बंगाल की शेरनी ने टूटी टांग तथा व्हील चेयर से पटखनी दे दी & PK ने किया सन्‍यास का ऐलान

2 मई 2021- ममता की छवि बीजेपी के खिलाफ सबसे मजबूत बनकर सामने आ रही है. तमाम कोशिशों के बाद भी बीजेपी ममता को बहुमत पाने से रोकने में नाकाम दिखाई दे रही है.  नंदीग्राम में कड़ी टक्कर के बाद ममता बनर्जी ने शुभेंदु अधिकारी को 1200 वोटों से हरा दिया है.   व्हील चेयर पर बैठी अकेली ममता ने बीजेपी के विजय रथ के आगे जाकर उसे रोक दिया

बंगाल में चार घंटे में ही तृणमूल कांग्रेस 148 सीटों के बहुमत के आंकड़े (292 सीटों के हिसाब से 147) को पार कर 200 से ज्यादा सीटों पर पहुंच गई। हालांकि, यह आंकड़ा 2016 में तृणमूल को मिलीं 211 सीटों से कम है। कुल सीटें:294 (वोटिंग 292 सीटों पर हुई) बहुमत:148 (292 सीटों के लिहाज से 147)

बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा 200 पार सीटों का दावा करती रही। जवाब में तृणमूल के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा था कि अगर भाजपा डबल डिजिट क्रॉस कर गई तो मैं अपना काम ही छोड़ दूंगा। चुनावी नतीजे प्रशांत को सही साबित कर रहे हैं। बंगाल में भाजपा 99 के पार तो नहीं जा रही।

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HIGH LIGHT; UP; पंचायत चुनाव के लिए लगातार मतगणना जारी है. शुरूआती रुझानों में सपा को बढ़त मिल रही है.

बंगाल में ममता का जादू बरकरार- इस बार के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत कई मंत्रियों ने बंगाल में रैलियां कर ममता पर निशाना साधा था. इसके बावजूद नतीजों में साफ दिख रहा है कि राज्य में अब भी ममता का जादू बरकरार है.  बीजेपी की तमाम कोशिशों के बाद भी बंगाल के लोगों ने ममता को सपोर्ट किया है.  टीएमसी को रुझानों में 200 से ज्यादा सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं. ऐसे में एक बात तो साफ है कि पिछले दिनों पार्टी का तमाम नेता साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए, लेकिन उससे टीएमसी के वोट बैंक पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है. यानी अब भी लोग टीएमसी पर भरोसा कर रहे हैं.  पिछले विधानसभा चुनावों तक जहां लेफ्ट और टीएमसी के बीच टक्कर देखने को मिलती थी. वहीं इस बार लेफ्ट को 10 सीटें भी मिलती नजर नहीं आ रहीं. इस बार सीधा मुकाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच दिखाई दे रहा है. लेफ्ट और अन्य पार्टियों को इस बार भारी नुकसान हुआ है.

बंगाल की जनता ने देश को यह संदेश दे दिया है कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी अब मोदी बनाम ममता के बीच ही होगा. बंगाल का चुनाव जितना बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण था उससे कहीं ज्यादा ममता के राजनीतिक भविष्य के जीवन-मरण का सवाल बन गया था.  2024 में ममता बनर्जी प्रधानमंत्री उम्मीदवार  के रूप में स्‍थापित- बीजेपी के तमाम नेता दीदी के अंडर करंट को समझने में नाकामयाब रहे. ममता का आक्रामक अंदाज लोगों को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहा. पूरी पार्टी व सरकार मिलकर बंगाल की शेरनी को घायल करना चाहते हैं. चोट लगने के बाद ममता ने कहा था कि “घायल शेरनी ज्यादा खतरनाक होती है.” बंगाल की जनता ने उसी अंदाज में बीजेपी को इसका जवाब दिया- मीडिया का पूरा साथ नहीं मिलने के बाद भी  ममता बीजेपी को परास्त करने में कामयाब  रही

पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी ने इस बार अपनी पूरी ताकत लगा दी. पीएम मोदी ने करीब 20 रैलियां कीं. उनके अलावा गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और पार्टी के अन्य बड़े नेताओं ने पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रचार किया. बावजूद इसके ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस न केवल धमाकेदार जीत दर्ज करने की राह पर अग्रसर हुई   बीजेपी ने बंगाल की सत्ता कब्जाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. साथ ही दो सौ से ज्यादा सीटें पाने के दावे को इतनी बार दोहराया गया जो अब बैक फायर के रुप में सामने आया है. बीजेपी अब साख बचाने की कोशिश कर रही है लेकिन बंगाल फतह का असर 2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब आदि राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में इसका असर पडना तय है,

TMC की चुनावी रणनीति प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने तैयार की थी. उन्होंने चुनावी नतीजों को लेकर ऐलान किया कि अब वह चुनावी रणनीति नहीं बनाएंगे,

TMC की चुनावी रणनीति प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने तैयार की थी. उन्होंने चुनावी नतीजों को लेकर ऐलान किया कि अब वह चुनावी रणनीति नहीं बनाएंगे, वह इस पेशे को छोड़ रहे हैं. कहा, ‘मैं जो करता हूं, अब उसे जारी नहीं रखना चाहता. मैंने काफी कुछ किया है. मेरे लिए एक ब्रेक लेने और जीवन में कुछ और करने का समय है. मैं इस जगह को छोड़ना चाहता हूं.’ राजनीति में फिर से वापसी की बात पर उन्होंने कहा, ‘मैं एक विफल नेता हूं. मैं वापस जाऊंगा और देखूंगा कि मुझे क्या करना है.’ उन्होंने बंगाल चुनाव के नतीजों पर कहा, ‘भले ही चुनावी नतीजे अभी एकतरफा दिख रहे हों लेकिन यह बेहद कड़ा मुकाबला था. हम बहुत अच्छा करने को लेकर आश्वस्त थे. BJP बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार करने की कोशिश कर रही थी कि वे बंगाल जीत रहे हैं.’ प्रशांत किशोर ने इंटरव्यू में कहा, ‘मोदी जी की लोकप्रियता का यह मतलब नहीं है कि बीजेपी हर चुनाव जीत जाएगी. BJP नेताओं ने 40 रैलियां कर लीं, इसका मतलब यह कतई नहीं था कि TMC हार जाएगी. प्रशांत किशोर ने कहा कि TMC भले ही जीत गई है लेकिन हर पार्टी को चुनाव आयोग के रवैये पर आपत्ति करनी चाहिए. वह पक्षपात करता रहा. ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत उनका जनता के साथ जुड़ाव है. जिस तरह वह जनता से जुड़ जाती हैं, बहुत कम नेताओं को उस तरह करते देखा है.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 में तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत के लिए सभी लोग ममता बनर्जी के नाम और काम को श्रेय देंगे, लेकिन इस जीत में प्रशांत किशोर की भूमिका बहुत बड़ी है। उन्होंने जिस तरह से इस चुनावी युद्ध की रणनीति बनाई, उसी का फल है कि तृणमूल को दो-तिहाई से ज़्यादा सीटें जीतकर सत्ता में आ रही है।  दाग़ी नेताओं को हटाना और जनता की शिकायतें दूर करना धूल-मिट्टी हटाने जैसा था। बंगाल के गर्व और बंगाल की बेटी के रूप में पेश करना उनकी छवि चमकाने के रूप में था। और बंगाली संस्कृति की एकमात्र प्रतिनिधि के तौर पर पेश करने में प्रशांत किशोर की भूमिका बहुत बड़ी है।

बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तृणमूल कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन का श्रेय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दिया और कहा कि उनकी पार्टी चुनावी नतीजों पर आत्ममंथन करेगी. वहीं अब बीजेपी के पश्चिम बंगाल के प्रभारी विजयवर्गीय ने यह भी बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें फोन कर पार्टी के खराब प्रदर्शन के बारे में जानकारी ली. बीजेपी महासचिव ने केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो और सांसद लॉकेट चटर्जी के मतगणना में पीछे रहने पर आश्चर्य जताया.

नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी की ‘शानदार जीत’ के लिये पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को बधाई देते हुए कहा कि भाजपा और ‘पूर्णत: पक्षपातपूर्ण’ निर्वाचन आयोग ने उनके खिलाफ पूरी ताकत लगा दी लेकिन वह सफल रहीं. उमर ने ट्वीट किया, ‘ममता दीदी और तृणमूल कांग्रेस के सभी सदस्यों के पश्चिम बंगाल में शानदार जीत के लिये हार्दिक बधाई. भाजपा और ‘पूर्णत: पक्षपातपूर्ण ‘ निर्वाचन आयोग ने उनके खिलाफ पूरी ताकत लगा दी लेकिन वह सफल रहीं. अगले पांच साल के लिये शुभकामनाएं.’

राहुल गॉधी ने मौका गंवा दिया-

राहुल गॉधी ने मौका गंवा दिया- ढुलमुल रणनीति- कांग्रेस ममता के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती थी. ममता को डर था कि बीजेपी के धनबल और बाहूबल का सामना अकेले करना मुश्किल होगा. लेकिन उस समय बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी अड़ गये और समझौता नहीं हो सका.  कांग्रेस के बडे नेता अधीर रंजन चौधरी जिस तरह से अपने गढ़ में ही कांग्रेस को जीत नहीं दिलवा सके उसके बाद उनकी राजनीतिक समझ पर सवाल उठने लगे हैं.

वही दूसरी ओर अब किसान आंदोलन का सम्मानजनक रास्ता निकालने का समय आ गया है. ऐसा नहीं हुआ तो ममता इस किसान आंदोलन को पंजाब के साथ मिलकर हवा दे सकती है, संघ भी समझ रहा है कि लोकतंत्र में किसी भी आंदोलन का लंबे समय तक चलना ठीक नहीं रहता है.

राजनीतिक विश्लेषक एस अनिल कहते हैं कि मोदी और भाजपा ने अपनी पूरी ताकत बंगाल में झोंक रखी थी। ऐसा माहौल भी बनाया कि भाजपा जीत रही है। इसके बावजूद TMC की जीत भाजपा और मोदी के लिए किसी सेटबैक से कम नहीं है। हां, दीदी ममता बनर्जी यदि नंदीग्राम में हार जाती तो भाजपा को खुश होने का मौका जरूर मिल सकता था, लेकिन ये भी नहीं हो पाया। भाजपा की इस हार के पीछे कई वजह हैं, सबसे बड़ी वजह है अति आत्मविश्वास।

राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन कहते हैं कि निश्चित तौर पर असर पड़ेगा। बंगाल चुनाव में कोरोना का असर शुरुआती समय में बहुत कम रहा है, लेकिन आगामी यूपी चुनाव में तो ये बहुत बड़ा मुद्दा बनने वाला है। यूपी में कोरोना को लेकर जिस तरह का सरकार फेल्योर है, उसका तो लॉन्ग टर्म असर होगा ही। बंगाल में हार के बाद यूपी में अब नए समीकरण भी देखने को मिल सकते हैं। 

बंगाल का मिजाज, भाजपा से मेल नहीं खाया। भाजपा ने बाहरी राज्यों से करीब पांच लाख वर्कर वहां भेजे थे। ये भाजपा का भीड़ जुटाने का काम था। इसीलिए बंगाल में पहली बार लोग यह बोलते दिखाई दिए कि देखो- यूपी वाला आ गया है। इसका लोकल पब्लिक में भाजपा के खिलाफ रिएक्शन भी देखने को मिला।

भाजपा द्वारा दीदी को नीचा दिखाने की नीति बंगाली लोगों को पसंद नहीं आई। पीएम मोदी ने अपनी रैली में जो दीदी वो दीदी किया। उसका असर भाजपा के खिलाफ हुआ। दूसरा सादगी का मसला भी है, बंगाली लोग सादगी पसंद होते हैं। 

भाजपा के लिए अगले साल मार्च-अप्रैल में यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोटों के वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी। पंजाब में भी UP और उत्तराखंड के साथ अगले साल चुनाव होने हैं। यहां भाजपा हमेशा से अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। अब यहां किसान आंदोलन के चलते अकाली दल भाजपा से अलग हो चुकी है। ऐसे में भाजपा के लिए यहां सीटें जीतना बिल्कुल आसान नहीं है। भाजपा के पास राज्य में कोई चेहरा भी नहीं है। ऐसे में भाजपा यहां मोदी के चेहरे के साथ ही मैदान में जाएगी।

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