डेरा सच्चा सौदा का इतिहास & राधास्वामी पंथ

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डेरा सच्चा सौदा का इतिहास:-

जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज

{नोट – शिव दयाल की पत्नी का नाम “राधा” था }

श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जिनके तीन मुख्य शिष्य हुए

1. श्री जयमल सिंह (डेरा ब्यास)
2. जयगुरुदेव पंथ (मथुरा में)
3. श्री तारा चंद (दिनोद जि. भिवानी)

इनसे आगे निकलने वाले पंथ:-

1. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –>श्री सावन सिंह –> श्री जगत सिंह

2. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयगुरु देव पंथ (मथुरा में)

3. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> श्री ताराचंद जी (दिनोद जि. भिवानी)

4. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा)

5. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) –> श्री सतनाम सिंह जी (सिरसा)

6. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) –> श्री मनेजर साहेब (गांव जगमाल वाली में)

7. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री कृपाल सिंह (सावन कृपाल मिशन दिल्ली)

8. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री कृपाल सिंह (सावन कृपाल मिशन दिल्ली) –> श्री ठाकुर सिंह जी श्री जयमल सिंह जी ने दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु सन् 1878 में 60 वर्ष की आयु में हुई। श्री जयमल सिंह जी सेना से सेवानिवृत हुए सन् 1889 में अर्थात् श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु के 11 वर्ष पश्चात् सेवानिवृत होकर 1889 में ब्यास नदी के किनारे डेरे की स्थापना करके स्वयंभू संत बनकर नाम दान करने लगे। यदि कोई कहे कि शिवदयाल सिंह जी ने बाबा जयमल सिंह को नाम दान करने को आदेश दिया था। यह उचित नहीं है क्योंकि यदि नाम दान देने का आदेश दिया होता तो श्री जयमल सिंह जी पहले से ही नाम दान प्रारम्भ कर देते। यहाँ पर यह भी याद रखना अनिवार्य है कि श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) के कोई गुरु नहीं थे। श्री जयमल सिंह जी (डेरा ब्यास) ने जिस समय दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में उस समय श्री शिवयाल सिंह जी (राधा स्वामी) साधक (Under training) थे। श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) संत 1861 में बने तब उन्होंने सत्संग प्रारम्भ किया था।

2. बाबा जयमल सिंह जी से उपदेश प्राप्त हुआ श्री सावन सिंह जी को तो श्री सावन सिंह उत्तराधिकारी हुए श्री जयमल सिंह जी के यानी डेरा बाबा जयमल सिंह (ब्यास) के ।

=> बाबा सावन सिंह जी के अनेकों शिष्य हुए। जिन में से दो अपने आपको बाबा जयमल सिंह के डेरे की गद्दी को प्राप्त करने के अधिकारी मानने लगे।

1. श्री खेमामल जी (शाहमस्ताना) जी
2. श्री कृपाल सिंह

श्री सावन सिंह जी ने दोनों के टकराव को टालते हुए इन दोनों को बाईपास करके श्री जगत सिंह जी को बाबा जयमल सिंह (ब्यास) की गद्दी पर विराजमान कर दिया। उसके नाम वसीयत कर दी। इस घटना से क्षुब्ध होकर दोनों (श्री खेमामल जी तथा श्री कृपाल सिंह जी) बागी हो गए। श्री खेमामल जी ने स्वयंभू गुरू बनकर 2अप्रैल 1949 में सिरसा में सच्चा सौदा डेरा की स्थापना करके नाम दान करने लगे।

=> श्री कृपाल सिंह जी ने दिल्ली में विजय नगर स्थान पर स्वयंभू गुरु बनकर नामदान करना प्रारम्भ कर दिया तथा ’’सावन-कृपाल मिशन’’ नाम से आश्रम बना कर रहने लगा।

श्री क पाल सिंह जी ने श्री दर्शन सिंह जी को उत्तराधिकार नियुक्त कर दिया। श्री ठाकुर सिंह जी अपने को सीनियर मानते थे। जो श्री कृपाल सिंह जी के शिष्यों में से एक थे। वांच्छित पद न मिलने से क्षुब्ध श्री ठाकुर सिंह जी ने स्वयंभू गुरु बनकर नाम दान करना प्रारम्भ कर दिया।

श्री जगत सिंह की मृत्यु लगभग तीन वर्ष पश्चात् ही क्षय रोग से हो गई थी। उसके पश्चात् श्री चरण सिंह जी जो श्री सावन सिंह जी के शिष्य थे तथा श्री जगत सिंह के गुरु भाई थे। डेरा ब्यास की गद्दी पर विराजमान हो गए। श्री चरण सिंह जी को नाम दान का आदेश प्राप्त नहीं था। कोई कहे कि श्री जगत सिंह ने आदेश दे दिया था। श्री चरण सिंह को यह उचित नहीं, क्योंकि गुरु भाई अपने गुरु भाई को नाम दान का आदेश नहीं दे सकता। एक कमाण्डर अपने बराबर के पद वाले कमाण्डर की पदोन्नति नहीं कर सकता।

श्री शिव दयाल सिंह के पंथ से श्री जैमल सिंह जी व उनसे बागी होकर श्री बग्गा सिंह ने तरणतारण में अलग डेरा बनाया जिनसे आगे श्री देवा सिंह जी से आगे तीन बागी पंथ चलाने वाले बन गये जो इस प्रकार हैं:-

1). श्री देवा सिंह –> श्री गुरवचन लाल डेरा ध्यानपुर जिला अमृतसर –> श्री कश्मीरा सिंह जी से एस. जी. एल. जन सेवा केन्द्र, गड़ा रोड़ जलंधर में पंथ चला ।

2). श्री देवा सिंह –> साधु सिंह, डेरा राधास्वामी, बस्ती बिलोचा, फिरोजपुर, पंजाब –> संत तेजा सिंह, बस्ती बिलोचा, फिरो जपुर, पंजाब।

A. श्री साधु सिंह जी –> श्री फकीरचंद जी ने होशियारपुर, पंजाब में बनाया ।

3). श्री देवा सिंह –> श्री बूटा सिंह, डेरा राधास्वामी, पंजग्राई कलां, जिला फरीदकोट, पंजाब –> श्री सेवा सिंह डेरा राधास्वामी, पंजग्राई कलां, जिला फरीदकोट, पंजाब।

A. श्री देवा सिंह –> दयाल सिंह, डेरा राधास्वामी, गिल रोड़, लुधियाना, पंजाब।
1). बग्गा सिंह तरनतारण –> दर्शन सिंह डेरा सतकरतार, नजदीक मोंडल टाउन, जलंधर, पंजाब।

सावन-कृपाल रूहानी मिशन में:-

1). श्री कृपाल सिंह –> श्री ठाकुर सिंह –> बलजीत सिंह, डेरा राधास्वामी, नया गांव, हिमाचल प्रदेश।

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम, डेरा दयाल बाग, आगरा, यू.पी. = हजूर सरकार साहिब = साहिब जी महाराज = महता जी महाराज = लाल साहिब जी महाराज = सतसंगी साहिब जी महाराज गद्दी नशीन।

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम = शिवब्रत लाल = फकीर चंद मानव मंदिर होशियारपुर, पंजाब = प्रो. ईश्वर चंद्र = रिटायर्ड डी. आई. जी. नेगी साहिब

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम = शिवब्रत लाल = रामसिंह = ताराचंद, दिनोद, भिवानी, हरियाणा = मास्टर कंवर सिंह गद्दीनशीन

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम = शिवब्रत लाल = रामसिंह = ताराचंद, दिनोद, भिवानी, हरियाणा = गांव अंटा जिला जींद।

शिवदयाल सिंह = जैमल सिंह = बग्गा सिंह, तरनतारन, पंजाब = देवा सिंह तरनतारन = प्रताप सिंह तरनतारन = केहर सिंह, गद्दी नशीन तरनतारन।

शिवदयाल सिंह = जैमल सिंह = सावन सिंह = तेजा सिंह, गांव सैदपुर, जिजालंधर = रसीला राम = श्री प्यारालाल।

शिवदयाल सिंह = जैमल सिंह = सावन सिंह = देशराज, डेरा राधास्वामी ऋषिकेश, उत्तराखण्ड।

जयगुरुदेव पंथ से सम्बंधित:-
शिवदयाल सिंह = गरीबदास = पंडित विष्णु दयाल = घूरेलाल = तुलसीदास जयगुरुदेव मथुरा गद्दीनशीन ।
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डेरे की स्थापना 2 अप्रैल 1949 में श्री खेमामल जी (डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक) की मृत्यु सन् 1960 में (ग्यारह वर्ष पश्चात्) इंजैक्शन रियैक्शन से हुई। प्रमाण पुस्तक ‘‘सतगुरु के परमार्थी करिश्मों का वृतान्त’’ (भाग-पहला) पृष्ठ 31,32 पर वे किसी को उत्तराधिकार नियुक्त नहीं कर सके। उसके दो शिष्य गद्दी के दावेदार थे।
1. श्री सतनाम सिंह जी तथा
2.मनेजर साहब।
संगत ने कई दिन तक मीटिंग करके श्री सतनाम सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा सिरसा की गद्दी पर विराजमान कर दिया। मनेजर साहेब ने क्षुब्ध होकर गाँव-जगमाल वाली में स्वयं ही डेरा बनाकर नाम दान प्रारम्भ कर दिया। डेरा सच्चा सौदा सिरसा से प्रकाशित पुस्तक ‘‘सतगुरु के परमार्थी करिश्मों के वृतान्त (पहला भाग) प ष्ठ – 56 पर लिखा है कि श्री शाहमस्ताना जी (जो इंजैक्शन रियैक्शन से मृत्यु को प्राप्त हुआ था। प्रमाण पृष्ठ 31 पर) ही श्री गुरमीत सिंह जी के रूप में जन्में हैं। जो वर्तमान में डेरा सच्चा सौदा सिरसा के गद्दीनसीन हैं।

विचार करें:- श्री शाहमस्ताना जी का भी पुनर्जन्म हुआ है तो मोक्ष नहीं हुआ। यह कहें कि हंसों को तारने के लिए आए हैं। वह भी उचित नहीं। क्योंकि इनकी साधना शास्त्राविरूद्ध है तथा श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में प्रमाण है कि तत्वदर्शी संत से ज्ञान प्राप्त करके सत्य साधना करने वाले साधक परमेश्वर के उस परम धाम को प्राप्त हो जाते हैं, जहां जाने के पश्चात् फिर लौटकर कभी संसार में नहीं आते। इससे सिद्ध हुआ कि श्री शाहमस्ताना जी का मोक्ष नहीं हुआ। हो सकता है उस पुण्यात्मा की कुछ भक्ति कमाई बची हो उसको अब राज सुख भोग कर नष्ट कर जाएगा। भक्तों को तारने की बजाय उनका जीवन नाश कर जायेंगे।

जिज्ञासु पुण्य आत्माओ ! यह राधास्वामी पंथ, डेरा सच्चा सौदा सिरसा तथा सच्चा सौदा जगमाल वाली, गंगवा गांव में भी श्री खेमामल जी के बागी शिष्य छः सो मस्ताना ने डेरा बना रखा हैं तथा जय गुरूदेव पंथ मथुरा वाला तथा श्री तारा चन्द जी का दिनौंद गाँव वाला राधास्वामी डेरा तथा डेरा बाबा जयमल सिंह ब्यास वाला तथा कृपाल सिंह व ठाकुर सिंह वाला राधास्वामी पंथ सबका सब गोलमाल है।

जिज्ञासु आत्माओ ! यह काल का फैलाया हुआ जाल है। इस से बचो तथा पूर्णसन्त जगत गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पास आकर नाम दान लो तथा अपना कल्याण कराओं ।

राधास्वामी पंथ, जयगुरूदेव पंथ तथा सच्चा सौदा सिरसा व जगमाल वाली पंथों में श्री शिवदयाल सिंह के विचारों को आधार बना कर सत्संग सुनाया जाता हैं। श्री शिवदयाल सिंह जी इन्हीं पांच नामों (ररंकार, औंकार, ज्योति निरंजन, सोहं तथा सतनाम) का जाप करते थे। वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके और प्रेत योनी को प्राप्त होकर अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश होकर अपने शिष्यों की शंका का समाधान करते थे। जिस पंथ का प्रर्वतक ही अधोगति को प्राप्त हुआ हो तो अनुयाइयों का क्या बनेगा? सीधा सा उत्तर है, वही जो राधास्वामी पंथ के मुखिया श्री शिवदयाल सिंह राधास्वामी का हुआ। ‘‘जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज’’ के पृष्ठ 78 से 81 तक ।
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श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जिनके तीन मुख्य शिष्य हुए …..Radha Swami panth ki schaai…

जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज

{नोट – शिव दयाल की पत्नी का नाम “राधा” था }

श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) जिनके तीन मुख्य शिष्य हुए

1. श्री जयमल सिंह (डेरा ब्यास)
2. जयगुरुदेव पंथ (मथुरा में)
3. श्री तारा चंद (दिनोद जि. भिवानी)

इनसे आगे निकलने वाले पंथ:-

1. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –>श्री सावन सिंह –> श्री जगत सिंह

2. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयगुरु देव पंथ (मथुरा में)

3. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> श्री ताराचंद जी (दिनोद जि. भिवानी)

4. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा)

5. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) –> श्री सतनाम सिंह जी (सिरसा)

6. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री खेमामल जी उर्फ शाह मस्ताना जी (डेरा सच्चा सौदा सिरसा) –> श्री मनेजर साहेब (गांव जगमाल वाली में)

7. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री कृपाल सिंह (सावन कृपाल मिशन दिल्ली)

8. श्री शिवदयाल जी (राधा स्वामी) –> जयमल सिंह (डेरा ब्यास) –> श्री सावन सिंह –> श्री कृपाल सिंह (सावन कृपाल मिशन दिल्ली) –> श्री ठाकुर सिंह जी श्री जयमल सिंह जी ने दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु सन् 1878 में 60 वर्ष की आयु में हुई। श्री जयमल सिंह जी सेना से सेवानिवृत हुए सन् 1889 में अर्थात् श्री शिवदयाल सिंह जी (राधा स्वामी) की मृत्यु के 11 वर्ष पश्चात् सेवानिवृत होकर 1889 में ब्यास नदी के किनारे डेरे की स्थापना करके स्वयंभू संत बनकर नाम दान करने लगे। यदि कोई कहे कि शिवदयाल सिंह जी ने बाबा जयमल सिंह को नाम दान करने को आदेश दिया था। यह उचित नहीं है क्योंकि यदि नाम दान देने का आदेश दिया होता तो श्री जयमल सिंह जी पहले से ही नाम दान प्रारम्भ कर देते। यहाँ पर यह भी याद रखना अनिवार्य है कि श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) के कोई गुरु नहीं थे। श्री जयमल सिंह जी (डेरा ब्यास) ने जिस समय दीक्षा प्राप्त की सन् 1856 में उस समय श्री शिवयाल सिंह जी (राधा स्वामी) साधक (Under training) थे। श्री शिवदयाल जी (राधास्वामी) संत 1861 में बने तब उन्होंने सत्संग प्रारम्भ किया था।

2. बाबा जयमल सिंह जी से उपदेश प्राप्त हुआ श्री सावन सिंह जी को तो श्री सावन सिंह उत्तराधिकारी हुए श्री जयमल सिंह जी के यानी डेरा बाबा जयमल सिंह (ब्यास) के ।

=> बाबा सावन सिंह जी के अनेकों शिष्य हुए। जिन में से दो अपने आपको बाबा जयमल सिंह के डेरे की गद्दी को प्राप्त करने के अधिकारी मानने लगे।

1. श्री खेमामल जी (शाहमस्ताना) जी
2. श्री कृपाल सिंह

श्री सावन सिंह जी ने दोनों के टकराव को टालते हुए इन दोनों को बाईपास करके श्री जगत सिंह जी को बाबा जयमल सिंह (ब्यास) की गद्दी पर विराजमान कर दिया। उसके नाम वसीयत कर दी। इस घटना से क्षुब्ध होकर दोनों (श्री खेमामल जी तथा श्री कृपाल सिंह जी) बागी हो गए। श्री खेमामल जी ने स्वयंभू गुरू बनकर 2अप्रैल 1949 में सिरसा में सच्चा सौदा डेरा की स्थापना करके नाम दान करने लगे।

=> श्री कृपाल सिंह जी ने दिल्ली में विजय नगर स्थान पर स्वयंभू गुरु बनकर नामदान करना प्रारम्भ कर दिया तथा ’’सावन-कृपाल मिशन’’ नाम से आश्रम बना कर रहने लगा।

श्री क पाल सिंह जी ने श्री दर्शन सिंह जी को उत्तराधिकार नियुक्त कर दिया। श्री ठाकुर सिंह जी अपने को सीनियर मानते थे। जो श्री कृपाल सिंह जी के शिष्यों में से एक थे। वांच्छित पद न मिलने से क्षुब्ध श्री ठाकुर सिंह जी ने स्वयंभू गुरु बनकर नाम दान करना प्रारम्भ कर दिया।

श्री जगत सिंह की मृत्यु लगभग तीन वर्ष पश्चात् ही क्षय रोग से हो गई थी। उसके पश्चात् श्री चरण सिंह जी जो श्री सावन सिंह जी के शिष्य थे तथा श्री जगत सिंह के गुरु भाई थे। डेरा ब्यास की गद्दी पर विराजमान हो गए। श्री चरण सिंह जी को नाम दान का आदेश प्राप्त नहीं था। कोई कहे कि श्री जगत सिंह ने आदेश दे दिया था। श्री चरण सिंह को यह उचित नहीं, क्योंकि गुरु भाई अपने गुरु भाई को नाम दान का आदेश नहीं दे सकता। एक कमाण्डर अपने बराबर के पद वाले कमाण्डर की पदोन्नति नहीं कर सकता।

श्री शिव दयाल सिंह के पंथ से श्री जैमल सिंह जी व उनसे बागी होकर श्री बग्गा सिंह ने तरणतारण में अलग डेरा बनाया जिनसे आगे श्री देवा सिंह जी से आगे तीन बागी पंथ चलाने वाले बन गये जो इस प्रकार हैं:-

1). श्री देवा सिंह –> श्री गुरवचन लाल डेरा ध्यानपुर जिला अमृतसर –> श्री कश्मीरा सिंह जी से एस. जी. एल. जन सेवा केन्द्र, गड़ा रोड़ जलंधर में पंथ चला ।

2). श्री देवा सिंह –> साधु सिंह, डेरा राधास्वामी, बस्ती बिलोचा, फिरोजपुर, पंजाब –> संत तेजा सिंह, बस्ती बिलोचा, फिरो जपुर, पंजाब।

A. श्री साधु सिंह जी –> श्री फकीरचंद जी ने होशियारपुर, पंजाब में बनाया ।

3). श्री देवा सिंह –> श्री बूटा सिंह, डेरा राधास्वामी, पंजग्राई कलां, जिला फरीदकोट, पंजाब –> श्री सेवा सिंह डेरा राधास्वामी, पंजग्राई कलां, जिला फरीदकोट, पंजाब।

A. श्री देवा सिंह –> दयाल सिंह, डेरा राधास्वामी, गिल रोड़, लुधियाना, पंजाब।
1). बग्गा सिंह तरनतारण –> दर्शन सिंह डेरा सतकरतार, नजदीक मोंडल टाउन, जलंधर, पंजाब।

सावन-कृपाल रूहानी मिशन में:-

1). श्री कृपाल सिंह –> श्री ठाकुर सिंह –> बलजीत सिंह, डेरा राधास्वामी, नया गांव, हिमाचल प्रदेश।

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम, डेरा दयाल बाग, आगरा, यू.पी. = हजूर सरकार साहिब = साहिब जी महाराज = महता जी महाराज = लाल साहिब जी महाराज = सतसंगी साहिब जी महाराज गद्दी नशीन।

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम = शिवब्रत लाल = फकीर चंद मानव मंदिर होशियारपुर, पंजाब = प्रो. ईश्वर चंद्र = रिटायर्ड डी. आई. जी. नेगी साहिब

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम = शिवब्रत लाल = रामसिंह = ताराचंद, दिनोद, भिवानी, हरियाणा = मास्टर कंवर सिंह गद्दीनशीन

शिवदयाल सिंह = राय सालिगराम = शिवब्रत लाल = रामसिंह = ताराचंद, दिनोद, भिवानी, हरियाणा = गांव अंटा जिला जींद।

शिवदयाल सिंह = जैमल सिंह = बग्गा सिंह, तरनतारन, पंजाब = देवा सिंह तरनतारन = प्रताप सिंह तरनतारन = केहर सिंह, गद्दी नशीन तरनतारन।

शिवदयाल सिंह = जैमल सिंह = सावन सिंह = तेजा सिंह, गांव सैदपुर, जिजालंधर = रसीला राम = श्री प्यारालाल।

शिवदयाल सिंह = जैमल सिंह = सावन सिंह = देशराज, डेरा राधास्वामी ऋषिकेश, उत्तराखण्ड।

जयगुरुदेव पंथ से सम्बंधित:-
शिवदयाल सिंह = गरीबदास = पंडित विष्णु दयाल = घूरेलाल = तुलसीदास जयगुरुदेव मथुरा गद्दीनशीन ।

डेरा सच्चा सौदा का इतिहास:-

डेरे की स्थापना 2 अप्रैल 1949 में श्री खेमामल जी (डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक) की मृत्यु सन् 1960 में (ग्यारह वर्ष पश्चात्) इंजैक्शन रियैक्शन से हुई। प्रमाण पुस्तक ‘‘सतगुरु के परमार्थी करिश्मों का वृतान्त’’ (भाग-पहला) पृष्ठ 31,32 पर वे किसी को उत्तराधिकार नियुक्त नहीं कर सके। उसके दो शिष्य गद्दी के दावेदार थे।
1. श्री सतनाम सिंह जी तथा
2.मनेजर साहब।
संगत ने कई दिन तक मीटिंग करके श्री सतनाम सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा सिरसा की गद्दी पर विराजमान कर दिया। मनेजर साहेब ने क्षुब्ध होकर गाँव-जगमाल वाली में स्वयं ही डेरा बनाकर नाम दान प्रारम्भ कर दिया। डेरा सच्चा सौदा सिरसा से प्रकाशित पुस्तक ‘‘सतगुरु के परमार्थी करिश्मों के वृतान्त (पहला भाग) प ष्ठ – 56 पर लिखा है कि श्री शाहमस्ताना जी (जो इंजैक्शन रियैक्शन से मृत्यु को प्राप्त हुआ था। प्रमाण पृष्ठ 31 पर) ही श्री गुरमीत सिंह जी के रूप में जन्में हैं। जो वर्तमान में डेरा सच्चा सौदा सिरसा के गद्दीनसीन हैं।

विचार करें:- श्री शाहमस्ताना जी का भी पुनर्जन्म हुआ है तो मोक्ष नहीं हुआ। यह कहें कि हंसों को तारने के लिए आए हैं। वह भी उचित नहीं। क्योंकि इनकी साधना शास्त्राविरूद्ध है तथा श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में प्रमाण है कि तत्वदर्शी संत से ज्ञान प्राप्त करके सत्य साधना करने वाले साधक परमेश्वर के उस परम धाम को प्राप्त हो जाते हैं, जहां जाने के पश्चात् फिर लौटकर कभी संसार में नहीं आते। इससे सिद्ध हुआ कि श्री शाहमस्ताना जी का मोक्ष नहीं हुआ। हो सकता है उस पुण्यात्मा की कुछ भक्ति कमाई बची हो उसको अब राज सुख भोग कर नष्ट कर जाएगा। भक्तों को तारने की बजाय उनका जीवन नाश कर जायेंगे।

जिज्ञासु पुण्य आत्माओ ! यह राधास्वामी पंथ, डेरा सच्चा सौदा सिरसा तथा सच्चा सौदा जगमाल वाली, गंगवा गांव में भी श्री खेमामल जी के बागी शिष्य छः सो मस्ताना ने डेरा बना रखा हैं तथा जय गुरूदेव पंथ मथुरा वाला तथा श्री तारा चन्द जी का दिनौंद गाँव वाला राधास्वामी डेरा तथा डेरा बाबा जयमल सिंह ब्यास वाला तथा कृपाल सिंह व ठाकुर सिंह वाला राधास्वामी पंथ सबका सब गोलमाल है।

जिज्ञासु आत्माओ ! यह काल का फैलाया हुआ जाल है। इस से बचो तथा पूर्णसन्त जगत गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के पास आकर नाम दान लो तथा अपना कल्याण कराओं ।

राधास्वामी पंथ, जयगुरूदेव पंथ तथा सच्चा सौदा सिरसा व जगमाल वाली पंथों में श्री शिवदयाल सिंह के विचारों को आधार बना कर सत्संग सुनाया जाता हैं। श्री शिवदयाल सिंह जी इन्हीं पांच नामों (ररंकार, औंकार, ज्योति निरंजन, सोहं तथा सतनाम) का जाप करते थे। वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके और प्रेत योनी को प्राप्त होकर अपनी शिष्या बुक्की में प्रवेश होकर अपने शिष्यों की शंका का समाधान करते थे। जिस पंथ का प्रर्वतक ही अधोगति को प्राप्त हुआ हो तो अनुयाइयों का क्या बनेगा? सीधा सा उत्तर है, वही जो राधास्वामी पंथ के मुखिया श्री शिवदयाल सिंह राधास्वामी का हुआ। देखें फोटो कापी (timeline photos 79 & 80 पेज के है यदि 78 और 81 वे पेज के फोटो देखने हो तो बतावे मैं उन्हें भी पोस्ट कर दूंगा !) ‘‘जीवन चरित्र स्वामी जी महाराज’’ के पृष्ठ 78 से 81 तक ।

‘‘यह उपरोक्त जन्मपत्री राधास्वामी पंथ तथा उसकी शाखाओं की है ‘’

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