नड्डा के सामने सत्ता बरकरार रखने की चुनौती ;अनेक राज्यो में हालात अनुकूल नही
पिछले करीब आठ महीनों से कार्यकारी अध्यक्ष का काम-काज संभाल रहे नड्डा ने पार्टी के अंदर कई जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभाया है. अब वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी BJP की कमान संभालेंगे. जेपी नड्डा ने कार्यवाहक अध्यक्ष के तौर पर आठ महीने पार्टी की कमान संभाली, लेकिन अपने सियासी प्रैक्टिस मैच में वो फेल रहे हैं.
बीजेपी शासित राज्यो में हालात अच्छे नही है, इन राज्यो से बीजेपी से छिन सकती है सत्ता- ऐसी रिपोर्ट से भाजपा के वरिष्ठ नेता वाकिफ है, पर क्या नये अध्यक्ष यह साहस दिखा पायेगे- जनचर्चाओ के अनुसार ऐसा न होने पर बीजेपी कुछ राज्यो में सत्ता गंवा सकती है- आने वाले वर्षो में कुछ राज्यो में विधानसभा चुनाव है, वहां बीजेपी के लिए स्थिति अनुकूूूल नही है, वही जेपी नड्डा ने कार्यवाहक अध्यक्ष के तौर पर आठ महीने पार्टी की कमान संभाली, लेकिन अपने सियासी प्रैक्टिस मैच में वो बीजेपी ने सत्ता गंवायी है, ऐसे में नये अध्यक्ष को कठोर फैसले लेने होगे,
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष से जेपी नड्डा अब पूर्णकालिक अध्यक्ष बनने जा रहे हैं. नड्डा की बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर आज नाम की घोषणा पार्टी के दिग्गज नेता करेंगे. बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर नड्डा काकार्यकाल 2023 तक है. जेपी नड्डा का बीजेपी के एक आम कार्यकर्ता से विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के हाई-प्रोफाइल नेता बनने का सफर काफी लंबा रहा है, लेकिन असल चुनौती अब उनके सामने होगी. अमित शाह ने बीजेपी को जिस जगह लाकर खड़ा किया है पार्टी को वहां से आगे ले जाने और दक्षिण भारत में कमल खिलाने की चुनौती है तो पूर्वात्तर के किले को अब बचाए रखने का भी चैलेंज होगा
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जेपी नड्डा के समर्थन में 21 राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष नामांकन पत्र चुनाव अधिकारी राधा मोहन सिंह के सामने जमा करेंगे. जिन राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा के समर्थन में नामांकन पत्र प्रस्तुत करेंगे, उनमें दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे राज्य शामिल हैं. जेपी नड्डा बीजेपी के 11वें राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे. जेपी नड्डा छात्र राजनीति के दौरान एबीवीपी से जुड़ने और उसके बाद बीजेपी के युवा मोर्चा से होते हुए हिमाचल की राजनीति में सक्रिय हुए और उसके बाद विधायक और मंत्री भी बने 2010 में वह राष्ट्रीय राजनीति में आए, जब नितिन गडकरी ने उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया.
जेपी नड्डा का जन्म 2 दिसंबर 1960 में पटना बिहार में हुआ था. इनके पिता नारायण लाल नड्डा पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और रांची विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. नड्डा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा बिहार में आरम्भ की स्नातक पटना विश्वविद्यालय से पूरी की. उन्होंने पटना में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में सक्रिय होकर कई छात्र आंदोलन और उस समय चल रहे साल 1975 के जय प्रकाश नारायण आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. हिमाचल विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढाई करते हुए नड्डा 1983 में हिमाचल विश्वविद्यालय छत्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. 1984 में हिमाचल प्रदेश में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के पूर्वकालीन कार्यकर्ता के रूप नड्डा ने एबीवीपी के संगठन मंत्री का काम किया. साल 1985-89 तक नड्डा दिल्ली में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के पुरकालीन कार्यकर्ता के रूप में संगठन मंत्री रहे. दिल्ली में अनेक छात्र आंदोलन का नेतृत्व करते हुए नड्डा ने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा के माध्यम तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों में बदलाव का नेतृत्व किया. इसके बाद 1989 में नड्डा ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय मंत्री के रूप ज़िम्मेदारी निभाई.
जेपी नड्डा के सामने दक्षिण भारत में पार्टी के ग्राफ को बढ़ाने की चुनौती होगी. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में बीजेपी की स्थिति काफी खराब रही. आंध्र और केरल समेत तमिलनाडु में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली. बीजेपी ने इन राज्यों में जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, लेकिन निराशा हाथ लगी. अब नड्डा के सामने दक्षिण में सीट जीतने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी. तमिलनाडु और केरल में विधानसभा चुनाव 2021 में होने हैं. ऐसे में बीजेपी की सारी जिम्मेदारी जेपी नड्डा के कंधों पर होगी. ऐसे में देखना होगा कि नड्डा इस पर कितना खरे उतरते हैं.
अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को जिस मुकाम पर पहुंचाया उसे बनाए रखना जेपी नड्डा के लिए एक अध्यक्ष के तौर पर चुनौतीपूर्ण काम रहेगा. अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने देश ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सहित बड़े राज्यों में जीत का परचम फहराया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जब कुछ लोग बीजेपी की हार की भविष्यवाणी कर रहे थे तब अमित शाह ने 300 प्लस सीटें जीतने का दावा किया था और उसे अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहे. इसके अलावा अमित शाह ने 2014 से लेकर अभी तक पार्टी को नई बुलंदी पर पहुंचाया है. उत्तर प्रदेश में 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म किया तो पूर्वोत्तर के राज्यों में कमल खिलाया. अब जब पार्टी की कमान नड्डा के हाथों में होगी तो इनके सामने बीजेपी को शीर्ष पर बनाए रखने के साथ-साथ खुद को एक सशक्त और दमदार अध्यक्ष के रूप में पेश करने की चुनौती होगी.
बीजेपी अध्यक्ष की कमान मिलने के बाद जेपी नड्डा की पहली अग्निपरीक्षा दिल्ली विधानसभा चुनाव में होनी है. बीजेपी पिछले 21 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर है. ऐसे में जेपी नड्डा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को दिल्ली की सत्ता में वापसी कराने की है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने राज्य स्तर के सीएम कैंडिडेट उतारने के बजाय इस बार बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व के सहारे चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है. ऐसे में दिल्ली की सियासी जंग जीतने की जिम्मेदारी पूरी तरह से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर है. दिल्ली में अभी तक आए सभी सर्वे में आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलता नजर आ रहा है. ऐसे में जेपी नड्डा के सामने दिल्ली में कमल खिलाने की एक बड़ी चुनौती है.
जेपी नड्डा के नेतृत्व में ही बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव होने हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ छोड़ जाने के बाद बिहार में भाजपा के सामने जेडीयू के साथ गठबंधन को बनाए रखने की चुनौती है. बिहार में इसी साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी. हालांकि नीतीश ने डेढ़ साल बाद आरजेडी से नाता तोड़ लिया और बीजेपी के साथ फिर से नई सरकार बना ली थी, लेकिन बीजेपी और जेडीयू नेताओं के बीच लगातार तल्खियां सामने आती रहती हैं. ऐसे में सीट शेयरिंग से लेकर राजनीतिक एजेंडा तय कर साथ चुनाव लड़ने की बड़ी चुनौती है.
बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पश्चिम बंगाल में जीत का परचम फहराने की है. इसके अलावा असम में सीएए को लेकर बीजेपी का राजनीतिक समीकरण बिगड़ गया है. 2021 में पश्चिम बंगाल और असम में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी का पूरा फोकस बंगाल पर है, जहां उन्हें टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी से दो-दो हाथ करने होंगे. बंगाल में बीजेपी एनआरसी और सीएए को लेकर राजनीति एजेंडा सेट कर रही है तो असम में इसी मुद्दे पर आंदोलन हो रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए असम और बंगाल की सियासी जंग जीतना एक बड़ी चुनौती होगी. इसके अलावा पूर्वोत्तर के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां नड्डा के सामने सत्ता बरकरार रखने की चुनौती होगी.
बीजेपी के कई सहयोगी दल साथ छोड़कर अलग हो चुके हैं. दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में टीडीपी अब अलग हो चुकी है. ऐसे ही महाराष्ट्र में बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना भी एनडीए से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ खड़ी है. वहीं, झारखंड में बीजेपी की लंबे समय तक सहयोगी रही ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) ने भी अब अपनी राह अलग कर ली है. जेपी नड्डा के सामने एक तरफ मौजूदा सहयोगियों की दोस्ती को बरकरार रखने का चैलेंज है तो दूसरी तरफ जो सहयोगी साथ छोड़कर चले गए हैं उन्हें दोबारा से लाने की चुनौती है.
मोदी सरकार एक के बाद एक बड़े सियासी फैसले ले रही है. इसके अलावा सरकार की ओर से कई योजनाओं की आधारशिला रखी जा रही है. ऐसे में इन योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने और जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी बीजेपी के अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा की होगी. सीएए को लेकर एक तरफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो बीजेपी घर-घर जनजागरण अभियान चला रही है. मोदी सरकार पर संविधान को बदलने और खत्म करने के आरोप लगाए जा रहे हैं, ऐसे में जेपी नड्डा के सामने इसे काउंटर करने की भी चुनौती होगी. ऐसे में देखना है कि कैसे जेपी नड्डा सरकार की योजनाओं को लोगों के बीच ले जाते हैं.
दरअसल लोकसभा चुनाव 2019 में मिली जीत के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गृहमंत्री बन गए, जिसके चलते पार्टी की कमान जेपी नड्डा को सौंपी गई और उन्हें कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. जेपी नड्डा ने कार्यवाहक अध्यक्ष के तौर पर आठ महीने पार्टी की कमान संभाली, लेकिन अपने सियासी प्रैक्टिस मैच में वो फेल रहे हैं.
महाराष्ट्र और झारखंड बीजेपी की सीटें ही नहीं घटीं बल्कि सत्ता भी गंवानी पड़ी है तो हरियाणा में जेजेपी के समर्थन से सरकार बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. वहीं, दिल्ली में भी बीजेपी की सियासी राह आसान नहीं मानी जा रही है. जेपी नड्डा का कार्यकाल 2023 तक है. नड्डा के नेतृत्व में बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु से लेकर उत्तर प्रदेश, पंजाब और पूर्वोत्तर के राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है, जहां उनकी असल अग्निपरीक्षा होगी.