इस योजना ने अब सरकार की नींद उड़ा दी है
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के चलते न सिर्फ पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान पर जा रहे हैं, बल्कि इसकी वजह से अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी कई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं. मूडीज ने बुधवार को कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का हवाला देते हुए भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के ग्रोथ का अनुमान घटा दिया है. उसने इस साल वृद्धि दर के 7.3 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है. इससे पहले उसने जीडीपी के 7.5 फीसदी पर रहने का अनुमान लगाया था. मूडीज ने कहा, ”भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर निवेश और खर्च के बूते अच्छा प्रदर्शन कर रही है. लेकिन कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतें और कड़ी वित्तीय परिस्थितियां जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार पर ब्रेक लगा सकती हैं.”
मूडीज ने अनुमान जताया है कि 2018 में वृद्धि दर 7.3 फीसदी रह सकती है. यह पिछले अनुमान से कम है. हालांकि मूडीज ने 2019 के अनुमान में कोई बदलाव नहीं किया है. उसे 7.5 फीसदी ही रखा गया है. मूडीज ने कहा कि घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था को कई चीजों से फायदा मिल सकता है. बेहतर मॉनसून, ग्रामीण स्तर पर खर्च बढ़ने और अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य की बदौलत अर्थव्यवस्था के विकास को रफ्तार मिलेगी. इसके अलावा निजी निवेश में सुधार होता रहेगा. इन्वेस्टर्स फर्म ने कहा कि जीएसटी की वजह से हो रहे बदलाव का थोड़ा-बहुत असर अगली कुछ तिमाही में भी इकोनॉमी पर दिख सकता है.
वही दूसरी ओर
मोदी सरकार ने अप्रैल 2015 में मुद्रा योजना की शुरुआत करते हुए देशभर में छोटे और मध्यम कारोबार शुरू करने के लिए लाखों करोड़ रुपये के आसान कर्ज बांटे. इस कर्ज को बांटने के पीछे सरकार की मंशा कारोबार को बूस्ट देने के साथ-साथ देश में रोजगार के नए संसाधन पैदा करना था. लेकिन तीन साल से चल रही इस योजना ने अब सरकार की नींद उड़ा दी है. केन्द्र सरकार को डर है कि मुद्रा योजना से भी कहीं देश में बैंकों का एनपीए न बढ़ जाए और बैंकों को उबारने की उसकी कोशिशें धरी की धरी रह जाएं.
मुद्रा योजना के तहत केन्द्र सरकार ने तीन साल के दौरान लगभग 5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज देने का काम किया है. मीडिया में छपी कुछ खबरों में दावा किया जा रहा है कि मुद्रा योजना के तहत दिए गए इन कर्जों में एनपीए तेजी से बढ़ते हुए 14 हजार करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर चुका है. हालांकि एक हिंदी अखबार द्वारा एनपीए की रकम के इस दावे की पुष्टि वित्त मंत्रालय अथवा बैंकिंग व्यवस्था से नहीं हो सकी है.
वहीं सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत कुल 1.81 लाख करोड़ रुपये का कर्ज स्वीकृत किया गया जिसमें 1.75 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दे दिया गया. हालांकि इस वित्त वर्ष के लिए केन्द्र सरकार ने कुल 2.44 लाख करोड़ रुपये का कर्ज आवंटन का लक्ष रखा था. वहीं वित्त वर्ष 2016-17 में यह लक्ष महज 1.80 लाख करोड़ रुपये था.
गौरतलब है क प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्रा योजना को 8 अप्रैल 2015 में शुरू किया था और इस योजना के तहत तीन श्रेणिओं में कर्ज देने का प्रावधान है. पहला, शिशु कर्ज (50,000 रुपये तक), दूसरा, किशोर कर्ज (50,000 से 5 लाख रुपये तक) और तीसरा तरुण कर्ज (5 लाख से 10 लाख रुपये तक). इस योजना के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम कारोबार के लिए लिए जाने वाले कर्ज को बिना किसी कोलैटरल सिक्योरिटी के तहत देने का प्रावधान है.
इस तरह के कर्ज को बढ़ावा देने के पीछे केन्द्र सरकार की मंशा देश में ज्यादा से ज्यादा रोजगार के नए संशाधन खड़े करने की है. केन्द्र सरकार की इस पायलट योजना का कर्ज देश में सरकारी बैंक, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था और माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के जरिए दिया जाता है. केन्द्र सरकार के आंकड़ों के देखें तो वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान कुल 4,03,89,854 लोगों को मुद्रा कर्ज दिया गया. वहीं योजना के प्रावधान के मुताबिक 75 फीसदी तक यह कर्ज महिलाओं को दिया गया है और 50 फीसदी तक के मुद्रा कर्ज अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को दिया गया है.
जानकारों का दावा है कि मुद्रा योजना के ये प्रावधान कर्ज का रिस्क फैक्टर बढ़ा देते हैं. वहीं बैंकिंग से जुड़े कुछ एक्सपर्ट्स का दावा है कि मुद्रा योजना के तहत किसी व्यक्ति को एक बार कर्ज देने के बाद उसके उपक्रम के लिए रीफआइनेंनसिंग नगण्य के बराबर है जिसके चलते मुद्र कर्ज लेने वालों के सामने शुरुआती घाटा खाने की स्थिति में दुबारा खड़े होने के लिए रीफाइनेंसिंग की समस्या रहती है.
वहीं मुद्रा योजना के तहत सभी कर्ज देने का काम सरकारी बैंकों को ही करना है जो पहले से ही एनपीए की गंभीर समस्या में फंसे हुए हैं. गौरतलब है कि केन्द्र सरकार ने हाल ही में सरकारी बैंकों को एनपीए से उबारने के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये का रीकैपिटेलाइजेशन मसौदा तैयार किया है जिससे बैंक अपने नए कर्ज आवंटन में रिस्क को कम कर सकें.
हालांकि मुद्रा योजना के तहत केन्द्र सरकार ने लगातार बैंकों पर दबाव बना रखा है कि वह केन्द्र सरकार के मुद्रा लोन के लक्ष्य को समय से पूरा करें. लिहाजा, इन परिस्थितियों में सवाल खड़ा होता है कि क्या मुद्रा योजना ने बैंकों के सामने दोहरी चुनौती खड़ी कर दी है. एक तरफ वह सरकार से पैकेज लेकर अपने एनपीए को सुधारने की कवायद कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार के दबाव में मुद्रा योजना का असुरक्षित कर्ज देकर वह अपने एनपीए को बढ़ाने का रास्ता साफ कर रहे हैं?
पंजाब नेशनल बैंक में करीब 11,500 करोड़ रुपये के महाघोटाले के सामने आने के बाद इस बैंक की बाड़मेर शाखा में एक और घोटाला सामने आया है. इस बार इस बैंक में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना में फर्जीवाड़े की बात सामने आई है. सीबीआई ने इस मामले में केस भी दर्ज किया है.
मुद्रा योजना पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका जिक्र वह अक्सर बेरोजगारी के सवाल पर करते हैं. इस योजना में कम ब्याज दरों पर लोन दिया जाता है और लोन देने के बाद इस राशि के जरिए आवेदक को कुछ संपत्ति अर्जित करनी होती है. इस शाखा से जारी किए गए मुद्रा लोन में ऐसा नहीं हुआ.
सीबीआई के मुताबिक राजस्थान में पीएनबी की बाड़मेर शाखा में एक सीनियर ब्रांच मैनेजर ने सितंबर 2016 और मार्च 2017 के बीच ‘बेईमानी और धोखाधड़ी’ से 26 मुद्रा लोन’ बांटे. कहा गया है कि इसके कारण बैंक को करीब 62 लाख रुपये का नुकसान हुआ.
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक सीबीआई का कहना है कि ताजा बैंकिंग घोटाले में पीएनबी ने व्यापार या आवास का सत्यापन किए बिना आवेदकों को मुद्रा लोन जारी कर दिए. इस योजना के माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) योजना के तहत फर्जी लोन जारी किए गए.
सीबीआई ने इस मामले में पीएनबी बाड़मेर शहर के तत्कालीन ब्रांच मैनेजर इंदर चन्द्र चंदावत के खिलाफ केस दर्ज किया है. सीबीआई ने कहा है कि उन्होंने लोन जारी करने से पहले आवेदकों की जांच नहीं की, फिजिकल वेरीफिकेशन नहीं किया और लोन देने के बाद आवेदकों के संपत्ति अर्जित करने की भी जांच नहीं की.
सीबीआई ने बताया कि जारी करने से पहले 26 लोन में से केवल एक की जांच की गई. इसके अलावा, किसी भी बैंक शाखा को 25 किमी आसपास तक के इलाके में रहने वालों को लोन जारी करने की इजाजत होती है. लेकिन, पीएनबी के केस में 100 किमी दूर के इलाके में रहने वालों को भी लोन जारी किए गए.
अब इन 26 में से पांच लोन एनपीए हो गए हैं. बैंक अब 62 लाख रुपये वसूल भी नहीं सकता है, क्योंकि इन्होंने आवेदकों ने कोई संपत्ति भी अर्जित नहीं की. सीबीआई को पता चला कि इस मामले में जोधपुर में तैनात पीएनबी के डिप्टी जनरल मैनेजर ने जांच भी की थी और इस शाखा के मैनेजर को सस्पेंड भी किया गया था, लेकिन बाद में यह सस्पेंशन वापस ले लिया गया. अब घोटाले के आरोपी की राजस्थान की अबू रोड स्थित पीएनबी शाखा में नियुक्ति है.
बता दें कि इससे पहले, हीरा कारोबारियों नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने पीएनबी के साथ हजारों करोड़ रुपयों की धोखाधड़ी की थी. अब नए घोटाले में चंदावत पर आरोप हैं कि उन्होंने करीब दो करोड़ रुपये के मुद्रा लोन की राशि को प्राइवेट खातों में ट्रांसफर करा लिया.
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