डिप्रेशन से गुज़र रहे व्यक्ति की सहायता सिर्फ और सिर्फ इस तरह
भारत में डिप्रेशन के हालात काफी चिंताजनक है और देश का हर 20वां व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है। बच्चों में हालात और भी खराब है जहां हर देश का हर चौथा बच्चा उदास या निराश है। तो आखिर क्यों डिप्रेशन हमें घेरता जा रहा है, क्या कारण है कि डिप्रेशन के मामले दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं और इस डिप्रेशन से कैसे निपटा जाएं। 2015 में पूरी दुनिया में डिप्रेशन के शिकार करीब 8 लाख लोगों ने अपने जीवन का अंत कर लिया था। भारत की बात करें तो यहां 5.6 करोड़ और दुनियाभर में 32 करोड़ लोगों को डिप्रेशन का शिकार है। 2015 में पूरी दुनिया में डिप्रेशन के शिकार करीब 8 लाख लोगों ने अपने जीवन का अंत कर लिया था।
ऐसा नहीं है कि केवल बड़े ही डिप्रेशन का शिकार बन रहे है इसमें 13-15 साल के हर चौथे बच्चे को डिप्रेशन होता है। देश के 25 फीसदी बच्चे निराश या उदास हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 7 फीसदी किशोर झिड़की का शिकार होते है और यह बच्चे परिवार, दोस्तों, शिक्षकों की बातों से आहत होते है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक डिप्रेशन के चलते 11 फीसदी बच्चे ध्यान केंद्रित नही कर पातें, 10 फीसदी किशोरों का कोई करीबी दोस्त ना होने, 8 फीसदी किशोर चिंता की वजह से बेचैन रहने और 8 फीसदी किशोर अकेलापन महसूस करते हैं।
डिप्रेशन के लक्षण को आसानी से समझा जा सकता है जैसे ठीक से नींद नहीं आना, कम भूख लगना, आत्मविश्वास की कमी होना, हमेशा थकान महसूस होना, एकाग्रता में कमी महसूस करना, मादक पदार्थों का सेवन औऱ आत्महत्या के खयाल आना यह सभी इसके लक्षण है।
11 MAY 2018 महाराष्ट्र पुलिस में एडीजी रैंक के पूर्व एटीएस प्रमुख हिमांशु राय ने डिप्रेशन में खुदकुशी कर ली है। उनकी पहचान बेहद सख्त अफसर की थी। 55 साल के रॉय लंबे वक्त से ब्लड कैंसर से पीड़ित थे। शुक्रवार सुबह उन्होंने अपनी ही सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली। उन्होंने आतंकी गतिविधियों से जुड़े मामलों के साथ आईपीएल फिक्सिंग और सट्टेबाजी, जेडे मर्डर, दाऊद की संपत्ति को जब्त करने से जुड़े केस की जांच की थी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, एटीएस से ट्रांसफर होने के बाद हिमांशु रॉय ने कोई नई नियुक्ति नहीं ली थी। उन्हें कैंसर था और वो स्टेरॉइड्स पर जिंदा थे। उनकी बीमारी फैलती ही जा रही थी, जिसकी वजह से वो पूरी तरह डिप्रेशन में चले गए थे और काफी परेशान रहने लगे थे। काफी इलाज के बाद भी उनके सेहत में कोई सुधार नहीं आ रहा था। – फिलहाल उनकी महाराष्ट्र पुलिस में एडीजी रैंक की पोस्ट थी।
डिप्रेशन के इन लक्षणों से हम आसानी से मुकाबला किया जा सकता है। अगर आप डिप्रेश है तो अपने सबसे करीबी व्यक्ति से संपर्क करें और खुद को अकेला ना समझे उनसे बात करें। अपनी लाइफ का रुटीन बना अपने लक्ष्य को तय करें। सेहतमंद चीजें खाएं और व्यायाम जारी रखें। इतना ही नहीं डिप्रेशन को खुद से कोशों दूर रखने के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करें। रुटीन से बिस्तर पर जाएं औऱ भरपूर नींद लें।
उनके अलावा फिल्म ‘दंगल’ में जबरदस्त किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस जायरा वसीम ने पिछले कुछ सालों से अपने डिप्रेशन से जूझने की बात का खुलासा किया है। जायरा ने अपना बयान जारी करते हुए लिखा है, ‘आखिरकार मैं यह जगजाहिर कर रही हूं कि मैं लंबे समय से ‘डिप्रेशन और एनजाइटी’ का शिकार हूं।’ जायरा ने लिखा है कि वह 4 साल से इसका शिकार हैं और इसके चलते उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है डिप्रेशन के चलते हर दिन एक-दो नहीं बल्कि 5 गोलियां खा रही हैं। आमिर खान के साथ फिल्म ‘दंगल’ में छोटी गीता फोगाट का किरदार निभाने के बाद जायरा, आमिर के ही साथ फिल्म ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ में भी नजर आ चुकी हैं।
डिप्रेशन आजकल की तेज रफ्तार वाली जिंदगी का हिस्सा बनता जा रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर ग्लैमर इंडस्ट्री पर देखने को मिल रहा है। डिप्रेशन की वजह से हैदराबाद में एक टीवी एंकर ने अपनी बिल्डिंग के पांचवें माले से कूदकर आत्महत्या कर ली। एंकर का नाम राधिका रेड़्डी बताया जा रहा है और वह तेलुगु टेलीविजन चैनल वी6 में काम करती थीं। राधिका के पास से पुलिस को सुसाइड नोट मिला जिसमें लिखा था, “मेरी मौत के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि मेरा दिमाग ही मेरा दुश्मन है।”
डिप्रेशन या अवसाद एक समय ऐसी समस्या थी, जिस पर बात करना लगभग मना ही था. लोग खुलकर इस बारे में सोचने तक से बचते थे. मगर कई सेलेब्स के इस मसले पर अपने निजी अनुभव साझा करने के बाद माहौल बदल रहा है. दीपिका पादुकोण के बाद अब अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज ने भी डिप्रेशन के अपने निजी अनुभव साझा किए हैं. 21वीं विश्व मेंटल हेल्थ कांग्रेस में शामिल हुईं इलियाना ने बताया कि उनकी जिंदगी में ऐसा भी वक्त आया था, जब वह इस कदर अवसाद में थीं कि हर दिन आत्महत्या करने के बारे में सोचती थीं.
एक खुशदिल इंसान बनें-अन्यथा डिप्रेशन डस लेगा
भागदौड़की जिंदगी में तनाव इस कदर हावी हो गया है कि लोग खुद को बीमार करने लगे हैं। जब से देश में खुले बाजार की व्यवस्था शुरू हुई है तब से खासकर युवाओं में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ी है। यहां तक की इच्छा के अनुसार मुकाम हासिल नहीं होने और चाहत की पूर्ति नहीं होने पर आत्महत्या जैसी घटना को भी अंजाम देने से नहीं डरते हैं। आपके भीतर बसा जीवन हमेशा जीवित रहना चाहता है। वह हमेशा सबसे ऊंचे शिखर को छूने के लिए तरसता है। जीवन हमेशा उल्लास और उत्साह से भरा होता है। आप मानसिक तौर पर ही डिप्रेशन की चपेट में आते हैं। हुआ बस इतना है की आप अपने मन के तार्किक आयाम में उलझ गए हैं। डिप्रेशन/अवसाद के मूल कारण हैं कि डिप्रेशन के अधिकतर मामलों में, मनुष्य खुद ही ऐसी गहरी भावनाओं और विचारों को पैदा करता है, जो उसके खिलाफ काम करते हैं, और कई मायनों में सत्तर प्रतिशत बीमारियाँ लोग खुद ही पैदा करते हैं।
स्थिति की मांग के अनुसार आत्म जागरूकता की कमी के कारण लोग अपने आपको अवसाद की स्थिति में डाल लेते हैं। जिंदगी में कठिन परिस्थितियों में किसी की मदद मांगने में कोई शर्म नहीं है। कोई भी जिंदगी का बोझ अकेला नहीं उठा सकता है। अपने बुरे समय में अपनी पत्नी, सहकर्मी और दोस्त की सहायता लेने से आपको भावनात्मक बोझ से छुटकारा मिलेगा। द्रश्यों में बदलाव होते रहना नकारात्मक विचारों को दूर रखने में मददगार है। आपके अन्दर सकारात्मकता लाने के लिए एक दिन का ट्यूर ही काफी है। आगे से यदि आप अवसादग्रस्त महसूस करें तो अपना बैग पैक करें और निकल पड़ें छुट्टी पर। नियमित रूप से छुट्टी पर जाने वाले लोग जीवन की एकरसता और बोरपन से जल्दी निकल जाते हैं बजाय की लगातार कई सप्ताह तक काम में लगे रहने वाले लोगों के। अच्छे दोस्त आपको आवश्यक सहानुभूति प्रदान करते हैं और साथ ही साथ अवसाद के समय आपको सही निजी सलाह भी देते हैं। इसके अतिरिक्त, जरूरत के समय एक अच्छा श्रोता साथ होना नकारात्मकता और संदेह को दूर करने में सहायक है। जिंदगी में बुरी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
और सबसे जरूरी आध्यात्मिक जागरूकता – आध्यात्मिक ज्ञान डिप्रेशन से गुज़र रहे व्यक्ति की सहायता कर सकता है; व्यक्ति जब अत्याधिक निरूत्साहित हो जाता हैं कि वे आत्महत्या करना चाहते हैं वे व्यक्ति जो डिप्रेशन से त्रस्त हैं, केवल अंधकार में ही नहीं डूबे रहते, वे अनेक प्रकार के आंतरिक कोलाहलों का सामना करते हैं जो उन्हें शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाते हैं। इसे उद्वेग कहते हैं। उद्वेग तब शुरू होता है जब प्रत्येक चीज़ की अति हो जाती है, जब चीज़ें सीमाओं से परे हो जाती हैं। जब व्यक्ति स्वयं को या अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुँचाता है, यह सब इसलिए होता है क्योंकि वह उद्वेग को अनुभव कर रहा होता है। जब व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो रहा हो, वह अपना अंदरुनी प्रकाश खो चुका होता है। उसका आत्मज्ञान उसके उद्देश्य के साथ लुप्त हो चुका होता है। वे विश्वास करना शुरू कर देते हैं कि प्रकाश कभी दोबारा वापस नहीं आएगा। लेकिन एक आशा है और यह आशा उस सुंदर ज्ञान में है जिसे एक सच्चा आध्यात्मिक गुरू ही दे सकता है, आध्यात्मिक विज्ञान इतना दैवीय है कि यह केवल उस व्यक्ति को, जो डिप्रेशन से गुज़र रहा हो, सांत्वना ही नहीं देता बल्कि सारी समस्याओं का निवारण करता है।
हिमालयायूके द्वारा जल्द एक बडी पहल- आध्यात्मिक गुरूओ की सहायता से अंदरुनी प्रकाश – इस संबंध में शीघ्र विशेष प्रकाशन- चन्द्रशेखर जोशी द्वारा एक विशेष प्रयास
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