्फ़ वादे किए, हमने ठोस काम किया.
प्रधानमंत्री ने कहा कि नोटबंदी से गरीबों को बहुत फायदा हुआ. उन्होंने कहा कि सरकार की सारी योजनाओं का सीधा लाभ गरीबों को मिला है और आगे भी सरकार गरीबों के हित के लिए कदम उठाएगी.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि हम गरीबों को वोट बैंक की नज़र से नहीं देखते. गरीबी हमारे लिए सेवा का अवसर है. गरीब की सेवा प्रभु की सेवा है, इसी संकल्प के साथ हमारी सरकार काम कर रही है.
रविशंकर प्रसाद ने बताया, प्रधानमंत्री ने कहा कि वह खुद एक गरीब परिवार से आते हैं और उन्होंने गरीबी देखी है. इसलिए उनकी सरकार गरीबों तथा वंचित तबकों के लिए काम करने को लेकर प्रतिबद्ध है.’ प्रधानमंत्री ने पार्टी के कार्यकर्ताओं से विपक्ष के नोटबंदी के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान तथा आरोपों से हतोत्साहित न होने की अपील की.
उन्होंने कहा कि आलोचनाओं का स्वागत करना चाहिए. हमारी आंतरिक शक्ति सच्चाई के मार्ग पर आगे बढ़ने में हमारी मदद करेगी.
रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने बैठक में जो सबसे अहम मुद्दा उठाया, वह है राजनीतिक प्रक्रिया में पारदर्शिता का. ऐसे दौर में जब पूरा देश पारदर्शिता का उत्सव मना रहा है, राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में भी पारदर्शिता लाने की जरूरत है.’ प्रसाद ने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की सीमा पर बात की और कहा कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में भाजपा सक्रिय भूमिका अदा करेगी.’
2014 की शानदार जीत के फौरन बाद बीजेपी को बड़ी हार का सामना क्यों
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पूरे विपक्ष का सफाया करते हुए राज्य में अपने सहयोगी अपना दल के साथ मिलकर 73 सीटें जीती थीं. बीजेपी को 43 फीसद वोट मिले थे. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 81 फीसद विधानसभा क्षेत्रों यानी 328 सीटों पर बढ़त हासिल हुई थी. यूपी के हालिया चुनावी इतिहास में किसी भी पार्टी को इतनी बड़ी जीत नहीं हासिल हुई थी. ऐसा आखिरी बार 1977 में हुआ था. जब जनता पार्टी ने 80 प्रतिशत विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी. लेकिन उसके बाद हुए चुनावों में जनता पार्टी को शिकस्त का सामना करना पड़ा था, तो सवाल ये है कि 2014 से 2016 के बीच क्या बदला? 2014 की शानदार जीत के फौरन बाद बीजेपी को बड़ी हार का सामना क्यों करना पड़ा? 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में से 10 समाजवादी पार्टी ने कैसे जीत ली? सितंबर 2014 में समाजवादी पार्टी का वोट बढ़कर 44.7 प्रतिशत हो गया. ये लोकसभा चुनाव से 20 फीसदी ज्यादा था. वहीं बीजेपी का वोट घटकर 38.4 फीसद रह गया. जबकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अपने सहयोगी के साथ मिलाकर करीब 48 प्रतिशत वोट मिले थे. 2016 में दो सीटों पर हुए उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को करीब 50 फीसद वोट मिले. वहीं बीजेपी को 41.5 प्रतिशत.ये आंकड़े दो बातें जाहिर करते हैं. पहली तो ये कि पिछले पांच चुनावों में पार्टियों को मिलने वाले वोट में जबरदस्त फेरबदल देखने को मिला है. हर बार चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं. दूसरी बात ये कि सीधे मुकाबले में बीजेपी विरोधी वोट एक ही पार्टी के खाते में जाते हैं. इससे बीजेपी को उन सीटों पर भी हार का सामना करना पड़ता है, जहां वो पिछले चुनाव में जीती थी. साफ है कि बीजेपी को तभी हराया जा सकता है जब इसकी विरोधी सभी पार्टियां आपस में हाथ मिला लें. या फिर बीएसपी चुनाव मैदान से हट जाए. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में मायावती की भी वापसी की तगड़ी दावेदारी है.
ये कहना गलत होगा कि मायावती के चुनाव लड़ने से सिर्फ बीजेपी विरोधी पार्टियों को नुकसान होता है. बीएसपी के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी का विरोधी रहा है. सीधे मुकाबले में बीएसपी के वोट बैंक का ये बड़ा हिस्सा बीजेपी के पक्ष में चला जाता है. साफ है कि 2017 के चुनाव में बीएसपी की मौजूदगी का असर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के वोटों के हिस्से पर पड़ेगा.
इससे दो हालात बन सकते हैं. इनमें कांग्रेस का रोल अहम हो जाता है.
पहली बात तो ये कि बीजेपी 2014 में मिले वोटों का अपना हिस्सा बचाए रखती है. ऐसे हालात में बीजेपी तभी हार सकती है जब उसके विरोधी सारे वोट मायावती को मिलें या फिर बीएसपी के वोटर उस उम्मीदवार के हक में वोट डालें जो बीजेपी को हरा सकता हो. यानी बीजेपी को तगड़ा झटका उसी सूरत में लग सकता है जब समाजवादी पार्टी या बीएसपी में से एक पार्टी पूरी तरह से कमजोर हो जाए. दूसरी स्थिति ये हो सकती है कि खुद बीजेपी के वोट के हिस्से में कमी हो. बीजेपी में मोदी युग की शुरुआत से पहले बीजेपी का यूपी में वोट शेयर लगातार घट रहा था. 1996 में बीजेपी को 32.51 फीसद वोट मिले थे. वहीं 2002 में ये हिस्सा महज 20.12 प्रतिशत रह गया. 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को केवल 16.97 फीसद वोट मिले थे. वहीं 2012 में ये केवल 15 फीसद रह गया. हालांकि वोटों की हिस्सेदारी में इतनी बड़ी गिरावट फिलहाल कमोबेश नामुमकिन है. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर अक्सर घट जाता है. तो अगर बीजेपी लोकसभा चुनावों में मिले 43 फीसद वोट से कम वोट हासिल करती है. तो बहुकोणीय मुकाबले में नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे कि बीजेपी को कितना नुकसान होगा और इसका फायदा किसको मिलेगा. 2012 में अखिलेश यादव ने सिर्फ 29.5 फीसद वोट लेकर समाजवादी पार्टी को बहुमत दिलाया था. यानी बीजेपी 10-12 फीसद वोट का नुकसान उठाकर भी राज्य के चुनाव में बहुमत पा सकती है. ऐसे में नतीजे उस सूरत में बदल सकते हैं जब किसी गठबंधन की पार्टियों के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हों.