’’बाता भूलि जानी नी भूलनी यादा सना बय्यालीसों कौ उतपाता‘‘
उतराखण्ड का आजादी में योगदान सिल्ट से भडकी आजादी की क्रांति के बारे में तो यह प्रसिद्व है ’’बाता भूलि जानी नी भूलनी यादा सना बय्यालीसों कौ उतपाता‘‘ उतराखण्ड की धरती में स्वत्रंत्रा आन्दोलन की वीर गाथाओं का कोई पारावार नही; सल्ट क्रांति विस्तार से-
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राजेन्द्रपन्त’रमाकान्त‘/
गुलाम भारत की बेडयां तोडने के लिए लाखों रणबांकुरों ने स्वयं की आहुति दे दी। कई हंसते हुए फांसी पर झूल गये, कई ने जेलों में यातनाएं सहते हुए दम तोड दिया और कई को सरेआम गोलियों से भून दिया गया आजादी की क्रांति में उतराखण्ड का भी अविस्मरणीय योगदान युगों युगों तक याद किया जाता रहेगा हिमालय के आंचल में स्थित गढभूमि व कूर्माचल की धरती के वीरों की बीर गाथाएं भी सदैव गायी जाती रहेंगी ।अग्रेंजी षासन के विरूद्व महाबिगुल बजाने वाले गढकेसरी अनूसुया प्रसाद बहुगुणा हो या फिर जनपद चमोली ग्राम जौरासी पोखरी में जन्में नरेन्द्र सिह भण्डारी इधर जनपद पिथौरागढ के पोखरी व भेरगं पटृी में भी अनेकों वीरों ने आजादी की लडाई में दुष्मनों के दांत खट्टे किये थे गढवाल की राजनिती में भीश्म पितामाह की उपाधी से नवाजे गये मुकुन्दी लालबैरिस्टरजी को भी लोग यूं ही नही भूला पाएंगे वरिश्ठ स्वत्रंत्रता सग्रंाम सेनानियों मे चमोली के ग्राम डिम्मर के योगेष्वर प्रसाद खण्डूडी वीर गढवाली सपूत जयवीर सिह रावत श्री षिव सिह चौहान श्री नारायण सिह नेगी श्री नरेन्द्र दत किमोठी सहित अनेकों ऐसे असख्यं नाम है जिनके योगदान की गाथा सदैव अमर रहेगी गढभूमि में जिस तरह अनेकों स्थानों से आन्दोलनों की ज्वाला भडकी उसी तरह से कुमाउ के जनपद पिथौरागढ के झलतोला राममंदर क्षेत्र आजादी के बिगुल का प्रमुख पडाव रहा है यंहा पहुचकर राममनोहर लोहिया व हरगोविद पतं ने क्रान्ति का जो जोष भरा वह आज भी अविस्मरणीय है सिल्ट से भडकी आजादी की क्रांति ‘के बारे में तो यह प्रसिद्व है ’’बाता भूलि जानी नी भूलनी यादा सना बय्यालीसों कौ उतपाता‘‘ १४ जनवरी १९२१ को बागेश्वर में हरगोविन्द पंत, बद्री दत्त पाण्डे विक्टर मोहन जोशी व साथियों के नेतृत्व में कुली बेगार के रजिस्टर सरयू नदी को समर्पित करके आन्दोलन को जो गति दी गई वो गाथा आज भी स्वत्रंत्रा दिवस के अवसर पर बरबस ही लोगों की जुबां पर गीत का रूप लेकर गायी जाती है लोगों ने कुली बेगार न करने का संकल्प इसी दिन से लिया सरकारी अधिकारियों ने पौडी, गढवाल जिले की पट्टी गुजडू के साथ सल्ट की चार पट्टियों से कुली बेगार न कराने का संकल्प लिया। जब इसकी सूचना हरगोविन्द पंत जी को मिली तो एस.डी.एम. के सल्ट पहुंचने से पहले ही उन्होंने कई जगह गांव जाकर सभाएं करके ’कुली बेगार‘ न देने का संकल्प किया। जो धीरे धीरे रंग लाया हालाकि आन्दोलन का उबाल तो पहले ही चढ चुका था परन्तु सल्ट में १९२१ से ही स्वाधीनता संग्राम की चिनगारी ज्वाला बनकर उभरी तेज बताते है कि सन् १९२७ में पंडित पुरुषोत्तम उपाध्याय जो कि डंगुला में जिला बोर्ड के प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे और अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर स्वाधीनता संग्राम का बिगुल बजा दिया। उनके साथ स्कूल के सहायक अध्यापक लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने भी उनका अनुसरण किया और अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर आन्दोलन को नयी गति दी इसके बाद श्री पान सिंह पटवाल जो कि इलाके के जाने-माने ठेकेदार थे वे भी ठेकेदारी का काम छोडकर आंदोलन में शामिल हो गये। इसके बाद सल्ट के अनेकों गांव जैसे खुमाड, डंगुला, चमकना, स्याही, जखल, डढरिया, बितणी, बैला, पिपना, डभरा, सकनणा, बिरल गांव, मणुली, कनगडी, नेलवाल पाली, कुनहील, भेंसखेत, कफल्टा, मछोड, दन्युडा, कटरीया, आदि गांवों के स्वतंत्रता सेनानी आंदोलन को चलाते रहे। सन् १९२७ मई जब महात्मा गांधी ताडीखेत आये तो सल्ट का एक जत्था नगाडे, निशाण व रणसिंह बाघों के साथ उनके स्वागत के लिए ताडीखेत पहुंचा जिसने वापस आकर सल्ट में अपना आंदोलन और भी तेज कर दिया तथा सौ से अधिक स्वंतत्रता सेनानियों ने आंदोलन में सक्रिय भाग लिया तथा ५८ लोग जंगल सत्याग्रह में जेल भी गये।नमक सत्याग्रह भी सल्ट में अछुता नहीं रहा अप्रैल १९३० में सल्ट में चमकना डभरा, हटूली में नमक बनाया गया और १७ अगस्त १९३० को मालगुजारों ने सामूहिक इस्तीफे दिये और आंदोलन में शामिल हो गये। सल्ट में भारी जागृति देखकर ब्रिटिश शासन के अधिकारी बौखला गये और २० सितम्बर १९३० को एस.डी.एम. हबीर्बुर रहमान ने ५०-६० जवानों के साथ सल्ट के लिए प्रस्थान किया तथा भिकियासैंण पहुंच गया। २३ सितम्बर १९३० को क्वेरला के रास्ते होकर नयेड नदी तक आये और नरसिंह गिरि के बगड में कैम्प लगाया तथा अंग्रेजी सिपाहियों ने अत्याचार करना शुरू कर दिया। डंगुला गांव को चारों तरफ से घेर लिया और बूढे व बच्चों को सताया व पिटाई की, स्वतंत्रता सेनानी श्री बचेसिंह के घर का ताला तोडकर समान की कुडकी कर ली गयी तथा घोडों के पावों से सारी फसल रौंद डाली। आस-पास के गांवों को जब यह खबर पहुंची तो रणसिंगा बज उठा। लोग डंडे लेकर नयेड नदी के किनारे पहुंचे भीड ने एसडीएम से ५ रूपये जुर्माना वसूल कर एसडीएम को वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया। उधर खुमाड के टिले पर एक सभा हुयी जनता को अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए व्यक्तिगत गिरफ्तारी देने का फैसला लिया गया। ठेकेदार पानसिंह पटवाल ने खुद सबसे पहले एसडीएम हबीर्बुरहमान को अपने को गिरफ्तारी देने का फैसला लिया गया। ठेकेदार पानसिंह पटवाल ने खुद सबसे पहले एसडीएम हबीर्बुरहमान को अपने को गिरफ्तार करने का नोटिस भेज दिया और देवायल में एक सभा में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस सभा में एसडीएम को कुर्सी दी गई तथा अंग्रेज कप्तान को सभा में घुसने तक नहीं दिया।२४ अक्टूबर १९३० को पं. पुरूषोत्तम उपाध्याय, मथुरादत्त जोशी, धर्मसिंह, चन्दन सिंह आदि अपनी गिरफ्तारी देने रानीखेत पहुंचे। १९३१ को पुरुषोत्तम उपाध्याय अपने साथियों के साथ रिहा हुए। सन् १९३२ को उन्हें फिर गिरफ्तार कर बरेली जेल भेज दिया। ३० दिसम्बर १९३९ को गले की बीमारी से पंडित पुरुषोत्तम उपाध्याय जी का देहान्त हो गया। २ फरवरी १९३९ को एक शोक सभा में उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लिया गया। उनके बाद स्वाधीनता आंदोलन में सल्ट का नेतृत्व करने वालों में गंगादत्त शास्त्री, पानसिंह पटवाल, लक्ष्मण सिंह अधिकारी, रघुबर दत्त उपाध्याय, हरक राम, उत्तम सिंह डंगवाल आदि के अलावा सल्ट का बिगुल रणसिंह का प्रमुख स्थान रहा।७ मार्च १९३९ को देवायल में रघुबर दत्त उपाध्याय, हरी दत्त वैध, लक्ष्मण सिंह अधिकारी आदि सभा से गिरफ्तार कर लिये गये तथा क्वैरला में लक्ष्मण सिंह अधिकारी व बाबा हरिद्वार गिरि भी गिरफ्तार किये गये।
३ सितम्बर १९४२ को एसडीएम जोनसन पटवारी पेशकार व लाईसेंसदारों का एक जत्था देघाट चौकोट में गोली काण्ड कर के, भिकियासैंण होकर खुमाड की ओर चल पडा। क्वैरला धार में जब पहुंचा उसी समय तब पिपना के बिणदेव ने उन्हें अपने गांव से देखा और रणसिंह बजाकर ईलाके को सूचित कर दिया। ईलाके की सारी भीड खुमाड की तरफ उमडी पडी। जब अंग्रेज सिपाहियों का जत्था नयेड नदी के किनारे होकर डंगूला पहुंचा तो लालमणी ने उनका रास्ता रोकने की कोशिश की तो उन्हें घायल कर गिरफ्तार कर सारे गांव में लोगों को आतंकित किया।
जब एसडीएम जोनसन खुमाड पहुंचा तो वहां हजारों आंदोलनकारियों की भीड जमा हो रखी थी। कहीं भी तिल रखने की जगह नहीं थी। गोबिन्द ध्यानी ने रास्ता रोक दिया। नारे बाजी कर दी जॉनसन ने आंदोलनकारी सेनानियों की जानकारी न देने पर आग लगाने की धमकी भी दे डाली।
एसडीएम जॉनसन ने फायर का आर्डर दे दिया पुलिस ने निहत्थे सत्याग्रहियों पर गोली चलाने की बजाय गोली इधर-उधर चलानी शुरू कर दी। भीड का गुस्सा देख खुद जॉनसन ने घबरा कर अपनी रिवाल्वर से गोल चलानी शुरू कर दी दो सगे भाई गंगा राम व खिमानन्द काण्डपाल घटना स्थल पर ही शहीद हो गये तथा घटना के चार दिन बाद चूडामणी व बहाुदर सिंह भी शहीद हो गये। श्री गंगा दत्त शास्त्री, श्री गोपाल सिंह, श्री मधुसूदन, श्री रूप देव, श्री बचे सिंह, श्री नारायण सिंह, इस घटना में गंभीर रूप से घायल हुये तथा गोविन्द ध्यानी व लालमणी को घायल हालत में ही गिरफ्तार कर लिया तथा रास्ते में इस गोली काण्ड का विरोध कर मार्ग रोक देने पर पोखर के कुणसिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया। एसडीएम जॉनसन ने रानीखेत अदालत में खुमाड गोली काण्ड का केस दर्ज कर सल्ट के क्रांतिकारियों को अपराधी घोषित किया। सल्ट क्रांति को भारत की बारदोली की तरह महात्मा गांधी जी ने इसे कुमाऊं की बारदोली की पदवी से विभूषित किया आज भी खुमाड में हर वर्ष ५ सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान यहां बनाया गया कांग्रेस भवन शहीद स्मारक बन गया।
उतराखण्ड की धरती में स्वत्रंत्रा आन्दोलन की वीर गाथाओं का कोई पारावार नही है
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सल्ट क्रांति –
अल्मोड़ा जिले का सल्ट उन दिनों बहुत बीहड़, संचार और यातायात के साधनों से विहीन पिछड़ा क्षेत्र था। तब भी राष्ट्रीय आन्दोलन की चिंगारी सल्ट तक पहुंच गई। यह वही सल्ट था, जहां पटवारी-पेशकार बड़े अफसरों को घूस देकर अपने तबादले करवाते थे। नदी में बहने डूबने व पेड़ से गिरने से हुई मौतों के लिये भी वे घूस लेते थे। गांव में पहली बार पहुंचने पर पटवारी-पेशकार के टीके (दक्षिणा) का पैसा वसूला जाता था। फसल पर हर परिवार से एक पसेरी अनाज और खाने-पीने का सामान जबरिया इकट्ठा किया जाता था।
14 जनवरी, 1921 को बागेश्वर में हरगोबिन्द पन्त, बद्रीदत्त पाण्डे और विक्टर मोहन जोशी आदि के नेतृत्व में कुली बेगार के रजिस्टर सरयू को समर्पित कर दिये गये, हजारों लोगों ने कुली-बेगार न करने का संकल्प लिया। तब सरकारी अधिकारियों ने पौड़ी गढ़्वाल जिले की गूजडू पट्टी के साथ सल्ट की चार पट्टियों से बेगार कराने का फैसला लिया। इसकी सूचना हरगोबिन्द पन्त को मिली तो वे एस०डी०एम० के पहुंचने से पहले ही सल्ट पहुंच गये। वहां विभिन्न स्थानों पर सभायें हुई और जनता ने एक स्वर में कुली-बेगार न देने का संकल्प किया।
खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय तब जिला बोर्ड के प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे। खुमाड़ में सल्ट क्षेत्र का गढ़ बनाया गया था और वहीं से सूत्र संचालन होता था। 22 मार्च, 1922 को महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की सूचना से सल्ट की जनता में असंतोष तीव्र हो गया। पुरुषोत्तम उपाध्याय के घर पर बैठक रखकर इलाके में रचनात्मक कार्य करने का फैसला हुआ। सल्ट की चारों पट्टियों में ग्राम पंचायतें बनाई गई और स्वच्छता, सफाई, ऊन कताई, अछूतोद्धार व रास्तों की मरम्मत का अभियान छेड़ा गया। पंचायतों में बड़े-बड़े संगीन मामलों के फैसले भी लिये जाने लगे। स्वयं सेवकों की भर्ती होने लगी, अब तक पुरुषोत्तम जी सरकारी नौकरी में रहते हुये स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग ले रहे थे। उन्होंने १९२७ में नौकरी से इस्तीफा दे दिया, उनके साथ ही सहायक अध्यापक लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने भी इस्तीफा दे दिया। उस इलाके के समृद्ध ठेकेदार पान सिंह पटवाल भी इनके साथ आन्दोलन में शामिल हो गये।
प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये १९ मई, १९२७ को महात्मा गांधी ताड़ीखेत पहुंचे तो सल्ट के कार्यकर्ता भी उनका स्वागत करने गये। दिसम्बर १९२७ में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में भाग लेने के लिये पुरुषोत्तम उपाध्याय के नेतृत्व में सल्ट के कार्यकर्ता भी वहां पहुंचे। इसके बाद सल्ट में नशाबंदी आन्दोलन, विदेशी बहिष्कार, स्वदेशी प्रचार और तंबाकू का व्यसन छुड़ाने के लिए गांव-गांव में प्रचार किया गया। धर्म सिंह मालगुजार के घर में मनों तंबाकू की होली जला दी गई।
नमक सत्याग्रह से भी सल्ट अछूता नहीं रहा, अप्रैल, १९३० में सल्ट के चमकना, उभरी और हटुली में नमक बनाया गया। १७ अगस्त, १९३० को मालगुजारों ने सामूहिक इस्तीफे दे दिये, गांव के मालगुजार ही गांवों में ब्रिटिश राज की रीढ बने थे, जिनके माध्यम से पटवारी-पेशकार मनमानी करते थे। सल्ट इलाका बीहड़ तो था ही, उस पर ऊंचे-नीचे पहाड़, तब यह फैसला लिया गया कि जब भी कोई सभा होगी तो रणसिम्हा (तुतुरी) बजाई जायेगी। राष्ट्रीय चेतना जागृत होने के कारण पटवारी-पेशकार को मिलने वाली रिश्वत बन्द हो गई, लड़ाई-झगड़े बन्द हो गये। पटवारी-पेशकार को जो चीजें मोल लेनी पड़ रही थी, उनकी दस्तूर बन्द हो गई थी। उन्होंने अधिकारियों को गलत रिपोर्ट भेजनी शुरु कर दी, जिससे सल्ट में अतिरिक्ट पुलिस तैनात कर दी गई।
२० सितम्बर, १९३० को एस.डी.एम. हबीबुर्रहमान ने पुलिस के ५०-६० जवानों को लेकर सल्ट के लिये प्रस्थान किया और भिकियासैंण पहूंचा। २३ सितम्बर को उसने खुमाड़ से ३-४ कि०मी० दूर नयेड़ नदी के किनारे नर सिंह गिरि के बगड़ में कैंप लगाया। डंगूला गांव को घेर लिया गया, उस समय गांव के लोग खेतों में काम पर गये थे। कुछ बीमार और बूढे घर पर थे। उनकी पुलिस ने पिटाई कर दी, बचे सिंह (स्वतंत्रता सेनानी) के घर का ताला तोड़कर सामान की कुर्की कर ली। घोड़ों के पैरों के नेचे रौंदकर फसल बरबाद कर दी गई, पूरे गांव में पुलिस द्वारा लूट की गई। आस-पास के गांवों खुमाड़, टुकनोई, चमकना में खबर पहुंची तो रणसिंहा बज उठा, सैकड़ों लोग लाठियां लेकर नयेड़ के किनारे पहुंच गये। एस.डी.एम. से फसल का मुआवजा (५ रु०) भीड ने वसूल किया। गोरा पुलिस कप्तान भीड़ पर गोली चलाने के लिये आमादा था, पर उसे एस.डी.एम. ने रोक दिया, प्रशासनिक अमले को खाली हाथ वापस जाने के लिये मजबूर होना पड़ा।
उधर मौलेखाल के टीले में सभा हुई, जिसमें फैसला लिया गया कि जनता को अत्याचारों से बचाने के लिये नेता अपनी गिरफ्तारी देंगे। ठेकेदार पान सिंह पटवाल ने खुद को सबसे पहले गिरफ्तार करवाने की पेशकश की। इस हेतु एस.डी.एम. को नोटिस भेज दिया गया कि २९ सितम्बर को देवायल में आम सभा होगी। पुलिस के जत्थे के साथ एस.डी.एम. हबीबुर्रहमान देवायल पहुंच गया। पर इस बार वह मानिला-जालीखान होते हुये जिला बोर्ड की सड़क से पहुंचा। सभा में एस.डी.एम. को कुर्सी दी गई, लेकिन गोरे पुलिस कप्तान को घुसने भी नहीं दिया गया, ठेकेदार पान सिंह पटवाल को गिरफ्तार कर लिया गया।…………. साभार- मेरा पहाड-