एक साथ करवाने हैं तो एक-दो महीने में ही फैसला ले- मुख्य चुनाव आयुक्त

देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदों को चुनाव आयोग से झटका लगा है. चुनाव आयोग का कहना है कि देश में इतने वीवीपैट ही नहीं हैं कि 11 राज्य के विधानसभा चुनाव और देश में लोकसभा चुनाव एक साथ करवाएं जाएं. मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत के मुताबिक, अगर 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ करवाने हैं तो इस पर अगले एक-दो महीने में ही फैसला लेना होगा. क्योंकि इसके लिए काफी बड़ी मात्रा में नई वीवीपैट मशीनें ऑर्डर करनी होंगी. सूत्रों ने कहा कि सरकार विधि आयोग की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है जो दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा पेश करेगी. रिपोर्ट सरकार के पास आने के बाद उस पर चर्चा के विस्तृत बिन्दु होंगे. ध्यान हो कि चुनाव एक साथ कराने की व्यावहारिकता की जांच कर रहे आयोग ने इससे पहले अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले राजनीतिक दलों से नजरिया पूछा था.

चार राज्यों में दो से तीन महीनो के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.

साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इस साल अक्टूबर और नवम्बर में जिन चार राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के चुनाव होने हैं. उनमें कुछ की विधानसभा का कार्यकाल की अवधि फरवरी 2019 तक है. ऐसे में इन चार राज्यों में दो से तीन महीनो के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. चुनाव आयोग पहले कह चुका है कि आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए तैयार हैं. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव को भी एक साथ कराने के सम्भावनाओं को अभी से तलाशना शुरू कर दिया है. ेेेेेेेेेेेेेेेअगर सब कुछ ठीक रहा तो इन 11 राज्यों की सूची में बिहार भी 12वें राज्य के रूप में शामिल हो सकता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने पहले ही ‘एक देश एक चुनाव’ के फ़ॉर्मूले पर अपनी सहमति दे दी है.

हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड

CEC ओपी रावत ने कहा- एक देश, एक चुनाव संभव नहीं, पर 11 राज्‍यों में एक साथ हो सकते हैंं चुनाव नीतीश कुमार ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का समर्थन करते हुए एक बार फिर कहा कि फ़िलहाल ये संभव नहीं
मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त (CEC) ओम प्रकाश रावत ने कहा है कि एक देश, एक चुनाव अभी क़ानूनन संभव नहीं है. उन्‍होंने कहा कि कानून में संशोधन के बाद ही एक साथ चुनाव संभव है. उन्‍होंने कहा कि 11 राज्यों में एक साथ चुनाव की संभावना दिखती है. वहीं नीतीश कुमार ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का समर्थन करते हुए एक बार फिर कहा कि फ़िलहाल ये संभव नहीं है.

 
संविधान की धारा 172 (1) में इस बारे में स्पष्ट व्याख्या की गई है. इस धारा के मुताबिक किसी भी विधानसभा की अवधि 5 साल से ज़्यादा नहीं हो सकती. इस अवधि को तभी बढ़ाया जा सकता है अगर देश में आपातकाल लगा हो. आपातकाल की स्थिति में संसद किसी राज्य की विधानसभा की अवधि एक बार में 1 साल तक बढ़ाई जा सकती है.
 

इसके अलावा चुनाव आयोग की ओर से ये भी कहा गया है कि साल के अंत में होने वाले 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ भी लोकसभा चुनाव नहीं करवाए जा सकते हैं. इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एक देश-एक चुनाव पर बयान दिया है. उनका कहना है कि अभी की परिस्थिति में ये संभव नहीं है.

गौरतलब है कि ‘एक देश एक चुनाव’ के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराने में भले ही मोदी सरकार और चुनाव आयोग के सामने संवैधानिक दिक्कतें हों, लेकिन बीजेपी सूत्रों की मानें तो 2019 में लोकसभा के साथ एक दर्जन राज्यों के विधानसभा चुनाव कराकर ‘एक देश एक चुनाव’ की दिशा में एक बड़ा उदाहरण पेश कर सकती है.
बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक इसके लिए किसी तरह के संविधान संशोधन या चुनावी नियमों में कोई बड़ा संशोधन करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. लेकिन अब चुनाव आयोग के जवाब के बाद इन अटकलों पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है.

कांग्रेस ने अपना पक्ष रखा है. कांग्रेस ने मंगलवार को बयान जारी करके कहा है कि अगर प्रधानमंत्री मोदी एक साथ चुनाव चाहते हैं तो लोकसभा भंग कर दें. दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि अभी एक देश, एक चुनाव संभव नहीं है. इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. कांग्रेस ने कहा है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा भंग करते हैं तो चुनाव के लिए हमारी तैयारी पूरी है. कांग्रेस ने मांग की है कि पीएम मोदी अपने पद से इस्‍तीफा दें और चुनाव पहले कराएं. बता दें कि वन नेशन वन इलेक्‍शन की बढ़ती मांग के बीच बीजेपी लोकसभा के साथ-साथ 11 विधानसभा चुनाव करा सकती है. सूत्रों के मुताबिक इसके लिए संविधान में किसी भी तरह के संशोधन की जरूरत भी नहीं है. हालांकि राजनीतिक दल सांविधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए ही इसका विरोध कर रही हैं.

केंद्र सरकार लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने पर आमसहमति बनाने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाने पर विचार कर रही है. यह बैठक विधि आयोग द्वारा इस मामले में कानूनी ढांचे की सिफारिश के बाद आयोजित की जा सकती है. सरकार से जुड़े सूत्रों के अनुसार एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर नेताओं के बीच चर्चा का दायरा बढाने के लिए आगामी दिनों में सर्वदलीय बैठक बुलाई जा सकती है, लेकिन बैठक बुलाने को लेकर अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है.

 
एक देश एक चुनाव को लेकर पिछले काफी समय से चर्चा चल रही है और अब बीजेपी के सूत्रों से जानकारी सामने आ रही है कि बीजेपी 11 राज्य के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ करवाने को लेकर विचार कर रही है. यह राज्य हैं मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम जिनके चुनाव थोड़ा आगे बढ़ाने की योजना है तो ओड़िशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के चुनाव तय वक्त पर लोकसभा के साथ करवाने की और हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड के चुनाव अपने निर्धारित वक्त से पहले करवाने पर विचार चल रहा है. हालांकि चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक अभी आयोग के सामने ऐसा कोई प्रपोज़ल सामने नहीं आया है. अगर ऐसा कोई सुझाव सामने आता है तो उस पर विचार किया जाएगा. हालांकि जानकारी के मुताबिक यह इतना आसान भी नहीं है क्योंकि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ का टर्म जनवरी के पहले हफ्ते में समाप्त हो रहा है और मिज़ोरम का टर्म दिसंबर के आखिरी हफ्ते में. ऐसे में संविधान के मुताबिक इन 4 राज्यों में टर्म खत्म होने से पहले चुनाव करवाना ज़रूरी है और अगर इन 4 राज्यों का चुनाव आगे बढ़ाना है तो उसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ सकता है. वहीं अगर बाकी राज्यों के कार्यकाल को पहले खत्म किया भी जाता है तो वो फैसला भी जल्द ही लेना होगा जिससे कि चुनाव आयोग तैयारी कर सके. इसके लिए बड़ी संख्या में ईवीएम, सुरक्षा बल और बाकी इंतजाम करने होंगे जो कि फिलहाल इतना आसान नहीं है. ऐसे में फिलहाल यही कहा जा सकता है कि बीजेपी भले ही 11 राज्यों के चुनाव लोकसभा के साथ करवाने की योजना बना रही हो लेकिन संविधान और जमीनी हकीकत को देखते हुए यह सब इतना आसान भी नहीं है. हर एक गुजरते दिन के साथ लोकसभा के साथ एक विधानसभा चुनाव करवाने की योजना पर अमल करना और मुश्किल होता जाएगा.

 

कुछ वर्गों की ओर से इन संकेतों के बीच कि लोकसभा का चुनाव अगले वर्ष के शुरू में 11 विधानसभाओं के साथ कराने को लेकर प्रयास किये जा सकते हैं, भाजपा ने ‘‘खर्च पर अंकुश’’ के लिए एकसाथ चुनाव कराने पर जोर दिया है, जिसके लिए बीजेपी शासित तीन राज्यों का चुनाव विलंबित किया जा सकता है और 2019 में बाद में होने वाले कुछ राज्यों के चुनाव पहले कराये जा सकते हैं. भाजपा सूत्रों ने यद्यपि कहा कि राज्यों का चुनाव विलंबित करने या पहले कराने को लेकर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है और इस विचार पर पार्टी के भीतर औपचारिक रूप से चर्चा नहीं की गई है क्योंकि ऐसे कदमों की संवैधानिक वैधता को ध्यान में रखना होगा. देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की पुरजोर वकालत करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि इससे चुनाव पर बेतहाशा खर्च पर लगाम लगाने और देश के संघीय स्वरूप को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी. सोमवार को इस आशय से संबंधित विधि आयोग को लिखे पत्र में अमित शाह ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना केवल परिकल्पना नहीं है बल्कि एक सिद्धांत है जिसे लागू किया जा सकता है. भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि यह आधारहीन दलील है कि एक साथ चुनाव देश के संघीय स्वरूप के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से देश का संघीय स्वरूप मजबूत होगा. विधि आयोग को लिखे आठ पन्नों के पत्र में शाह ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने का विरोध करना राजनीति से प्रेरित लगता है. उल्लेखनीय है कि एक साथ चुनाव कराने की व्यवहारिकता पर विधि आयोग विचार कर रहा है और वह अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले राजनीतिक दलों के विचार जान रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी एक साथ चुनाव कराने के पक्षधर रहे हैं.

वही दूसरी ओर
साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इस साल अक्टूबर और नवम्बर में जिन चार राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के चुनाव होने हैं. उनमें कुछ की विधानसभा का कार्यकाल की अवधि फरवरी 2019 तक है. ऐसे में इन चार राज्यों में दो से तीन महीनो के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. चुनाव आयोग पहले कह चुका है कि आयोग लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए तैयार हैं. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव को भी एक साथ कराने के सम्भावनाओं को अभी से तलाशना शुरू कर दिया है. ेेेेेेेेेेेेेेेअगर सब कुछ ठीक रहा तो इन 11 राज्यों की सूची में बिहार भी 12वें राज्य के रूप में शामिल हो सकता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने पहले ही ‘एक देश एक चुनाव’ के फ़ॉर्मूले पर अपनी सहमति दे दी है.

लोकसभा चुनाव के साथ अपने तीन शासित राज्यों को समय से पहले चुनाव में ले जाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को एक बड़ा रिस्क लेना पड़ेगा. इस रिस्क में एक छोटी सी ग़लती के कारण बीजेपी को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ सकता है. अब देखना ये है कि बीजेपी नेतृत्व लोकसभा चुनाव के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव साथ कराने जैसा बड़ा रिस्क लेने का जोखिम उठाएगा या फिर जैसा चल रहा हैं उसको वैसे ही चलने देते हुए अपनी दूसरी चुनावी रणनीतियों को अंजाम देकर 2019 में जीत के इरादे के साथ उतरने को तैयार है.
एक देश एक चुनाव’ के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ कराने में भले ही मोदी सरकार और चुनाव आयोग के सामने संवैधानिक दिक्कतें हों, लेकिन बीजेपी सूत्रों की माने तो 2019 में लोकसभा के साथ एक दर्जन राज्यों के विधानसभा चुनाव कराकर ‘एक देश एक चुनाव’ की दिशा में एक बड़ा उदाहरण पेश कर सकती है. बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक इसके लिए किसी तरह के संविधान संशोधन या चुनावी नियमों में कोई बड़ा संशोधन करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
आज ‘एक देश एक चुनाव’ को लेकर विधि आयोग के चैयरमैन बीएस चौहान ने देश की दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के प्रतिनिधि मंडलों से मुलाक़ात कर एक देश एक चुनाव पर उनकी पार्टी राय जानने के लिए बुलाया था. इससे पहले पिछले महीने कई क्षेत्रीय पार्टियों को ‘एक देश एक चुनाव’ पर राय जानने के लिए बुलाया गया था.
सूत्रों के अनुसार चूंकि चुनाव आयोग और अधिकांश राजनीतिक पार्टियां ‘एक देश एक चुनाव’ के फ़ॉर्मूले पर राज़ी हैं. लेकिन सभी दलों की रज़ामंदी के बाद भी संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. इसके लिए संसद के अगले शीतक़ालीन सत्र तक इंतज़ार करना पड़ सकता है. इसके लिए बीजेपी के रणनीतिकार एक फ़ॉर्मूले पर काम कर रहे हैं जिसके अनुसार लोकसभा चुनावों के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव होते ही हैं, इसमें कुछ अन्य बीजेपी शासित राज्यों को भी शामिल किया जा सकता है.
लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2019 में होने हैं. इन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और वहां बीजेपी पहले चुनाव करा सकती हैं. जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन है और वहां भी अगले साल चुनाव कराने में ज़्यादा दिक्कत नहीं है.

मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त (CEC) ओम प्रकाश रावत ने कहा है कि एक देश, एक चुनाव अभी क़ानूनन संभव नहीं है. उन्‍होंने कहा कि कानून में संशोधन के बाद ही एक साथ चुनाव संभव है. उन्‍होंने कहा कि 11 राज्यों में एक साथ चुनाव की संभावना दिखती है. वहीं नीतीश कुमार ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का समर्थन करते हुए एक बार फिर कहा कि फ़िलहाल ये संभव नहीं है.
वहीं भाजपा ने देश में एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है. पार्टी से जुड़े सूत्रों के मानें तो अगले साल देश के 11 राज्यों में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं. इसके लिए अभी से ही तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं. भाजपा ने चुनाव में होने वाले खर्च पर अंकुश लगाने के लिए देश में एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया. सूत्रों के अनुसार भाजपा के इस रुख के बाद देश के तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को विलंबित किया जा सकता है. इतना ही 2019 में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उसे भी एक ही साथ कराया जा सकता है. हालांकि अभी तक किसी ने औपचारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा है. पार्टी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि राज्यों का चुनाव विलंबित करने या पहले कराने को लेकर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है और इस विचार पर पार्टी के भीतर औपचारिक रूप से चर्चा नहीं की गई है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ऐसे कदमों की संवैधानिक वैधता का भी ध्यान में रखना होगा. हालांकि इन सब के बीच अगले साल मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ विधानसभाओं का कार्यकाल खत्म होने के बाद इन राज्यों में कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लगाने की अटकलों को भी झुटलाया नहीं गया है. वहीं इन सब के बीच खबर आ रही है कि देश में एक साथ चुनाव कराने को लेकर एक सर्वदलिय बैठक भी बुला सकती है सरकार.

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