डायाफ्रैगमैटिक ब्रीदिंग -योगी ऐसे ही लंबी और गहरी सांस लेते हैं, जल्दी-जल्दी सांस लेने प्राणियो की आयु कम, जबकि धीमे सांस लेने वाले की आयु 100 वर्ष से अधिक
Diaphragmatic Breathing; The diaphragm is a large, dome-shaped muscle located at the base of the lungs. Diaphragmatic breathing is meant to help you use the diaphragm correctly while breathing. This breathing technique offers several benefits to your body including reducing your blood pressure and heart rate and improving relaxation. The diaphragm is the most efficient muscle for breathing. It’s a large, dome-shaped muscle located at the base of your lungs. Your abdominal muscles help move the diaphragm and give you more power to empty your lungs.
डायाफ्राम ब्रीदिंग– तनाव और चिंता को कम करता है। कोविड से जुड़े निमोनिया में डायाफ्राम की मांसपेशी की क्षमता पर असर पड़ता है। डायाफ्रैगमैटिक ब्रीदिंग फेफड़ों की क्षमता में सुधार करती है। इस ब्रीदिंग का खास मकसद ना सिर्फ आराम करते हुए बल्कि किसी भी काम के दौरान गहरी सांस लेने की क्षमता में सुधार करना है । Execlusive Story Presents by Chandra Shekhar Joshi www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Haridwar Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030
योग का नियमित अभ्यास करने वाले ज्यादातर योगी ऐसे ही लंबी और गहरी सांस लेते हैं। सांस जितनी धीमी, जितनी गहरी ली जाए, वह हमें उतनी ही लंबी उम्र देती है। अगर आप गौर करेंगे, तो पाएंगे कि जो जानवर जितनी तेज सांस लेता है, वह उतनी तेजी से अपनी उम्र भी खत्म करता है। खरगोश और कुत्ता जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं। उनकी आयु भी उतनी ही कम होती है। हाथी उनकी तुलना में कहीं धीमे सांस लेता है, तो हाथी की उम्र सौ वर्ष लंबी हो जाती है। कछुआ हाथी से भी धीमे सांस लेता है, तो वह 300 साल तक भी जीता है।
डायाफ्राम ब्रीदिंग का अभ्यास करें, तो आप धीरे-धीरे शरीर को पेट से सांस लेने की आदत डाल सकते हैं। आप पीठ पर लेट जाएं और अपने पैरों को फोल्ड करके अपने हिप्स के करीब ले आएं। अब आप अपना बांया हाथ पेट पर रख लें और दायां हाथ शरीर के समानांतर जमीन पर रहने दें। सांस लेते हुए अपने पेट पर रखे हाथ को ऊपर उठता महसूस करें। जितनी देर सांस लें उतनी ही देर सांस छोड़ें। रोज 5-7 मिनट का ऐसा अभ्यास आपको पेट से सांस लेने का आदी बना देगा।
हमारे शरीर में उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन जाती है और शरीर को जितनी ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है, वह उतना ज्यादा बीमारियों के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ते हुए निरोगी बना रहता है। शरीर जितना निरोगी बना रहता है, उसकी उम्र उतनी ही बढ़ जाती है।
डायाफ्रैगमैटिक ब्रीदिंग फेफड़ों की क्षमता में सुधार करने के साथ-साथ ही बलगम के रूप में श्वसनतंत्र में पैदा होने वाले स्राव को दूर करने में अहम किरदार निभाती है। आइए जानते हैं क्या होती है डायाफ्राम एक्सरसाइज और क्या है इसके फायदे
प्राण के बिना जीवन संभव नहीं। प्राण गति है, स्पंदन है। ब्रह्मांड में प्राण है, इसलिए वह सतत गतिमान है। हम भी प्राण के चलते ही जीवित हैं। हम तक यह प्राण हमारी सांस के जरिए पहुंचता है। हम जितनी ताकतवर सांस ले पाते हैं यानी हमारी सांस में जितनी ज्यादा ऑक्सीजन रहती है, हममें उतना ज्यादा जीवन, उतनी ऊर्जा बनी रहती है। सांस अगर कमजोर है, तो हमें सांस के जरिए मिलने वाली जीवन ऊर्जा भी कम मिलती है। यह ऊर्जा जितनी कम होती है, हम उतना ज्यादा बीमार रहते हैं और उतना ही एक आनंद भरे जीवन से वंचित बने रहते हैं। सांस लेने में पांच ऐसी बड़ी गलतियां हैं, जो उसे कमजोर बनाती हैं और हमें प्राण ऊर्जा से वंचित करती हैं। आइए जानते हैं कौन सी हैं वे पांच गलतियां।
पहली बात यह है कि होश में सांस लें, बेहोशी में नहीं – सांस लेने में हम सबसे बड़ी और सबसे पहली गलती यह करते हैं कि बेहोशी में सांस लेते हैं। इन पंक्तियों को पढ़ते हुए जरा आप अपनी सांस के प्रति जागरूक हो जाइए। आप देखेंगे कि जागरूक होते ही आपकी सांस उथली से गहरी होने लगेगी। यह बेहोशी में ही होता है कि हम उथली सांस लेते रहते हैं और शरीर निरंतर ऑक्सीजन की कमी में बना रहता है। दिमाग में ऊर्जा कम पहुंचती है और इस तरह हम जल्दी थकने लगते हैं, जल्दी चिड़चिड़े होने लगते हैं।
महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों को सबसे पहले अपनी सांस के प्रति होशपूर्ण होना सिखाया था। याद रखिए कि जब तक आप पूरे होश में भरकर सांस नहीं लेंगे, तब तक अपने भीतर करिश्माई ऊर्जा महसूस नहीं कर पाएंगे। चाहे सांसारिक जीवन में सफलता हो या आध्यात्मिक जीवन में, उसका पहला कदम आपकी सांस है। बोध और होश से ली गई सांस आपको हमेशा के लिए बदल सकती है।
डायाफ्रॉम का आकार एक गुंबद जैसा होता है। यह सांस लेने वाली मांसपेशी है, जिसका संबंध शरीर में हार्ट फंक्शन, पाचन और ब्लड सर्कुलेशन पर पड़ता है। यह भावनात्मक स्थिति को कंट्रोल करके इंसान की नींद में सुधार भी करता है और व्यक्ति का तनाव भी कम करता है।
प्रकृति ने हमारे शरीर के हर अंग की बनावट उसके जरिए होने वाले काम के हिसाब से तय की है। पैर चलने के लिए, कान सुनने के लिए, आंख देखने के लिए और मुंह खाने के लिए बनाया गया है। सूंघने के अलावा नाक का मुख्य काम सांस लेना है। सांस लेने के जितने लाभ हैं, वे हमें तभी मिलते हैं जब हम नाक से सांस लेते हैं। नाक की बनावट ऐसी है कि ली गई सांस नाक से गुजरते हुए ठीक तरीके से अनुकूलित होती है, हवा में मिले जीवाणु-कीटाणु आदि नाक के भीतर ही रुक जाते हैं, इस हवा को ऐसे प्रेशराइज किया जाता है कि वह फेफड़ों में भीतर तक पहुंच सके। जाहिर है, नाक से सांस लेना छोड़कर अगर आप मुंह से सांस लेंगे, तो इन सभी लाभों से वंचित हो जाएंगे। लेकिन बहुत से लोगों को मुंह से सांस लेने की आदत लग जाती है। वे रात को भी मुंह से ही सांस लेते हैं। यही वजह है कि सुबह उन्हें गला सूखा और दर्द करता हुआ मिलता है। अगर वाकई आपको रात को मुंह से सांस लेने की आदत है, तो आप टेप लगाकर अपना मुंह बंद करके सोएं। सुनिश्चित करें कि आप हमेशा नाक से ही सांस ले रहे हैं और नाक से ही सांस छोड़ रहे हैं।
डायाफ्रैगमैटिक ब्रीदिंग फेफड़ों को मजबूत बनाती है और इस ब्रीदिंग का खास मकसद ना सिर्फ आराम करते हुए बल्कि किसी भी काम के दौरान गहरी सांस लेने की क्षमता में सुधार करना है । डायाफ्रैगमैटिक ब्रीदिंग को मरीज की शारीरिक क्षमता के मुताबिक 3 तरीकों जैसे लेटकर, बैठकर या फिर खड़े होकर किया जा सकता है।
आपने सांस लेते हुए किसी छोटे बच्चे को देखा है। जरा देखिए उसे। आप पाएंगे कि सांस लेते हुए उसका पेट फूलता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चे पेट से सांस लेते हैं। यही सांस लेने का सही तरीका भी है। पेट से सांस लेते हुए डायाफ्राम जब फैलता है, तो पेट फूलता है। योग में इस डायाफ्राम ब्रीदिंग कहते हैं। अगर आप अपनी सांस के प्रति थोड़ा भी जागरूक होंगे, तो पाएंगे कि जब भी आप अपने काम में ज्यादा व्यस्त होते हैं, आपकी सांस बहुत उथली हो जाती है। यानी आपकी सांस छाती के ऊपरी हिस्से से नीचे ही नहीं जाती। वह ऊपर ही से लौट आती है। नतीजतन आपके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती।
आप अगर कुछ दिनों तक डायाफ्राम ब्रीदिंग का अभ्यास करें, तो आप धीरे-धीरे शरीर को पेट से सांस लेने की आदत डाल सकते हैं। अभ्यास करने का सबसे सरल तरीका है कि आप पीठ पर लेट जाएं और अपने पैरों को फोल्ड करके अपने हिप्स के करीब ले आएं। अब आप अपना बांया हाथ पेट पर रख लें और दायां हाथ शरीर के समानांतर जमीन पर रहने दें। सांस लेते हुए अपने पेट पर रखे हाथ को ऊपर उठता महसूस करें। जितनी देर सांस लें उतनी ही देर सांस छोड़ें। रोज 5-7 मिनट का ऐसा अभ्यास आपको पेट से सांस लेने का आदी बना देगा।
जब हम पेट से सांस लेना शुरू करते हैं, तो उसका एक लाभ यह मिलता है कि हमारी सांस लंबी और गहरी होने लगती है। योग का नियमित अभ्यास करने वाले ज्यादातर योगी ऐसे ही लंबी और गहरी सांस लेते हैं। सांस जितनी धीमी, जितनी गहरी ली जाए, वह हमें उतनी ही लंबी उम्र देती है। अगर आप गौर करेंगे, तो पाएंगे कि जो जानवर जितनी तेज सांस लेता है, वह उतनी तेजी से अपनी उम्र भी खत्म करता है। खरगोश और कुत्ता जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं। उनकी आयु भी उतनी ही कम होती है। हाथी उनकी तुलना में कहीं धीमे सांस लेता है, तो हाथी की उम्र सौ वर्ष लंबी हो जाती है। कछुआ हाथी से भी धीमे सांस लेता है, तो वह 300 साल तक भी जीता है।
पीठ के बल लेटकर घुटनों को थोड़ा मोड़ लें, इससे आपके पैरों के तलवे बेड पर आराम करने की स्थिति में आ जाएंगे। हाथों को अपने पेट पर रखें। अब पेट को फुलाने के लिए नाक से जोर से सांस लें और सांस लेने के बाद उंगलियों को भी फैलाने की कोशिश करें। अब अपने होंठों को सिकोड़कर धीरे-धीरे मुंह से सांस बाहर निकालें। इस दौरान पेट वापस अंदर की ओर जाना चाहिए। इस क्रिया को 10-15 बार दोहराएं। जब आप इस एक्सरसाइज को अच्छे से करने लगें तो इस क्रिया को ज्यादा बार दोहराएं।