7 मई को बुद्ध पूर्णिमा,करे यह शुभ काम 8 मई से ज्येष्ठ मास के व्रत एवं त्यौहार
HIGH LIGHT# Himalayauk Bureau # ऐसी मान्यता है कि वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु ने अपने नौवें अवतार के रूप में जन्म लिया # ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उनसे मिलने पहुंचे थे. इस बीच जब दोनों दोस्त साथ बैठे तब कृष्ण ने सुदामा को सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था. वहीं सुदामा ने इस व्रत को विधिवत किया और उनकी गरीबी नष्ट हो गई # मान्यता है कि इस दिन धर्मराज की पूजा भी की जाती है क्योंकि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं # माना जाता है कि धर्मराज मृत्यु के देवता हैं इसलिए उनके प्रसन्न होने से अकाल मौत का डर कम हो जाता है # वैशाख मास का महत्व इसलिये भी माना जाता है क्योंकि इसी मास में भगवान विष्णु के अवतार जिनमें नर-नारायण, भगवान परशुराम, नृसिंह अवतार और ह्यग्रीव आदि अवतार अवतरित हुए # मान्यता है कि देवी सीता भी इसी मास में धरती माता की कोख से प्रकट हुई थी # 8 मई से ज्येष्ठ मास शुरू # ज्येष्ठ मास 2020 – जानें ज्येष्ठ मास के व्रत व त्याहारों की सही तिथि : 8 मई से ज्येष्ठ मास के व्रत एवं त्यौहार
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। पूजा में मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें। मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
हिन्दू धर्म में बुद्ध पूर्णिमा का विशेष महत्व है. जी दरअसल वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था. कहा जाता है महात्मा बुद्ध को सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है. इसी के साथ ही इस पूर्णिमा को सिद्ध विनायक पूर्णिमा या सत्य विनायक पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. आप सभी को बता दें कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध को बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और यही नहीं पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध ने गोरखपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित कुशीनगर में महानिर्वाण की ओर प्रस्थान किया था. जी दरअसल हिन्दुओं के अलावा बौद्ध धर्म के लोग इस दिन को बुद्ध जयंती के रूप में मनाते हैं.
अभी वैशाख मास चल रहा है। गुरुवार, 7 मई को वैशाखी पूर्णिमा पर ये माह खत्म होगा। इस दिन बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाएगी। स्कंद पुराण में वैशाख मास को सभी मासों में उत्तम बताया गया है। पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति वैशाख मास में सूर्योदय से पहले स्नान करता है और व्रत रखता है, उसे भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। वैशाख मास के देवता भगवान मधुसूदन हैं। मान्यता है कि पुराने समय में महीरथ नामक राजा ने केवल वैशाख स्नान से ही वैकुण्ठधाम प्राप्त किया था। इस माह में घर में स्नान करते समय पवित्र नदियों के नाम जपना चाहिए। स्नान के बाद सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।
हिंदू पंचांग में चंद्रमास के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। जिस मास की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में होती है उसी के अनुसार माह का नाम पड़ा है। वैशाख मास की पूर्णिमा विशाखा नक्षत्र में होने के कारण इस मास का नाम वैशाख पड़ा। वर्ष 2020 में वैशाख मास की शुरुआत 09 अप्रैल से होगी, 07 मई को वैशाख पूर्णिमा के साथ ही वैशाक माह का समापन होगा।
बुद्ध पूर्णिमा की तिथि: 7 मई 2020
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 6 मई 2020 को शाम 7 बजकर 44 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 7 मई 2020 को शाम 04 बजकर 14 मिनट तक
अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जाप करें
वैशाखे मेषगे भानौ प्रात: स्नानपरायण:। अध्यं तेहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन।।
ये पुण्य कर्म भी करें
वैशाख व्रत की कथा सुनना चाहिए। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। व्रत करने वाले व्यक्ति को एक समय भोजन करना चाहिए। वैशाख मास में जल दान का विशेष महत्व है। यदि संभव हो तो इस माह में प्याऊ की स्थापना करवाएं या किसी प्याऊ में मटके का दान करें। किसी जरूरतमंद व्यक्ति को पंखा, फल, अन्न आदि का दान करना चाहिए।
हिन्दी पंचांग के अनुसार गुरुवार, 7 मई को वैशाख मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है. जी हाँ और इसके बाद 8 मई से ज्येष्ठ मास शुरू हो जाएगा. जी दरअसल इस तिथि पर भगवान बुद्ध की जयंती भी मनाई जाती है.
ज्येष्ठ मास का नाम सुनते ही तपती हुई दुपहरी का चित्र ज़हन में जरूर बनता होगा। बनेगा भी क्यों नहीं इस मास में झूलसा देने वाली गर्मी जो पड़ती है। गर्मियां वैसे तो फाल्गुन मास के उतरते समय ही शुरू हो जाती हैं फिर चैत्र और वैशाख पार करने पर जब ज्येष्ठ मास का आरंभ होता है तो गर्मी का मौसम ऊफान पर होता है। इसलिये हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्येष्ठ में जल का महत्व बहुत अधिक माना है। जल को समर्पित व्रत और त्यौहार भी इसी मास में मनाये जाते हैं। गर्मियों में पानी की किल्लत से हर कोई परेशान रहता है यही कारण हैं कि बड़े बुजूर्गों ने इन पर्व त्यौहारों के जरिये पानी का महत्व समझाने का प्रयास किया है। जल के महत्व को बताने वाले ज्येष्ठ मास की शुुरुआत 8 मई से हो रही है, 5 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ ही ज्येष्ठ माह की समाप्ति होगी।
कैसे पड़ा इस मास का नाम ज्येष्ठ?ज्येष्ठ हिंदू पंचाग के अनुसार चंद्र मास का तीसरा महीना होता है चैत्र और वैशाख मास के बाद आता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह मास अक्सर मई और जून के महीने में पड़ता है। जैसा कि सभी चंद्र मासों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं ज्येष्ठ माह भी ज्येष्ठा नामक नक्षत्र पर आधारित है। मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है इसी कारण इस माह का नाम ज्येष्ठ रखा गया है।
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में तो कोई खास पर्व नहीं है लेकिन शुक्ल पक्ष में जल के महत्व को बताने वाले दो महत्वपूर्ण त्यौहार गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी पड़ते हैं। गंगा नदी का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। क्योंकि गुणों के मामले में गंगा नदी का स्थान सर्वोपरि माना जाता है।
अपरा एकादशी – एकादशियां तो सभी पावन मानी जाती हैं लेकिन ज्येष्ठ मास की कृष्ण एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अपरा एकादशी का त्यौहार 18 मई को है।
ज्येष्ठ अमावस्या – ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसका एक कारण तो यह है कि अमावस्या तिथि पूर्वजों की शांति के दान-तर्पण आदि के लिये बहुत ही शुभ मानी जाती है। दूसरा ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व इसलिये बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन शनिदेव की जयंती मनाई जाती है तो वहीं वट सावित्री का व्रत भी ज्येष्ठ अमावस्या को ही रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या 22 मई को है।
गंगा दशहरा – गंगा दशहरा का त्यौहार ज्येष्ठ मास में मनाया जाने वाला विशेष त्यौहार है। यह त्यौहार मोक्षदायिनी मां गंगा के महत्व को बतलाता ही है साथ ही जल के सरंक्षण का संदेश भी देता है। गंगा दशहरा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व 1 जून को है।
निर्जला एकादशी – निर्जला एकादशी का उपवास काफी कठिन होता है। इस दिन जल की एक बूंद तक व्रती को ग्रहण नहीं करनी होती साथ ही उसे दूसरों को जल पिलाना होता है। सब्र संतोष और जल संरक्षण सहित जल के महत्व को समझने का यह उपवास ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को रखा जाता है। निर्जला एकादशी सभी एकादशियों में श्रेष्ठ मानी जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार निर्जला एकादशी का उपवास 2 जून को है। इसी तिथि को गायत्री जयंती भी मनाई जाती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा/ वट पूर्णिमा व्रत/ कबीरदास जयंती – वट पूर्णिमा व्रत, वट सावित्री व्रत की तरह ही है। इस दिन भी विवाहित महिलाएं सुख समृद्धि और अपने पति की दीर्घायु के लिये उपवास रखती हैं लेकिन वट पूर्णिमा व्रत मुख्यत: महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में यह ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है जबकि उत्तर भारत के राज्यों में यह ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत के रूप में मनाया जाता है। वट पर्णिमा का व्रत 4 जून को रखा जायेगा। हालांकि 5 जून को भी ज्येष्ठ पूर्णिमा मनाई जायेगी, इसी दिन भक्तिकाल के प्रमुख संत कबीरदास जी की जयंती भी मनाई जाती है।
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