आश्वासनों से तंग,आक्रोशित जनता सड़को पर उतरने को मजबूर
गौरवशाली इतिहास समेटे है, गनोरा
उपेक्षा के दशं से आहत गनौरावासी सहित तमाम ग्रामीण आन्दोलन को हुए मजबूर # विकास के लाख दावे करे ,परन्तु जमीनी हकीकत कुछ और #सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे गाँवों का नजारा # आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे #राजनेताओं की वेशर्मी की हद # बोट बटोरने के लिए जहां स्थानीय जनता से बड़े बड़े वादे # लोग आश्वासनों से तंग आ चुके है,आक्रोशित जनता अब सड़को पर उतरने को मजबूर # आक्रोश आन्दोलन बनकर सड़कों पर # मार्गों की हालत ही दयनीय है तो अन्य मूलभूत समस्याओं का अन्दाजा सहज # राज्य निर्माण के सोलह साल बाद भी यह क्षेत्र विकास की किरणों से कोसो दूर है, मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग पलायन को विवश है ,मार्गों के अभाव में गांव की गलियां सूनी # www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) Execlusive Report by: राजेन्द्रपन्त’रमाकान्त’
गनौरा।जनपद पिथौरागढ़ का गंगोलीहाट गंगावली क्षेत्र आध्यात्मिक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है, विकास की दृष्टि से उतना ही उपेक्षित भी राज्य सरकार भले ही सीमान्त क्षेत्र के विकास के लाख दावे करे ,परन्तु जमीनी हकीकत कुछ और ही है।सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे गाँवों का नजारा देखना हो तो चले आइये गंगोलीहाट के ग्रामीण इलाकों की ओर जहां आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है, उपेक्षा से आहत लोग सड़कों पर उतरकर आन्दोलन करने को मजबूर है,राजनेताओं की वेशर्मी की हद तो देखिये फिर भी कोई सुध लेवा समस्याओं के निदान के लिए आगे आने को तैय्यार नही है, चुनावी दौर में बोट बटोरने के लिए जहां स्थानीय जनता से बड़े बड़े वादे किये जाते है, वहीं चुनाव के बाद जनप्रतिनिधियों का कोई अता पता नही रहता है, और जनमानस ठगा ठगा रह जाता है।एक बार फिर विधान सभा के चुनाव नजदीक आते ही सरकार व उनके नुमाइन्दों द्वारा जनता को आश्वाशन बाटनें का दौर धीरे धीरे शुरू होने लगा है,गंगावली के विकास के लिए भी लम्बी चौड़ी बाते राजनितिक हलकों में कही जा रही है,लेकिन अब लोग आश्वासनों से तंग आ चुके है,आक्रोशित जनता अब सड़को पर उतरने को मजबूर हो गयी है।गंगोलीहाट के गनौरा, नानी, चामा, सेला,मनगढ़, ज्यूला, थारा, सेरा,भटिजर,सीमायल,मुना,पुनौली,बुकमैड़ा,भुवनेश्वर गांव के लोगों का आक्रोश आन्दोलन बनकर सड़कों पर उतर आया है ,वर्षों से सड़क के लिए संघर्षरत लोगों का कहना हैं,जब ग्रामीण क्षेत्रों के मार्गों की हालत ही दयनीय है तो अन्य मूलभूत समस्याओं का अन्दाजा सहज में ही लगाया जा सकता है, बारहाल सड़क के लिए गनौरा व आसपास के ग्रामीणों ने एकजुट होकर संघर्ष का बिगुल बजा दिया है।
ईमानदारी से प्रयास करे तो यह तमाम ग्रामीण इलाके फल पट्टी के रुप विकसित हो सकती है
जनपद पिथौरागढ के गनौरा आदि ग्रामीण क्षेत्रों में फल उत्पादनों की अपार संभावनाओं के बावजूदमार्ग निर्माण के अभाव में क्षेत्र के ग्रामीणों को फलोत्पादन का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। सरकारी तंत्र बागवानी विकास के चाहे लाख दंभ भरे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। फल उत्पादकों को उत्पादन सामग्री मार्ग निमार्ण के अभाव में मुख्य मार्गों तक न पहुंच पाना सबसे ज्यादा खलता है। यदि किसी तरह फल की पेटियां नियत स्टेशन तक बिक्री हेतु लायी भी जाती हैं तो उचित मूल्य न मिल पाने से हताश उत्पादकों ने अब फलोत्पादन की ओर ध्यान देना छोड दिया है। परिणाम स्वरूप दूर-दराज गांवों में होने वाले फल गांवों के भीतर ही सड जाते है। जो सरकार के औद्योनिक विकास के दावों की पोल खोलते नजर आते हैं। जबकि यहां औद्योनिक विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में नारंगी, माल्टा, नाशपाती, आडू, अखरोट, पुलम, खुमानी, काफी मात्रा में पैदा होकर अनुप्रयोग की स्थिति में सडकर समाप्त हो जाता है जिसका प्रमुख कारण मार्गो के अभाव में फलों का बिक्री हेतु प्रमुख मण्डियों में न पहुंच पाना है
बीते २8 जून से अपनी मागों को लेकर आन्दोलन कर रहे ग्रामीणों को तमाम क्षेत्रों से जबरदस्त समर्थन मिल रहा है, भूल, सिमायल, चामा, भुवनेश्वर, आदि अनेको स्थानों से पहुंचकर लोग आन्दोलन में बढ़चढ़ कर भाग ले रहे है।अनेक क्षेत्रों के ग्राम प्रधान,युवाओं के नेतृत्व में चल रहे इस आन्दोलन की अगुवाई छात्र नेता दिवाकर सिह रावल व वरिष्ठ समाज सेवी श्री एम.एस दशौनी श्रीराजेन्द्र प्रसाद,श्रीराधेराम सहित तमाम युवा जन कर रहे है,जनता का आन्दोलन को भरपूर समर्थन मिल रहाहै, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता श्री एम.एस दशौनी का कहना है,कि राज्य निर्माण के बाद स्थानीय लोगों को उम्मीद थी, कि अब गनौरा आदि क्षेत्रं के ग्रामीण इलाको के दिन फिरगें लेकिन राज्य निर्माण के सोलह साल बाद भी यह क्षेत्र विकास की किरणों से कोसो दूर है, मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग पलायन को विवश है ,मार्गों के अभाव में गांव की गलियां सूनी होगयी है, श्री दशौनी ने कहा कि मार्ग के अभाव में प्रवासी लोग भी यहांआने में काफी दिक्कत महसूस करते है,तथा बड़ी मशक्कत के बाद यहां पहुचं पाते है,गौरतलब है,कि गनोरा गांव गंगोली क्षेत्र का बहुत ही रमणीक गांव है,पाताल भुवनेश्वर के समीप इस गांव की मन मोहकता का वर्णन शब्दो में नही किया जा सकता है।सुन्दर मन को हरने वाले झर झर बहते झरने ,हिमालय का विहंगम दृश्य पर्वतराज हिमालय की तलहटी में स्थित गनोरा गांव का अतीत बड़ा ही समृद्धशाली रहा है,इसगाँव की गालियों ने देश को अनेकों महाप्रतापी सूरवीर र्सेनिकों सहित देश सेवा के लिए अनेक प्रशासनिक अधिकारी दिए है,आध्यात्म की महान विरासत को समेटे गनोरा गाव की महान विभूति संत शिरोमणी प्रयागपूरी माई का लोग आज भी बड़े ही श्रद्वा के साथ स्मरण करते है,वर्षों पूर्व इस नश्वर संसार को अलविदा कह चुकी माई प्रयागपुरी आध्यात्म जगत की विराट हस्तीथी, जिन्होंनें अपनी साधना के प्रभाव से अनेकों लोगों का जीवन संवारकर उन्हें सम्मार्ग की ओर प्रेरित किया था।ग्राम देवताओं की महान विरासत को समेटे गनोरा गांव की चहल पहल भी पलायन के वशीभूत हो चली है,पशुपालन के क्षेत्र में इस गांव का बड़ा ही नाम था, इस गांव से आसपास के लोग कभी प्रचुर मात्रा में दूध दही ले जाया करते थे,लेकिन अब वो बात कहां सूनी होती बाखलियां पुरानी यादे ताजा करती है,आजादी के दौरान स्वतन्त्रता आन्दोलन में गनौरा गांव का अतुलनीय योगदान रहा है,धर्म व आस्था का महासंगम गनौरा गांव आजादी के लम्बित वर्षों बाद भी मार्ग निर्माण के लिए तरस रहा है, महानगरों को पलायन कर गये लोग आधुनिकता की चकाचौधं से उबकर अपने गांव को लौटना तो चाहते है, किन्तु मार्गों की दयनीय दशा व मूलभूत सुविधाओं के अभाव में मन मार कर रह जाते है। जोलोग गांव में बसे है वे संद्यर्षो के दौर से गुजर रहे है, सरकारी उदासीनता के चलते गनोरा व आसपास के लोग अपनी समस्याओं के निदान के लिए आन्दोलनको बाध्य है, बारहाल उनकी प्राथमिक माँग मार्ग निर्माण है, लेकिन गांव बचाओं और हिटो पहाड़ की ओर चलो कहने वाली सरकार का रुख गनौरा गावं के प्रति कितना सकारात्मक है ,यह आने वाला समय ही बताऐगा ,यदि सरकारी तन्त्र इस क्षेत्र व आसपास केगांवों की दशा सुधारने को