पूरी भगवान जगन्नाथजी के मंदिर ;आपदा काल में नरसिंह की सवारी आती है
प्रहलाद एवं उसकी माता ”’नरसिंहावतार”’ को हिरण्यकश्यप के वध के समय नमन करते हुए नरसिंह नर + सिंह (“मानव-सिंह”) को पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे वे भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं। . हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति-
अदभुत अलौकिक ; भगवान नरसिंह बाहर आ गए : सैकड़ो सालो बाद नरसिंह बाहर आ गए;
जय श्रीमन्नारायण, यह पूरी भगवान जगन्नाथजी के मंदिर में विराजित भगवान नृसिंह का उत्सव विग्रह है। यह कभी बाहर नही आते। आपदा के समय ही भगवान जगन्नाथ मंदिर से बाहर पालकी में सवार होकर आते है, भक्तों को विश्वास और धैर्य बंधाने नारसिंही शक्ति आ गई, विधाता ने संदेश दिया “मैं हूँ, सब ठीक होगा”;
नरसिंह भगवान की कृपा से अप्रैल तक स्थिति सामान्य हो जाएगी, ज्ञात हो कि
पिछली बार भगवान १९०५ की आपदा में बाहर आये थे। “हिमालयायूके” के लिये चंद्रशेखर जोशी की प्रस्तुति https://www.facebook.com/himalayauk/videos/10207281399749110/
भगवान् जगन्नाथ रथयात्रा के चौथे दिन विष्णु जी के चौथे स्वरूप नरसिंह नाथ के रूप में भक्तो को दर्शन देते है। भगवान् को इस दिन विष्णु के चौथ स्वरूप में ही पूजा जाता है। स्वामी जगन्नाथ को रथयात्रा के चौथे दिन भगवान् विश्ने के चौथे अवतार नरसिंह नाथ के स्वरूप में पूजा गया और भोग लगाकर आरती की गई। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु का नाम लेते थे तो प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप उन्हें यातनाएं दिया करते थे। हिरण्यकश्यप को वरदान था कि उसकी मृत्यु न दिन में हो सकती थी न रात में। घर के भीतर और घर के बाहर भी उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। ऐसे में प्रहलाद की रक्षा में भगवान विष्णु ने खंभा चीरकर नरसिंह अवतार लिया और घर की चौखट पर संध्याकाल में हिरण्यकश्यप का सीना चीरकर संहार किया था। महाप्रभु की रथयात्रा के दस दिनों तक भगवान् विष्णु के दशावतार में दर्शन देते है। उनकी पूजा अर्चना भी उन्ही स्वरूपों में की जाती है। इसके बाद भगवान् दसवे दिन अपने स्थान श्रीमंदिर को लौटते है। जिसके बाद देशयनी एकादशी को भगवान् का स्वर्णाभूषणों से श्रृंगार किया जाता है, जिसे सोनाबेषा कहा जाता है। जिसके बाद भगवान् जगन्नाथ सभी देवी देवताओं के साथ बैकुंठ धाम जाते है। जिसके बाद भगवान् चार महीने तक बैकुंठ धाम में विश्राम करते है। जिसे चातुर्मास भी कहा जाता है।
पुरी के इस मंदिर में तीन मुख्य देवता विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र व उनकी बहन सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुंदर आकर्षक रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। ओडिशा राज्य के शहर पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है, यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। पुरी नगर श्री कृष्ण यानी जगन्नाथपुरी की पावन नगरी कहलाती है। वैष्णव सम्प्रदाय का यह मंदिर हिंदुओं की चार धाम यात्रा में गिना जाता है। जगन्नाथ मंदिर का हर साल निकलने वाला रथ यात्रा उत्सव संसार में बहुप्रसिद्ध है। पुरी के इस मंदिर में तीन मुख्य देवता विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र व उनकी बहन सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुंदर आकर्षक रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं
वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि इस मंदिर में प्रवेश की इजाजत सिर्फ और सिर्फ सनातन हिन्दुओं को ही मिलती है। दूसरे धर्म के लोगों और विदेशी लोगों के प्रवेश पर सदियों पुराना प्रतिबंध लगा हुआ है। इसलिए भारत की प्रधानमंत्री को भी इस मंदिर में अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी गई। यानी भारत का प्रधानमंत्री भी अगर हिन्दू नहीं है तो वो इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों के मुताबिक इंदिरा गांधी हिन्दू नहीं बल्कि पारसी हैं। इसलिए 1984 में उन्हें इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। वर्ष 2005 में थाईलैंड की रानी को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। सिर्फ भारत के बौद्ध धर्म के लोगों को ही जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की इजाजत। वर्ष 2006 में स्विजरलैंड की एक नागरिक ने जगन्नाथ मंदिर को 1 करोड़ 78 लाख रूपए दान में दिए थे। लेकिन ईसाई होने की वजह से उन्हें भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई। वर्ष 1977 में इस्कॉन आंदोलन के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद पुरी आए। उनके अनुयायियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। यानी पैसा हो या राजनीतिक शक्ति जगन्नाथ मंदिर में किसी का रसूख नहीं चलता।
पुरी में श्री जगन्नाथ का मंदिर है. जहां इनकी आम भगवानों की तरह पत्थर की नहीं बल्कि लकड़ी की मूर्ति रखी हुई है. ये भगवान कैसे प्रकट हुए इसकी एक कहानी बहुत फेमस है. ये स्कंद पुराण के वैष्णव खंड के ‘पुरुषोत्तम क्षेत्र महात्म्य’ में लिखी हुई है. शिवजी ने अपने बेटे कार्तिकेय और स्कंद को सुनाई थी. लेकिन ये चुपके से जैमिनी ऋषि ने सुन ली. ऋषि ने ये स्टोरी दूसरे तपस्वियों को सुनाई. जगन्नाथ बड़े आराम से अकेले अपनी गुफ़ा में रह रहे थे. गुफ़ा भी ऐसी जगह, जैसे कोई टूरिस्ट स्पॉट, घने जंगल और नीली पहाड़ी के बीच. जगन्नाथ को टिपिकल भगवान वाला लुक दिया जाता है. चार हाथ हैं. इनमें भी कुछ-कुछ पकड़ा हुआ है. ये उनके अस्त्र-शस्त्र हैं.