संगीतकार एक दिन लता से गाना गाने की भीख माँगेंगे- संगीतकार गुलाम हैदर ने भविष्यवाणी कर लता को पहला महत्वपूर्ण ब्रेक दिया,लता के इस गाने पर देश ही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू भी रोए
92 साल पहले 28 सितंबर 1929 का दिन इंदौर के लिए सामान्य सा दिन था। रंगमंच के कलाकार और गायक पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर एक बेटी पैदा हुई, लता मंगेशकर। आगे चल कर पता चला कि यही तो चमत्कार था। दुनिया लता मंगेशकर के गायन से रूबरू हो कर भौंचक्की रह गयी। लता के नाम का सुनहरा अध्याय जुड़ता चला गया लता मंगेशकर गायकी में इतना डूब गयीं कि अपना होश भी कहां रहा। कभी शादी नहीं की। कभी शोहरत और दौलत की नुमाइश नहीं की बस दिन रात गायन की पूजा ही करती रहीं। Himalayauk News
जब लता मंगेशकर की उम्र 33 साल थी, तभी 1962 की शुरुआत में वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई थीं. तब डॉक्टरों ने बताया था कि उन्हें खाने में धीमा जहर दिया गया था. वह तीन दिन तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझती रही थीं. अस्पताल से आने के बाद भी तीन महीने तक बेड पर ही रही थीं. जहर से उनका शरीर तब टूट चुका था. इस घटना के बाद तुरंत उनका कुक घर छोड़कर भाग गया था.
“मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी की आसां हो गयीं” ;
लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर नाटककार और संगीतकार थे। लता के जन्म के कुछ समय बाद दीनानाथ परिवार सहित महाराष्ट्र चले आए। घर के संगीत के माहौल ने लता पर असर डाला और जब वह पांच साल की थीं तभी से संगीत सीखना शुरू कर दिया था वह भी अपने पिता से। साथ ही उनकी छोटी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी बैठ जाया करती थीं। केवल 5 साल की उम्र में ही लता ने अपने पिता के मराठी संगीत नाट्य में अभिनय किया।
.HIGH LIGHT 6 FEB 2022 # गुलाम हैदर, संगीतकार, जिन्होंने बॉलीवुड में लता को स्थापित किया # गुलाम हैदर ने लता मंगेशकर को अपना पहला महत्वपूर्ण ब्रेक दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का न छोड़ा गाने से दिया # उसके बाद लता ने पीछे मूड कर नही देखा # 1963-1967 के बीच लता और रफी ने साथ में गाना नहीं गाया # कई सम्मानों के बीच, उन्हें 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और 2001 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। # ‘आयेगा आनेवाला’, ‘महल’ (1949) के गानों की धूम मच गई। इस गाने ने देश की सांसें रोक लीं : मुग़ल-ए-आज़म (1960) का गाना प्यार किया तो डरना क्या या साहिर लुधियानवी का लिखा भजन अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम (हम दोनों) या पिया तोसे नैना लागे (गाइड, 1965) ने लता के नाम को हर भारतवासी की जबान पर ला दिया। लता मंगेशकर के प्रति कृतज्ञता की भावना तब बढ़ी जब उन्होंने सी. रामचंद्र की धुन पर कवि प्रदीप का ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया। भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्र की सामूहिक चेतना जाग उठी। इस गाने पर देश ही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू भी रोए।
सी. रामचंद्र की धुन पर कवि प्रदीप का ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया। भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्र की सामूहिक चेतना जाग उठी। इस गाने पर देश ही नहीं, पंडित जवाहरलाल नेहरू भी रोए।
लता मंगेशकर के पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर ग्वालियर घराने के संगीतकार थे, जो एक ड्रामा कंपनी चलाते थे और लता के पहले गुरु थे। लता सिर्फ एक दिन के लिए स्कूल गई थीं। वह लगभग पाँच वर्ष की थी और अपनी बहन आशा (भोसले) को अपने साथ ले गईं। लेकिन स्कूल इतने छोटे बच्चे को अपने साथ क्लास में नहीं बैठने दे रहा था। फिर उन्होंने कभी स्कूल वापस नहीं जाने का फैसला किया।
1963 में जब लता मंगेशकर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत गाया था, तब देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू कीआंखों में आंसू छलक पड़े थे. 1974 में वह पहली भारतीय शख्सियत बनीं जिसने लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में अपनी प्रस्तुति दी थी.
घर पर, वह अपने पिता को संगीत सीखने वाले छात्रों को पढ़ाते हुए सुनती थीं और उन टुकड़ों को याद कर लेती थीं। एक दिन उनके पिता ने उनके रूप में अपनी छात्रा को कुछ सुर सुधारते हुए देखा तो चकित रह गये कि बच्चे ने कितनी चतुराई से याद किया है। उन्होंने लता को शास्त्रीय संगीत की गुत्थियां सिखाने का फैसला किया। लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु ने परिवार की सबसे बड़ी संतान लता को 13 साल की उम्र में काम शुरू करने के लिए मजबूर किया।
उनके परिवार के करीबी दोस्त और नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक मास्टर विनायक ने मंगेशकर परिवार की देखभाल की और लता को गायिका बनने में मदद की। उनका पहला गाना वसंत जोगलेकर की मराठी फिल्म किटी हसाल के लिए था, लेकिन इससे कोई नाम नहीं मिला। 1945 में मुंबई जाने से पहले उन्होंने कुछ मराठी फिल्मों के लिए गाने गाए।
उन्होंने भिंडी बाजार घराने के उस्ताद अमन अली खान के नेतृत्व में गायन की ट्रेनिंग शुरू की। विनायक ने लता मंगेशकर को संगीतकार वसंत देसाई से भी मिलवाया। लेकिन देसाई का भी, 1948 में निधन हो गया। इसके बाद संगीतकार गुलाम हैदर थे, जिन्होंने लता मंगेशकर को अपने संरक्षण में ले लिया, और उन्हें फिल्म निर्माता ससाधर मुखर्जी से मिलवाया, जिन्होंने उस समय यानी 1948 के आसपास फिल्मिस्तान स्टूडियो की स्थापना की थी। लेकिन लता मंगेशकर को मुखर्जी ने खारिज कर दिया, जिन्होंने सोचा कि उनकी आवाज बहुत पतली है। इस बात से गुलाम हैदर मुखर्जी से नाराज़ हो गए।
“मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी की आसां हो गयीं”
अभी लता के संगीत की यात्रा ठीक से शुरू भी नहीं हो पायी थी कि उनके पिता का निधन हो गया। उस समय लता की उम्र थी महज 13 साल। वे घर में सबसे बड़ी थीं इसलिये घर की आर्थिक ज़िम्मेदारी अपने छोटे कंधों पर उठाने की पहल की। मंगेशकर परिवार के इस आड़े समय में नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक और लता के पिता के दोस्त मास्टर विनायक ने मंगेशकर परिवार को सहारा दिया। अब लता को पैसा कमाने के लिये काम करना था। छोटी उम्र में तमाम तरह की कठिनाइयां रास्ते में बिछी पड़ी थीं। मास्टर विनायक के सहयोग से लता मंगेशकर मराठी सिने जगत में प्रवेश कर गयीं। उन्होंने मराठी फिल्म ‘किटि हासल’ (1942) के लिए एक गाना गाया, लेकिन इस गाने को फिल्म से निकाल दिया गया। संसार (1943), गजभाऊ (1944), बड़ी माँ (1945), जीवन यात्रा (1946), सुभद्रा (1946), मंदिर (1948) इसी नज़रिये से की गयी फ़िल्में थीं। मगर शायद बचपन में चेचक की बीमारी के चलते चेहरे पर पड़े हुए दागों ने लता मंगेशकर के मन में अभिनय के प्रति शौक को पनपने नहीं दिया। और शायद यह अच्छा ही हुआ क्योंकि लता ने सिर्फ़ गायन पर ही ध्यान केंद्रित किया और उसका जो नतीजा निकला वो सदियों तक चर्चा में रहेगा। एक बार लता मंगेशकर ने कहा था कि आशा 14 साल की उम्र में गणपतराव भोसले से शादी करने के लिए घर से भाग गई थी और परिवार दुखी था।
कई संगीतकारों ने तो लता को खारिज कर दिया
कई संगीतकारों ने तो लता को यह कह कर खारिज कर दिया कि आवाज़ बहुत पतली है। उस समय नूरजहाँ, जोहरा बाई अंबाले वाली, राजकुमारी और शमशाद बेगम जैसी भारी आवाज़ों वाली गायिकाओं का सिक्का चलता था।
अब लता की आवाज़ की चर्चा शुरू हो चुकी थी
संगीतकार गुलाम हैदर और खेमचंद्र प्रकाश ने भी लता का गायन सुना और वे उनके स्वर को सुरीलेपन पर मोहित हो गए। लता को गाने के मौक़े मिल रहे थे लेकिन पूरी फिल्म में एक या दो गीत। फिल्म “गजरे (1948)” में लता को पांच गीत गाने का अवसर मिला लेकिन समय की शिला पर उनकी आवाज़ ने पहली छोप छोड़ी गुलाम हैदर के संगीत निर्देशन से सजी फिल्म “मजबूर” में। इस फिल्म के कुल आठ गीतों में से गुलाम हैदर ने सात गीत लता से गवाए।
अब लता की आवाज़ की चर्चा शुरू हो चुकी थी। अगले साल 1949 में लता महान गायिका के रूप में अवतरित हो गयीं। फिल्म “महल” उसी साल रिलीज़ हुई। खेमचंद प्रकाश ने लता से तीन गीत गवाए जिसमें से एक गीत “आएगा आएगा आएगा आने वाला आएगा” को लता ने अमर बना दिया। यह उनके जीवन का पहला हिट गीत कहा जा सकता है। लेकिन साल 1949 की कोख में शंकर जयकिशन के संगीत से सजी फिल्म “बरसात” आनी बाकी थी। जब फिल्म रिलीज़ हुई तो दुनिया लता मंगेशकर के गायन से रूबरू हो कर भौंचक्की रह गयी।
1945 में लता मंगेशकर मुंबई चली गईं, लेकिन उनकी पहली गीत 1949 में हिट हुई. फिल्म थी ‘महल’ और वह गाना था ‘आएगा आने वाला’, इसके बाद वह हिंदी सिनेमा की सबसे अधिक मांग वाली आवाजों में से एक बन गई थीं.
“जिया बेकरार है छायी बहार है जा मोरे साजना तेरा इंतज़ार है”। “हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का”। “बरसात में हमसे मिले तुम बरसात में”। “हो हो हो हो मुझे किसी से प्यार हो गया”। “बिछुड़े हुए परदेसी एक बार तो आजा तू”। इसके अलावा मुकेश के साथ मिल कर गाया यह कालजयी गीत “छोड़ गए बालम हाय अकेला छोड़ गए”। इसके बाद तो सुरैया को छोड़ हर बड़ी हिरोइन ने लता से ही गाना गवाने की ज़िद पकड़ ली।
1949 नौशाद की संगीतबद्ध फिल्म दुलारी रिलीज़ हुई। सत्तर साल बाद भी इस फिल्म का ये गीत जवान बना हुआ है “ऐ दिल तुझे कसम है हिम्मत ना हारना”। 1949 महबूब खान इसी साल फिल्म अंदाज ले कर आए। इसके संगीतकार भी नौशाद थे। इसमें लता का गाया यह गीत कभी पुराना नहीं पड़ा। “उठाए जा उनके सितम”।
लता के नाम का सुनहरा अध्याय जुड़ता चला गया इतने सुरीले, कर्णप्रिय, यादगार और शानदार गीत लता ने गाए कि सबकी चर्चा एक समय में करना संभव ही नहीं है।
लता मंगेशकर ने मधुबाला और वहीदा रहमान से लेकर काजोल और माधुरी दीक्षित तक कई अभिनेत्रियों के लिए आवाज दी। उन्होंने 1990 और 21वीं सदी के कुछ हिस्से और यारा सीली-सीली (फिल्म लेकिन 1990), माई नी माई (हम आपके हैं कौन 1994), जिया जले (दिल से, 1998), जैसे गाने गाए। मेरे ख्वाबो में जो आए (दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे, 1994) इस बात का प्रमाण थे कि युवा अभिनेत्रियों के लिए आवाज के मामले में एक निश्चित उम्र का होना जरूरी नहीं था। लता मंगेशकर ने लगभग सभी के लिए गाया। उनकी अंतिम लोकप्रिय फिल्म वीर ज़ारा (2004) थी, जहाँ संगीतकार मदन मोहन की पुरानी धुनों को पुनर्जीवित किया गया था, और रंग दे बसंती (2006) में मार्मिक लुक्का छुप्पी वाला गाना कैसे भुलाया जा सकता है। वीर जारा के गाने भारत से ज्यादा पाकिस्तान में सुने जाते हैं।
लता मंगेशकर ने पहली बार 1958 में बनी ‘मधुमती’ के गीत ‘आजा रे परदेसी’ के लिए ‘फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला और फिर 1966 तक हर साल ये पुरस्कार उन्हें ही मिलता रहा। 1969 में उन्होंने विनम्रता के साथ ये अवार्ड लेना बंद कर दिया ताकि दूसरों को भी मौक़ा मिल सके। साल 1990 में एक बार फिर बहुत अनुरोध पर फिल्म “लेकिन” के लिए उन्होंने फिल्म फेयर अवार्ड स्वीकार किया यानी 61 साल की उम्र में भी उनके गायन की श्रेष्ठता में कमी नहीं आयी।
अपने करियर में लता ने गीत, गज़ल, भजन, कव्वाली, मर्सिया सभी को अपनी आवाज़ दी। भाषा की सरहदें तोड़ते हुए मराठी और हिंदी के अलावा कई भारतीय भाषाओं में गाने गाए। गीत चाहे शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो, पाश्चात्य धुन पर आधारित हो या फिर लोक धुन की खुशबू में रचा-बसा हो। हर बार लता ने सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
बॉलीवुड के शो मैन राजकपूर ने लता मंगेशकर की ही जिंदगी पर फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम बनाई थी. इस फिल्म में लता मंगेशकर ने अभिनय करने का वादा किया था लेकिन बाद में उन्होंने मना कर दिया था. बाद में ज़ीनत अमान ने उनके कैरेक्टर रूपा का रोल निभाया था.
धीरे-धीरे गिरते स्वास्थ्य के चलते लता जी ने काम करना कम कर दिया, और कुछ चुनिंदा गानों में ही अपनी आवाज़ दी। लता मंगेशकर के गाए अंतिम फिल्मी गीत की बात करें तो वीर ज़ारा (2004) और सौतन (2006) में आखरी बार गाया।
6 Feb. 2022; स्वर कोकिला लता मंगेशकर का निधन हो गया है. 92 साल की उम्र में लता मंगेशकर ने अंतिम सांस ली है. उनके निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सहित कई दिग्गज नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘ लता जी का निधन मेरे लिए, दुनियाभर के लाखों लोगों के लिए हृदयविदारक है.”स्वरकोकिला लता मंगेशकर के साथ अपने चित्र साझा करते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि भारत रत्न लता जी की उपलब्धियां अतुलनीय हैं.