रक्षा कवच है मॉ गायत्री की उपासना- 13 जून जयंती पर विशेष

गायत्री मंत्र को वेदों में बड़ा ही चमत्कारी और फायदेमंद बताया गया है। वेदों की कुल संख्या चार है। इन चारों वेदों में गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है। माना जाता है कि इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि नियमित तीन बार इसका जप करने वाले व्यक्ति के आस-पास नकारात्मक शक्त‌ियां नहीं फटकती हैं।

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि- चमत्कारी गायत्री मंत्र -आस-पास नकारात्मक शक्तिंयां नहीं फटकती  -गायत्री जयंती 13 जून 2019

हिन्दू धर्म में देवी गायत्री को चारों वेदों की उत्पति का कारक मानते हैं और इनसे ही चारों वेदों की उत्पत्ति हुई है. इसी वजह से सभी वेदों का सार मां गायत्री को माना जाता है और शास्त्रों के मुताबिक़ जिसे चारों वेदों का ज्ञान होता है उसे पुण्य की प्राप्ति होती है इसके साथ ही अगर कोई चारों वेदों का ज्ञान नहीं ले सकता तो उसे केवल गायत्री मंत्र का ज्ञान लेने से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है. इस बार गायंत्री जयंती 13 जून को है. माता गायत्री से वेदों की उत्पति होने के कारण इनको वेदमाता कहते हैं और ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही कहते हैं.

अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी 13 जून को है। अत: गायत्री जयंती 13 जून 2019 को मनाई जायेगी।  महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाये तो यह कामधेनू (इच्छा पूरी करने वाली दैवीय गाय) के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है।

गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता है जैसे केंचुली से छूटने पर सांप होता है।

गायत्री को हिंदू भारतीय संस्कृति की जन्मदात्री मानते हैं। गायत्री मां से ही चारों वेदों की उत्पति मानी जाती हैं। इसलिये वेदों का सार भी गायत्री मंत्र को माना जाता है। मान्यता है कि चारों वेदों का ज्ञान लेने के बाद जिस पुण्य की प्राप्ति होती है अकेले गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदों का ज्ञान मिलता जाता है। चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। माना जाता है कि समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण ज्ञान-गंगा भी गायत्री को कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है।

माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाये उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पंहुचाया।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, गायत्री देवी (Gayatri Devi) से ही चारों वेद, पुराण और श्रुतियों की उत्पत्ति हुई है, इसलिए उन्हें वेदमाता (Vedmata) भी कहा जाता है. उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बराबर माना जाता है और त्रिमूर्ति मानकर उनकी उपासना की जाती है. उन्हें देवी सरस्वती, पार्वती और माता लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है. शास्त्रों के मुताबिक गायत्री जयंती (Gayatri Jayanti) ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और यह तिथि 13 जून 2019 को पड़ रही है.  महागुरु विश्वमित्र ने पहली बार गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra) को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को बोला था, जिसके बाद इस दिन को गायत्री जयंती के रूप में मनाया जाने लगा. गायत्री जयंती का यह पर्व गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) के दूसरे दिन मनाया जाता है, लेकिन एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसे श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन भी मनाया जाता है. 

गायत्री माता के 5 सिर और 10 हाथ हैं. उनके चार सिर चारों वेदों का प्रतीक माने जाते हैं और उनका पांचवां सिर सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. उनके 10 हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक हैं और वे सदा कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. गायत्री माता को समस्त देवी-देवताओं की देवी कहा जाता है 

चमत्कारी गायत्री मंत्र को वेदों में बड़ा ही चमत्कारी और फायदेमंद बताया गया है। वेदों की कुल संख्या चार है। इन चारों वेदों में गायत्री मंत्र का उल्लेख किया गया है। माना जाता है कि इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि नियमित तीन बार इसका जप करने वाले व्यक्ति के आस-पास नकारात्मक शक्त‌ियां नहीं फटकती हैं। गायत्री मंत्र के जप से कई प्रकार का लाभ मिलता है। इस मंत्र के जप से बौद्ध‌िक क्षमता और मेधा शक्ति यानी स्मरण क्षमता बढ़ती है।

गायत्री मंत्र का जप सूर्योदय से दो घंटे पूर्व से लेकर सूर्यास्त से एक घंटे बाद तक कि‌या जा सकता है। मौन यानी मानसि‌क जप कभी भी कर सकते हैं, लेकि‌न रात्रि‌ में इस मंत्र का जप नहीं करना चाहि‌ए। माना जाता है कि‌ रात में गायत्री मंत्र का जप लाभकारी नहीं होता है।

गायत्री देवी समस्त वेदों का सार हैं. अगर किसी साधक ने गायत्री मंत्र को सिद्ध कर लिया तो उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं रह जाता है. यह समस्त इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु गाय के समान है. इसके नियमित जप से आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है और व्यक्ति के समस्त कष्टों का निवारण होता है. मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन-ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी कहा गया है.

गायत्री मंत्र और उसका अर्थ – 

मंत्र –  ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।

ॐ – ईश्वर 

भू: – प्राणस्वरूप 

भुव: – दु:खनाशक

स्व: – सुख स्वरूप 

तत् – उस 

सवितु: – तेजस्वी 

वरेण्यं – श्रेष्ठ 

भर्ग: – पापनाशक 

देवस्य – दिव्य

धीमहि – धारण करे 

धियो – बुद्धि

यो – जो 

न: – हमारी 

प्रचोदयात् – प्रेरित करे

अर्थ –  सभी को जोड़ने पर अर्थ है- उस प्राणस्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।

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