गणेश चतुर्थी 13 से 23 सितंबर तक; नक्षत्रों और ग्रहों का विशेष दुर्लभ महासंयोग

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

 High Light: गणेश भगवान का प्राकट्य दिवस  #गणेश चतुर्थी पर नक्षत्रों और ग्रहों का विशेष संयोग  # गणेश चतुर्थी 13 से 23 सितंबर तक# इस बार अदभूत संयोग  #महासंयोग बन रहा है # 13 सितंबर को ही गुरु-स्वाति योग  # ज्योतिष शास्त्रियों के मुताबिक यह अत्यंत दुर्लभ और शुभ योग करीब 120 वर्ष के बाद बनने जा रहा है # भाद्रपद मास की चतुर्थी पर इस प्रकार का संयोग करीब 120 वर्षों बाद बना है # 27 नक्षत्रों में स्वाति नक्षत्र का स्थान 15वां है। इसे शुभ और कार्यसिद्ध नक्षत्र माना गया है। इस नक्षत्र के अधिपति देवता वायुदेव होते हैं। इस नक्षत्र के चारों चरण तुला राशि के अंतर्गत आते हैं जिसका स्वामी शुक्र है। शुक्र धन, संपदा, भौतिक वस्तुओं और हीरे का प्रतिनिधि ग्रह है #श्री गणेश मूर्ति स्थापना व पूजा का शुभ मुहुर्त #सुबह 11 बजकर 09 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 35 मिनट तक# माना जाता है कि गणेश जी पूरे दस दिन अपने माता-पिता से दूर रहते है और फिर वह दस दिन बाद उनके पास लौट जाते है# भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है# भगवान श्रीगणेश जी के प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन जिनके दर्शन से दुःख दूर  # Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्डl www.himalayauk.org## 

इस दिन गणेश भगवान का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। एक दिन जब पार्वती माता मानसरोवर में स्नान करने गईं थीं, तो बाल गणेश को उन्होंने पहरा देने को कहा था। इतने में भगवान शिव वहां पहुंच गए, लेकिन गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। जिस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर त्रिशुल से गणेश का सिर काट दिया। इसके बाद पार्वती माता के क्रोधित होने पर गणेश को हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया गया। तभी से उन्हें गजानन कहकर पुकारा जाने लगा।

13 सितंबर को पूरे देश में गणेश चतुर्थी मनाई जाने वाली है. मध्याह्न पूजा का समय गणेश-चतुर्थी पूजा मुहूर्त के नाम से ही जाना जाता है, इसीलिए पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजे से रात 12 बजे तक होता है. चतुर्थी तिथि गुरुवार 13 सितंबर को पूरे दिन रहेगी इसलिए गणेश जन्मोत्सव की पूजा और स्थापना इस दिन कभी भी कर सकते हैं. गणेश चतुर्थी के दिन से शुरू होने वाला ये त्योहार अनंत चतुर्दशी तक चलता है. गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता हैं. माना जाता है कि गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति के सारे विघ्न दूर हो जाते है. पुराणों के अनुसार गणेश जी की पूजा करने मात्र से ही सारे देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है. इस साल 13 सितंबर को पूरे देश में गणेश चतुर्थी मनाई जाने वाली है. गणेश चतुर्थी को शिवा चतुर्थी और कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है. गणेश चतुर्थी को पूरे उत्साह के साथ 10 दिन तक मनाया जाता है. इस साल गणेश चतुर्थी 13 से 23 सितंबर तक मनाई जाने वाली है. गणेश चतुर्थी के दिन से शुरू होने वाला ये त्यौहार अनंत चतुर्दशी तक चलता है. वैवाहिक जीवन में कोई दिक्कत आ रही हो तो पोटली में हल्दी भरकर गणेश जी की प्रतिमा पर लगाएं. जीवन में ज्यादा बाधाएं हो तो चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर गणेश जी को लगाएं. जीवन में ज्यादा बाधाएं हो तो गणेश जी के विनायक स्वरुप की पूजा करें. गणेश जी का जन्म मध्याह्न में हुआ है इसलिए गणेशजी को मध्याह्न में बिठाया जाता है.दुर्वा से ही गणेश जी का अभिषेक करें। इससे गणपति बप्पा मनोवांछिक फल देते हैं।

शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है. जो व्यक्ति हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करता उसको विशेष लाभ और साथ ही धन लाभ भी होता है. जो हर चतुर्थी नहीं कर सकता वह इस दिन करे तो उसको उसी के बराबर फल की प्राप्ति होती. इस दिन आप शुद्ध जल में सुगन्धित द्रव्य या इत्र मिला करके श्रीगणेश का अभिषेक करें. साथ में गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें. बाद में लड्डुओं का भोग लगाएं. अगर इस दिन की पूजा सही समय और मुहूर्त पर की जाए तो हर मनोकामना की पूर्ति होता है.

गणेश चतुर्थी शुभ तिथि, नक्षत्र ,योग और वार में होने के कारण शुभ फल देने वाला होगा। इसके अलावा 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव में हर दिन एक शुभ योग बन रहा है साथ ही इस गणेश उत्सव पर एक भी क्षय तिथि नहीं होगी। 13 सितंबर को गणेश चतुर्थी स्वाती नक्षत्र के स्थिर नाम का शुभ योग से गणपति की स्थापना करने पर सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी। साथ गजकेसरी का राजयोग भी बन रहा है। 13 सितंबर से 23 सितंबर तक हर दिन शुभ योग और शुभ नक्षत्र में गणेश उत्सव रहेगा। इन 10 दिनों में अमृत,रवि, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, सर्वार्थसिद्धि, सुकर्म और धृति योग बनेगा।

भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को शिवा कहते हैं. इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर स्नान दान व्रत जप आदि सत्कर्म करना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करता है उसको गणपति जी का सौ गुना अभीष्ट फल प्राप्त होता है ऐसा भविष्य पुराण में दिया गया है. इस दिन गणेश जी के साथ शिव जी और पार्वती जी का भी पूजन करना चाहिए.

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का इसी दिन जन्म हुआ था. भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार के दिन मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था. इसलिए मध्याह्न काल में ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है, इसे बेहद शुभ समय माना जाता है. भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या सिद्धीविनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. कुछ जगहों पर इसे पत्तर चौथ और कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्र दर्शन नहीं किया जाता. मान्यता है कि चंद्र दर्शन करने से इस दिन कलंक लगता है.

चतुर्थी के दिन प्रातः काल उठकर सोने, चांदी, तांबे और मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करते हैं. पूजन के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं. मान्यता के अनुसार इन दिन चंद्रमा की तरफ नहीं देखना चाहिए. इस पूजा में गणपति को 21 लड्डुओं का भोग लगाने का विधान है. गणेश चतुर्थी पर जीवन के सारे विघ्न बाधाएं दूर करने के लिए संध्याकाल में गणेश जी की पूजा जरूर करें. घी का दीपक जलाकर दूर्वा और लडडू का प्रसाद चढ़ाएं. इसके बाद गणेश जी की आरती करके प्रसाद सभी में बांट दें. गणेश चतुर्थी पर यथाशक्ति बप्पा की सेवा करने से जीवन से कष्टों का निवारण होता है. भगवान गणेश भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. गणेश चतुर्थी 10 दिनों तक चलने वाला त्योहार है. इसे गणेश महोत्सव भी कहा जाता है. इस साल यह त्योहार 13 सितबंर से शुरू हो रहा है और 23 सितम्बर तक चलेगा.

श्री गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए उनको गीत और संगीत के माध्यम से भजन का सुंदर प्रस्तुतीकरण किया जाता है। मंत्रों के मधुर उच्चारण से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। यह उत्सव 10 दिन चलता है फिर अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर देते हैं।

भगवान श्रीगणेश जी के प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन जिनके दर्शन से दुःख दूर हो जाएंगे।

मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर
मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर भारत में गणेशजी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और यह मंदिर पहले स्‍थान पर आता है। इस मंदिर का निर्माण एक निसंतान महिला की आस्‍था पर बनवाया गया था। यहां रोज लाखों श्रद्धालु और कई बड़ी हस्तियां भी यहां आती हैं। यहाँ सबसे ज्यादा चढ़ावा चढ़ाया जाता है।

2;
गणेश जी का श्रीमंत दग्‍दूशेठ हलवाई मंदिर दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर
महाराष्‍ट्र में सिद्धिविनायक मंदिर के बाद गणेश जी का श्रीमंत दग्‍दूशेठ हलवाई मंदिर दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का ट्रस्ट दुनिया के सबसे अमीर ट्रस्टों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण श्रीमंत दग्‍दूशेठ नाम के एक हलवाई ने करवाया था, क्योंकि उनके बेटे की प्‍लेग के कारण मृत्‍यु हो गई थी।

3
प्रसिद्ध मंदिर कनिपकम विनायक मंदिर
आंध प्रदेश के चित्‍तूर जिले में तिरूपति मंदिर से 75 किमी दूर स्थित कनिपकम विनायक मंदिर काफी प्रसिद्ध मंदिर है, यह भारत में गणेश जी का तीसरा प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर के पास एक पवित्र जल कुंड है, जहाँ भक्त अपने पाप धोने के लिए आस्था की डुबकी लगाए हैं।

4
मनकुला विनायक मंदिर पुडुचेरी
भारत में गणेश जी का चौथा प्रसिद्ध मंदिर पुडुचेरी में है। यह मंदिर मनकुला विनायक मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर को 1666 साल पहले बनवाया गया था। इस मंदिर को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि यहां भगवान गणेश की प्रतिमा को कई बार समुद्र में फेंक दिया गया, लेकिन मूर्ति अपने आप रोज उसी स्‍थान पर प्रकट हो जाती थी।

5
प्राचीन गणेश मंदिर
भारत में प्राचीन मंदिर मधुवाहिनी नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर में जो भगवान गणेश की मूर्ति है वह ना तो मिट्टी की बनी है और न ही किसी पत्‍थर की। यहां भगवान गणेश की मूर्ति अलग प्रकार के तत्‍व से बनी है। मुगल शासक टीपू सुल्‍तान इस मूर्ति को नष्‍ट करने आया था लेकिन वह सफल नहीं हो सका।

 

6
भगवान गणेश का रणथंबौर गणेश मंदिर
राजस्थान में भगवान गणेश का रणथंबौर गणेश मंदिर काफी प्रसिद्ध है। यह मंदिर 100 साल पुराना है। वाइल्‍ड लाइफ के शौकीन लोग रणथंबौर नेशनल पार्क घूमने के लिए आते हैं लेकिन साथ ही वह यहां गणेशजी के ‘त्रिनेत्र’ स्‍वरूप के दर्शन किये बिना नहीं जाते।

 

 

7
जयपुर में मोती डूंगरी गणेश मंदिर
राजस्थान जयपुर में सेठ जय राम पालीवाल ने 18वीं शताब्‍दी में मोती डूंगरी गणेश मंदिर का निर्माण करवाया था। एक पहाड़ पर स्थित यह मंदिर जयपुर के मुख्‍य टूरिस्‍ट स्‍पॉट में से एक है। इस मंदिर के पास जयपुर की महारानी गायत्री देवी का महल ‘मोती डूंगरी पैलेस’ भी है।

 

 

8 गणेशजी का मंदिर गंगटोक
गणेश टॉक मंदिर गंगटोक के प्रसिद्ध टूरिस्‍ट स्‍पॉट में से एक यह मंदिर अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के इस स्‍थान पर गणेशजी का मंदिर आस्‍था का प्रमुख केंद्र है। गणेश चतुर्थी पर यहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

 

 

9 रत्‍नागिरी में भगवान गणेश की जो मूर्ति;स्‍वयं प्रकट हुई
महाराष्‍ट्र के रत्‍नागिरी में स्‍थित गणपतिपुले मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां भगवान गणेश की मूर्ति का मुख उत्‍तर दिशा में न होकर पश्चिम की ओर है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान गणेश की जो मूर्ति है उसकी स्‍थापना किसी व्‍यक्ति ने नहीं की है, बल्कि यह मूर्ति स्‍वयं प्रकट हुई है।

 

10
रॉक फोर्ट पहाड़ी की चोटी पर भगवान गणेश का यह प्रसिद्ध मंदिर
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली (त्रिचि) नामक स्थान पर रॉक फोर्ट पहाड़ी की चोटी पर स्‍थित भगवान गणेश का यह प्रसिद्ध मंदिर पहाड़ों पर होने की वजह से यहां का नजारा बहुत ही सुंदर और देखने योग्य है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि रावण के भाई विभीषण ने एक बार भगवान गणेश पर वार किया था। जिसके बाद यहां भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना की गई।

 

गणेश जी स्थापना करना चाहते हैं तो विशेष ध्यान रखना होगा। जाने-अनजाने में आपसे कोई गलती हो जाती है तो आपके संकट दूर होने की बजाय बढ़ सकते हैं और आपकी स्थिति दरिद्रता जैसी हो सकती हैं। तो पहले ही संभल जाइए और गणेश जी की पूजा करने से पहले ये बातें जान लीजिए। राहु काल में कभी भी गणेश जी की पूजा नहीं करनी चाहिए। यदि आप करते हैं तो भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है और आप दरिद्र हो सकते हैं। गणेश जी की स्थापना करते समय आप उत्तर – पूर्व दिशा में विराजमान करें। भूलकर भी दक्षिण-पश्चिम में स्थापना न करें। इससे हानि हो सकती है। प्रतिमा का मुख दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी की मुख की तरफ सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है जबकि उनकी पीठ की तरफ दरिद्रता का वास होता है अर्थात गणेश जी का मुख हमेशा उस तरफ होना चाहिए जिससे वो घर की तरफ देखते नजर आएं।

गणेश चतुर्थी की पूजा करने से पहले नई मूर्ति लाना जरूरी है। इस प्रतिमा को आप अपने मंदिर या देव स्थान में स्थापित कर सकते हैं लेकिन इससे पहले भी कई खास बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। अगर आप गणपति जी की मूर्ति को किसी कारण स्थापित नहीं कर सकते तो एक साबुत पूजा सुपारी को गणेश जी का स्वरूप मानकर उसे घर में रख सकते हैं।  

गणेश मंत्र

1. वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

2. गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं। उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

3. एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं। विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

4. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं। नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

5. नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं। गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥

——————–CONTACT US————–

Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्डl www.himalayauk.org
Leading Digital Newsportal & DAILY NEWSPAPER) 2005 से निरंतर आपकी सेवा में-‘ उत्तiराखण्डs का पहला वेब मीडिया-
CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR
Publish at Dehradun & Haridwar, Available in FB, Twitter, whatsup Groups & All Social Media ;
Mail; himalayauk@gmail.com (Mail us)
Mob. 9412932030; ;
H.O. NANDA DEVI ENCLAVE, BANJARAWALA, DEHRADUN (UTTRAKHAND)
हिमालयायूके में सहयोग हेतु-
Yr. Contribution:

HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND

A/C NO. 30023706551 STATE BANK OF INDIA; IFS Code; SBIN0003137

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *