चमोली के मंडल घाटी में पावन मंदिर; सती अनसूइया दरबार – घर पहुचंने से पहले मनोकामना पूर्ण होती है

शक्ति सिरोमणि माता अनसूया के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है. यहां जो कोई भी संतान की कामना के लिए आता है, वह खाली हाथ नहीं रहता. जब आपकी मुराद पूरी हो जाती है, तो आप फिर से माता के दर्शन करने जा सकते हैं. :प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान चारों ओर से ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित है, तो इसके नजदीक ही अत्रि मुनि आश्रम स्थित है, जो कि अमृत गंगा का उद्गम स्थल भी है.

मन्दिर के गर्भ गृह में अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है, जिसके ऊपर चाँदी का छत्र रखा है। मन्दिर परिसर में शिव, पार्वती, भैरव, गणेश और वनदेवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं। मन्दिर से कुछ ही दूरी पर अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय की त्रिमुखी पाषाण मू्र्ति स्थापित है।  गुफा में महर्षि अत्रि की पाषाण मूर्ति है। गुफा के बाहर अमृत गंगा और जल प्रपात का दृश्य मन मोह लेता है। यहां का जलप्रपात शायद देश का अकेला ऐसा जल प्रपात है जिसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही अमृत गंगा को बिना लांघे ही उसकी परिक्रमा की जाती है।

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ऐसा कहा जाता है जब अत्रि मुनि यहां से कुछ ही दूरी पर तपस्या कर रहे थे तो उनकी पत्नी अनसूइया ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए इस स्थान पर अपना निवास बनाया था।कविंदती है कि, देवी अनसूइया की महिमा जब तीनों लोकों में गाए जाने लगी तो अनसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को विवश कर दिया। पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुँचें और उन्होंने भोजन की इच्छा प्रकट की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने पण (शर्त) रखा कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्वस्त्र होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खडे साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खडे दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनके पण के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद मुनि के कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व रूप में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई।

माता अनसूया को पुत्रदायिनी माना जाता है. यही वजह है कि उत्तराखंड के चमोली की मंडल घाटी (Mandal Valley) के घने जंगलों में बसे इस मंदिर में देशभर के निसंतान दंपति हर समय आते रहते हैं. इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां हर साल दिसंबर में होने वाले मेले में ही भक्‍तों को परिसर में रुकने की अनुमति होती है, बाकी दिनों में निसंतान दंपति ही पूजा पाठ कर सकते हैं.

उत्तराखंड के चमोली (Chamoli) की मंडल घाटी (Mandal Valley) के घने जंगलों के बीच माता अनसूया (Mata Anasuya) का भव्य मंदिर है, जो कि अपनी खूबसूरती के साथ निसंतान दंपतियों की मनोकामना पूरी करने के लिए देशभर में पहचान रखता है. यही नहीं, संतानदायिनी के रूप में प्रसिद्ध माता अनसूया के दरबार में सालभर निसंतान दंपति संतान कामना के लिए पहुंचते हैं. माना जाता है कि शक्ति सिरोमणि माता अनसूया के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है.

हर वर्ष दिसंबर के महीने में अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय के जन्म अवसर पर यहाँ दत्तात्रेय जयंती (मेले) का आयोजन किया जाता है

माता अनसूया मंदिर के पुजारी प्रवीन सैमवाल के मुताबिक, माता न सिर्फ निसंतान लोगों की कामनापूर्ण करती है बल्कि देवता भी माता अनसूया को नमन करते हैं. बता दें कि प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान चारों ओर से ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित है, जोकि हर किसी का मनमोह लेता है. अनसूया मंदिर के पुजारी प्रवीन सैमवाल ने बताया कि यह स्‍थान बद्री और केदारनाथ के बीच स्थित है. उन्‍होंने बताया कि महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया की महिमा जब तीनों लोक में होने लगी तो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के अनुरोध पर परीक्षा लेने ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वीलोक पहुंचे थे. इसके बाद साधु भेष में तीनों ने अनसूया के सामने निर्वस्त्र होकर भोजन कराने की शर्त रखी थी. दुविधा की इस घड़ी में जब माता ने अपने पति अत्रि मुनि का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए. इसके बाद उन्‍होंने अपने कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़का तो वह छह महीने के शिशु बन गए थे. इसके बाद माता ने शर्त के मताबिक, न सिर्फ उन्‍हें भोजन कराया बल्कि स्‍तनपान भी कराया था. वहीं, पति के वियोग में तीनों देवियां दुखी होने के बाद पृथ्वीलोक पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की. फिर तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया. यही नहीं, माता को दो वरदान दिए. इससे उन्‍हें दत्‍तात्रेय, दुर्वासा ऋषि और चंद्रमा का जन्‍म हुआ, तो दूसरा वरदान माता को किसी भी युग में निसंतान दंपित की कोख भरने का दिया. यही नहीं, वजह है कि यहां जो कोई भी संतान की कामना के लिए आता है, वह खाली हाथ नहीं रहता.

अनसूया ट्रस्‍ट के उपाध्‍यक्ष विनोद राणा ने कहा कि मैं करीब 22 साल से मां की सेवा कर रहा हूं. माता के दरबार से कोई खाली हाथ लौटकर नहीं जाता. जबकि घने जंगलों के बीच बसे मंदिर परिसर को लेकर उन्‍होंने कहा कि यहां भालू और अन्‍य जंगली जानवर जरूर रहते हैं, लेकिन आज तक किसी भक्‍त के साथ कोई हादसा नहीं हुआ. जबकि मंदिर की सुरक्षा को लेकर कहा कि यहां क्षेत्रपाल की अहम भूमिका रहती है और उनके 50 से ज्‍यादा रूप हैं. दत्‍तात्रेय देव भूमि सेवा ट्रस्‍ट चलाने वाले समाजसेवी ऋषि कुमार विश्‍नाई ने बताया कि माता के दरबार में वैसे तो हर किसी को आशीर्वाद मिलता है, लेकिन यहां की खास मान्‍यता निसंतान दंपति की गोद भरने के कारण है. उन्‍होंने कहा कि यहां जो भी आता है मां उसकी मुराद पूरी जरूर करती है. इसके अलावा विश्‍नाई ने बताया कि माता अनसूया परिसर में भक्‍तों के रुकने या आराम करने का कोई खास इंतजाम नहीं है, इसलिए हम धर्मशाला बनाने के साथ एक गौशाला का निर्माण भी कर रहे हैं, जो कि पूरा होने के करीब है. वहीं, उन्‍होंने देशभर के लोगों से अपील करते हुए कहा कि आप सब माता के दर्शन करने के लिए चमोली के मंडल घाटी के इस पावन मंदिर में जरूर आये

वहीं, अक्‍सर माता अनसूया के दर्शन करने गोपेश्‍वर से आने वाले भक्‍त विजय साहू ने कहा कि मंदिर के अलावा अत्रि मुनि का स्‍थान भी बेहद खास है. उन्‍होंने कहा, ‘ मंडल से पांच किलोमीटर माता का मंदिर है. जबकि उससे डेढ़ किलोमीटर आगे अत्रि मुनि की गुफा है, जोकि बेहद खूबसूरत होने के साथ कई सारी धार्मिक मान्‍यताएं रखती है. यहां सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रभाव बहुत अधिक होता है, तो यह अमृत गंगा का उद्गम स्थल भी है. यही नहीं, आप यहीं से रुद्रनाथ भी जा सकते हैं.’

निसंतान दंपति की कोख भरने के लिए माता के मंदिर की पहचान है. यहां संतान की चाह रखने वालों को शाम तक पहुंचना होता है. इसके बाद उन्‍हें पूजापाठ के बाद रात भर मंदिर में ही बैठाना होता है. इस दौरान अनसूया माता महिला को दर्शन देती हैं. इसके बाद महिला वहां से उठकर स्‍नान वगैराह करती है और फिर सूर्यादय के बाद एक बार फिर पुजारी पूजा करवाते हैं. इस दौरान जो पूजा सामान आप चढ़ाते हैं, उसमें से श्रीफल समेत कुछ चीजें आपको वापस मिलती हैं,जिन्‍हें आप अपने घर में मंदिर में जगह देते हैं. यही नहीं, जब आपकी मुराद पूरी हो जाती है, तो आप फिर से माता के दर्शन करने जा सकते हैं.

चमोली जिले की मंडल घाटी तक वाहन से आप पहुंच सकते हैं. इसके बाद अनसूया मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको पैदल यात्रा करनी होगी. श्रीनगर के रास्‍ते गोपेश्वर से होते हुए मंडल तक बस और टैक्‍सी से पहुंच सकते हैं. फिर मंडल से माता के मंदिर तक पांच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है. प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान चारों ओर से ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित है, तो इसके नजदीक ही अत्रि मुनि आश्रम स्थित है, जो कि अमृत गंगा का उद्गम स्थल भी है.

गोपेश्वर से १३ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मण्डल नामक स्थान आता है। 

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